रेलमंत्री का विजिलेंस विभाग पर बयान: रेलवे/सरकार की पालिसी कैसे समझ सकते हैं अनुभवहीन अधिकारी!
रेलवे प्रोजेक्ट्स में हो रही देरी और कैरियर बर्बाद होने से असंतुष्ट अधिकारियों की अन्मनस्कता के कारण आर. के. झा, आर. के. राय और अशोक कुमार की तिकड़ी अब जाकर बनी रेलमंत्री की चिंता का सबब!
रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने फील्ड में कार्यरत रेल अधिकारियों को संबोधित करते हुए सोमवार, 3 अप्रैल को जो बात कही, उससे सभी अधिकारी काफी उत्साहित हैं। रेलमंत्री ने स्पष्ट कहा कि “विजिलेंस विभाग पर उनकी विशेष नजर है और विजिलेंस को प्रोसीजरल मिस्टेक के लिए केस बनाने से पहले पर्याप्त सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि इसके चलते कई आवश्यक और महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स में देरी हुई है।”
ऐसी स्पष्टता के लिए मंत्री जी को साधुवाद। ये तो पता चला कि हमारे उठाये मुद्दे उनके संज्ञान में हैं, और रेल अधिकारियों/कर्मचारियों की परेशानियों और भय के बारे में भी वे चिंतित हैं, यह भी संदेश गया!
हमने हमेशा यह कहा कि भारतीय रेल केवल वह नहीं है, जो केवल खान मार्केट गैंग (#KMG) और ऑल इंडिया डेलही सर्विस (#AIDS) वालों को दिखती है अथवा जैसी वे दिखाने का प्रयास करते हैं!
इस पर हमने विस्तार से एक ट्वीट किया-
इसमें हमने कई सुझाव दिए हैं, जिनके बारे में हम शीघ्र ही विस्तार से शीघ्र ही लिखेंगे।
विजिलेंस प्रकोष्ठ से संबंधित हमारी पुरानी रिपोर्ट्स यहां देखें-
“अधिकारी-वेंडर-नेक्सस का नया स्वरूप-अधिकारी स्वयं बना वेंडर”, इस शीर्षक खबर में हमने ऐसे अधिकारी की बात की है, जिसने अपना पूरा कैरियर मुख्यतः विजिलेंस में गुजारा।
“Zero Tolerance Policy Against Corruption is a myth, it will never be achieved by India whoever leads the Nation!”, यहां हमने बताया कि कैसे विजिलेंस इंस्पेक्टर अपने निर्धारित कार्यकाल से कई गुना ज्यादा लंबा समय विजिलेंस में गुजारते हैं।
यहां नीचे प्रस्तुत आर्टिकल्स में हमने यह मुद्दा भी उठाया कि कैसे #CBI के केसेस में रेल के #SDGM से पूछताछ होनी चाहिए, क्योंकि भारत सरकार का सबसे बड़ा विजिलेंस विभाग होने के बाद भी अगर #CBI को रेल में आकर केस पकड़ना पड़े, तो इससे यह पता चलता है कि रेल का स्वयं का विजिलेंस विभाग कितना अव्यवस्थित है।
“रेल में व्याप्त भ्रष्टाचार: विजिलेंस प्रकोष्ठ की जवाबदेही?”
“रेल में व्याप्त भ्रष्टाचार: विजिलेंस प्रकोष्ठ की जवाबदेही? भाग-2”
“#KMG_2.0: A cynic’s view – रेलवे के धनकुबेरों का सिंडीकेट”
रेल का विजिलेंस विभाग लंबे समय से #KMG की कठपुतली बनकर भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ को संरक्षण देता रहा है, चाहे वह अरुणेंद्र कुमार द्वारा आर. एस. विरदी के कैरियर को बर्बाद करने का मामला रहा हो, या वन्दे भारत की टीम का खुला शोषण या फिर वर्तमान सीआरबी अनिल कुमार लाहोटी का विजिलेंस क्लीयरेंस उनके महाप्रबंधक बनने के समय कैंसिल करना।
2 अप्रैल को हमने पाठकों को बताया कि कैसे एक विद्युत अधिकारी योगी कैबिनेट के सदस्य के फोटो का उपयोग करके और रेलवे बोर्ड के सदस्यों का नाम लेकर सबको अपने हित-साधन के लिए डरा-धमका रहे हैं। इनका रेलवे बोर्ड में बतौर ईडी/विजिलेंस का 6 साल का रिकॉर्ड टेन्योर था। इसी दौरान इन्होंने पीईडी/ विजिलेंस और ईडी/विजिलेंस स्टोर्स के साथ मिलकर वन्दे भारत प्रोजेक्ट में सहभागी सभी वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध न केवल केस बनवाए – जो बाद में पूर्णतः निरस्त हो गए – बल्कि इसके साथ ही इस टीम के चलते, बहुत सारे अधिकारी साफ दामन के बावजूद अपने जायज प्रमोशन न पाकर या तो रिटायर हो गए या होने वाले हैं।
“अधिकारी-वेंडर-नेक्सस का नया स्वरूप-अधिकारी स्वयं बना वेंडर”
इस विषय पर हम थोड़ी देर में आते हैं। पहले देखते हैं-
#रेल_मंत्रालय की दागदार छवि का सच!
अनेक रिपोर्ट्स ये बताती हैं कि भारतीय रेल में सबसे अधिक विजिलेंस केस बनते हैं-इससे रेल मंत्रालय भारत सरकार के सबसे भ्रष्ट मंत्रालय के रूप में सामने आता है। यहां यह बताना भी आवश्यक है कि रेल मंत्रालय सीवीसी की एडवाइस न मानने के मामले में भी नंबर-वन है।
“Railways tops CVC list for ignoring advice to punish corrupt officers”
जहां ये लिखा गया, “The Railways Ministry has topped the list of government departments that did not adhere to Central Vigilance Commission’s (CVC) advice against corrupt officials and concluded cases as per its own disciplinary procedures, according to the CVC’s latest annual report.”
यह बात पिछले कई सालों से सुनी जा रही है, पिछली सरकारों में भी यही सुनाई देता था, और अब भी। ऐसे ही कुछ विषयों की जांच (शोध) करते हुए हमने #AIDS और #KMG को चिन्हित किया, जिनके चलते सरकारें बदलती रहीं, लेकिन रेल की कार्य-संस्कृति पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यहां यह बताना भी आवश्यक है कि टेंडर करने में कभी कोई प्रश्न नहीं रहे-चाहे आज के वन्दे भारत या वैगन के टेंडर हों या पहले किए गए मधेपुरा/मढ़ौरा के, अथवा उससे भी पहले किए गए #LHB या रेल इंजनों के, टेंडर करना कार्यशैली अथवा योग्यता का मापदंड नहीं है।
बात रेल की कार्यशैली और कार्य-संस्कृति की है-जहां से यह सीवीसी से संबद्ध स्टेटिस्टिक्स आती हैं।
इसी सरकार द्वारा बनाई गई सान्याल कमेटी ने रेल के विजिलेंस विभाग में गंभीर अनियमितताएं पायी थीं। देखें यह रिपोर्ट्स-
“Railway’s Vigilance Directorate functioning in violation of CVC guidelines”
“Railways falling foul of CVC norms”
ध्यान दें कि सान्याल कमेटी की रिपोर्ट की कई अनुशंसाओं पर रेल मंत्रालय ने काम किया है।
इस सरकार में हुए बड़े निर्णय, जिन्हें वापस लेना पड़ा, जो रेल भवन के विजिलेंस प्रकोष्ठ की स्पष्ट फेलियर हैं, इन तथ्यों को देखें:
– PSU: IRFC, NHRCL, के MD को तुरंत बदलने की आवश्यकता, “The vigilance directorate of the railway board gave a clean chit to Amitabh Banerjee despite CVC guidelines”.
– ट्रेन 18-जितने केस बने-सब के सब न केवल वापस लिए गए, बल्कि उन अधिकारियों में से अधिकांश को वापस ICF भेजना पड़ा।
– अनिल कुमार लाहोटी-जिनको GM बनने के लिए विजिलेंस क्लीयरेंस नहीं दी गई लेकिन वह पहले महाप्रबंधक बने, फिर मेंबर इंफ़्रास्ट्रक्चर भी बने और अब सीआरबी हैं-यह विजिलेंस के मैनीपुलेशन का ज्वलंत उदाहरण है।
– CVO/RDSO की पोस्टिंग, जिसमें रेलमंत्री से तथ्य छुपाने का मामला उजागर होते ही इस CVO को बदल दिया गया।
– कई वरिष्ठ अधिकारियों को एग्रीड लिस्ट में डाला गया, जबकि वे #unimpeachable इंटेग्रिटी वाले अधिकारी थे, वहीं विजिलेंस में बैठ धंदा करने वाले आगे बढ़ते गए। यह सब निर्णय वापस करने पड़े।
– कई अधिकारियों के ऊपर प्रशासनिक कार्य करने में अपने अधिकार क्षेत्र की शक्तियों के उपयोग में भी विजिलेंस एंगल खोजकर उन पर केस बनाए गए।
– जब अनुभवहीन अधिकारी बड़े टेंडर देखते हैं तो वे अपनी सीमित समझ से उसको डील कर पाते हैं, जैसा हमने अपने ट्वीट में कहा था, जिस ऑफिसर पर केस बनाने की बात है, उसकी कार्यशैली, जिस परिस्थिति में काम हुआ उसे #PHOD, #DRM और #GM ही सबसे अच्छा जानते और समझते हैं। ऐसे में उनकी बात को रूटीन में ओवररूल करने से पहले यह डिस्कस करना आवश्यक है कि जो विजिलेंस की तरफ से डील कर रहे हैं, क्या उनके पास ऐसे केस एनालाइज करने का अनुभव है?
– इसके चलते अनुशासनिक अधिकारी (#DA) की ही ज़िम्मेदारी बनती है कि कैसे अपने मातहत अधिकारियों को बचाएं, क्योंकि परिस्थितियों – जिनमें काम हुआ है – को वही बेहतर समझते हैं। साथ ही वह जानते हैं कि यदि अपने सबसे प्रोडक्टिव ऑफिसर को ऐसे ही शहीद करते रहे तो वह स्वयं कैसे परफॉर्म करेंगे! यह भी कारण रहा कि जहां DA विजिलेंस की एडवाइज से एग्री नहीं करते। कई DA यह भी कहते हैं कि यदि वे स्वयं उस जगह होते, तो वह भी यही करते। यही कारण है कि रेलवे के DA अपनी स्वतंत्र सोच के चलते सीवीसी की अनुशंसाओं से हमेशा सहमत नहीं होते!
अनिल कुमार लाहोटी साहब मजबूत पृष्ठभूमि से आते हैं, इसीलिए वह अपनी जेनुइन ग्रीवांस को समय रहते, सही स्तरों पर बता पाए, जिससे उन्हें न्याय मिला। यह व्यवस्था पर करारा तमाचा था कि एक ओर तो विजिलेंस क्लीयरेंस नहीं थी महाप्रबंधक बनने के लिए, वहीं वह सीआरबी तक पहुंच गए।
लेकिन कमजोर पृष्ठभूमि के अनेक अधिकारियों के कैरियर बर्बाद हो गए। हमने इस मुद्दे को यहां उठाया-
“मंत्री जी, किसके सिर पर है #KMG द्वारा की गई इन ब्रह्म-हत्याओं का पाप!”
अब हम उन छुपे तथ्यों को उठाते हैं, जो आज तक नहीं उठाए गए!
#KMG का विजिलेंस सिंडिकेट
हमने जब 11 मार्च को ये लेख प्रकाशित किया,
“रेल में व्याप्त भ्रष्टाचार: विजिलेंस प्रकोष्ठ की जवाबदेही? भाग-2”
हमारे पास, हमें छेड़ते हुए फीडबैक आया कि क्यों #Railwhispers कुछ महीने ओवरड्यू केस देख रहा है, जबकि रेल भवन में ही सालों के ओवरड्यू मामले नहीं कवर कर रहा। साथ ही उन्होंने हमें निम्न फीडबैक भी दिया-
#RKJha और #RKRai के botchedup केस की फेहरिस्त देखें-इनमें प्रमुखता से वन्दे भारत (#Train18) आता है। इसमें अशोक कुमार, ईडी/विजिलेंस/स्टोर्स भी भागीदार थे। इन तीनों अधिकारियों के चलते बहुत व्यापक स्तर पर रेल को चोट पहुंची। वन्दे भारत के मामले पर हमारी ट्वीट देखें-
वन्दे भारत टीम के साथ जो हुआ उसकी तुलना हमने पुलिस द्वारा की गई फर्जी एनकाउंटर से किया-
#GM और #PHOD के कमेंट्स को तो इन्होंने कभी गिना ही नहीं, इसे देखें-
अब हम रेल भवन में रेलमंत्री और सीआरबी की नाक के नीचे काम करती टीम का विश्लेषण करेंगे-
#KMG के शार्प-शूटर – रेल भवन के तीन विजिलेंस अधिकारी – #RKJha, #RKRai और #AshokKumar
#RKJha पहले ED/Vigilance/Civil थे, और बाद में वहीं वह #PED विजिलेंस बन गए। इन्होंने भी टेन्योर से अधिक रेलवे बोर्ड विजिलेंस में काम किया। हमने इनके मारे सिविल इंजीनियरिंग के अधिकारियों और वेंडरों – जिनका एक्सटॉर्शन चल रहा था – के फीडबैक को प्रकाशित किया और ट्विटर पर भी डाला था-
आर. के. झा की दबंगई का आलम यह हुआ कि भारत सरकार की नौकरशाही के मुखिया को स्वयं रेलमंत्री को कहना पड़ा कि इस आदमी (अधिकारी) को तुरंत रेल भवन से बाहर निकाला जाए। और अंततः उसी दिन, बल्कि कुछ ही घंटों में निकाला भी गया।
आर. के. झा की स्वयं की महत्वाकांक्षाएं थीं। यदि वह अपने से ऊपर अधिकारियों को विजिलेंस की दृष्टि से #ineligible कर देते तो उनका जीएम बनना तय हो जाता। PED विजिलेंस का सीधा conflict of interest था उन केसेस में जहां केस बनाने से उत्पन्न स्थिति से उनके जीएम बनने का रास्ता खुल जाता। उनके काले कारनामे इतने बढ़ गए थे कि उन्हें भारत सरकार के निर्देशों पर तुरंत निकालना पड़ा। फाइलों को उठाकर #negotiate करना उनकी जानी पहचानी modus operandi थी, जिसे उन्होंने बतौर ED विजिलेंस सिविल में परिमार्जित कर लिया था। उन्हें काम आता था लेकिन उनकी प्रोफेशनल इंटीग्रिटी शून्य थी। जब अराजकता की पराकाष्ठा पार हो गई, तो उन्हें तुरंत प्रभाव से रेल भवन से बाहर करना पड़ा। लेकिन वह प्रमोट भी हुए और उनके कृत्यों की उन्हें कोई सजा नहीं मिली।
अब देखते हैं उनकी टीम के वे दो और सदस्य, जिनके चलते रेल के वरिष्ठ ऑफिसर L-16 और इसके चलते L-17 के जोन ऑफ कन्सिडरेशन से बाहर हो गए।
अब हम विजिलेंस ऐंगल का सर्टिफिकेट देने वाले उनकी टीम के दो अधिकारियों के कैरियर को एक छोटा सा चरित्र-चित्रण देखेंगे जिससे यह पता चलेगा कि रेल के भीतर बढ़ते भ्रष्टाचार को कैसे संरक्षण मिलता है और टारगेट करके कैसे निर्णय लेने वाले अधिकारियों की कमर तोड़ दी जाती है!
अब आते हैं श्रीमान #RKRai पर!
श्रीमान आर. के. राय, तत्कालीन सीआरबी, #VKYadav के कितने निकट थे इसका अंदाजा इसी से लग सकता है कि जब उनका ट्रांसफर बनारस हुआ तो बनारस में पोस्टेड अधिकारियों को पुराने स्थान पर अपना घर रिटेन करने की अनुमति दे दी गई। मतलब यह कि जो सुविधा #NFR जैसे जोन को दी गई थी, उसे देश की सांस्कृतिक राजधानी और प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के लिए लागू कर दिया गया-उनके रिटायर होते ही इसे वापस भी कर लिया गया। तो राय साहब – जो #AIDS और #KMG के बड़े नाम रहे हैं – उनकी करतूतें, लालू-मुलायम के संबंधी #VKYadav भली-भाँति जानते थे, लेकिन उन्होंने रेल भवन की इस विजिलेंस टीम को संरक्षण दिया। यह उनके ‘शार्प-शूटर’ बन गए।
श्रीमान राय ने पहले अपने कैरियर का अच्छा खासा भाग प्रयागराज में GM/CORE के सेक्रेटरी में निकाला – सीनियर स्केल और जेए ग्रेड – और फिर आ गए दिल्ली में एक #PSU के #CVO बनकर, वहां से आप सदस्य (विद्युत) रेलवे बोर्ड के #OSD बने, वहां से ये #SAG में जाते हैं दिल्ली डिवीजन के #ADRM बनकर और ‘प्रोटोकॉल’ देखते हैं, वहां से यह रेल भवन में #ED विजिलेंस बनकर आ जाते हैं, अपने कैरियर के आखिरी दो साल आप बरेका में बतौर #PCEE बिताते हैं।
प्रश्न यह उठता है कि इन्होंने कब रेल में निर्णय लेने वाले पद पर काम किया? जेएजी निकला GM के सेक्रेटरी के रूप में, PSU के CVO के रूप में और मेंबर इलेक्ट्रिकल के OSD के रूप में, SAG में यह केवल ADRM (प्रोटोकॉल) और ED विजिलेंस इलेक्ट्रिकल रहे।
मतलब यह कि जब ये 6 साल रेल भवन में बैठे रेल के अधिकारियों के भाग्य-विधाता थे, तब इनके पास निर्णय लेने वाली किसी भी JAG या SAG पोस्ट का ‘शून्य’ अनुभव था! इन्होंने कभी कोई टेंडर संबंधी, डिजाइन संबंधी और वेंडर संबंधी कार्य नहीं किया। फिर कैसे इन्हें दिव्य ज्ञान मिला कि टेंडर कमेटी क्या सोच रही थी जब उसने निर्णय लिए, क्या सोच थी डिजाइन ऑफिसर की-जिस पर इन्होंने विजिलेंस ऐंगल स्थापित कर दिया? इनके हाथों सैकड़ों अधिकारियों के तनाव में स्वास्थ्य खराब हुआ और उनका कैरियर बर्बाद हो गया।
श्रीमान आर. के. राय की न केवल निर्णयात्मक क्षमता शून्य थी, बल्कि हर मामले में इनका अनुभव भी शून्य था। बावजूद इसके इन्हें एक्सटेंशन देकर रेल भवन में 6 साल का बतौर ईडी/विजिलेंस का टेन्योर मिला, जो सीवीसी की गाइडलाइन के विरुद्ध था।
एक सेवानिवृत्त रेल अधिकारी जो श्रीमान राय से बहुत सीनियर रहे, बताते हैं, कि कैसे एक कंपनी के समान को वापस बाजार में लाने के लिए इन्होंने उस कंपनी से अपने नाम पर विजिलेंस को शिकायत करवाई, और फिर एकतरफा इंवेस्टीगेशन करके, #RDSO की टेक्निकल एडवाइस को मोटिवेटेड करार देकर, सीवीसी का भय पैदा किया कि कैसे वह एक बहुत बड़ा स्कैंडल रोक रहे हैं!
वहीं एक अन्य सेवानिवृत्त अधिकारी, जो इनके मारे रहे हैं, उनके फीडबैक पर हमने ये खबर 2 अप्रैल को ब्रेक की थी-
“अधिकारी-वेंडर-नेक्सस का नया स्वरूप-अधिकारी स्वयं बना वेंडर”
अब आते हैं श्रीमान अशोक कुमार, ईडी/विजिलेंस/स्टोर्स पर!
छुपे रुस्तम श्रीमान अशोक कुमार पूर्व रेलवे के अधिकारी हैं। वहां के अधिकारी बताते हैं कि पूर्व रेलवे में इनका कोईं विशेष नाम या काम नहीं रहा। फिर रेलवे बोर्ड में यह डायरेक्टर/विजिलेंस/स्टोर्स बनकर आते हैं और यहीं प्रमोट होकर ईडी/विजिलेंस/स्टोर्स बन जाते हैं। करीब 3-4 साल से यह रेलवे बोर्ड विजिलेंस में ईडी हैं और उससे पहले इतना ही समय यह डायरेक्टर/विजिलेंस/स्टोर्स रहे हैं। मतलब इनका टेन्योर भी सीवीसी की गाइडलाइन से करीब दोगना या उससे अधिक है। सीवीसी का नियम यह है कि यदि दूसरा टेन्योर दिया जाता है विजिलेंस में, तो वह दूसरे स्थान पर होना चाहिए – लेकिन श्रीमान राय की तरह विजिलेंस में इनकी पोस्टिंग भी नियम विरूद्ध हुई। विजिलेंस में प्रमोशन तो सर्वथा नियम विरुद्ध था ही!
साथ ही श्रीमान अशोक कुमार का प्रोफाइल भी देखें तो पाएंगे की चूँकि इन्होंने प्रमोशन के बाद फील्ड में कभी काम नहीं किया, मतलब, बतौर SAG ऑफिसर इनका भी श्रीमान राय की तरह ही अनुभव शून्य था।
अब जब श्रीमान #RKJha के नेतृत्व में श्रीमान आर. के. राय और श्रीमान अशोक कुमार जब वन्दे भारत जैसा बड़ा केस देखते हैं, तो हम ये पाते हैं कि बिल्कुल अनुभवहीन अधिकारियों के हाथ बड़े इंजीनियरिंग और परचेज संबंधित निर्णयों का रिव्यू चला गया। इस केस में आरोपित सभी अधिकारियों पर कोई विजिलेंस केस नहीं बना, लेकिन एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट एक तरफ बहुत डिले हो गया, तो दूसरी तरफ कई निष्ठावान और समर्पित अधिकारियों का पूरा कैरियर चौपट हो गया!
श्रीमान राय पर भी इस #botchedup इंवेस्टीगेशन का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा। जैसा हमने देखा उन्हें पसंद की जगह क्वार्टर रिटेंशन के लड्डू के साथ दी गई, वहीं इनके मारे अधिकारी अपना चैन और प्रमोशन खो बैठे।
साथ ही यह भी देखें कि सीवीसी की गाइडलाइन के विरुद्ध इन तीनों अधिकारियों के टेन्योर एक्सटेंड किए गए। गैरकानूनी तरीके से पोस्ट होने के कारण इनकी ऑब्जेक्टिविटी तो खत्म हुई, ये ‘powers that be’ के चरणश्रित भी हो गए। जिसे चाहा एग्रीड लिस्ट में डाल दिया-जिसके केस को उलझाना चाहा-उलझा दिया। चूँकि स्वयं इनका प्रशासनिक और निर्णयात्मक पोस्टों पर काम करने का अनुभव शून्य रहा, इनकी पोस्टिंग नियम विरुद्ध रही, इनके द्वारा #vigilance_angle_certification कैसे मान्य हो सकता है?
#रेलमंत्री और #सीआरबी को #Railwhispers का आव्हान!
बहुत से अधिकारी आज बहुत अधिक आक्रोशित हैं। वह ये कहते हैं कि उनके कैरियर से खेलने वाले ये ऑफिसर, जो #CVC के निर्देशों के विरुद्ध बैठे थे, और जिनके अनुभव की कमी से उनकी #Competence पर सीधे सवाल उठते हैं, इन ऑफिसर्स को तो अपनी अक्षमता (#incompetence) की कीमत कभी नहीं चुकानी पड़ी! और इनकी गैरकानूनी तरीके से हुई पोस्टिंग पर इन्होंने या इनको संरक्षण देने वाले अधिकारियों पर कभी आंच नहीं आई। इनकी अक्षमता की कीमत वे अधिकारी चुका रहे हैं जो निर्णय ले रहे थे। याद रखें मंत्री जी, गोली वही खाएगा जो फ्रंट पर लड़ रहा है-वह नहीं जिसके ऊपर डिलीवरी की कोई बाध्यता नहीं! और ऐसे लोगों को संरक्षण देना अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आने वाला कृत्य है!
हर टेंडर में जिनको ऑर्डर मिलता है उससे कई गुना ज्यादा वेंडर ऑर्डर नहीं पाते हैं। विजिलेंस यदि टेंडर में हारे वेंडरों का साथ देगा तो कोई टेंडर सफल नहीं हो पाएंगे। टेंडर पर निर्णय एक व्यक्ति नहीं लेता, एक कमेटी लेती है। जानकार कहते हैं आप किसी भी टेंडर को उठाइए, टेंडर कमेटी के विवेक पर आप कभी-भी प्रश्न उठाकर उसमें विजिलेंस ऐंगल निकाल सकते हैं। अनुभव की कमी के कारण रेलवे/भारत सरकार की पालिसी, सरकार की प्राथमिकताएं ऐसे अधिकारी कैसे समझ सकते हैं? यदि टेंडर कमेटी अपने विवेक से काम नहीं करे, तो यह काम कंप्यूटर को क्यों नहीं दे दिया जाता?
ऐसा नहीं है कि रेल में सब ठीक है, लेकिन जैसा मंत्री जी ने कहा, केस सोच समझकर बनाए जाने चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि केस बनाने वालों के पास पर्याप्त अनुभव और परिपक्वता होनी चाहिए, जो निर्णय लेने वाले पदों पर काम करने वाले अधिकारी – जो डिलीवरी फोकस्ड होते हैं – ही ला सकते हैं। लेकिन जैसे थोक के भाव इन अधिकारियों ने केस बना डाले हैं, रेल के पास विजिलेंस में पोस्ट करने लायक डिलीवरी देने वाले अधिकारी नहीं बचेंगे।
पहले तो मंत्री जी – जैसा हम आपको चेताते रहे हैं – रेल भवन में रोटेशन को कड़ाई से लागू करिए और नियम के अनुसार काम करने के आदेश दीजिये। वन्दे भारत और श्री लाहोटी के विजिलेंस केस और ऊपर दिए विश्लेषण से यदि आँखें नहीं खुलीं, तो क्षमा करें, रेल का कुछ नहीं हो सकता! क्रमशः जारी…
“रेलमंत्री से न्यूनतम अपेक्षा: नियम से चलाएं सिस्टम!”
“To bypass the CBI advice, CVO/RlyBd decided to bypass the CVC itself”
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी