कैसे #KMG अपने गिरोह को पोसता है और गॉडफादरलेस अधिकारियों का खुला शोषण करता है, #KMG के भौकाल के आगे रेल भवन के संतरी-मंत्री सब फेल!

पिछले कुछ सालों में पूरा रेलवे बोर्ड और सेक्रेटरी/रे.बो. लुक ऑफ्टर में रहे हैं, तभी किसी के पास ये हिम्मत या क्षमता नहीं रही कि इतने बड़े रहस्योद्घाटन के बाद भी कोई प्रशासनिक कार्यवाही नहीं हुई!

एक कर्मठ, निष्ठावान और सिस्टम के प्रति समर्पित युवा अधिकारी को बार-बार ट्रांसफर करके तथा दूसरी तरफ शम्सी और नाकरा जैसे जुगाड़ुओं को बार-बार पुरस्कृत करके आखिर रेल प्रशासन व्यवस्था को क्या संदेश देना चाहता है?

यह समझने के लिए कि क्यों रेल किसी को आज तक समझ नहीं आई और क्यों ये राजनैतिक नेतृत्व पर हमेशा भारी पड़ी है, हमारी रिसर्च ने ये उजागर किया कि रेल की अपारदर्शिता के पीछे #AIDS है और एक विशेष अधिकारी वर्ग है जो भारतीय रेल का खान मार्केट गैंग (#KMG) सरीखा है-सरकार किसी की हो, सिस्टम इन्हीं का रहता है। रेल में इसे #KMG के नाम से जाना गया। हमारी रिसर्च इतनी क्लिष्ट हो गई कि हमें एक युवा ग्राफिक डिजाइनर से एक ग्राफ बनवाना पड़ा।

खैर, चूँकि जानकारी और भीतर जुड़े तार इतने उलझे थे कि हमने ये निर्णय लिया कि हम केवल सामयिक नाम ही लेंगे और प्रयास पूर्वक अपना फोकस 2014-15 के बाद के समय पर ही रखेंगे।

अश्विनी वैष्णव जी आप पहले रेलमंत्री नहीं हैं, जो ‘खान मार्केट गैंग’ से घिरे हैं!

#KMG_2_1: #KMG के सामने असहाय रेलवे बोर्ड: भाग-2

इन उपरोक्त लिंक्स में हमने कुछ बहुत ही रोचक ट्रांसफर ऑर्डर की बातें की थीं जो यहां ट्वीट भी किया गया था:

#VIP संस्कृति पर मंत्री जी के हास्यास्पद निर्णय, #VVIP कल्चर पर सन्नाटा!

#KMG_2_1: #KMG के सामने असहाय रेलवे बोर्ड!

#KMG_2_1: #KMG के सामने असहाय रेलवे बोर्ड: भाग-2

ये वे लोग हैं जो अंदर अपने हित-साधन को सर्वोपरि रखते हुए सिस्टम पर पूरी पकड़ रखते हैं। मंत्रीगण बेचारे ये सोचते रह जाते हैं कि वे व्यवस्था के ऊपर बैठे हैं, जबकि उनकी सारी इंद्रियों पर #KMG की ही पकड़ होती है। मंत्री क्या देखते हैं, क्या देख सकते हैं, क्या सोचते हैं, क्या पढ़ते हैं, क्या पढ़ाया जाता है, इस पर बेचारे मंत्री का कोई नियंत्रण नहीं रहा। एक ही अपवाद देखा गया जब लालू प्रसाद यादव के पास उनके सुधीर कुमार थे।

अभी के कमोबेश युवा रेलमंत्री तो केवल कहने के लिए ही मंत्री पद पर हैं। मंत्री सेल में उनके पीएस श्री जिंगटा को छोड़कर बाकी सभी अन्यत्र से अपनी कुर्सी थामने की क्षमता प्राप्त करते हैं। उनको ऐसा सम्मोहित किया कि उन्हें ट्रेन-18 का झुनझाना पकड़ाकर, स्टेशन की नई बिल्डिंगों के त्रिआयामी रेंडरिंग दिखाकर उलझा दिया। वहीं पूरे टेंडर, ट्रांसफर-पोस्टिंग का रैकेट #KMG के सदस्यों ने और कसकर जकड़ लिया। #Advisor साहब #Railwhispers की राइटिंग के चलते भले ही आज पार्श्व में हैं, लेकिन, निर्णायक पदों पर आज भी आदमी तो उनके ही बैठाए हुए हैं!

