फीडबैक का संज्ञान न लेने से फैलते कैंसर की जवाबदेही किसकी – मंत्री, सीआरबी, सीवीसी?
रेलवे विजिलेंस में सर्वज्ञात भ्रष्ट, अक्षम, अनुभवहीन, अविश्वसनीय अधिकारियों की नियुक्ति लगातार जारी है, सीवीसी इनकी कोई वर्किंग प्रोफाइल देखे बिना ही इनके नाम की संस्तुति दे देता है, लम्बे समय से जारी इस सिलसिले में कोई बदलाव नहीं हुआ, न ही नई सरकार ने सिस्टम की इन विसंगतियों पर अब तक कोई ध्यान दिया, न ही सिस्टम में बैठे जिम्मेदारों ने अपनी जिम्मेदारी निभाना जरूरी समझा, सरकार को झंडी हिलाने में उलझाकर दुष्ट प्रवृत्ति की नौकरशाही और खान मार्केट गैंग अपना एजेंडा सेट करने में लगा है, इसका दुष्परिणाम आने वाले समय में रेल सिस्टम और वर्तमान नेताओं एवं मंत्रियों को भुगतना पड़ेगा!
सीवीसी ने नियुक्ति और एक्सटेंशन देते हुए यह नहीं देखा कि रेलवे बोर्ड विजिलेंस के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ होने वाले कुछ अधिकारियों को फील्ड में काम करने का शून्य अनुभव है, और सरकार के इस दौर में जहां नई नीतियों पर काम हो रहा है, वहां इनके अज्ञान के चलते अपराइट अधिकारी बहुत बड़ी कीमत चुकाएंगे! सीवीसी के यह निर्णय न केवल रेल के नेतृत्व पर सवाल उठाते हैं, बल्कि यह सीवीसी की कम्पीटेंस और इंटीग्रिटी पर भी सवाल उठा रहे हैं!
जब पुलिस गलत केस बनाती है तो उस पर कार्यवाही के वैधानिक उपाय हैं। हमने देखा है कि कैसे गलत मुठभेड़ की घटनाओ में सेना में भी कोर्ट ऑफ इंक्वायरी बैठता है, कोर्ट मार्शल होता है, और वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को भी सख्त सजा दी जाती है।
लेकिन यदि विजिलेंस ही शोषण और भ्रष्टाचार का प्रमुख जरिया बन जाए, तो आप क्या करेंगे? रेलवे में विजिलेंस का उपयोग प्रमोशन की प्रतिस्पर्धा में बहुत पहले से चला आ रहा है-लेकिन सीधे इस प्रकोष्ठ का मैदान में उतरना हमने धुर-धूर्त अरुणेन्द्र कुमार के समय से ही देखा। उसके बाद #RKJha और #RKRai की धूर्त टीम इसे औद्योगिक स्तर पर ले गई-जहां इन्होंने अवैध उगाही या कमाई के लिए और अपनी महत्त्वकांक्षा के लिए ‘hitmen for hire‘ बन गए। इनका साथ #AshokKumar जैसे अनुभवहीन अधिकारियों ने दिया। लंबे टेन्योर, सीवीसी और रेलवे बोर्ड ने आँखें बंद करके दे दिया। कभी किसी अधिकारी ने इन पर उपलब्ध नकारात्मक फीडबैक पर काम नहीं किया। वन्दे भारत जैसे botched-up केस के बाद भी रेल भवन की आँखें नहीं खुलीं।
दुखद तथ्य यह है कि रेल में सभी को पता था कि विजिलेंस प्रकोष्ठ में राय-झा का नेक्सस पैसे के लिए कुछ भी कर सकता है। यह भी तय है कि ये सूचना इंटेलिजेंस के पास भी रही होगी, जो हर मंत्रालय पर नजर रखता है-इसीलिए यह मानना कि सीवीसी अनभिज्ञ था, ये सीधे-सीधे अमान्य है। सीवीसी ने नियुक्ति और एक्सटेंशन देते हुए यह नहीं देखा कि आर. के. राय और अशोक कुमार के पास रेल के विभिन्न पदों पर और फील्ड में काम करने का शून्य अनुभव है, और सरकार के इस दौर में जहां नई नीतियों पर काम हो रहा है, वहां इनके सूक्ष्म अज्ञान के चलते अपराइट अधिकारी बहुत बड़ी कीमत चुकाएंगे, और चुका भी रहे हैं। सीवीसी के यह निर्णय न केवल रेल के नेतृत्व पर सवाल उठाते हैं, बल्कि यह सीवीसी की कम्पीटेंस और इंटीग्रिटी पर भी सवाल उठा रहे हैं।
हमने रेलवे विजिलेंस में व्याप्त-व्यापक भ्रष्टाचार के बारे में बहुत पहले से और खासतौर पर 2019 से लगातार लिखा है, लेकिन न कोई कारगर कार्यवाही हुई, न ही विजिलेंस की कार्य-प्रणाली की समीक्षा-पुनरीक्षा करने की आवश्यकता समझी गई। लेकिन जब सरकार के शीर्षस्थ नेतृत्व से निर्देश आए, तो इन दो अधिकारियों – #RKJha और #RKRai – को रेलवे बोर्ड विजिलेंस से तुरंत बाहर निकालना पड़ा।
इस ‘नेक्सस’ की करतूतें सर्वव्यापी थीं और सार्वजनिक भी!
चलिए 2019-20 में चलें, जब ये अक्षम (#incompetence) और भ्रष्टाचार (#corruption) का नेक्सस अपने चरम पर था-आर के झा ने अपनी महत्त्वकांक्षा के आगे कई अधिकारियों के कैरियर में विजिलेंस का पेंच फँसा दिया। इन अधिकारियों की लिस्ट में एक नाम था आज के सीआरबी अनिल कुमार लाहोटी जी का। इन्हीं झा महाशय के दिशा-निर्देशन में वन्दे भारत की टीम पर विजिलेंस केस बने। इस बीच इनकी हर भ्रष्ट गतिविधि को #RailSamachar और #Railwhispers ने पूरी तरह एक्सपोज किया। तब इन झा महाशय को भारत सरकार के कड़े निर्देशों पर तुरंत विजिलेंस और रेल भवन से निकालना पड़ा। इस आलोक में अब आप इन झा महाशय के एक कार्यक्रम में उनके उद्गार पढ़ें, जो ‘हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और’ का ज्वलंत उदाहरण हैं-
इस कांफ्रेंस की थीम थी: “Integrity – A way of life”
किसी भी सभ्य समाज में एक ऑफिसर अपना कैरियर सृजनात्मक काम करके बनाएगा, लेकिन अब यह माना जाने लगा है कि विजिलेंस की नौकरी से बढ़िया कुछ नहीं। सही भी है, न विजिलेंस केस का डर, चाहें तो ऊपर की बेतहाशा आमदनी, डिलीवरी की कोई चिंता नहीं, जिससे चाहा उसका हिसाब बराबर कर दिया, केस गलत भी बना, तो भी किसी बात की चिंता या किसी की परवाह नहीं – जहां अच्छे-अच्छे बोल्ड एवं निष्ठावान अधिकारी अपने जीवन के कई साल botched-up इंवेस्टिगेशन और अधूरी-अधकचरी समझ से बनाए गए केस को निबटाते निकाल देते हैं, लेकिन इन विजिलेंस अधिकारियों का बाल भी बांका नहीं होता। पिछले 6-7 साल के ही केसेस देख लें, जिस कैजुअल एटीट्यूड से इन केसेस में विजिलेंस एंगल बनाया गया, वह अभूतपूर्व है। वन्दे भारत और श्री लाहोटी के केस ‘case study’ बनाए जाएंगे-यह तय है।
सवाल यह उठता है कि इस ‘प्रशासनिक हत्याकांड’ के समय सरकार क्या कर रही थी?
“रेलमंत्री का विजिलेंस विभाग पर बयान: रेलवे/सरकार की पालिसी कैसे समझ सकते हैं अनुभवहीन अधिकारी!“
“माननीय मंत्री जी और बोर्ड मेंबर, कृपया रोकें अब हत्या और लूट का सिलसिला!“
उपरोक्त दोनों आर्टिकल में हमने यह उजागर किया कि #RKJha की टीम में दो मुख्य अधिकारी रहे – #RKRai और #AshokKumar। हमने यह बताया कि कैसे #RKRai ने सीनियर स्केल के बाद से लेकर एसए ग्रेड तक निर्णय लेने वाली किसी पोस्ट पर काम नहीं किया। यही हाल अशोक कुमार का भी रहा, जो आज के #EDVigilance/Stores हैं। वर्ष 2014 के बाद से जब नई नीतियां बनीं, इन दो अधिकारियों ने कभी निर्णय लेने वाले पद पर या किसी टेंडर कमेटी में नहीं बैठे। यही कारण रहा कि इनके पास वह कॉम्पिटेंस (क्षमता/योग्यता) नहीं रही, जिससे ये टेंडर कमेटी के सदस्यों की सोच और निर्णय को समझ पाते।
लेकिन यह पॉवर इनको दे दी गई-अपने से सीनियर और ज्यादा अनुभवी अधिकारियों के निर्णयों पर ये फाइनल अथॉरिटी बनकर बैठ गए-हमने अपने आलेखों में यह सुझाव भी दिया कि विजिलेंस के अधिकारियों को अपनी रिपोर्ट में स्पष्टता से यह लिखना चाहिए कि “वे स्वयं क्या निर्णय लेते यदि वे आरोपी ऑफिसर (#Charged_Official) की चेयर पर होते!” साथ ही हमने यह बात भी रखी कि जब #RKJha को रेलवे बोर्ड से तुरंत प्रभाव से निकालना पड़ा, तो उनके द्वारा किए गए केसेस पर श्वेत पत्र क्यों नहीं प्रकाशित हो? वहीं हमने यह भी स्थापित किया कि उनकी टीम के ये दो सदस्य #RKRai और #AshokKumar निपट अनाड़ी और अनुभवहीन रहे, इनके जजमेंट पर कैसे विश्वास किया गया? #RKRai पर वैसे भी गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। 2019 से #RKRai के बारे में #RailSamachar ने विस्तार से लिखा था-
“रेलवे बोर्ड विजिलेंस से लंबे समय बाद बहिष्कृत हुए आर. के. राय!“
“कदाचार और भ्रष्टाचार का अड्डा बना रेलवे बोर्ड विजिलेंस“
“घनश्याम सिंह को फेवर करने के लिए रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने सीवीसी को दिग्भ्रमित किया!“
“मेंबर ट्रैक्शन, रेलवे बोर्ड बनने के लिए जारी है घनश्याम सिंह की लॉबिंग“
“घनश्याम सिंह को जीएम बनाने की जल्दी में है रेलवे बोर्ड?“
“मेंबर ट्रैक्शन/रे.बो. की कुटिल करतूतों पर लगाम लगाए रेल प्रशासन“
लेकिन घनश्याम सिंह, राजेश तिवारी और वी. के. यादव के अत्यंत नजदीक रहे #RKRai को किसका डर था? किसी का भी नहीं! परिणामस्वरूप वे बेलगाम रहे!
#VandeBharat, #MCF, #CORE, #COFMOW इत्यादि जैसे केस बिगाड़ने के बाद भी #RKRai, #AshokKumar और #RKJha का बाल भी बांका नहीं हुआ। झा और राय को प्रमोशन मिल गए, मनपसंद पोस्टिंग मिल गई। सुना जा रहा है, #अशोकुमार भी पुरस्कृत होकर अपनी मनचाही पोस्टिंग पाएंगे। राय को भी रिटायरमेंट के बाद मोटी कमाई वाली नौकरी #RVNL ने दे दी।
रेल अधिकारी इसे सीवीसी और रेलवे बोर्ड (सीआरबी) का अनैतिक कार्य-व्यवहार मान रहे हैं। #CVC ने इन अधिकारियों को चुना और #CRB अब सब कुछ जानते-बूझते हुए भी कोई कार्यवाही नहीं कर रहे हैं! #RDSO के #CVO की गलत नियुक्ति एक और ज्वलंत उदाहरण है। एक साजिश-षड्यंत्र (#Conspiracy) के तहत, अत्यंत अक्षम, केचुआ-टाइप, अनुभवहीन और रीढ़विहीन अधिकारी लाए गए और सीआरबी तथा सीवीसी इस पर रहस्यमई कुटिल चुप्पी साधे हैं, जो उनकी मंशा और कार्य-व्यवहार पर सवाल उठा रही है!
समय गवाह है कि झा और राय के भ्रष्ट खेल को हमने समय रहते प्रकाशित किया था, लेकिन सरकार ने अपनी किरकिरी होने तक इस फीडबैक पर कार्यवाही नहीं की। अशोक कुमार आज भी बिना अनुभव के लगभग छह साल से रेलवे बोर्ड विजिलेंस में बैठे हैं और कितने अधिकारी L-16 और L-17 के जोन ऑफ कन्सिडरेशन से बाहर हो गए। क्या सीआरबी या सीवीसी की कोई जवाबदेही नहीं? लाहोटी साहब यदि मजबूत पृष्ठभूमि से नहीं होते, तो वह और उनके साथ पैनल में अन्य अधिकारी L-15 में ही रिटायर कर जाते!
वैसे अब वह दिन दूर नहीं, जहां वन्दे भारत जैसे केस के हाल, लाहोटी साहब के साथ हुई विजिलेंस की घटना के आलोक में अधिकारी क्रिमिनल केस दायर करें, कि कैसे निपट अनुभवहीन और भ्रष्ट अधिकारियों को रेल मंत्रालय में संरक्षण मिला और सीवीसी शांत मूक-बधिर होकर बैठा रहा!
यह तो रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव का वह बोल्ड बयान था, जिसने प्रताड़ित रेल अधिकारियों को मुंह खोलने यानि बोलने की थोड़ी हिम्मत दी है।
20 अगस्त 2020 में हमें #RKRai की मोडस ऑपरंडी बारे में एक ईमेल मिली थी, जिसे हम वेरिफिकेशन के अभाव में तब प्रकाशित नहीं कर पाए थे और फिर अन्य मुद्दे प्रायोरिटी बन गए। लेकिन आज आवश्यक है कि इस फीडबैक को हम प्रकाशित करें। इसमें हमने ईमेल एड्रेस को छोड़कर और कुछ भी संपादित नहीं किया है-
“More than such 60-70% vigilance cases where officers were retired before issuance of charge-sheet due to delay in so-called vigilance investigation pertain to Shri R.K.Rai, EDV(EL). Recently, 2 such cases came to notice of CVC. He directed CRB to fix the responsibility. But, since R.K.Rai is his job fixer and his conduits, CRB is maintaining complete silence.
In order to ensure that vigilance cases move as per his whims and fancies, R.K.Rai has developed an innovative model. Firstly, he has made a rule that post of AVO/Electrical/Railway Board shall be filled up by the officers of Northern Railway only. Such an action on his part is gross violation of rules governing the postings against ex-cadre posts. As per rule, post should be opened for all Zones and PUs. However, he has done so just to ensure that person of his choice is selected who can write the report as per his wish on dotted lines. Recently, he has ensured that his puppet the then AVO/Elect. after serving in Railway Board vigilance for 6 years, has been sent to CVC as Dy CTE for another 5 years.
Secondly, earlier all cases going to him and upward used to be routed through Director/vigilance. Thus, he was proving hindrance in his path and he became apprehensive that the said channel of submission of files is not conducive to his discretionary and arbitrary actions. Hence, in one masterstroke, he short-circuited Director and asked AVO/Elect. to put up the files to him directly, which he followed religiously. Since AVO is the junior most level of officer and moreover selected by him as per his choice, Mr Rai gets the report prepared as per his wish and file is put-up to him directly by short circuiting the Director. Since last 6 years, he has been doing that only. CRB is very happy with him because Rai is fulfilling his objective to fix the mechanical officers.”
[The above matter came via email xyz@gmail.com on 20.08.2020]
बात यह है कि ऐसा 6 साल चलता रहा और यह सब मनमानी करने वाला अधिकारी – आर के राय – आज भी पुरस्कृत हो रहा है। बताते हैं कि यह राय महाशय पहले कांग्रेस के समीप थे, जब भाजपा की सरकार आई, तो इनकी रिश्तेदारी तत्कालीन रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा से निकल आई, या निकाल ली गई जैसा कि हमेशा सरकार के बड़े पदों पर बैठने वाले लोगों के साथ धूर्त किस्म के लोग अपनी रिश्तेदारी निकाल लिया करते हैं, और फिर #PMO में इन्होंने अरविंद शर्मा को पकड़ लिया। विनय सहस्रबुद्धे, सी. आर. पाटिल-किसके समीप नहीं बताया इन्होंने अपने आपको!
इनकी पैठ सीवीसी में भी हो गई। चूँकि काम इन्हें आता नहीं था, यह बिना किसी लाग-लपेट के अपने पूर्व एवीओ की मदद लेकर अपनी खुली दूकान चलाते रहे। बरेका में इन्होंने इसी अहंकार में स्थानीय माफिया को खुला संरक्षण दिया, जिसके बारे में हमने यह लेख हाल ही में लिखे:
“माननीय मंत्री जी और बोर्ड मेंबर, कृपया रोकें अब हत्या और लूट का सिलसिला!“
“अधिकारी-वेंडर-नेक्सस का नया स्वरूप-अधिकारी स्वयं बना वेंडर”
“रेल के दबंगों की दबंगई: क्यों #रोटेशन का कोई अपवाद नहीं!“
“योगी जी के राज में अतीक-मुख्तार का राज और अय्याशी कैसे चली?“
“अधूरा न्याय: क्या स्वतंत्र निर्णय लेने में असमर्थ हैं #MTRS?“
“शैतानी और अपराधिक भूल के सुधार के लिए साधुवाद!“
“#KMG की दादागीरी के सामने प्रॉपर बोर्ड भी धराशाई!“
बरेका से मिली जानकारी:
#नोट: पाठकगण, आपने देखा होगा कि हम आजकल प्राप्त हो रही सूचनाओं पर जल्दी लेख नहीं बना पा रहे, क्योंकि अधिकांश सूचनाएं बहुत विस्फोटक हैं, और यह बड़ी मात्रा में आ रही हैं। हमें वेरिफिकेशन और रिसर्च में सीमित संसाधन के चलते समय लग जाता है। आप निश्चिंत रहें, आपके द्वारा दी गई जानकारी, हमारी रिसर्च में शामिल हो जाती है-जैसा ढ़ाई साल पुरानी ईमेल, जो ऊपर इस लेख का भाग है, उसे ही देखें। बरेका से प्राप्त सूचनाएं भी वेरिफिकेशन करने के बाद ही प्रकाशित हो रही हैं, प्रतिस्पर्धी सूचनाएं कई बार बड़ी चतुराई से आ रही हैं। हम अपना पूरा प्रयास कर रहे हैं प्रामाणिकता को जाँचने में!
पहले यह दबंगई #KMG से मिलकर रेल भवन में चलती रही, लेकिन अब इसकी काली परछाईं प्रधानमंत्री जी के संसदीय क्षेत्र पर पड़ रही है। यह भी बरेका से पता चला कि #KMSingh, जिनके 15 साल हो चुके हैं बरेका में, उन्हें यहीं प्रमोट कर कम से कम 5 साल और रखने का प्रबंध करवा दिया है। याद रहे, इसी अधिकारी का नाम लेकर बरेका की एक शॉप फ्लोर पर एक स्थानीय दबंग, जो राय महाशय का काफी निकट माना गया, ने एक बरेका कर्मी को घर से उठा ले जाने की धमकी दी। रेल भवन की अकर्मण्यता के चलते इस माफिया से सब डरते हैं। और क्यों न डरें, 2018 में यहां सरेआम एक हत्या की गई थी। इसी संदर्भ में जब शॉप फ्लोर पर दी गई धमकी के मात्र दो दिन में – जैसा धमकी मिलने के शिकायत पत्र में लिखा था – #KMSingh की पंद्रह साल रहने के बाद भी बरेका में प्रमोशन के साथ पोस्टिंग हो जाती है, जिसमें राय-नवीन कुमार और अन्य रेल भवन के अधिकारियों का नाम सामने आया।
वहीं यह भी पता चला कि ‘राय राजनीति’ का एक प्रमुख नाम – महेश प्रताप सिंह – जो बरेका में 27 मई 2005 में सीनियर स्केल में आए थे, उन्हें 1 अगस्त 2022 को बरेका में ही प्रमोट कर पोस्ट कर दिया। बताया गया है कि महेश प्रताप सिंह, जिनके ऊपर दबे स्वरों में डराने-धमकाने, मारने-पीटने के आरोपों सहित शॉप में अवांछनीय गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप लगते रहे हैं। यह सपा के एक बड़े नेता के बहुत करीबी होने के चलते यहां अपना बहुत बड़ा भौकाल बनाए रहे हैं। लेकिन जब इनका पानी उतरा, तो राय और अन्य रेल भवन के अधिकारी ने इनको संरक्षण दे दिया।
कर्मचारियों ने बताया कि #KMSingh, #MaheshPratapSingh बरेका में स्थानीय माफिया के बड़े नाम हैं। उनका कहना है कि राय महाशय के माफिया को दिए गए संरक्षण की प्रक्रिया में ये उनके पैदल सिपाही रहे हैं। जैसा आपने देखा #RKRai ने इन दोनों अधिकारियों को बरेका में ही प्रमोशन दिलवाया। तत्कालीन सीआरबी विनय कुमार त्रिपाठी द्वारा इंस्पेक्शन में थर्ड पार्टी लाने के पीछे बरेका में व्याप्त इंस्पेक्शन पर #RKRai की पकड़ या काली छाया भी बताई गई। इस विषय में और नामों के साथ कुछ विस्फोटक जानकारी का वेरिफिकेशन हमारे पास पेंडिंग है, उस पर एक लेख पुनः शीघ्र ही आएगा।
कर्मचारियों ने बताया कि यह नेक्सस इसीलिए बन पाया, क्योंकि बरेका में रोटेशन के अभाव में माफिया पहले से मौजूद था, और जैसे ही इस नेक्सस ने अपने को कमजोर होता पाया, इसे #RKRai का संरक्षण मिल गया।
राय महाशय ने स्वयं जोड़-तोड़ कर, शून्य अनुभव और सर्वज्ञात रूप से भ्रष्ट होने के बावजूद मनमर्जी पोस्टिंग ली और एक्सटेंशन भी पाया। शायद ही भारतीय रेल के इतिहास में किसी ईडी/विजिलेंस को 6 साल का टेन्योर मिला हो रेल भवन में। समय से न रोकने के कारण राय महाशय यही मानते हुए रिटायर किए कि जोड़-तोड़ से सब संभव है। सेवानिवृत्ति के बाद भी जोड़-तोड़ से ही आरवीएनएल में मिली नौकरी यही दर्शाती है!
मोदी जी ध्यान दें, रेलमंत्री आप भी देखें!
ऐसा नेक्सस प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में है। इन लोगों की गुंडागर्दी ऐसी है, शॉप के कई कर्मचारी 2024 में अपना प्रोटेस्ट वोट देने की बात कर रहे हैं, क्योंकि इस अराजकता और गुंडई की सभी हदें पार हो गई हैं, और रेल भवन से स्पष्टता से इस तरह के एलीमेंट्स को संरक्षण मिल रहा है, वरना #RKRai को रिटायरमेंट के बाद बिना अनुभव के कोई नौकरी पर नहीं रखता! #KMSingh 15 साल के बाद बाहर ट्रांसफर होते और महेश प्रताप भी प्रमोशन लेकर बरेका में ही रह गए। बाकी नेक्सस पर वेरिफिकेशन के पश्चात पाठकों को बताया जाएगा-वैसे हमें ये बताया गया है कि रेल भवन में सारी जानकारी उपलब्ध है-रेलमंत्री प्रकोष्ठ तक!
मोदी जी की जीत तय है, यह निश्चित है, लेकिन बरेका से प्राप्त वोटों में नोटा की छाप दिखेगी, ऐसी बातें यहां शुरू हो गई हैं। मोदी जी अपने स्थानीय #PMO से इस बारे में पर्याप्त जानकारी ले सकते हैं। हमें यह सूचित करते बहुत खेद हो रहा है, क्योंकि रेलमंत्री से हमारी बहुत आशाएं थीं, लेकिन वह #KMG के मकड़जाल से निकालना ही नहीं चाह रहे और मोदी जी में हमें अपने देश का भविष्य दिखता है, मगर रेल की चिंता भी बहुत है, क्योंकि रेल सर्वसामान्य जनता से कटती जा रही है। वोटों की संख्या में थोड़ी भी गिरावट एक निगेटिव संदेश देगी, क्योंकि सही मायने में रेल सिस्टम में 2014 से लेकर अब तक कुछ नहीं बदला है। सरकार यदि हमारे फीडबैक पर समय से संज्ञान लेकर काम करती, तो स्थिति ऐसी नहीं होती। अभी भी समय है सुधार का! क्रमशः जारी..
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी