माननीय मंत्री जी और बोर्ड मेंबर, कृपया रोकें अब हत्या और लूट का सिलसिला!
रोटेशन के अभाव में आप देखिए कि कैसे नेक्सस के अंदर नेक्सस बन गए! काम से किसी को कोई मतलब नहीं। आप दबंगई करेंगे तो बचाने वाले तमाम हैं, वरना कहीं कोई सुनवाई नहीं है? और यह माननीय रेलमंत्री जी आपकी नाक के नीचे आपके प्रधानमंत्री जी के संसदीय क्षेत्र का हाल है!
माननीय मंत्री जी आपके बोर्ड सदस्यों से आपस में किसी के जैसे भी मतभेद हों, ये बात सब मानते हैं कि इनकी इंटीग्रिटी पर किसी ने अभी तक उंगली नहीं उठाई, और इनका अब तक का रिकॉर्ड भी कुछ ऐसा ही रहा है। मंत्री जी आपके ऊपर कई मंत्रालयों का कार्यभार है और वैसे भी बोर्ड सदस्यों की टीम के बिना एफिशिएंट कार्य-निष्पादन संभव नहीं है-ये वे लोग हैं जो अपना नाम और अपना भविष्य अपने हस्ताक्षर के साथ हर उस फाइल में लगाते हैं, जो आपके सामने पुटअप होती हैं।
“Role of Sudhir Kumar: If he has been asked by Railway Minister, why he is not signing papers?”
पता चला है कि #Advisor साहब का टेंडर, ट्रांसफर-पोस्टिंग में हस्तक्षेप अब कुछ कम हुआ है। इस बात को कुछ ऐसे समझें कि, मंत्री जी आपने अपने ऊपर से, मोदी सरकार पर से और अपने राजनैतिक भविष्य पर से भी एक बहुत बड़ी बला कुछ हद तक टाल ली है। आपके काम की टेलीकॉम और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालयों से अच्छी फीडबैक मिल रही है, वहां से यह भी पता चला कि इन मंत्रालयों में आपके सलाहकारों का वैसा आतंक नहीं है, जैसा रेल मंत्रालय में देखा जाता है, और वहां के लोगों को वहां के आईएएस अधिकारी सिस्टम से ज्यादा बाहर जाने नहीं देते हैं, जो देश के लिए और मंत्री जी आपके के लिए भी बहुत अच्छा है।
रेल में वाहवाही करने वाले इतने अधिक हैं कि अच्छे-अच्छों के पैर डगमगा जाते हैं। आप राजनीति में लगभग नए हैं, लालू प्रसाद यादव को ही ले लें, उनके कार्यकाल पर दुनिया के बड़े-बड़े मैनेजमेंट स्कूलों और मैनेजमेंट गुरुओं ने केस स्टडी करवाईं। लेकिन अंत में क्या हुआ, आप हमसे बेहतर जानते हैं। ऐसा ही कुछ पीयूष गोयल के सलाहकार समूह ने उनके साथ किया।
तभी हमने अपनी ई-बुक्स के मुख पृष्ठ पर लिखा है-
“Khan Market Gang (#KMG) of Indian Railways Explains: Why Indian Railways has been Waterloo for its Ministers, how Core of Indian Railways is run by Emotionally Intelligent people who have devastated this age old and strong Organisation by being ace manipulators, how All India Delhi Service (AIDS) hollowed Indian Railways, how technically incompetent surf-riders survived and thrived by selling snake oil, why coming generations of Indians will pay dearly for the machinations of this Gang, how they survive in railways even though they get booted out elsewhere.”
मंत्री जी, आपके #Advisor साहब आपके पास के चैंबर में आज भी विराजमान हैं, जबकि उनके कारनामों पर लिखे हमारे लेखों का चौथा अंक शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
वॉल्यूम 1, 2, 3 में क्रमशः 37, 19, 17 लेख आ चुके हैं। चौथे वॉल्यूम में ये आठवां लेख है। हर लेख में रेल के वरिष्ठम स्तर से लिया गया फैक्चुअल फीडबैक है, जो आपकी टीम द्वारा कराए 360 डिग्री रिव्यू से कहीं ज्यादा प्रामाणिक और विश्वसनीय है।
ये बहुत रोचक बात है कि श्रीमान #Advisor साहब बहुत चौकस हैं और मंत्री जी के पास वाले कमरे में डटे हैं। बाकी मंत्री जी स्वयं बहुत समझदार हैं!