#IRMS आज रेल व्यवस्था पर एक क्रूर मजाक बनकर रह गया है। न तो ऊपर से (DRM, लेवल-16/17) न ही नीचे से भर्ती से इसका कुछ हो पा रहा है। यहां तक कि इमोशनल इंटेलिजेंस के नाम पर विदेशी टेस्ट, विदेशी सर्वरों में डेटा, सिंगल टेंडर की व्यवस्था से लिया गया है। मजे की बात ये कि जहां देश के उच्चतम कोर्ट अपने प्रमोशन के रेजोल्यूशंस अपने वेबसाइट पर रखता है, वहीं सैकड़ों अधिकारियों के कैरियर तो तबाह हुए या किए गए, और किसी को कुछ नहीं बताया जा रहा।

बंदरों के हाथ उस्तरा!

एक बंदर के हाथ में उस्तरा आ जाने पर क्या हो सकता है, इसकी कल्पना रोंगटे खड़े करने के लिए काफी है, यहां तो हर बंदर के हाथ में उस्तरा देखा जा रहा है! तथापि ‘बंदर के हाथ उस्तरा’ मुहावरा अकर्मण्यता अक्षमता (#Incompetence) को बताने के लिए बना था। हमने बताया कि कैसे #KMG के कोर में इंजीनियरिंग सर्विस के वे अधिकारी थे जिनकी टेक्निकल कॉम्पिटेंस निम्नतम से शून्य के बीच में है। रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा विमोचित #Never_A_Bystander न केवल झूठ का पुलिंदा निकली, बल्कि यह पुलिंदा ये बताता है कि कैसे मंत्री जी के फ्रेंड, फिलॉस्फर और गाइड बने इसके राइटर #Advisor साहब कैसे हर उस फाइल का क्रेडिट ले लेते हैं जिस पर उनकी नजर मात्र पड़ी थी। हमने ये भी बताया कि कैसे तथाकथित रोलिंग स्टॉक के एक्सपर्ट लोकोमोटिव्स के बारे में कितना कम ज्ञान रखते हैं और कैसे उनके इस अल्पज्ञान और अहंकार से भारतीय रेल और भारत की अर्थव्यवस्था दशकों तक जूझेगी। अंत में वह #Tenderman के नाम से जाने गए।

इस इनकम्पीटेंस के चलते न केवल सरकार की छवि को बहुत नुकसान हुआ, बल्कि रेल के कर्मठ अधिकारियों के मनोबल को तोड़ दिया गया, इससे युवा छात्रों को भी बहुत चोट पहुँची।

सच #KMG के हाथ में अनियंत्रित पॉवर बंदरों के हाथ उस्तरे देने जैसी रही।

रेल की अराजक व्यवस्था

#Rotation सरकार की हर व्यवस्था के मूल में है। भारतीय रेल की विभिन्न सेवाएं देश की अन्य ग्रुप ‘ए’ सर्विसेज सरीखी ही हैं। इन्हें #UPSC से भरा जाता है। लेकिन रेल में अपनी निहायत अपारदर्शी व्यवस्थाएं हैं, यहां किसी अन्य मंत्रालय या सर्विस से इतर अराजकता से परिपूर्ण षड्यंत्र रेल भवन से चलाया जाता है। यहां जिसका लट्ठ ज्यादा बड़ा है, भैंस उसी की है! पोस्टिंग-ट्रांसफर, घर रखने के नियम सब बदल दिए जाते हैं अगर आप समर्थवान #KMG से आशीर्वाद प्राप्त किए हैं।

तभी तो देखिए कि कैसे #Khatauli की दुर्घटना से मोदी सरकार के वरिष्ठतम मंत्री, सुरेश प्रभु का राजनैतिक कैरियर खत्म हुआ लेकिन दो सिविल इंजीनियर, चीफ ट्रैक इंजीनियर, आलोक कंसल और डीआरएम, आर. एन. सिंह, पदोन्नत होकर महाप्रबंधक बन जाते हैं। एक को पीयूष गोयल ने, तो दूसरे को अश्विनी वैष्णव ने पदोन्नत किया।

इसे आप क्या कहेंगे?

राजनैतिक नेतृत्व को हमने इसीलिए दोषी नहीं माना, क्योंकि रेल की अभेद्य #KMG को वह भेद नहीं सकता।

स्थानीय छोटे-मोटे मसले हमारे पास आते रहे हैं। यही हमें जमीन से जुड़ा रखते हैं। एक मुद्दा 16 मार्च को मिला, जो एक दबंग द्वारा एक टेक्निशियन को धमकाने का था। चूँकि #मोदीजी के संसदीय क्षेत्र का मामला था और आजकल योगी बाबा का बुलडोजर भी खूब चल रहा है, हमने इसको अपने #प्रयागराज और #गोरखपुर ब्यूरो को जाँचने के लिए दिया। जाँच में बहुत विस्फोटक जानकारी मिली। पता चला कि जिस अधिकारी के नाम की धमकी 15 मार्च को दी गई, वह जूनियर स्केल से ही #BLW में है, और उसके #SAG में प्रमोशन के लिए स्थान बनाने के लिए, दो साल अड़तालीस दिन पोस्टेड रहे इसके ही सीनियर को बाहर फेंक दिया गया। धमकी के मात्र 48 घंटों में इनका SAG में ऑर्डर #BLW के लिए ही निकल गया। मतलब यह कि एक 15 साल के बाद स्टेशन कंटीन्युइटी पाता है और दूसरा सवा दो साल भी एक स्थान पर नहीं रह पाता। एक बार पुनः पढ़ें-

#KMG की दादागीरी के सामने प्रॉपर बोर्ड भी धराशाई!

इस लेख में हमने वे डिटेल भी दिए जो #MTRS के #OSD और स्टैब्लिशमेंट सेल को रेल भवन में लिंक और पुटअप करने चाहिए थे, जैसे जिसको ट्रांसफर किया जा रहा है उसे कितना समय हुआ है, जिसे प्रमोट कर वहीं पदस्थापित किया जा रहा है, उसे उस स्टेशन पर कितना समय हुआ है। यहां जिसे बाहर भेजा गया उसके सवा दो साल भी पूरे नहीं हुए और जिसे प्रमोट कर वहीं पदस्थापित किया, वह पंद्रह साल #BLW में ही रह चुका है।
तो महाशय, प्रश्न यह उठता है कि आज कल रेल भवन में कौन सा नशा चल रहा है?

#KMG के लंबे हाथ

यह बात है स्टैब्लिशमेंट सेल और MTRS के OSD की!

स्टैब्लिशमेंट ऑफिसर तो हमारे चिर-परिचित 1992 बैच के #IRSEE अधिकारी हैं। 10 साल #BLW में रह चुके हैं और तत्पश्चात रेल भवन की शोभा बढ़ा रहे हैं। बतौर इंजीनियर रेल में इनका कंट्रीब्यूशन शून्य से भी कम है, लेकिन स्टैब्लिशमेंट पकड़े हुए हैं। यहां भी प्रश्न यह है कि इन्हें उस पद पर बैठाने वाले किस नशे में थे? अथवा मूर्ख थे? ये महाशय जातिगत राजनीति के अग्रणी हैं और श्रीमान #KMSingh से इनके निजी संबंध जगजाहिर हैं – दोनों के #BLW से ही घनिष्ठ संबंध हैं। इनसे तो पेपर और रिकॉर्ड कनेक्ट करने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। स्मरण रहे कि इन्हीं के चलते #IRMSE में सरकार की तब बहुत किरकिरी हुई जब #IRSME संबंधी गैजेट नोटिफिकेशन निरस्त करना पड़ा। लेवल-16 की सेलेक्शन प्रक्रिया में गैजेट के प्रावधानों के उल्लंघन को भी हमने ही बताया था। वहीं स्टैब्लिशमेंट ऑफिसर साहब ने जो #RDSO के #CVO के बारे में गैरकानूनी आदेशों पर बड़ी चालाकी से रेलमंत्री के हस्ताक्षर करवाए थे इसके प्रकाशित होने के बाद, आनन-फानन में विपिन कुमार को हटवाया गया।

अब यह सर्वज्ञात है कि विपिन कुमार 3-4 साल तक लापता रहे थे और निजी क्षेत्र में नौकरी कर रहे थे। उनकी घर वापसी #KMG ने करवाई, निश्चित ही वे हमेशा उनके ऋणी रहेंगे। ये लापता होने की जानकारी स्टैब्लिशमेंट ऑफिसर ने मंत्री जी से छिपाई थी। लेकिन स्वाभाविक था कि गैरकानूनी फाइल प्रोसेसिंग सार्वजनिक होने के बाद भूल सुधार आवश्यक था। तथापि जो बात समझ नहीं आई कि ये जानकारियां मिलते ही प्रशासनिक कार्यवाही क्यों नहीं हुई? ध्यान रहे, पिछले कुछ सालों में पूरा रेलवे बोर्ड और सेक्रेटरी/रे.बो. लुक ऑफ्टर में रहे हैं, तभी किसी के पास ये क्षमता नहीं रही कि इतने बड़े रहस्योद्घाटन के बाद भी कोई प्रशासनिक कार्यवाही नहीं हुई!

अब आईए #MTRS के #OSD पर..

जब #BLW में पंद्रह साल रहने के बाद पुनः SAG में प्रमोशन वहीं देने के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी को सवा दो साल से कम की अवधि में ट्रांसफर किया जाता है, तो #OSD की भूमिका भी संदिग्ध हो जाती है।

मेंढ़क और गिरगिट की खोज में हमें एक छुपे महाबली, श्रीमान #KMSingh के बारे में पता चला। हमारे लेख, #KMG की दादागीरी के सामने प्रॉपर बोर्ड भी धराशाई! पढ़ने के बाद एक सुधी पाठक ने हमें बताया कि इस प्रक्रिया में केवल स्टैब्लिशमेंट सेल ही नहीं, #OSD की भूमिका भी देखनी आवश्यक है। अगर सवा दो साल में किसी को ट्रांसफर किया गया है और फेंका जाना वाला अधिकारी विलिंग नहीं है, तो यह बात #OSD ने निश्चित रूप से छिपाई होगी।

यह बात तो तय मानी गई कि #MTRS पर उनके बैचमेट का दबाव था और ये बात मानी जा रही है कि #OSD डॉ राम निवास ने भी इसमें संदेहास्पद भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में ऐसी अराजकता करने का भौकाल किसे और कैसे है?
डॉ राम निवास की कहानी डॉ विपिन कुमार (जिन्हें #RDSO के #CVO में नियम विरुद्ध पोस्ट किया गया था) से बहुत मिलती है। डॉ राम निवास भी 3-4 साल लापता रहे और निजी व्यवसाय में लगे थे। लेकिन इनकी घर वापसी होती है और 2020 में जब भुवन सोरेन का रेल भवन में जलवा था, उनको उनकी सीनियरिटी रिस्टोर कर दी जाती है। चलिए, इसमें कोई विशेष बात नहीं। लेकिन इस पृष्ठभूमि के बावजूद इन्हें रेल भवन लाया जाता है, और तो और, इन्हें #MTRS का #OSD बना दिया जाता है! और यहीं उनको #SAG दे दिया जाता है। बताया जाता है कि भुवन सोरेन के अनन्य मित्र श्री प्रेम लोचब, 2001 बैच के IRSEE अधिकारी (विद्युत विभाग) जो उस समय डायरेक्टर स्पोर्ट्स थे, राम निवास के बहुत घनिष्ठ मित्र हैं। श्री लोचब राजनैतिक परिवार से आते हैं और इसके चलते जब इनका SAG आया तो ये बिना किसी स्पोर्ट्स क्वालिफिकेशन के स्पोर्ट्स के ED बन गए।

इस पूरी प्रक्रिया में #AIDS और #KMG की तकनीक – तुम मेरी पीठ खुजाओ, मैं तुम्हारी खुजाता हूं – को देखा जा सकता है। डॉ राम निवास को उनकी सीनियरिटी देना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन इस पृष्ठभूमि के साथ रेल भवन में बोर्ड मेंबर का #OSD बनाना और रेल के सबसे बड़े टेंडर्स में इन्वॉल्व करना अनैतिक है।

तो इस प्रकार गिरगिट-मेंढ़क की लड़ाई में हमें श्रीमान #OSD डॉ राम निवास के बारे में भी पता चला। क्रोनोलॉजी देखिये:

A. 13 जनवरी 2020: डॉ राम निवास की सीनियरिटी रिस्टोर हुई!
B. 22 जून 2020: डॉ राम निवास को, एस. पी. सिंह – जो महाकदाचारी घमासान सिंह के ओएसडी थे – के स्थान पर लाया गया!
C. 19 दिसंबर 2020: डॉ राम निवास को डायरेक्टर डेवलपमेंट पदस्थापित कर सारे बड़े टेंडर में लगाया गया!
D. 04 नवंबर 2022: डॉ राम निवास को #CORE के #SAG पद के एलिमेंट का उपयोग करते हुए रेल भवन में ही #ED बना दिया गया!

रेल भवन में व्याप्त अराजकता – #KMG के भौकाल के सामने असहाय मंत्री, असहाय बोर्ड, और प्रेरणा लेते जोनल हेड क्वार्टर

#ED/Coal रेलवे बोर्ड, अशोक नाकरा प्रकरण, RDSO का सीवीओ और MTRS के OSD का मामला कोई आइसोलेटेड घटनाएं नहीं हैं।

इन सब में हम देखते हैं कि कैसे नियम-कानून हाथी के दांत की तरह हैं। आप गॉडफादरलेस हैं तो आप सवा दो साल में अन्यत्र कहीं फेंक दिए जाएंगे!

जमीन पर प्रभाव देखिए!

सरेआम सार्वजनिक रूप से धमकी दे जाती है घर से उठा लेने की, और कहा जाता है कि हमारे साहब की पोस्टिंग होने वाली है। और दो दिन में पोस्टिंग हो जाती है जिसके लिए सवा दो साल से कम में सीनियर अधिकारी को बाहर फेंक कर। बन गया आपका भौकाल। सब को, आपके जूनियर को, आपके सीनियर को, सब को पता चल गया कि आपके बड़े-बड़े गॉडफादर हैं।

आपकी फाइल महाप्रबंधक के ऊपर से डील होती है, #MTRS, #CRB और कभी कुछ केस में #MR। टेन्योर पूरा होने से पहले भी फाइल बनती है, प्रमोशन के बाद, और पोस्टिंग के बाद भी। फाइल डीलिंग में कैसे तथ्य छुपाए जाते हैं, वह तो हम सब देख ही चुके हैं।

जब यह अराजकता रेल भवन करता है तो जोनल हेड क्वार्टर्स कैसे पीछे रहेंगे?

#NCR और #WCR में ट्रैफिक का हाल देखें! झांसी में एक युवा ब्रांच ऑफिसर पंद्रह साल की नौकरी में चौदहवाँ ट्रांसफर #NFR करके रिलीव भी कर दिया जाता है-गुनाह मटरगश्ती करने वालों पर नकेल, नए कंस्ट्रक्शन में सेफ्टी की बात। क्या #NCR के #DRM, #HOD, #PHOD, #GM एक आदर्शवादी युवा अधिकारी को ऐसे डील करेंगे? क्या पंद्रह साल में किसी इस अधिकारी के सीनियर ने इन्हें ग्रूम नहीं किया? अगर इनकी गलती थी तो इन्हें टेकअप क्यों नहीं किया? चार्जशीट देने का साहस क्यों नहीं दिखाया? एक समर्पित, कर्मठ और सिस्टम के प्रति निष्ठावान युवा अधिकारी को बार-बार ट्रांसफर करके तथा दूसरी तरफ शम्सी और नाकरा जैसे जुगाड़ुओं को बार-बार फेवर करके आखिर रेल प्रशासन व्यवस्था को क्या संदेश देना चाहता है?

हमने इनके कार्य के बारे में #प्रयागराज ब्यूरो से सूचना ली। यहां दी गई लोकल न्यूज पेपर्स की क्लिपिंग देखिए:

क्या यह सही है कि इनके अपने मटरगश्ती करते स्टाफ पर नकेल डालने का ये परिणाम है? साथ ही यह भी पता चला कि लालपुर और तिलौंची स्टेशनों के प्री-सीआरएस इंस्पेक्शन में इस युवा ब्रांच ऑफिसर ने कई गड़बड़ियों पकड़ी थीं, जो साहब लोगों को नागवार गुजर गईं। अगर, कॉंट्रैक्ट/निविदा में #FOB का प्रावधान है, और इसकी आवश्यकता है, तथा इसका पूर्व प्रावधान भी है, वह उस जगह न मिलें, तो अधिकारी क्या करे? अगर यह ट्रांसफर इसका परिणाम है, तो जोनल मुख्यालय और रेल भवन में बैठे उच्च अधिकारियों को बारंबार धिक्कार है! हजार बार लानत है!!

हमारा यह मानना है कि आज रेल के नेतृत्व में #OLQ की भीषण कमी है, उसका यह साक्षात उदाहरण है।

रेलवे बोर्ड के आदेशों की प्रतियां

डॉ राम निवास के आदेशों की प्रतियां:

नाकरा-शम्सी प्रकरण को यहां देखें: कुछ बली, कुछ महाबली!

पूर्व #CRB के एक्सटेंशन के खिलाफ #KMG का मुखर विरोध था, ये हम सब जानते हैं। जो पूर्व CRB को जानते थे, वे उनसे इसीलिए नाराज भी हुए कि उन्होंने #AIDS को समूल नहीं उखाड़ा। वहीं #KMG इसलिए नाराज था कि वह शीशे में नहीं उतर पाए।

अब एक और रोचक ट्रेंड दिख रहा है!

जो ट्रांसफर पूर्व सीआरबी विनय कुमार त्रिपाठी ने किए थे, वह एक-एक करके वापस हो रहे हैं!

इसे देखें:

अफजल करीम शम्सी रेलवे बोर्ड में ED/Coal थे। बहुत स्पेसिफिक इनपुट पर इन्हें रेलवे बोर्ड से पूर्व सीआरबी के सीधे हस्तक्षेप से तुरंत हटाया गया था।

लेकिन वाह री #AIDS की व्यवस्था, इनकी प्रतिनियुक्ति #DFCCIL के कॉर्पोरेट ऑफिस में हो जाती है कुछ ही दिनों में 7 अक्टूबर 2022 को। मंत्री और सीआरबी की जानकारी में आए बिना, यह महाशय दिल्ली के एक दफ्तर से दिल्ली के ही दूसरे दफ्तर में पहुंच जाते हैं।

31 दिसंबर 22 का इंतजार (CRB के रिटायरमेंट की तारीख) खत्म होता है और 18 जनवरी 2023 को मोदी जी के ‘न खाऊँगा न खाने दूँगा’ को धता बताते हुए, प्रतिनियुक्ति मात्र 3 महीने में खत्म होती है और इन्हें रिकॉल किया जाता है और बड़ौदा हाउस में #CFTM बना दिया जाता है।

डेपुटेशन एक आम रेल अधिकारी के लिए बड़ी बात लगती है। लेकिन यहाँ देखें!

ये कहानी थी एक बली की, अब देखें एक महाबली!

अशोक कुमार नाकरा, बिजली विभाग के नॉर्दर्न रेलवे के अधिकारी हैं। इन्होंने पूरा कैरियर दिल्ली में निकाला। अखिरकार हिम्मत जुटाकर रेलवे बोर्ड द्वारा इनका 21 नवंबर 2022 को ट्रांसफर बिलासपुर होता है।

पूर्व सीआरबी, विनय कुमार त्रिपाठी के रिटायरमेंट का इंतजार खत्म होता है 31 दिसंबर 2022 को और आता है 12 जनवरी 2023 का दिन, मोदी सरकार का रेलवे बोर्ड को छोटा करने के आश्वासन को धता बताते हुए, कुर्सी सहित यह बड़ौदा हाउस से रेलवे बोर्ड पहुँच जाते हैं।

ये हैं रेल की ऑल इंडिया दिल्ली सर्विस (#AIDS) के महाबली!

यहां एक पुराने आदेश को उद्धृत करना आवश्यक है। देखें कि #CVC की प्रतिनियुक्ति के बाद यह पुनः बड़ौदा हाउस आए, जहां से यह कुर्सी सहित रेल भवन में आ गए।

#BLW की क्रोनोलॉजी

#KMSingh, जिनके नाम पर नामी बदमाश खुले में धमका रहा है, #KMG की दादागीरी के सामने प्रॉपर बोर्ड भी धराशाई!“, वह बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (#BLW) में पहले भी रह चुके हैं – जूनियर स्केल से सेलेक्शन ग्रेड तक (1 सितंबर 2005 से 7 सितंबर 2015 तक – लगातार 10 साल), यह फिर अवतरित होते हैं-2 मार्च 2019 को और तब से, अर्थात् चार साल से अधिक, #BLW में ही हैं और 17 मार्च को यहीं रेगुलर SAG में प्रमोट हो जाते हैं। हमारे गोरखपुर ब्यूरो को ये भी पता चला कि पहले और दूसरे कार्यकाल में यह डिप्टी सीईई/अनुरक्षण ही रहे हैं – जिसका काम कॉलोनी मेंटेनेंस करना अर्थात झाड़ू-पोछा लगाना रहा है।

रणविजय को #BLW में 11 जनवरी 2021 में पोस्ट किया गया था और इनका ट्रांसफर 28 फरवरी 2023 को हो जाता है, इनके द्वारा फिलहाल अनिच्छा व्यक्त करने के बावजूद!

#NCR की अराजकता

आदेश 03 मार्च 2023 को निकलता है!

जोनल हेड क्वार्टर में आदेश मिलने के बाद फाइल बनती है और महाप्रबंधक तक जाती है, उसी तारीख में आदेश भी निकल जाता है!

और इसी तारीख में रिलीविंग के आदेश भी निकल जाते हैं – उत्तर मध्य रेलवे के अकर्मण्य पर अहंमन्य प्रशासन की ऐसी तत्परता कहीं और देखने में नहीं आती!

Unless top shows spine to rotate officers, nothing would change!

रेलमंत्री जी! रेलकर्मियों/अधिकारियों को लगता है कि ‘खान मार्केट गैंग’ आपको भ्रमित करता है!

क्या खराब रिजल्ट की कीमत केवल रेलमंत्री ही चुकाएंगे?

#IRMSE पर यू-टर्न: मोदीजी, क्यों नहीं #KMG को 56-J में बर्खास्त किया जाए!

#IRMSE पर यू-टर्न: मोदीजी, क्यों नहीं #KMG को 56-J में बर्खास्त किया जाए! भाग-2

रेल में व्याप्त भ्रष्टाचार: विजिलेंस प्रकोष्ठ की जवाबदेही?

रेल में व्याप्त भ्रष्टाचार: विजिलेंस प्रकोष्ठ की जवाबदेही? भाग-2

#KMG_2.0: रोटेशन के बजाय रेलवे में दिया जा रहा भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ को संरक्षण!

रेलमंत्री से न्यूनतम अपेक्षा: नियम से चलाएं सिस्टम!

#KMG_2.0: न्याय इनके हिस्से का – इनकी ‘आह’ के ‘ताप’ से कैसे बचेंगे मंत्री जी!

क्रमशः जारी…

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी