हरिकेश की मर्माहत मृत्यु – अभी और क्या-क्या दिखाएगा ये खान मार्केट गैंग? पार्ट-3
#KMG के चलते रेल में जो निर्णय हो रहे हैं, वह ‘शॉर्टकट कार्यशैली’ को या यों कहें कि ‘जुआरी कार्यशैली’ को पुरस्कृत करते हैं!
हरिकेश की मर्माहत मृत्यु – और क्या-क्या दिखाएगा ये खान मार्केट गैंग? पार्ट-1, जैसे #CBI ने कोर्ट में कहा, ‘मोमेंट्री फेलियर नहीं मानती है!’ और पार्ट-2 में हमने एक ऐसे विश्लेषण को सुधी पाठकों के समक्ष रखने का प्रयास किया जो अब तक नहीं हुआ। यह विचार हमें आपसे ही मिले हैं। हमें ये महसूस हुआ कि रेल कि समस्याएं कहीं डिस्कस नहीं हो रही हैं। यही कारण है कि तकरीबन सभी निर्णय या तो हास्यास्पद बन गए हैं, या देश के युवाओं की एस्पिरेशंस पर कुठाराघात किया है, और अब एक हरिकेश मारा जाता है और रेल का नेतृत्व सन्नाटा खींचे है।
रेल में हो रहे अलकूता निवेश पर हम अलग सीरीज लिखने का विचार कर रहे हैं – सुधी पाठकों, आप अपनी महत्वपूर्ण फीडबैक देने में योगदान अवश्य करें!
रेल की वर्तमान स्थिति के कोर में भ्रष्टाचार नहीं – अपितु शुद्ध अक्षमता (pure incompetence) समाई हुई है!
चलिए, हाल में हुए बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस के एक्सीडेंट को देखें, जिसका रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव और सीआरबी विनय कुमार त्रिपाठी रेलवे के दोनों सर्वोच्च प्राधिकार ने जाकर ऑन दि स्पॉट निरीक्षण भी किया था।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि हिताची ट्रैक्शन मोटर का गिरना आसान नहीं है, और इस एक्सीडेंट में ये ट्रैक्शन मोटर गिर गई, और ये मेल-एक्सप्रेस ट्रेन डिरेल हो गई। कारण यह पता चला कि जो इंस्पेक्शन प्रत्येक 4500 किमी पर होना चाहिए था, वह 18000 किमी तक भी नहीं हुआ। कागज लेकिन पूरे थे।
प्राइमरी जिम्मेदारी ऑपरेशन के जूनियर एडमिनिस्ट्रेव ग्रेड (#JAG) स्तर पर डाल दी गई। कागजों के फर्जीवाड़े को इको-चैम्बर-मैकेनिज्म से चलाया गया और इसे रेल की मुख्यधारा बना दिया गया। अगर कोई रेल अधिकारी data fudging (डेटा फर्जीवाड़ा) से अपने को अनभिज्ञ कहता है, तो वह नितांत धूर्त है और सफेद झूठ बोल रहा है। पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल ने इसे ठीक करने के कुछ प्रयास भी किए थे, लेकिन उनके पास भी कोई उचित, मजबूत और सक्षम सेल नहीं था।
जब रेलवे बोर्ड end-to-end इलेक्ट्रिक लोको पर रनिंग की मांग कर रहा था, रेल के हर स्तर पर यह मॉनिटर हो रहा था कि कितनी गाड़ियां पूरे इलेक्ट्रिक लोको पर चलीं, तो क्या बोर्ड या जोनल हेडक्वार्टर इसे नहीं देख रहा था कि ऐसा लिंक बन गया है जहां ट्रिप की कोई गुंजाइश ही नहीं बची?
जैसे #Khatauli दुर्घटना ने यह बताया कि कैसे बिना ब्लॉक के पटरी काट/खोल देने जैसे निहायत गैरजिम्मेदार और अनसेफ कार्य को रेल के दैनिक मेंटेनेंस में लेने को नार्मल रूटीन मान लिया गया। जब हम देखते हैं कि #Khatauli के खलनायक महाप्रबंधक बना दिए गए और यह काम एक नहीं दो अलग-अलग रेलमंत्रियों के हस्ताक्षर से हुआ, तो हम किस आधार पर व्यवस्था का सुधार नीचे स्तर के अधिकारियों और कर्मचारियों की बलि देकर करेंगे?
#KMG और #AIDS के इको-सिस्टम ने ऐसे अधिकारियों को अभयदान दे रखा है, जैसा हमने “हरिकेश की मर्माहत मृत्यु”, पार्ट-1 और पार्ट-2 में बताया है।
हमने जब अपने सुधी पाठकों से उनके फीडबैक को क्राउडसोर्स किया तो सभी ने एक स्वर में कहा कि यह सिस्टम की फेलियर है किसी एक अधिकारी या कर्मचारी की नहीं। उन्होंने तो यह भी कहा कि “अब ये मान लिया गया है कि इस तरह के एक्सीडेंट्स ऑक्यूपेशनल हजार्ड (occupational hazard) हैं। अर्थात इस तरह की भारी-भरकम अंग्रेजी की आड़ में अपनी अक्षमता (इंकम्पीटेंसी) को छिपाकर जिम्मेदारों द्वारा अपने उत्तरदायित्व से पल्ला झाड़ लिया जाता है!“
रेल चलाना अब एक जुआरी के अंध-निर्णय का हिस्सा बन गया है। चूंकि सिस्टम में सेफ्टी की कई परतें हैं, 10 में से 9 दांव ठीक लगते हैं, लेकिन एक हरिकेश मरता है, अथवा एक ट्रेन प्लेटफार्म पर चढ़ जाती है, या मेल-एक्सप्रेस के पीछे लोडेड मालगाड़ी का ब्रेक फेल हो जाता है। एक फीडबैक कुछ ऐसा भी रहा-
“people say in one voice – these are not individual’s failure – these are systemic failures. For very long, short cuts have been encouraged and fudging of records supported by seniormost officers. Since a railway system has several layers of protection, most of these shortcuts don’t lead to accidents. But when short cuts become mainstream, accidents become norm.”
माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने आज भाजपा मुख्यालय से कहा: ‘देश आज शॉर्टकट नहीं चाहता’ देखें और ध्यान से सुनें (45:32 से) –
लेकिन #KMG के चलते रेल में जो निर्णय हो रहे हैं, वह शॉर्टकट कार्यशैली को, या यों कहें कि ‘जुआरी कार्यशैली’ को पुरस्कृत कर रहे हैं।
रेल की समस्याएं छोटी नहीं हैं। डगमगाती रेल, देश की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को भी चोट पहुंचा सकती है, यह सर्वविदित है। लेकिन ये जो #KMG और #AIDS है उनकी कार्यशैली बांध के रिसाव को वालपेपर से बंद करने का प्रयास कर रहे हैं। और क्यों नहीं – मात्र #KMG के चार अफसर 50 साल से ज्यादा रेल भवन में बैठे हैं, उन्हें केवल यही आता है। अफसोस कि #Khatauli के खलनायकों को पदोन्नत करते हुए इन्हें कोई ग्लानि नहीं हुई, न ही इनकी कलम कांपी!
वहीं, जहां हर अधिकारी की #APAR के 30% अंक अपने पास रखकर, गुवाहाटी-बीकानेर एक्सप्रेस डिरेलमेंट में एक डिवीजन के कनिष्ठ अधिकारी की प्राइमरी जिम्मेदारी तय कर देना हास्यास्पद नहीं, संपूर्ण अकर्मण्यता और अक्षमता का परिचायक है। क्यों बोर्ड के अधिकारियों की APAR के ये 30% अंक बेस्ट 5-6 रेलवे परफॉर्म, ऐसे भरे जाएंगे? क्या बोर्ड खराब परफॉर्मेंस वाली रेलवे के खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार नहीं है?
चलता है!
सब चलता है! यह एटीट्यूड इस जुआरी प्रवृत्ति से आया, इसी प्रवृत्ति के चलते बिना ब्लॉक के, दोनों तरफ से बिना सेफ्टी सुनिश्चित किए ट्रैक काट/खोल देने में किसी को कुछ अजीब नहीं लगा, क्योंकि ये रूटीन प्रैक्टिस बन चुकी है – आज भी आप निश्चित नहीं हैं कि ये प्रैक्टिस बंद हो चुकी है।
पिछले 22 सालों से सेफ्टी के नाम पर लगाई गई सीबीसी (#CBC) कपलिंग के चलते आप चादर में बिना गिराए चाय या पानी नहीं पी सकते। बर्थ पर बिना झटका खाए सीधे बैठ या लेट नहीं सकते! वहीं, स्वच्छ भारत अभियान के चलते लगाए गए बायो-टॉयलेट ने ट्रेन को ही सेप्टिक टैंक बना दिया! लेकिन सब चलता है। जिन अधिकारियों ने ये सिस्टम लगवाए, वे सब सिस्टम से पुरुस्कृत हुए!
आज सब चलता है, मेंबर इंफ्रास्ट्रक्चर लुकिंग ऑफ्टर अरेंजमेंट से है, और वह भी एक सिविल इंजीनियर नहीं, उन्हें रेल इंफ्रास्ट्रक्चर की कोई जानकारी नहीं। वहीं, सीनियर – जूनियर के नीचे काम कर रहे हैं। जो अधिकारी 35-36 साल सीनियरिटी के सिद्धांत पर रेस्पेक्ट कमांड करते थे, वे कैसे काम कर रहे होंगे, उनकी मन:स्थिति की कल्पना भी नहीं की जा सकती – लेकिन क्या फर्क पड़ता है – सब चलता है!
रेल का हर जानकार मानता है कि आज रेल चलाने का काम जुएं की तरह है। सब जोकर, पोकर फेस्ड (poker faced) सीरियस लगते हैं, लेकिन वे सब एक जुआरी की तरह जानते हैं कि उनके नियंत्रण में कुछ भी नहीं। आज आप न तो ट्रेन के ब्रेक, व्हील्स, ओएचई, एक्सल, और न ही सिग्नल के काम के बारे में पूरी तरह आश्वस्त या निश्चिंत हैं। आपको केवल चिल्लाना और डराना आना चाहिए, और दूसरे डिपार्टमेंट पर अपनी फेलियर की जिम्मेदारी मढ़ना तो आप पूरी सर्विस के दौरान बखूबी सीख ही चुके होते हैं।
पेपर पर फर्जीवाड़ा:
खान मार्केट गैंग (#KMG) का विश्वास है कि अगर कागज पर नहीं, तो ये काम हुआ ही नहीं, कौन इसे चैलेंज करेगा? जैसा आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने कहा था, यहां दो सवाल लोगों की मानसिकता को परिभाषित करते हैं-
– मेरा क्या – हर काम से पहले आने वाला सवाल – आप के लिए कुछ है या नहीं, और
– मुझे क्या – हर एक्सीडेंट से बाद आने वाला भाव – कोई बर्थ पर बैठा हरिकेश मर जाए, तो भी क्या?
जब रेलवे बोर्ड और जोनल हेडक्वर्टर डीजल अंडर वायर कम करने के लिए ताबड़तोड़ लिंक बना रहे थे, तो कैसे पूरी की पूरी व्यवस्था इसे नहीं पकड़ पाई?
ऐसा क्यों???
क्या ऐसा ट्रांसफर-पोस्टिंग #KMG की सल्तनत बढ़ाने या मजबूत करने के उद्देश्य से होता है। फिर यह नेटवर्क बड़े कामों को टेकल करता है!
रेलवे में परंपरागत रूप से लोकोमोटिव के विषय पर हमेशा मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल के सबसे अच्छे अधिकारी लगाए जाते थे। #Advisor साहब भी इसी ग्रुप के थे। रिकॉर्ड्स में फर्जीवाड़ा, अपने निकट के वेंडरों को मदद करना, आरएसपी/पिंक बुक को मेनीपुलेट करना, चहेते अधिकारियों और कर्मचारियों की सुरक्षा की गारंटी देकर उनसे मनमाने निर्णय और काम करवाना, बस अपने और अपने परिवार की सुख-सुविधाओं को देखना ही इनका चरित्र बन चुका है। #OLQ अब Old Fashioned कहा जाने लगा है।
सफल रेल अधिकारी को आज अपने एसेट्स के बारे में जानने से ज्यादा आवश्यक यह है कि उसके सीनियर अधिकारी और उनकी श्रीमती जी क्या पीते हैं, यह जानें, क्योंकि अब यह उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। आपको जो अच्छा लगता है ये सिस्टम आपको वही मुहैया कराता है। फाइन व्हिस्की, बढ़िया विदेशी वाइन, ताजे फल, महंगी सिगरेट, जेवर – कैश या काइंड इत्यादि आपके जन्मदिन या एनिवर्सरी पर घर पहुंचा दिए जाएंगे, ये रेल की कार्यशैली का नया नार्म है!
जैसा एक पाठक ने लिखा, “As the ‘sahab ki service’ takes precedence over professional conduct, how can you ensure that daily discipline is scrupulously followed?” यह #Khatauli में संलिप्त अधिकारियों का दो रेलमंत्रियों द्वारा दी गई पदोन्नति ने सिद्ध कर दिया कि आपके हाथों पर रेल के उपभोगकर्ता का खून लगा होना जरूरी है, अगर नहीं है, तो उनका प्रमोशन कैसे हो गया?
ये पुरानी व्यवस्था चल कैसे रही है, जबकि सरकार 2014 में बदल गई थी!
यह इसीलिए चल रही है, क्योंकि #KMG और #AIDS कभी रोटेशन नहीं होने देगी। यदि सभी रोटेट हो गए तो कोई साहब, मेमसाब और उनके कुत्ते को घुमाने वाला नहीं बचेगा। जबकि सब जानते हैं कि वह संगठन जहां दैनंदिन कार्यों में अनुशासन के बिना काम नहीं हो सकता – सेना को ही देख लें – वहां रोटेशन के बिना आप काम नहीं कर सकते!
सीआरबी और मंत्री जी के सेल में कार्यरत 4 अधिकारी 50 साल से ज्यादा रेल भवन में रह चुके हैं – यहीं रोटेशन फेल हो गया। और रेलमंत्री कीमत चुकाते चले गए। जब #Khatauli के खलनायक पुरुस्कृत होते हैं, तब सच बोलना हैंडीकैप बन जाता है, अपने काम से ज्यादा अपने बॉस और मेमसाब को समझना आना चाहिए – वहां लोग क्योंकर नहीं गिरेंगे फुट ओवरब्रिज (#FOB) से?
रेलवे का Toxic Culture:
एक पाठक ने लिखा, “In culture of command and control, key parameter to exercise control has been seniority. Even in schools, school captain is not junior. A talented debator can be from a class and will get rewarded – but certain cultural norms get respected. Everything has pros and cons. MR & CRB have inherited a system which had many problems but it did not kill the way system is killing now.”
कुछ लोगों का मानना है कि चोर को पुलिस का काम देना अच्छी स्ट्रेटेजी है। इस तरह की जुगाड़ कोई चोर, या कामचोर, अथवा अक्षम ही सोच सकता है, मगर यह दांव हर बार ठीक नहीं पड़ता, अगर चोर को चोरी से बचने का उपाय बनाना है, तो मानकर चलें कि वह आपके घर का पिछला दरवाजा (बैकडोर) खोलकर रखेगा।
यात्रीगण, तब तक, खिड़कियों के पास न बैठें, ट्रेन के पीछे के कोच में न बैठें, एफओबी पर चढ़ने/चलने से पहले अपनी सेल्फ सेफ्टी एक बार विचार अवश्य करें, प्लेटफार्म या वेटिंग रूम में न बैठें – क्योंकि यहां सब चलता है! क्रमशः जारी…
हरिकेश की मर्माहत मृत्यु – और क्या-क्या दिखाएगा ये खान मार्केट गैंग? पार्ट-1
हरिकेश की मर्माहत मृत्यु – और क्या-क्या दिखाएगा ये खान मार्केट गैंग? पार्ट-2
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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