नीतिगत गलतियों का दोहन अपने हित में करने वाले अधिकारियों का सीएजी ऑडिट करवाया जाए!
रेल के ‘खान मार्केट गैंग’ तथा यथास्थितिवादी वामपंथी व्यवस्था के अग्रणी लोगों को अपने साथ बैठाकर रेलमंत्री क्यों पूरे भारतीय रेल सिस्टम की गुडविल खोने पर आमादा हैं?
गुरुवार 6 अक्टूबर को आनन-फानन में जो 20 डीआरएम के पोस्टिंग आर्डर हुए हैं, उनका केवल एक ही अर्थ निकाला जा रहा है- वह यह कि #Railwhispers की ‘सुधीर कुमार सीरीज’ की कवरेज से ‘खान मार्केट गैंग’ से सवाल हुए हैं और इसके चलते ये सब बुरी तरह हड़बड़ा गए हैं।
विशेष रूप से यह “SOS! The uncertainty in Railway is on account of ill thought of transformation!“ वाली खबर का प्रभाव बताया गया है।
जानकारों का कहना है कि अब यह आवश्यक है कि इस्टैब्लिशमेंट ऑफिसर (ईओ) की पोस्ट समाप्त कर इसे वापस ईडीजीसी बनाकर सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड के अधीन किया जाए। उनका यह भी मानना है कि यह पोस्ट पहले की ही भांति एचआर कैडर को दे दी जानी चाहिए।
उनका कहना है कि अनावश्यक रूप से सीआरबी की व्यस्तता का अनुचित लाभ नवीन कुमार जैसे लोग उठा रहे हैं, जिसे अपने डिसिप्लिन का क ख ग तक नहीं पता, वह कैसे इतने संवेदनशील विषय को सम्भाल सकता है! साथ ही उनका यह भी सुझाव है कि सीआरबी को पुराने डायरेक्टर कॉन्फिडेंशियल को तुरंत वापस लाना चाहिए।
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जानकारों का कहना है कि डगमगाते रेल सिस्टम के मूल में यही कुछ लोग हैं, जिन्होंने अपने अहं और अपने इंटरेस्ट तथा सेट एजेंडे के आगे सैकड़ों रेल अधिकारियों के कैरियर की बलि चढ़ा दी है।
नवीन कुमार और सुधीर कुमार की भांति जितेंद्र सिंह भी रेलवे बोर्ड में 15 साल या उससे अधिक समय से जमे हुए हैं, और घूम-फिरकर इनका अब तक का पूरा कार्यकाल दिल्ली में ही बीता है।
इस “फेल प्रबंधन” से एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है – क्या ये लोग रेल के निवेशों को ठीक से प्लान कर रहे हैं?
विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि एक लाख करोड़ के रोलिंग स्टॉक के टेंडर या तो डिसाइड हो चुके हैं, या होने वाले हैं। यह वैगन कहां खड़े होंगे? यह भी एक ज्वलंत प्रश्न है।
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सभी मंत्रालय विकास के इस दौर में सतह पर अपना इंफ्रास्ट्रक्चर बना रहे हैं – लेकिन रेल की प्लानिंग विचित्र है – डीजल इंजन की आवश्यकता नहीं है, यही बताकर शत-प्रतिशत विद्युतीकरण किया जा रहा है – हालांकि यह सोच भी रेल सिस्टम से पूरी तरह अनभिज्ञ किसी मूढ़ व्यक्ति की ही हो सकती है – फिर भी 20 हजार करोड़ की खरीद हो रही है। वहीं हजारों डीजल इंजन रेलवे साइडिंग्स में खड़े सड़ रहे हैं।
धूर्त घनश्याम सिंह और घुन्ना सुधीर कुमार जैसे भीतर ही भीतर कुतरने वाले अधिकारियों के सभी निर्णयों की समीक्षा अत्यंत आवश्यक प्रतीत हो रही है। जानकारों का कहना है कि इसके लिए तुरंत सीएजी का एक एक्सपर्ट पैनल नियुक्त करके इनके सभी निर्णयों का अवलोकन कराया जाना चाहिए।
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रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वास से ये लोग खेल गए हैं, ऐसा लगता है! वैसे भी सतीश अग्निहोत्री मामले से पीएमओ को समझ में आ गया होगा कि ये रेल के बहुत बड़े वाले घड़ियाल हैं, इनकी चमड़ी भी बहुत मोटी है, और अपने रहते ये अपने तालाब में कुछ भी सार्थक होने नहीं देंगे, ऐसा इनको बहुत नजदीक से जानने वाले जानकारों का मानना है।
तब सवाल उठता है कि फिर क्यों रेलमंत्री इन पुराने पुरोगामी ठूंठों, जिनके पास स्वयं का कोई अचीवमेंट नहीं है, सिस्टम की बेहतरी में जिनका कभी कोई कंट्रीब्यूशन नहीं रहा, जिन्होंने कभी कोई इन्नोवेशन नहीं किया, जो व्यवस्था की बीमारी का प्रतीक रहे हैं, दसियों साल से रेलवे बोर्ड में कार्यरत हैं, अब तक की पूरी सर्विस दिल्ली में ही की है, जो सत्ता के घुसपैठिए रहे हैं, और रेल के ‘खान मार्केट गैंग’ तथा ‘यथास्थितिवादी वामपंथी व्यवस्था’ के अग्रणी हैं – को अपने साथ बैठाकर पूरे सिस्टम की गुडविल खोने पर आमादा हैं?
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एक जगह एक शहर में 10 या 15 साल पदस्थ रहने वाला नियम पहले इस खान मार्केट गैंग पर तो लागू करके देखें रेलमंत्री! रेल में ऊपर से लेकर नीचे तक फैले भ्रष्टाचार के प्रमुख कारणों में से कुप्रबंधन, प्रशासनिक लापरवाही, एक ही जगह एक ही शहर में लंबे समय तक अधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति, फेवर, पक्षपात, मनमानी, सतर्कता संगठन की निष्क्रियता और अकर्मण्यता इत्यादि हैं, जिनके सैकड़ों उदाहरण #Railwhispers के पास पूरे प्रमाण और जस्टिफिकेशन के साथ उपलब्ध हैं।
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बहरहाल, नीतिगत गलतियां, जिनका दोहन संदिग्ध निष्ठा (डाउटफुल इंटीग्रिटी) वाले गड़बड़ अधिकारी और कर्मचारी करते रहे हैं, उनका सीएजी ऑडिट अत्यंत आवश्यक है। क्या रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव अपनी छवि साफ सुथरी रखने के लिए ऐसा कुछ करवाने का साहस करेंगे? क्रमशः जारी…
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