हमारे उठाए गए विषयों से ये तो अच्छा रहा कि रेलवे ट्रैक (पी-वे) वरिष्ठ सिविल इंजीनियरों के नेतृत्व में सौंपा गया – नहीं तो रेल की बिगड़ती सेफ्टी 2024 पर अपनी काली छाया छोड़ देती। साथ ही #MTRS और मेंबर फाइनेंस भी रेगुलर बनाए गए, जिससे रेलवे बोर्ड की गरिमा पुनः स्थापित हुई। लेकिन जो इस दौर में सिस्टम की फजीहत हुई उसका बोझ मंत्री जी के कंधों पर ही आएगा, उनके सलाहकार समूह के पास नहीं।
“#SOS! The uncertainty in Railway is on account of ill thought of transformation!”
“नीतिगत गलतियों का दोहन अपने हित में करने वाले अधिकारियों का सीएजी ऑडिट करवाया जाए!”
“फंस गया इस बार खान मार्केट गैंग का प्लान!”
“#हरिकेश की मर्माहत मृत्यु – और क्या-क्या दिखाएगा ये खान मार्केट गैंग? पार्ट-1”
“#हरिकेश की मर्माहत मृत्यु – और क्या-क्या दिखाएगा ये खान मार्केट गैंग? पार्ट-2”
“#हरिकेश की मर्माहत मृत्यु – अभी और क्या-क्या दिखाएगा ये खान मार्केट गैंग? पार्ट-3”
मंत्री जी, आपने 3 अप्रैल को एक महत्त्वपूर्ण बयान दिया रेल के विजिलेंस पर! जिसे रेल अधिकारी ‘Statesman like’ करार दे रहे हैं।
अब हम आपके समक्ष एक लघु सीरीज रखेंगे, जो इन विषयों पर प्रकाश डालेंगे:
• विजिलेंस विभाग का प्रामाणिक 360 डिग्री रिव्यू!
• WAG12B पर आधारित #BLW में प्रस्तावित रेल इंजन के टेंडर को प्रकाशित होने के बाद रोका जाना ‘averted accident’ है-लेकिन इसमें निहित विजिलेंस एंगल क्यों नहीं देखा गया!
हमारा फोकस ‘fountainhead of corruption’ पर ही रहेगा – जो रेल भवन से संचालित होता रहा है!
तो आव्हान आप सबसे हमारे, आपकी विजिलेंस टीम के 360 डिग्री पर!
माननीय मंत्री जी, आपके 3 अप्रैल को फील्ड यूनिट्स को दिए संभाषण ने पूरे सिस्टम को उत्साहित किया है, और उस पर हमने विस्तृत ट्वीट कर सुझाव भी दिए हैं, तथा रेलवे के रिटायर्ड अधिकारियों के इनपुट से एक विस्तृत लेख भी लिखा:
“रेलमंत्री का विजिलेंस विभाग पर बयान: रेलवे/सरकार की पालिसी कैसे समझ सकते हैं अनुभवहीन अधिकारी!”
हमने रेल भवन में कार्यरत विजिलेंस की वह टीम, जिसने पूरी भारतीय रेल को झकझोरकर रख दिया, का 360 डिग्री रिव्यू करवाया। हमारे इस 360 डिग्री रिव्यू में अधिकारी (रिटायर्ड और सर्विंग) और वेंडर्स/कांट्रैक्टर्स भी शामिल हैं।
उन्होंने हमें निम्न बातें बताईं:
पहला, कॉम्पिटेंस की दृष्टि से आजतक रेलवे बोर्ड विजिलेंस की सीनियर टीम का विश्लेषण नहीं हुआ – हमारे लेख ने नई परिपाटी रखी है, जिसका सबने खुला स्वागत किया है। एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी, जो इस टीम से प्रताड़ित हुए और जिनको तत्कालीन #MTRS से राहत मिली, का ये कहना रहा:
“मंत्री जी ने अपना या परिवार का कभी एक्स-रे या ब्लड टेस्ट करवाया होगा। जो टेक्निशियन टेस्ट करता है वह आपके टेस्ट पर कमेंट तो कर सकता है, लेकिन ये टेस्ट मंत्री जी किसी अनुभवी डॉक्टर को दिखाकर ही उस पर अमल करते होंगे। डॉक्टर इन टेस्ट रिजल्ट्स को आपके बाकी क्लिनिकल सिम्पटम्स, आपके लाइफ स्टाइल इत्यादि के साथ को-रिलेट करते हैं, नहीं तो गूगल बाबा के चलते क्या आवश्यकता है डॉक्टर के पास रिपोर्ट ले जाकर ऐक्शन लेने वाली बात समझने की?
ऐसा ही हाल विजिलेंस के #EDs का है। रेल मंत्रालय को अपने खुद के विजिलेंस अधिकारी इसीलिए दिए गए, क्योंकि इस वृहद् व्यवस्था में हर क्षण फाइनेंसियल इम्प्लिकेशन वाले निर्णय लिए जाते हैं। इनको यदि डॉक्टर की तरह नहीं देखा गया तो प्रति क्षण एक विजिलेंस केस बनेगा। यही कारण है कि अनुभवी अधिकारी जब फाइलों को देखते हैं, उनको रेलवे बोर्ड के निर्देशों से, इस्टैब्लिश्ड पास्ट प्रैक्टिस से जोड़ते हैं तब विजिलेंस एंगल के बारे में कुछ कह पाते हैं। अनुभवहीन अधिकारी जब वन्दे भारत जैसे केस देखते हैं, जो वेंडर डायरेक्टरी के बाहर की खरीद होती है, तो वे अपने सीमित अनुभव से इन्हें जोड़कर इस पर निर्णय दे देते है। वहीं जहां सरकार की नई नीतियां, जैसे मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, इत्यादि नए नीति-निर्देशों की बात आती है, तो इंडस्ट्री की प्रैक्टिस से अनभिज्ञ ये अनुभवहीन विजिलेंस अधिकारी इन केसेस की मूल में नहीं जा पाते-और जो उन्हें नहीं समझ आया वह विजिलेंस एंगल कहलाने लगता है। रेल चलाने की, सेफ्टी के बारे में लिए निर्णय, जिनमें फाइलों पर भिन्न स्तरों पर विचार हुआ है, उस प्रक्रिया को भी ये सिरे से खारिज कर देते हैं, जैसा #VandeBharat, #MCF, #CORE और अन्यत्र के केसेस में हुआ।
आर. के. राय ने बतौर #EDVigilance जो केस उठाए और जो केस उन्होंने छोड़े, उन्हीं में बहुत बड़ा विजिलेंस एंगल था-लेकिन यदि #EDStores भी जब अनुभवहीन हो, और #PEDVigilance धुर-शातिर हो, तो उसकी कीमत बेगुनाहों के कैरियर की हत्या से ही चुकती है। कितने केस आए जहां अधिकारियों ने समभाव से सारे केस देखे, लेकिन बोर्ड विजिलेंस द्वारा अपनी सीमित समझ के चलते इन बोल्ड और रेल के लिए जीने वाले अधिकारियों की रीड़ तोड़ दी गई। मजे की बात यह कि फाइल पर दी शुद्ध टेक्निकल एडवाइस/निर्णय को भी विजिलेंस अधिकारी आत्ममुग्ध होकर खारिज करने से नहीं हिचकते।
हां, बोर्ड मेंबर्स फिर यथाशक्ति प्रयास अवश्य करते रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि डिलीवरी की जवाबदेही उनकी है और यदि वही अपने सबसे अच्छे अधिकारियों को शहीद कर देंगे तो ये ऐसी नजीर बनती है कि फिर सामान्य अधिकारी अपने उच्चाधिकारियों की बात नहीं मान पाएगा और हाथ जोड़कर ट्रांसफर मांग लेगा। यह सामान्य बात कही जाती है कि, “यदि फलां साहब, जिनको हम अपना आदर्श मानते रहे, नहीं बच पाए, तो हम क्या चीज हैं।” ये बात आज व्यापक रूप से बोली जा रही है।
ऐसे में यह आवश्यक है कि विजिलेंस अधिकारी, चूंकि वह भी रेल से ही हैं, फाइल पर यह भी लिखें कि इन तथ्यों पर वह स्वयं क्या निर्णय लेते, यदि वह चार्ज्ड ऑफिसियल (#CO) की कुर्सी पर होते! यह दोनों बातें, सीओ और विजिलेंस ऑफिसर का स्टेटमेंट कि वह इन तथ्यों पर स्वयं क्या निर्णय लेते-यह दोनों की बातें स्पष्टता से डिसिप्लिनरी अथॉरिटी (#DA) को पुटअप हों।
विजिलेंस के अधिकारी को स्वायत्त रखने के लिए उनकी टेन्योर पूरा होने पर पोस्टिंग की चॉइस रहती है-लेकिन यदि इन अधिकारियों ने जानबूझकर हत्या (botched up) के केस ज्यादा किए हैं, तो इन्हें यह प्रोटेक्शन नहीं मिलना चाहिए। #RKJha के प्रमोशन से और आरडीएसओ, लखनऊ में पोस्टिंग से बहुत गलत संदेश गया। #RKRai को चॉइस पोस्टिंग के साथ हाउस रिटेंशन देने में quid-pro-quo क्यों नहीं देखा गया? क्यों आर. के. राय के 360 रिव्यू में उनके बैचमेट्स से बात नहीं की गई, जो बताते कि उनकी अपने ही बैचमेट्स से ‘उम्मीद’ रहती थी। श्री राय का रिटायरमेंट के तुरंत बाद बिजनेस में सीधा उतरना क्या conflict of interest नहीं है? हालांकि हर पिता का अधिकार है कि वह अपने बच्चों की मदद करे, लेकिन उस पिता के पास ये अधिकार नहीं, जिसने अन्य #ED और #PED से मिलकर लोगों के और उनके परिवारों के सुख-चैन छीन लिए हों।
आर. के. राय आज एक #PSU में सलाहकार हैं-क्यों? जबकि #Railwhispers ने जब यह स्पष्ट किया कि उनके पास #JAG और #SAG में शून्य अनुभव रहा है, ऐसे में #RVNL की ऐसी क्या बाध्यता रही कि इतना बड़ा फेवर उन्हें सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद दिया गया? वैसे भी #RVNL सैकड़ों करोड़ के एडवांस पेमेंट के मामले में पहले से ही विवादों में है!
यह बात भी सामने आई कि #RVNL में आर. के. राय के कई चेले-चपाटे और मित्र भरे हैं। प्रमुख तौर से बिजली के एक अधिकारी, जिनके ससुर जी रेल में महाप्रबंधक रहे थे। इन सबका सीधा हस्तक्षेप आज भी है। रेल के बाहर पोस्टेड कुछ अधिकारी भी कई बार इस खेल में उतर जाते हैं!”
(उपरोक्त फीडबैक को इस लेख के अनुरूप कुछ एडिट किया गया है और इसे एक अन्य सोर्स से वेरीफाई भी करवाया गया है!)
एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी का भी यह कहना था कि:
“लुक ऑफ्टर में चलता रेल भवन #KGF जैसी फिल्म दिखता था-यहां हर लेवल पर गुंडे थे, कुछ मोहल्ले के स्तर वाले, तो कुछ वे जो संसद में थे। यहां एक स्तर राय साहब जैसे खिलाड़ी अपने चेलों के साथ सम्भाले रहे। लूट तो खूब हुई, साथ ही जिसने इन नेक्सस की खिलाफत की उनके कैरियर की निर्मम हत्या कर दी गई-जिसमें हर स्तर के गुंडे शामिल थे। मंत्री जी का स्टेटमेंट एक उम्मीद पैदा करता है कि कम से कम अब रेलवे विजिलेंस में अनुभवी अधिकारी लिए जाएंगे, जिन्होंने फाइलों पर निर्णय लिए हैं और जो अपने विषय को समझते हैं। कैसे किसी केस में बहुत सारे अधिकारियों का विजिलेंस एंगल एकसाथ बन सकता है? यदि रोटेशन होता रहे, तो अधिकारियों और उनके सुपरवाइजर्स का नेक्सस या अधिकारियों और वेंडर्स का नेक्सस नहीं बन पाएगा। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो कमेटी आधारित वित्तीय और खरीद के निर्णय कभी न हो पायेंगे।”
(इस फीडबैक को भी लेख की भाषा-शैली से मिलाते हुए संपादित मात्र किया गया है!)
दूसरा, वहीं एक अन्य सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी ने कुछ बुलेट पॉइंट भेजे थे, जिनको हमने जांच-परखकर दुबारा इस लेख की शैली के अनुरूप लिखा। उन्होंने बहुत गहरी बातें बताईं-
उनका यह कहना था, “आर. के. राय, सेवानिवृत्त #MTRS घनश्याम सिंह के बहुत करीबी थे। राय ने ही घनश्याम सिंह की तमाम कदाचारी के सारे केस बंद करने में बहुत मदद की थी। यदि यह सारे केस बंद नहीं होते, तो घनश्याम सिंह का कैरियर खत्म था-वे DRM भी नहीं बन पाते। वह तो यहां तक कहते हैं कि घमासान सिंह का तो रिटायरमेंट भी पचड़े में पड़ गया होता यदि उनकी फाइल प्रॉपर चैनल से होकर गुजरती, मगर तत्कालीन सीआरबी ने उनकी फाइल सीधे क्लीयर कर दी थी। इसी तरह #CLW के पूर्व महाप्रबंधक #PKMisra भी इसी गुट के सदस्य थे। मिसरा पर स्वयं के पास मिस्यूज के गंभीर आरोप थे-जो उस समय के अधिकारी बताते हैं प्रामाणिक साक्ष्य के साथ थे, इन्हें बंद करवाया गया था। मिसरा-घनश्याम-राय ने मिलकर लोको और आरई में बहुत उठा-पटक की, जिसमें इनके ऊपर गंभीर आरोप भी लगे। लेकिन जब विजिलेंस और डिसिप्लिनरी अथॉरिटी दोनों मिल जाएं, तो फिर क्या डर, और किसका भय! यही कारण रहा कि मिसरा ने थोक भाव में विजिलेंस केस बनवाए और घनश्याम सिंह को सीआरबी नहीं बनाया गया। ऐसा ही मामला #ICF के एक पूर्व जीएम और तथाकथित #वंदेभारतमैन, जिनके विरुद्ध लगभग हर उस पोस्ट पर विजिलेंस केस बने, जहां-जहां वह रहे थे, की भी रिटायरमेंट फाइल तत्कालीन सीआरबी एवं चार डिग्रीधारी टेक्नोक्रैट द्वारा सीधे क्लीयर की गई थी।”
पाठकगण, आपको स्मरण होगा कि हमने माननीय प्रधानमंत्री जी के संसदीय क्षेत्र में स्थित #BLW में व्याप्त माफियागीरी पर प्रकाश डाला था। स्थानीय दबंग द्वारा एक कनिष्ठ कर्मी को दी गई धमकी के तार #KMG और आर. के. राय से जुड़े पाए गए। तथापि इन लेखों का एक बार पुनः अवलोकन करें-
“#KMG की दादागीरी के सामने प्रॉपर बोर्ड भी धराशाई!”
“शैतानी और अपराधिक भूल के सुधार के लिए साधुवाद!”
“अधूरा न्याय: क्या स्वतंत्र निर्णय लेने में असमर्थ हैं #MTRS?”
इनके ऊपर भी हमें एक स्थानीय फीडबैक आया था, चूंकि प्रथमदृष्टया बात प्रामाणिक नहीं लगी तो इसे वेरीफाई करवाने में कुछ समय लग गया-मगर बाद में यह बात चिंताजनक रूप से सच पाई गई, जिससे हमारा यह लेख और अधिक पुष्ट हो गया-
“योगी जी के राज में अतीक-मुख्तार का राज और अय्याशी कैसे चली?”
बात यह सामने आई:
आर. के. राय स्थानीय जातिगत राजनीति में बहुत इन्वाल्व्ड रहे। वह मनोज कुमार सिन्हा, जो पहले रेल राज्यमंत्री थे और अरविंद कुमार शर्मा, ऊर्जा मंत्री, योगी सरकार के साथ अपना सामीप्य बताकर #BLW में अपना भौकाल बनाते रहे। हालांकि यह बात सब मानते थे कि श्री सिन्हा और श्री शर्मा का ये केवल नाम ही यूज करते थे, लेकिन सबके मन में शंका तो हो ही जाती थी – श्री सिन्हा और श्री शर्मा के पास एक सामान्य बरेका कर्मी या अधिकारी की पहुंच नहीं है, राय महाशय और उनके चेले भी यह बात बहुत अच्छी तरह जानते थे, और इसीलिए वह इसका जमकर लाभ उठाते थे।
जैसे आर. के. राय अपने को इन राजनेताओं का करीबी और रिश्तेदार बताते रहे, वहीं स्थानीय राय समाज से आए एक लायजनर हिमांशु राय भी अपने को #RKRai का सगा और रिश्तेदारी का नाम लेकर #BLW की हर शॉप्स में निर्बाध विचरण करता है आज भी, कर्मियों को धमकाता है और कुछ चिन्हित अधिकारियों के कमरे में बिंदास विराजता है – जहां यूनियन और स्टाफ कौंसिल के कुछ बौड़म सदस्य अड्डेबाजी करते हैं। यह सब आर. के. राय के #Nuisance पोटेंशियल को जानते हैं, तो स्वाभाविक है सब उनसे थोड़ा डरते हैं और इसी डर पर राय महाशय अपनी दूकान चलाते रहे हैं। वेंडर्स को उनके लाखों-करोड़ों के माल को डैमेज करके कैसे मजबूर किया जाता है, इस तरह के बाकी कारनामे भी शीघ्र ही प्रकाश में आएंगे।
#BLW में #RKRai अब स्वयं वेंडर के रूप में आ गए हैं और उनके चेले अन्य वेंडरों की लायजनिंग कर रहे हैं। #KMSingh, जो राय के अनन्य भक्त और करीबी हैं, का 15 साल #BLW में रहने के बावजूद यहीं प्रमोशन देकर पोस्ट करना इसी क्रम में देखा जा रहा है। हमने उक्त लेखों में बताया था कि कैसे इस्टैब्लिश्मेंट ऑफिसर और रेलवे बोर्ड के एक ईडी/विजिलेंस, #KMSingh के अत्यंत करीबी और घरऊआ हैं – जो राय के ही तंत्र का हिस्सा हैं, इनका भी नाम किसी दिन उजागर हो जाएगा। यहां एक बार पुनः पढ़ें–
“अधिकारी-वेंडर-नेक्सस का नया स्वरूप-अधिकारी स्वयं बना वेंडर”
रोटेशन के अभाव में आप देखिए कि कैसे नेक्सस के अंदर नेक्सस बन गए! काम से किसी को कोई मतलब नहीं। आप दबंगई करेंगे तो बचाने वाले तमाम हैं, वरना कहीं कोई सुनवाई नहीं है? और यह माननीय रेलमंत्री जी आपकी नाक के नीचे आपके प्रधानमंत्री जी के संसदीय क्षेत्र का हाल है!
रेल सिस्टम की गुहार
#Railwhispers ने हमेशा क्रेडिबल लीडरशिप की बात की है। यहां एक बार फिर से इस लेख को पढ़ा जाना प्रासंगिक होगा-
क्रैडिबिलिटी बनेगी उन अधिकारियों से जो विषय के जानकार हैं, समभाव से हर केस देखें, मेरिट पर निर्णय लें, अपने जूनियर अधिकारियों के लिए प्रेरणा बनें, न कि जोड़-तोड़ से सिस्टम में जमे कदाचारी अधिकारियों को पुरस्कृत करके सिस्टम को और अधिक चौपट करें! ये अधिकारी मंत्री जी आपके मंत्रालय की ढ़ाल हैं। #KMG वाले आपको मंत्रियों की उस लंबी लिस्ट में देखते हैं जिनको उन्होंने अब तक शीशे में उतारा।
#RVNL (#PSU) के #CMD, सीआरबी सहित रेलवे बोर्ड के मेंबर्स, और माननीय रेलमंत्री जी, अब तो इस अनाचार को रोकें। अक्षम और गलत अधिकारियों को सेवा में रहते हुए और सेवनिवृत्ति के बाद पुरस्कृत करना बंद हो। आर.के.झा-आर.के.राय-अशोककुमार द्वारा डील किए विजिलेंस केसेस पर श्वेत पत्र निकालें, जिसे श्रीधरन जैसे विश्वसनीय व्यक्ति की गाइडेंस में बनाया जाए! क्रमशः जारी…
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी