फंस गया इस बार खान मार्केट गैंग का प्लान !

जीएम पैनल बनाने और जीएम पोस्टिंग करने में गोपनीय-अपारदर्शी प्रक्रिया का औचित्य क्या है?

रेल मंत्रालय के हर कार्यकलाप में इतनी अपारदर्शिता, अनियमितताएं, पक्षपात और नियमों का उल्लंघन होता है कि प्रभावित अधिकारियों से अधिक भयभीत तो रेलवे का शीर्ष प्रबंधन रहता है!

क्या विरोधाभास है कि वह जो कभी जीएम नहीं बन सकते थे, वे मेंबर पद से रिटायर हो रहे हैं, और जो जीएम तथा बोर्ड मेंबर बन सकते थे, वे अब रिटायरमेंट पर आ गए हैं!

यह कैसी विडम्बना है कि जीएम/उत्तर रेलवे का मातहत पीसीएमई अपने बॉस के ऊपर पहुंचकर एमटीआरएस बन जाता है!

आईआईएम और आईआईटी मैनेजमेंट के प्रशिक्षण कोर्स नहीं चला सकते, क्या किसी ने यह सर्टिफाई किया है?

भारत सरकार की वैधानिक और रेगुलेटरी व्यवस्था को बाईपास करने वाले संस्थान को भारत सरकार का ही एक मंत्रालय क्यों इतना बिजनेस दे रहा है?

आजादी के बाद रेलवे में सर्वथा पहली बार इतने बड़े पैमाने पर निवेश हो रहे हैं और इसी दौर में रेलवे बोर्ड के मेंबर्स, जो इन निवेशों को करेंगे, जैसे मेंबर ट्रैक्शन एंड रोलिंग स्टॉक (एमटीआरएस) और मेंबर इंफ्रास्ट्रक्चर (एमइन्फ्रा), और जो वित्त देखेंगे मेंबर फाइनेंस (एमएफ) – वह नहीं हैं।

जो बोर्ड मेंबर्स का काम फौरी तौर पर देख रहे हैं, उनका न तो 360 डिग्री रिव्यू हुआ है, न इंटेलिजेंस क्लीयरेंस हुई है, और लगभग सभी अधिकतर महाप्रबंधकों से कनिष्ठ हैं। रेल जो कड़े कमांड और कंट्रोल पर चलती है, वह चल कैसे रही है? इस बारे में हमने रेलवे के बहुत सारे सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों से बात की और समझने की कोशिश की कि रेल बिना शीर्ष नेतृत्व के चल कैसे रही है!

जितने लोगों से चर्चा हुई, तार रेल के उन दो-चार अधिकारियों तक पहुंच गए, जो पिछले चार रेलमंत्री और पांच चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड (सीआरबी) के साथ महत्वपूर्ण पदों पर लगातार काम कर रहे हैं। इन अधिकारियों ने बताया कि कैसे ट्रांसफॉर्मेशन डायरेक्टोरेट एक ‘शैडो बोर्ड’ के रूप में बनाया गया, जहां बोर्ड के सभी सदस्य और डायरेक्टोरेट बाईपास हो गए।

इस प्रक्रिया के जनक थे वह अधिकारी, जो आज सेवानिवृत्ति के बाद मंत्री जी के सलाहकार के रूप में आए। चूंकि ‘अखिल भारतीय दिल्ली सर्विस’ के ये महानुभाव अग्रणी रहे हैं, अतः इन्हें यह बहुत अच्छी तरह से पता है कि कैसे बोर्ड अध्यक्षों को और मंत्रियों को भ्रमित किया जाता है! कैसे ‘आपदा में अवसर’ तलाशा जाता है! संभवतः इसी विषय पर शीघ्र ही इनकी पुस्तक आने वाली है।

मोदीजी ने मंत्र दिया, ट्रांसफॉर्म एंड परफॉर्म – जहां दूसरे बड़े-बड़े मंत्रालयों ने देश का कायाकल्प कर दिया, जबकि यहां रेल मंत्रालय में तो बना दी गई ट्रांसफॉर्मेशन डायरेक्टोरेट। व्यस्वस्था की राजनीति जिसके सलाहकार महोदय चैंपियन रहे, और अपने से 11 सीनियर अधिकारियों की एपीएआर में छेड़-छाड़ करने में सफल रहे – निश्चित है कि इन्हें पार्श्व रूप से सिस्टम को कैसे मेनीप्युलेट किया जाता है, कैसे बॉस के मानस पटल पर अपने विचारों को थोपा जाता है, कैसे बॉस के मस्तिष्क को जकड़ा जाता है, इसके वह एक्सपर्ट हैं – इसकी भी केस स्टडी बनने में बस कुछ ही देर है!

हमारी खोज ने ऐसे ‘ट्रांसफॉर्मेशन जीवियों’ को तलाश लिया, जो रेलवे में दबे स्वरों में ‘खान मार्केट गैंग’ (केएमजी) कहलाने लगे थे – सरकार किसी की भी रही हो, सिस्टम हमेशा इन्हीं का रहा!

बहरहाल, बात शीर्ष नेतृत्व के ‘वैक्यूम’ की है। क्या विरोधाभास हो गया कि वह जो कभी जीएम नहीं बन सकते थे, वे बोर्ड के मेंबर पद से रिटायर हो रहे हैं – और जो जीएम तथा मेंबर बन सकते थे, वे अब रिटायरमेंट पर आ गए हैं। यह कैसी विडम्बना है कि जीएम, उत्तर रेलवे का मातहत पीसीएमई अपने बॉस के ऊपर पहुंचकर एमटीआरएस बन जाता है!

जीएम/उत्तर रेलवे तो जीएम पद से ही रिटायर करेंगे, लेकिन उनका पीसीएमई रहा अधिकारी, बोर्ड मेंबर से रिटायर करेगा – क्या संदेश गया देश की सबसे बड़ी सरकारी मशीनरी में? ऐसा कैसे हुआ कि जीएम पद से ऊपर मेंबर का काम देखने वाले जीएम बनने का फॉर्म भर रहे थे!

हमने ये भी खुलासा किया कि 360° करने वाला पैनल कम्प्रोमाइज्ड था, और संभावित जीएम को चुनने वाले जीएम नहीं बन पाए थे!

जो-जो खुलासे हुए, उनसे आनन-फानन में 20 डीआरएम बना दिए गए, सारे नए-नवेले टेस्टों को दरकिनार करके – एक साल पुरानी फाइल को जीवित करके – सीवीओ/आरडीएसओ को बदल दिया गया बिना एडवर्टाइजमेंट दिए ही!

इसी क्रम में जब हमने चेताया – रेल के जानकारों के सुझावों पर – कि सर्दियां आ रही हैं और मेंबर इंफ्रास्ट्रक्चर का काम लंबे समय से लुक ऑफ्टर चलते-चलते अब गैर-सिविल इंजीनियर के पास चला गया है, और यह भी बताया कि इस सरकार को दो सर्दियों के प्रति सचेत रहना है, तो जीएम वाली फाइल आनन-फानन में चला दी गई!

परंतु इस बार गलती अथवा चालाकी शायद भारी पड़ गई। जीएम के चयन में फाइल मंत्रालय के बाहर जाती है और दूसरे मंत्रालय ‘सुधीर-दृष्टि’ से वंचित हैं। ये गलतियां हुईं –

1. जिस दिन वैकेंसी होती है अर्थात जिस दिन पद खाली होता है, चयन की प्रक्रिया उस दिन, उस समय की लागू होनी चाहिए – ऐसा जानकारों का मानना है, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत। लेकिन अनादि काल से चली आ रही वैकेंसी भी नए नियम, जिन्हें हाल ही में नोटिफाई किया गया है, से भरने का प्रयास किया जा रहा है। ये कानूनी रूप में मान्य नहीं है – ऐसा जानकार मानते हैं।

2. 360 डिग्री रिव्यू को स्टैब्लिशमेंट अफसर ने नोटिफाई तो कर दिया, लेकिन प्रक्रिया को पूरा अंधेरे में रखा। जैसा जीएम बनने के आवेदकों की स्क्रीनिंग वाले पैनल के कम्पोजीशन से ज्ञात हुआ।

3. बिना पैनल बने किस आधार से पोस्टिंग का प्रयास हो रहा है? दोनों कैसे साथ-साथ हो रहे हैं? जबरदस्ती से की गई देरी से अब अविश्वसनीयता की स्थिति बन गई है। क्या पैनल प्रकाशित करना प्राकृतिक न्याय (नेचुरल जस्टिस) और प्रशासनिक निष्पक्षता (एडमिनिस्ट्रेटिव फेयरनेस) की आवश्यकता महसूस नहीं हुई?

4. इमोशनल इंटेलिजेंस टेस्ट पिछले कुछ समय से हो रहा है। कैसे इस विदेशी टेस्ट को ‘मेक इन इंडिया’ के क्राइटेरिया में फिट किया गया? क्या प्रयास किए केएमजी ने इसके स्वदेशीकरण के लिए? क्या यह जांच का विषय नहीं है?

5. कैसे आईएसबी और उसके अध्यापक राजेश्वर उपाध्याय के हस्ताक्षर रेल के सभी नए बड़े इनिशिएटिव पर हैं, यह बहुत चिंता का विषय है।

6. क्योंकर फाइल एक साल से अधिक समय दबाकर इस टेस्ट को बिना उपयोग किए एक नहीं, बल्कि रेल के एक तिहाई डीआरएम पोस्ट हो जाते हैं? फिर इस टेस्ट पर रेल क्यों खर्च कर रही है?

7. कौन इसका जस्टिफिकेशन दे रहा है? क्या कोई अधिकारी अपने हस्ताक्षर से इसका स्पष्टीकरण देगा? क्योंकि रेल का सारा शीर्ष नेतृत्व बिना किसी अपवाद के इसी टेस्ट से स्क्रीन हो रहा है। देश के कमांडो और सैन्य अधिकारियों की मनोवैज्ञानिक जांच देश की ही विशिष्ठ संस्था डीआईपीआरओ- https://www.drdo.gov.in/labs-and-establishments/defence-institute-psychological-research-dipr देखती है। इनके द्वारा किए गए टेस्ट के प्रकार यह हैं-

https://www.drdo.gov.in/labs-establishment/technologies/defence-institute-psychological-research-dipr)।

8. जहां दूसरे मंत्रालयों में नए सचिव की पोस्टिंग तात्कालिक सचिव की सेवानिवृत्ति से पहले हो रही है, उससे मोदी सरकार की मंशा स्पष्ट है – कि प्रशासन स्वच्छ और पारदर्शी होगा। लेकिन रेल मंत्रालय में केएमजी की पकड़ बहुत मजबूत है, ऐसा लग रहा है – लुक ऑफ्टर व्यवस्था में ही इन लोगों की ताकत है।

लेकिन केएमजी की कुटिल योजना इस बार फंस गई और धरी-की-धरी भी रह गई। प्लान तो यह था कि लेवल-16 के सभी आवेदकों को तथाकथित ट्रेनिंग के नाम पर मोहाली, इंदौर और बैंगलोर भेज देंगे, और इधर चुपके से जीएम पैनल और जीएम पोस्टिंग के आदेश जारी कर देंगे। इस प्रकार कथित ट्रेनिंग के नाम पर अपनी वास्तविक लोकेशन से दूर प्रभावित अधिकारियों को कानूनी सलाह/सहायता लेने से वंचित किया जा सकेगा।

पहले शुक्रवार को देर शाम तक आदेश निकालने की परंपरा थी, जिससे शनिवार और रविवार को कोर्ट बंद होने के कारण कोई अधिकारी कोर्ट से स्थगनादेश (स्टे आर्डर) न ला सके! पर डीओपीटी ने प्रस्ताव में कई कमियां पकड़कर प्रस्ताव को रोक लिया। अब क्या रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके अधिकारियों को राम-राम रटने-रटाने की फिर से तीन-चार दिन की कोई नई ट्रेनिंग कराई जाएगी?

सोचने वाली बात यह है कि जीएम पैनल बनाने और जीएम पोस्टिंग करने में ऐसी गुप्त कार्रवाई की ही क्यों जाती है, मानो बालाकोट जैसा कोई कारनामा अंजाम देना हो? रेल मंत्रालय के हर कार्यकलाप में इतनी अनियमितताएं, इतनी अपारदर्शिता, इतना पक्षपात, इतना बिरादरीवाद, इतना भाई-भतीजावाद और नियमों का उल्लंघन होता है कि प्रभावित अधिकारियों से अधिक भयभीत तो रेलवे का शीर्ष प्रबंधन रहता है।

इस गैरजरूरी ट्रेनिंगनुमा षड्यंत्र में डेढ़ करोड़ से अधिक का खर्चा तो केवल फीस पर हुआ, 120 अधिकारियों के आने-जाने और भत्ते पर अलग! जब दो सरकारी संस्थानों आईआईएम-इंदौर और आईआईएम-बैंगलोर को ट्रेनिंग का काम दिया गया, तो एक गैरमान्यता प्राप्त – आईएसबी/मोहाली – को सबसे ज्यादा ऊंची फीस पर ठेका क्यों दिया गया? क्या सरकारी उच्च अधिकारियों को ऐसी जगह ट्रेनिंग देनी चाहिए, जो संस्था देश की रेगुलेटरी और वैधानिक व्यवस्था में विश्वास नहीं रखती – क्या यह नैतिक है?

प्राप्त जानकारी के अनुसार आईएसबी को न तो एआईसीटीई, न ही यूजीसी, और न ही भारत सरकार के किसी मंत्रालय से मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए कोई मान्यता मिली है। फिर इस गैरमान्यता प्राप्त निजी संस्थान को इतने पैसे क्यों दिए गए? क्या केवल इसलिए कि माननीय रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव के सलाहकार महोदय सुधीर भाऊ, आईएसबी से पीएचडी कर रहे हैं?

सुधीर भाऊ के पीएचडी गाइड राजेश्वर उपाध्याय को भी आईएसबी मोहाली में व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया। ऐसी भी खबर है कि सभी चयनित जीएम एक ही संस्थान – आईएसबी/मोहाली – में ही भेजे गए थे? क्या यह एक संयोग मात्र था, या फिर षड्यंत्र का ही कोई हिस्सा?

उक्त सभी फोटोग्राफ ये बताते हैं कि कैसे यह व्यवस्था केएमजी के – तुम मेरी पीठ खुजाओ – मैं तुम्हारी पीठ खुजाऊंगा – मूल मंत्र पर काम करती है! रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष बदलते चले गए, लेकिन यह फोटो उनको दर्शाती हैं, जो न केवल सिस्टम में बने रहे, बल्कि और अधिक मजबूत बनते चले गए। यही केएमजी की जड़ है। ये सभी फोटो डॉ राजेश्वर उपाध्याय की कंपनी की वेबसाइट से साभार ली गई हैंhttps://www.eiacademy.in/gallery.php)।

स्मरण रहे, एक ऐसा ही इंस्टिट्यूट था – आईआईपीएम – जिसके डायरेक्टर ने फिल्में भी बनाईं और विज्ञापनों के मायाजाल से हजारों युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया। https://www.moneylife.in/article/ugc-reiterates-iipm-cannot-award-mbas/37447.html हमारी मंशा किसी शैक्षिक संस्था को छोटा दिखाने की नहीं है – आईएसबी ने अपना अच्छा नाम बनाया है, लेकिन सैद्धांतिक आपत्ति तो उठेगी ही कि भारत सरकार की वैधानिक और रेगुलेटरी व्यवस्था – यूजीसी, एआईसीटीई – को बाईपास करने वाले संस्थान को भारत सरकार का ही एक मंत्रालय क्यों इतना बिजनेस दे रहा है? क्या किसी ने यह सर्टिफाई किया है कि आईआईएम और आईआईटी इस तरह के प्रशिक्षण कोर्स नहीं चला सकते हैं?

ईश्वर से इन सर्दियों के कुशलतापूर्वक निकलने की कामना है – माननीय मंत्रीजी, मोदी सरकार के आपसे पूर्व मंत्री की अगुआई में रिकॉर्ड निवेश होकर लेवल क्रासिंग बंद हुईं, रिकॉर्ड ट्रैक रिन्यूअल और रेल पुलों पर काफी काम हुआ इत्यादि, जिसका लाभ आज मिल रहा है। रिकॉर्ड ब्लॉक दिलाए गए – यहां तक कि एनडीटीवी ने बिगड़ी रेल पंक्चुअलिटी का मखौल उड़ाया, लेकिन सरकार ने मरम्मत के लिए पूरे ब्लॉक दिलवाए – यह माननीय प्रधानमंत्री जी की राजनैतिक इच्छाशक्ति ही हो सकती थी कि चुनावी दौर में भी सेफ्टी को पंक्चुअलिटी के ऊपर रखकर सारे रिपेयर और मेंटेनेंस के एरियर्स खत्म करवाए गए।

मंत्री महोदय, कृपया मोदी सरकार द्वारा किए गए इन रिकॉर्ड सेफ्टी संबंधी कार्यों को धूमिल न होने दें। व्यवस्था संभालनी पड़ती है-यह सतत प्रयास से ही हो सकता है। पीएमओ में आपके रहते अटल जी के प्रयासों का लाभ यूपीए-1 को मिला था, लेकिन यूपीए-2 ने कोर कार्यों से दूर रहने की कीमत चुकाई, इस तथ्य का सदैव स्मरण रहे!

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मंत्री महोदय जयपुर में पिछले दिनों जो बोलकर आए हैं तथा वाराणसी एवं लखनऊ में जिस तरह उच्च पदों पर नियुक्ति को लेकर उनके स्वर सुनाई दिए हैं, वह शब्द उनके नहीं हो सकते हैं। जयपुर में जिस तरह बोर्ड की पूरी प्रक्रिया पर कुछ अधिकारियों ने अपारदर्शिता का प्रश्नचिन्ह लगाया, वह विचारणीय है। इसका भी खुलासा और विश्लेषण शीघ्र ही किया जाएगा।

अब प्रश्न यह है कि क्या प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय सतर्कता आयोग रेल मंत्रालय में घटित हो रही उपरोक्त सभी तथ्यों पर कोई पूछताछ करेंगे? क्रमशः जारी…

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

https://www.kooapp.com/koo/RailSamachar/b03e93a8-84c9-4c24-af06-ed725de5f859

#NarendraModi #PMOIndia #PMO #AshwiniVaishnaw #RailMinister #NitiAyog #CVCIndia #CEORlyBd #CRB #MF #MRTS #MInfra #GM #DRM #IIM #IIT #AICTE #UGC #KhanMarketGang #KMG #ISB #IIPM #SudhirKumar #Advisor #RailwayBoard #IndianRailways