हरिकेश की मर्माहत मृत्यु – और क्या-क्या दिखाएगा ये खान मार्केट गैंग? पार्ट-1

हाल ही में कुछ ऐसा दिख गया कि आंखें नम हो गईं और मन भीतर तक आहत हो गया!

रेल की लापरवाह और निरंकुश कार्य-प्रणाली का शिकार होकर आकस्मिक मृत्यु को प्राप्त हुए निर्दोष यात्री हरिकेश दुबे के दो बच्चे हैं, 7 और 4 साल के, और वे अपनी बहन के विवाह संबंधित कार्यक्रम में जा रहे थे – आप को सीट पर पड़ा खून न दिखे तो शांत चेहरा देख लगेगा कि ये युवक सो रहा है। एक सब्बल, जो ट्रैक पर पड़ा था, कैसे अंदर आया और इस युवा के गले को भेदकर उसे अगले ही पल इस सुंदर संसार से विदा कर गया। ॐ शांति: शांति: ॐ!

हरिकेश की गलती यह थी कि रेल के बड़े बंगलों में और दिल्ली में बसने वाले कथित ट्रांसफॉर्मेशन जीवियों पर भरोसा कर वह ट्रेन में बैठ गया!

पिछले कुछ महीनों से रेल परिक्षेत्र में हो रहे भयावह हादसों (एक्सीडेंट्स) की सूची में हरिकेश की मृत्यु एक स्टेटिस्टिक्स बनकर रह जाएगी।

क्या हम भी हिम्मत करना छोड़ दें और नाउम्मीद हो जाएं कि अब कुछ नहीं हो सकता!

माननीय मोदीजी के एक वायरल मैसेज से हमें बहुत प्रेरणा मिली: “भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) जैसी संस्थाओं को डिफेंसिव होने और अपराधबोध में जीने की कोई आवश्यकता नहीं है! इसीलिए #Railwhispers खान मार्केट गैंग (#KMG) के विरुद्ध खड़ा हुआ है!”

आदरणीय मोदीजी को पता है ‘Silence grows like cancer and then devours!’ हमारी कार्य-संस्कृति में यह एक परिवर्तन का संदेश था।

व्यस्वस्था के भीतर छिपे हुए इन सफेदपोशों (बगुला भगतों) को उन्होंने 2019 में अपने एक संबोधन में “खान मार्केट गैंग” कहकर चिन्हित किया था।

https://indianexpress.com/elections/pm-narendra-modi-interview-to-indian-express-live-lok-sabha-elections-2019-bjp-5723186/

कौन हैं वे लोग जिन्हें प्रधानमंत्री माननीय मोदीजी द्वारा “खान मार्केट गैंग” (#केएमजी) के नाम से चिन्हित किया गया?

ये वह लोग हैं जो व्यवस्था को दुहते हुए सरकार में, व्यवस्था में रहकर अपने लिए कमाते रहे, अपने मित्रों-दरबारियों-दलालों और अपने परिवारों को समृद्ध करते रहे, और ‘देश की समस्याओं का हल केवल उन्हीं के पास है’ का न केवल ढ़ोल पीटते रहे, बल्कि इसी को अपनी ढ़ाल भी बनाए रहे!

जबकि यह वर्ग हमेशा से केवल ‘पैरासाइट’ या ‘परजीवी’ रहा है, गरीबों की गरीबी का हवाला देते हुए इन्होंने बढ़िया शराब और विदेशी स्कालरशिप लेकर दुनिया घूमी और बड़े-बड़े आलीशान घरों में रहकर देश की समस्याओं पर, ‘more english than british’ लहजे में बोलते पाए गए। हर परिवर्तन, हर व्यवस्था में इनका सीधा दखल रहा। इस ‘कुटिल-कूल’ वर्ग ने देश के करोड़ों परिश्रमी और निष्ठावान लोगों को हीनभावना में रखा। ये मालिक थे, और आप ‘ब्लडी देसी!’

संक्षेप में – सरकार किसी की भी रही, सिस्टम इनका ही रहा–

इन लोगों को एक गरीब परिवार से आए हुए व्यक्ति – जिसे अपने हाथों से कपड़े धोने पड़े, खाना बनाना पड़ा, छोटे से कमरे में रहना पड़ा, जिसके परिवार में कोई नेता, बिजनेसमैन या ब्यूरोक्रेट नहीं रहा – जो और तो और अंग्रेजी अंग्रेजों की तरह नहीं बोल सकता था – का नेतृत्व अपनी तौहीन लगा।

#KMG की कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण बातों को आज वर्णित करना था, कि कैसे एक व्यक्ति अपने किचन कैबिनेट से देश को इतनी गहरी चोट पहुंचा सकता है – लेकिन हरिकेश के अपनी बर्थ पर बैठे हुए मर जाने से हमारी आत्मा कांप उठी है – पहले तो कुछ ‘सामर्थ्यवान’ ही व्यवस्था का दोहन कर पाते थे-कि दिल्ली रह लें, बीवियों की अच्छी नौकरी लग जाए, अच्छे क्लब और बाजार मिल जाएं – लेकिन एक दिन जब ये दोहन रेल की मेनस्ट्रीम संस्कृति बन जाता है और लोगों का खून औद्योगिक स्तर पर पिया जाने लगता है – तो हरिकेश जैसों का मरना अवश्यंभावी हो जाता है।

मन बहुत कड़वा है – पाठकगण, क्षमा करें कि आज कलम विद्रोह कर रही है!

आज रेल के हर कोने में ‘खान मार्केट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट’ के ग्रेजुएट हैं – कैसे चिन्हित करें उन्हें?

‘ऑल इंडिया दिल्ली सर्विस’ (#AIDS) उन लोगों ने बनाया, जिन्होंने दिल्ली में रहना जीवन का ध्येय बनाया और सैकड़ों सफल भी हुए। #AIDS जैसी सर्विस आज हर बड़े शहर में है, लेकिन सत्ता के केंद्र में #AIDS ही है। ये ही सीधे तौर पर रेल भवन पर नियंत्रण रखते हैं। मंत्रियों के घर, मेंबरों के बंगले भी इन्हीं के संरक्षण में होते हैं। इन लोगों के नियंत्रण में वह सारे संसाधन होते हैं जिनके बिना एक सामान्य व्यक्ति भी जीवित नहीं रह सकता – जैसे घर, पानी-बिजली, ट्रांसपोर्ट, स्कूल-कालेज, प्रोटोकॉल इत्यादि।

दूसरा इन लोगों की पत्नियां या पति अमूमन अच्छे पदों पर या अच्छी नौकरी में होते हैं। दिल्ली में लंबे समय तक रहने से वे मौके मिल जाते हैं जो पतरातु या आद्रा वाले अधिकारी को नहीं मिल सकते। अब ‘स्पाउस ग्राउंड’ भी मजबूत हो जाता है, और अगर आपके ससुर कोई बड़े राजनेता, अधिकारी या जज हैं, तो बस- मौज करने के लिए और क्या चाहिए!

रेलवे बोर्ड में लंबे समय तक रहते हुए ये उन सारे लीवर्स का इस्तेमाल करते हैं जिससे इनका नेटवर्क और मजबूत बनता है – जैसे कथित प्रशिक्षण कार्यक्रमों अथवा ट्रेनिंग के नाम पर लोगों को विदेश भेजना या भ्रमण करवाना, मन-मर्जी या मन-पसंद की पोस्टिंग पर रखना – सारे नियमों को किनारे रखकर रेलवे बोर्ड में 6 साल तक एक ही पद पर पोस्टिंग – इत्यादि।

चूंकि ये केवल रेल भवन में और दिल्ली में रहे हैं-ये प्रोटोकॉल अधिकारी अर्थात चापलूस ज्यादा और रेल अधिकारी कम हो जाते हैं। इनका ज्ञान केवल वेंडर द्वारा समझाए मुद्दों पर या विकिपीडिया पर ही निर्भर होता है। दूध गाय देती है, किसी दूध डेरी की मशीन नहीं, यह बताए जाने पर इन्हें आंखफाड़ू विस्मय होता है।

रेल भवन के खान मार्केट गैंग (#KMG) को इन पर तौलें। मात्र चार अधिकारी 50 वर्षों से ऊपर रेल भवन में बैठे हैं – कृपया फिर से पढ़ें – जहां चाशनी होगी, वहां ‘खान मार्केटिए’ निश्चित ही सक्रिय होंगे! उनके पास ‘रेल के लिए क्या किया’ यह बताने के लिए कुछ नहीं है, मगर हां, ऊपर के सभी मापदंडों पर ये सफल होते हैं, एकदम खरे उतरते हैं।

#Khatauli का एक्सीडेंट आपको गैसल की याद दिलाता है। #गैसल_दुर्घटना के चलते कई संबद्ध अधिकारियों के कैरियर पर रोक लगा दी गई थी। लेकिन #खतौली की कीमत मोदी सरकार के वरिष्टतम मंत्री सुरेश प्रभु जी ने चुकाई – बाकी तो दो अधिकारी, पीयूष गोयल और अश्विनी वैष्णव द्वारा महाप्रबंधक बना दिए गए। और जब हम यह कहते हैं कि क्या खराब रिजल्ट की कीमत केवल रेलमंत्री ही चुकाएंगे? तो लोगों को लगा हमारा ये कहना अतिशयोक्ति है!

चूंकि इनका मुख्य काम प्रोटोकॉल देखना होता है – स्वयं का परिवार, बॉस, उन सबका जो सत्ता के समीप हैं, इन्हें वह सब सिस्टम में चाहिए जो देश के हर कोने में सेवा कर सकें। ऐसी सामंतवादी व्यवस्था चलने की कीमत एक बर्थ पर बैठे निर्दोष हरिकेश की मृत्यु है।

इस खान मार्केट गैंग के मकड़जाल को यहां हमने बताया, अश्विनी वैष्णव जी, आप पहले रेलमंत्री नहीं हैं, जो ‘खान मार्केट गैंग’ से घिरे हैं! प्रश्न कार्य संस्कृति का है।

माननीय मंत्रीजी, क्या किसी ने आपको ब्रीफ किया कि कैसे केवल अच्छी किस्मत से सैकड़ों जानें बची हैं पिछले कुछ हफ्तों में:

शालीमार एक्सप्रेस के सैकड़ों लोगों की जान बच गई, कब पीछे आती मालगाड़ी के ब्रेक फेल हो गए? मंत्री जी! रेल में अगर थोड़ी सी नैतिकता और शुचिता बचाए रखनी है, तो कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करें!

‘No one killed jessica’ की याद दिलाते हुए आज रेल के पास कोई ऐसा एक्सपर्ट नहीं, जिसके पास इतनी विश्वसनीयता हो, जो इसकी जांच कर सके, जबकि ऐसे ब्रेक फेल रेल नेटवर्क में हर तरफ से सुनाई दे रहे हैं।

जिस प्लेटफार्म पर मालगाड़ी चढ़ गई, उस पर भीड़ कम थी, क्योंकि एक मेल ट्रेन लेट थी। Kalyug – Now Train Climbs Platform and Kills!

बल्लारशाह बहुत व्यस्त स्टेशन है – यह केवल एक चमत्कार ही है कि जब लोग एफओबी से गिरे, तब उसके ठीक नीचे ट्रैक पर कोई ट्रेन नहीं गुजर रही थी। Failure of FOB in Balharshah – Indian Railway’s Morbi!

हमें विश्वास है मंत्रीजी कि यह आपको नहीं बताया गया, नहीं तो आपके चाबुक की आवाज हर तरफ अवश्य सुनाई पड़ती। लेकिन जिस #KMG के मैनीपुलेशन से आपने #khatauli के खलनायकों की पदोन्नति की है, सरकार से गद्दारी करने वालों को डीआरएम बनाया है, इस प्रकार आपने हमारे क्लेम को और सुदृढ़ ही किया है कि कीमत केवल रेलमंत्री ही चुकाएंगे!

बहरहाल, क्या आप कीमत चुकाने के लिए तैयार हो गए हैं? पार्ट-2.. रेल की कार्य संस्कृति पर— शीघ्र ही— कृपया प्रतीक्षा करें!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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