ट्रांसफार्मेशन के लिए क्रैडिबल लीडरशिप आवश्यक है, लेकिन क्षमा करें मंत्री जी! आपके सलाहकार समूह के पास कोई ‘क्रैडिबिलिटी’ नहीं है!
पूरे एक महीने के अंतराल से <#KMG_2.0> का आरंभ हो रहा है। जैसा कि “KMG_2.0 का टीजर: विषयवार नई शुरुआत!“ शीर्षक खबर में पाठकगण कल पढ़ चुके हैं। इस अंतराल का पहला कारण यह रहा कि इस दरम्यान रेलवे बोर्ड में नेतृत्व परिवर्तन हो रहा था। दूसरा कारण यह था कि मंत्री महोदय चाहते थे कि उन्हें कुछ समय दिया जाए जिससे वह आपसी विचार-विमर्श से कुछ पुख्ता कर सकें! इसमें उनकी सहायता के लिए उन्हें पहले उनके मध्यस्थ के जरिए 22.12.2022 को, फिर 10.01.2023 को हमारी तरफ से सीधे मंत्री जी के व्हाट्सएप नंबर पर एक पत्र भेजा गया था। जैसा कि आप सब जानते हैं कि कुछ करने के लिए एक महीने का समय बहुत होता है मगर मंत्री जी की तरफ से इस दरम्यान ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, बल्कि उनके सलाहकार समूह द्वारा एक परसेप्शन खड़ा करने का प्रयास किया गया और कहा गया कि, “देखा, हमने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके #Railwhispers को चुप करा दिया!” बहरहाल, जहां कोई निहित स्वार्थ नहीं होता, कोई व्यक्तिगत लाभ अथवा एजेंडा नहीं होता, किसी के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं होता, वहां ऐसे आक्षेपों का कोई अर्थ, कोई प्रभाव भी नहीं होता। ‘टाइमपास’ करके टॉलरेट करने और चीजों या मुद्दों को अधर में लटकाकर अपनी मौत मर जाने के लिए छोड़ देने तथा दूसरों को नासमझ समझने की नीति के दुष्परिणाम तुरंत नजर नहीं आते – जब आते हैं – तब उनके नतीजे बहुत विपरीत होते हैं। रेल में प्रशासनिक सुधार के लिए हमारा ‘गिलहरी प्रयास’ सतत जारी रहेगा – आज नहीं तो कल – कोई तो ऐसी सुधी सरकार, मंत्री या संत्री आएगा, जो इस बात को समझेगा और सुधार की ओर अग्रसर होगा। इसी उम्मीद के साथ हम <#KMG_2.0> का आरंभ मंत्री महोदय को लिखे गए उसी पत्र से किया जा रहा है – प्रस्तुत है मंत्री जी को लिखा गया पत्र-
श्री अश्विनी वैष्णव,
मंत्री (रेल, दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी), भारत सरकार, नई दिल्ली।
आदरणीय मंत्री जी,
आपके बहुआयामी व्यक्तित्व और आपके पोटैंशियल, जिसे देखकर माननीय प्रधानमंत्री मोदीजी ने आपको तीन बड़े मंत्रालयों की कैबिनेट स्तर की जिम्मेदारी सौंपी, उससे हम भी सहमत हैं, और आपके उज्ज्वल राजनीतिक भविष्य के लिए आपको मंगल कामनाएं भी देते हैं।
मंत्री जी, आपके प्रति #RailSamachar और #Railwhispers का प्रेम कई आलेखों में मुखर होकर सामने आया है, जिसके लिए हमें हमारे सुधी पाठकगण – जिसमें अधिकांश रेलकर्मी और रेल अधिकारी ही हैं – उलाहना देते हैं कि क्यों आपके प्रति ये दोनों समाचार पत्र नरम रुख रखते हैं! हम उन्हें इसका कारण सर्वप्रथम उपरोक्त ही बताते हैं।
हमारी समझ और जानकारी का स्रोत
मंत्री जी, इसका दूसरा कारण हमें आपके ही द्वारा विमोचित आपके #Advisor साहब की जीवनी से मिला, कि कैसे #AIDS (ऑल इंडिया दिल्ली सर्विस) के अधिकारी अपनी स्वार्थपरक महत्वाकांक्षाओं से मंत्रियों को शीशे में उतार लेते रहे हैं और अपनी गलतियों का ठीकरा उनके सिर पर फोड़ देते रहे हैं। हमने इसकी गहराई से जांच-परख की और इसे सत्य पाया। इसके साथ ही आपके #Advisor साहब की जीवनी भी इसकी पुष्टि करती है, जिसे हमने पृष्ठवार उद्धृत किया है। महोदय, यह निश्चित जान लें कि सरकार किसी की भी रही हो, सिस्टम इस ‘खान मार्केट गैंग’ अर्थात #KMG का ही रहा है अब तक!
आपको घेरा हुआ मकड़जाल – आपसे जानकारी छुपाने के सफल प्रयास
महोदय, मैं यह मानता हूं और लिखता भी रहा हूँ, कि रेल व्यवस्था राजनीतिक कैरियर बनाती भी है, और दफन भी करती है। जब यह स्पष्ट हुआ कि रेल के भीतर एक ऐसा ग्रुप बैठा है, जो निर्णय लेने वाले स्तर से सीधे तौर पर 2014 से पहले से लगातार जुड़ा है, हमने इस मकड़जाल का सहज ग्राफिकल चित्रण किया, जिसे आप जांच करवाकर देख सकते हैं। साथ ही हमने कई ऐसी बातें आपके और जनसामान्य के सामने रखीं जिससे ये स्पष्ट हुआ कि कैसे आपके हस्ताक्षर से वह निर्णय करवाए गए जो आप जैसे विवेकशील व्यक्ति के व्यक्तित्व से मेल नहीं खाते! कृपया संलग्न ग्राफिक्स का ध्यान पूर्वक अवलोकन करें!
मंत्री जी, सीवीओ/आरडीएसओ की पोस्टिंग को ही देखें, यह पूर्णतः नियमों के विरुद्ध हुई। यह बात रेल के लगभग सभी अधिकारियों को पता थी। लेकिन जिस सीनाजोरी से यह काम हुआ, कैसे सीवीसी को झूठ बोला गया, और आपके हस्ताक्षर से यह पोस्टिंग हुई, उससे हमें पी.जे.थॉमस कांड की याद हो आई। कोई कारण नहीं कि क्योंकर यह निर्णय मोदी सरकार के लिए किरकिरी नहीं बनता, क्योंकि आप और आपसे पहले श्री पीयूष गोयल और सुश्री ममता बनर्जी बतौर रेलमंत्री आरडीएसओ के काम के बारे में अपना रोष जता चुके थे।
महोदय, #Railwhispers को यह पता लग चुका था कि आपसे हस्ताक्षर करवाते समय आपको सारे तथ्य नहीं बताए गए थे। इसीलिए खबर प्रकाशित होने के कुछ ही दिन बाद आनन-फानन में इस अधिकारी का ‘ऑन रिक्वेस्ट’ ट्रांसफर करवाया गया, जबकि इसे पोस्ट हुए कुछ ही महीने हुए थे, और बिना वैकेंसी नोटिस निकलवाए दूसरा अधिकारी पोस्ट किया गया। यह एक उदाहरण मात्र है, जिसके सारे साक्ष्य रेल भवन की फाइलों में हैं। लेकिन यह खेद की बात है कि आज तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। ऐसे न जाने कितने फैसले होंगे जहां तथ्यों को आपसे छिपाया गया। यदि सीधे फाइलों पर साक्ष्य उपलब्ध होने के बाद भी कार्यवाही नहीं हुई, जहां मंत्री स्तर को गुमराह किया गया, तो चिंता स्वाभाविक है कि इस गैंग की पहुंच कितनी गहरी है!
सार्वजनिक जानकारी छुपाने में यही सफलता इन्हें तब मिली जब श्रीमान अमिताभ मुखर्जी आईआरएफसी के एमडी और श्रीमान सतीश अग्निहोत्री एनएचआरसीएल के सीएमडी बनाए गए, और सरकार को बाद में इनके बारे में उपलब्ध सार्वजनिक जानकारी के चलते ही हटाना पड़ा। तथापि श्रीमान मुखर्जी अब तक सर्विस में क्यों हैं, यह एक बड़ा प्रश्न है! वहीं खतौली रेल हादसे के जिम्मेदार दो अधिकारी महाप्रबंधक बन जाते हैं, जबकि इस हादसे ने आपकी ही सरकार के श्री सुरेश प्रभु जैसे वरिष्ठ राजनेता का राजनीतिक कैरियर खत्म कर दिया। यह लगातार लोगों के एक ही जगह पदस्थ रहने से फाइलों के मैनीपुलेशन की क्षमता बताता है – कीमत रेलमंत्री ने चुकाई, और दुर्घटना के लिए जिम्मेदार सारे रेल कर्मचारी और अधिकारी बेदाग छूट गए और पदोन्नत भी हो गए!
मंत्री जी, अधिकांश रेल अधिकारी और कर्मचारी रेल व्यवस्था में पूरा करियर निकालते हैं, उनके बारे में या उनका 360° हमेशा सिस्टम में पता रहता है। मंत्री जी, आपके 360° रिव्यू वाले चार सदस्यीय पैनल में दो सदस्य गंभीर भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे थे, यह सीवीओ/आरडीएसओ में हुई गड़बड़ वाली सार्वजनिक जानकारी की तरह इसीलिए जगजाहिर है।
हमारी चेतावनी पर रेल भवन की कार्यवाही
महोदय, हमने यह भी बताया कि किस तरह से आपकी सरकार को वर्तमान और अगली सर्दियों के सीजन सम्भालकर निकालने की आवश्यकता है। आपको चेताने वाली संरक्षा (सेफ्टी) संबंधी खबर प्रकाशित होते ही मात्र कुछ घंटों में तकरीबन साल भर से रखी फाइल चलाकर रेल के एक तिहाई डीआरएम बदल दिए गए। इस हड़बड़ी में गृह मंत्रालय से फोर्स्ड रिपैट्रिएट हुए अधिकारी को भी डीआरएम बना दिया गया जो आपकी ही सरकार की खुली आलोचना करता रहा है।
खैर, हमें संतोष है कि मेंबर इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे महत्वपूर्ण पद को एडहॉक पर और वह भी एक गैरसिविल इंजीनियर को लुक ऑफ्टर में देने की व्यवस्था को आखिरकार समाप्त किया गया और हमारे सुझाव को माना गया कि सीनियरिटी का ध्यान रखते हुए सीनियर सिविल इंजीनियर को यह पद जल्द दिया जाए। आपको स्मरण ही होगा कि लुक आफ्टर वाले चार्ज को देखने वाले अधिकारी आपसे सार्वजनिक रूप से अपनी अकर्मण्यता के लिये डाँट खा भी चुके थे। #Railwhispers के सुझाव को मानते हुए आपने डीजी/सेफ्टी का पद भी आखिरकार भर दिया – आपको साधुवाद! लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में हुई गड़बड़ियां काफी चिंताजनक हैं – और हमें ‘पास्ट प्रेसीडेंस’ से यह विश्वास है कि आपको फिर भी पूरा सच नहीं बताया जाएगा, क्योंकि, जैसा आप ग्राफिक्स में देखें, खान मार्केट गैंग ने आपको पूरी तरह से घेरा हुआ है।
मंत्री जी, हमने यह भी लिखा कि मैं सनसनी वाली पत्रकारिता में विश्वास नहीं करता। हमें पता है कि कैसे इतने विशाल नेटवर्क में कई बार जानकारी निर्णय लेने वाले शीर्ष स्तरों पर पहुंचने में समय लग जाता है। हमने हमेशा खबर छापने से पहले उच्च अधिकारियों को सूचित करने का प्रयास किया है। आपके मंत्री सेल में आपके ओएसडी को हमने लगातार सूचनाएं दी हैं। हमारे खुलासों के बाद एफए एंड सीएओ/कंस्ट्रक्शन, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे को हटाया गया। हमारे ही खुलासे के बाद इरकॉन का ₹238 करोड़ का टेंडर डिस्चार्ज करने के साथ ही उसके एक वरिष्ठ अधिकारी को सस्पेंड भी किया गया। यह बातें आपके अधिकारियों को हमने पहले ही बताई थीं।
समय की कसौटी पर परिमार्जित सब रेल व्यवस्थाएं बुरी नहीं
महोदय, 122 पहले और अब 81, कुल 203, केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारी आईआरएमएस (#IRMS) की चयन की प्रक्रिया में बाहर हुए हैं, उनमें निश्चित रूप से अधिकांश नियम 56जे के लायक ही हैं, लेकिन उनमें से आपके अभी चयन किए गए कई अधिकारियों से लाख गुना बेहतर थे। तथापि बिना डीआरएम बने जीएम बनाना और बिना जीएम का प्रेशर सहन किए को मेंबर बनाए जाने की नीति उचित नहीं है, अर्थात जिसने डीआरएम का प्रेशर नहीं सहा, वह जीएम की जिम्मेदारी का प्रेशर नहीं सहन कर सकेगा। इसी तरह जिसने जीएम का प्रेशर नहीं सहा, वह सफल मेंबर नहीं हो सकेगा-आईआरएमएस की बोर्ड स्तर पर सफलता के लिए रेल के ये पुराने एक्स-कैडर पद सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं – शीर्ष नेतृत्व की ये नर्सरी हैं – यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है। आप बेहतर जानते हैं कि प्रशासन में वर्क लोड का एक्सपोजर कितना आवश्यक होता है।
ट्रांसफॉर्मेशन की विश्वसनीयता
मंत्री जी, आपके सलाहकार महोदय, जिनका आधिकारिक पोर्टफोलियो केवल नेटजीरो प्रोजेक्ट है, उन्हें रेलवे बोर्ड से निकलने वाला हर आदेश मार्क हो रहा है, वे हर टेंडर की स्पेसिफिकेशन में सीधे इन्वॉल्व हैं, तथापि कहीं भी साइन करने से बचते हैं। उनके निर्णयों से रेल के मैनेजमेंट और रेलवे के फाइनेंस पर सीधा प्रभाव पड़ा है और आने वाले कई दशकों तक इन निर्णयों की छाया रहेगी। क्या ऐसे समय में एक ऑफिस ऑर्डर द्वारा सलाहकार महोदय के पोर्टफोलियो को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए – जैसा नेटजीरो प्रोजेक्ट के लिए निकला था? आप प्रशासनिक अधिकारी रह चुके हैं, क्या आपको ऐसा कोई अपवाद याद आता है जहां बिना ‘रोल डेफिनिशन’ के इतनी बड़ी जिम्मेदारी दे दी जाए कि व्यक्ति ‘एग्जीक्यूटिव एमआर’ कहलाया जाने लगे?
महोदय, श्री जितेन्द्र सिंह, श्री नवीन कुमार, श्री उमेश बलौंदा, श्री सुधीर कुमार आपस में 50 सालों से अधिक रेल भवन में बैठे हैं। उमेश बलौंदा, जितेंद्र सिंह और नवीन कुमार ने तो अपने कैरियर में ऐसा कोई काम ही नहीं किया जहां इन्हें ऐसे निर्णय लेने पड़े हों जहां विजिलेंस को जवाब देना पड़े – जैसे टेंडर, वेंडर, डिजाइन संबंधित निर्णय, जो हर इंजीनियर को लेना होता है। यही हाल आपके सलाहकार महोदय का रहा, जिन्होंने मंत्रियों से साइन करवाकर स्वयं को अभयदान प्रदान किया। इन्हीं लोगों की जानकारी में सीवीओ/आरडीएसओ की नियम-विरुद्ध/गैरकानूनी पोस्टिंग हुई, इन्हीं लोगों ने पूरे बोर्ड को लुक ऑफ्टर अरेंजमेंट में रख दिया, बोर्ड सदस्य महाप्रबंधकों से जूनियर हो गए, मगर इस सब के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह आपको बनाया गया।
महोदय, इमोशनल इंटेलिजेंस का टेस्ट भी एक गंभीर विषय बन गया है, जिसकी चर्चा हमने बहुत विस्तार से ‘पीयर रिव्यूव्ड रिसर्च’ को उद्धृत कर प्रकाशित की है। आप आईटी मंत्री भी हैं, क्या प्रोटेक्शन लिया गया एक विदेशी मनोवैज्ञानिक टेस्ट को कंपल्सरी करने का? वह भी ऐसी कंपनी को दिया जाना जो ऐसे देश से है जो हमारे देश के साथ मित्रवत् संबंध नहीं रखता! तथापि भारत सरकार के वरिष्ठतम अधिकारियों का डेटा देश के बाहर जा रहा है? कैम्ब्रिज एनालिटिका के विषय से आप भली-भाँति परिचित हैं। इस कंपनी के भारतीय रिप्रेजेंटेटिव आपके सलाहकार के पीएचडी गाइड भी हैं। जानकारी सार्वजनिक थी, लेकिन इसे कम्प्रीहेंसिव रिसर्च के बाद हमने प्रकाशित किया, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई।
महोदय, हमने यह भी जानने की कोशिश की कि सिंगल टेंडर पर कराए जा रहे इस तथाकथित इमोशनल इंटेलिजेंस टेस्ट का प्रयोग कैसे हो रहा है, किसने इसकी प्रमाणिकता पर मुहर लगाई, जबकि रिसर्च लिटरेचर इसकी उपयोगिता को सीमित दायरे में ही देखता है। रेलकर्मी आपके ट्रांसफॉर्मेशन के एजेंडा पर इसे एक काला धब्बा मानते हैं – ध्यान रखें कि आपके अधिकारियों और कर्मचारियों में पढ़े-लिखे लोगों की कोई कमी नहीं है-वे इमोशनल इंटेलिजेंस को 90 के दशक से जानते हैं, जबकि आपके सलाहकार महोदय ने इसका नाम सितंबर 2018 में सुना और तभी से इसके प्रति सम्मोहित हो गए।
महोदय, आप जानते हैं कि ट्रांसफॉर्मेशन के लिए ‘क्रेडिबल लीडरशिप’ की आवश्यकता होती है। मंत्री जी, क्षमा करें, 50 साल से रेल भवन में बैठे आपके सलाहकार समूह के पास कोई क्रेडिबिलिटी नहीं है, इनके पास कोई ऐसा अचीवमेंट नहीं है, जिस पर रेलकर्मी गर्व कर सकें, कभी भी इन्होंने ‘harm’s way’ में जाकर रेल की सेवा नहीं की। इंजीनियर जाने जाते हैं प्रोजेक्ट्स और प्रॉडक्ट्स के लिए – श्रीधरन साहब आज भी कोंकण रेलवे के लिए जाने जाते हैं और रेल में ऐसे बहुत से योग्य इंजीनियर सभी स्तर पर रहे हैं, और आज भी हैं।
मंत्री जी, इस खराब क्रेडिबिलिटी के चलते पूरी रेल में किए जाने वाले ट्रांसफॉर्मेशन की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। महोदय, आप भी यह जानते हैं कि आपकी सरकार की विश्वसनीयता के मूल में माननीय प्रधानमंत्री जी पर 140 करोड़ देशवासियों का विश्वास है।
महोदय, देशवासी जानते हैं कि मोदीजी हर काम में जैसे स्वयं ईमानदार प्रयास करते हैं, उनकी टीम भी निर्विकार भाव से उसी शिद्दत से काम करती है। लेकिन रेल मंत्रालय का #KMG अभी तक डटा है, इतने साक्ष्यों के बाद भी! यह आपके उतने ही हैं जितने यह मल्लिकार्जुन खड़गे अथवा जितने उनके जैसे अन्य रेलमंत्रियों के थे।
महोदय, आपको याद दिलाना चाहेंगे कि आपसे पहले श्री पीयूष गोयल की टीम में श्री भुवन सोरेन और श्री अनुज गुप्ता भी बहुत बचाए गए अपने मंत्री द्वारा, लेकिन बाद में इन्हें निकालना ही पड़ा, और साथ ही मंत्री जी की बहुत किरकिरी भी हुई – लेकिन श्री गोयल यह जानते हैं कि उन्हें हमने बहुत पहले इस बारे में चेता दिया था।
मंत्री जी, हमने हमेशा यह माँग कि है कि हमारी जानकारी की स्वतंत्र जांच कराई जाए – अगर हम गलत हैं, या हमारी जानकारी गलत है – तो गलती सार्वजनिक रूप से स्वीकार करेंगे।
रेल प्रशासन और आईआरएमएस की सफलता की नींव
मंत्री जी, डीआरएम के चयन का आधार अभी भी 52 साल के क्राइटेरिया पर ही अड़ा हुआ है। जबकि यह पूरी तरह अन्यायपूर्ण नीति है। अधिकांश अधिकारियों का, और इस आधार पर मेरा भी, यह मानना है कि डीआरएम के चयन में भी जीएम और मेंबर के चयन वाली पूरे-पूरे बैच को लेकर अपनाई जा रही नीति ही अमल में लाई जाए – अर्थात डीआरएम के चयन में 52 साल के क्राइटेरिया को अविलंब समाप्त किया जाए। यह नीति रेल में ‘मदर ऑफ ऑल एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म’ साबित होगी।
मंत्री जी, अब जब आपने जीएम बनने के लिए डीआरएम न बनने और मेंबर बनने के लिए जीएम न बनने का क्राइटेरिया खत्म कर दिया है, तो अधिकांश अधिकारियों का मानना है कि डीआरएम बनने के लिए 52 साल की एज लिमिट की क्राइटेरिया भी तुरंत समाप्त होनी चाहिए। 68 डीआरएम चुनने के लिए पूरे-पूरे बैच को कंसीडर करके समान लेवल प्लेइंग फील्ड का अवसर दिया जाना सर्वथा उचित होगा और उनमें से सबसे बेस्ट परफॉर्मर्स को चुना जाना चाहिए। फिर वह अगर डीआरएम से ही रिटायर हो जाएं तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। डीआरएम से सीधे जीएम बनाया जाए, तब 68 डीआरएम में से 27 सबसे बेस्ट परफार्मर्स को चुनकर जीएम बनाया जा सकता है। फिर इन 27 जीएम में से 5 सर्वश्रेष्ठ परफार्मर्स को चुनकर उन्हें बोर्ड मेंबर बनाया जाना बहुत आसान हो जाएगा। तब रेल को बेहतरीन, निष्ठावान, कार्यक्षम, सेक्रेटरी और प्रिंसिपल सेक्रेटरी स्तर के अधिकारी मिलेंगे।
महोदय, अधिकारियों और सुपरवाइजरों का एक जगह, एक ही शहर में बीसों साल डटे रहना रेल का कैंसर है – कैंसर का इलाज करने से पहले उसे काटकर अलग किया जाना आवश्यक होता है। अतः उपरोक्त रिफार्म के साथ ही बिना किसी अपवाद और पक्षपात के रोटेशन पॉलिसी पर अविलंब अमल सुनिश्चित किया जाए – इसे पूरे रेल नेटवर्क पर लागू करते हुए, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई से आरंभ किया जाए।
मंत्री जी, आपके यह दोनों कार्य अथवा निर्णय रेल में इतने बड़े एडमिनिस्ट्रेटिव रिफार्म साबित होंगे कि रेलवे में आपका नाम दशकों तक स्मरण रखा जाएगा।
जनसामान्य अर्थात रेल उपभोक्ताओं के कष्ट
मंत्री जी, कोराना काल में स्थगित की गई सैकड़ों ट्रेनें क्षेत्रीय स्तर पर आज भी रिस्टोर नहीं की गई हैं। जबकि लोकप्रियता पाने और सरकार को लोकप्रिय बनाने के लिए रेलमंत्री बनने के तुरंत बाद आपका यह सबसे पहला कदम होना चाहिए था। इससे लाखों रेलयात्रियों/जनता को आने-जाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इससे मोदी सरकार के प्रति क्षेत्रीय स्तर पर लाखों लोगों की नाराजगी बढ़ती जा रही है। महोदय, जनसामान्य का सबसे सस्ता, सुलभ और सुरक्षित यातायात रेल ही साधन है। उनके सामने रेल के अलावा यातायात का अन्य कोई विकल्प नहीं है। जहां एक तरफ बिना किसी पूर्व सूचना के हजारों स्टापेज समाप्त कर दिए गए, वहीं दूसरी तरफ सैकड़ों ट्रेनें आज भी रिस्टोर नहीं की गईं, और तीसरी तरफ हर दिन कथित कोहरे के नाम पर अथवा अन्य किसी न किसी तकनीकी कारण से सैकड़ों ट्रेनें बिना पूर्व सूचना के रद्द कर दी जाती हैं। इससे मोदी सरकार के प्रति लोगों में भयानक असंतोष व्याप्त हो रहा है। इस पर अविलंब ध्यान देने की आवश्यकता इसलिए भी है, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव अब बहुत दूर नहीं हैं। और यह न सोचें कि लोग कुछ समझते नहीं हैं! भयग्रस्त हैं! कुछ बोलेंगे नहीं! वे सब समझते हैं, सब बोलते हैं, जरा सोशल मीडिया पर एक नजर डालकर देखें, मगर वे कोई धरना, मोर्चा, आंदोलन इसलिए नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उनके पास कोई उपयुक्त लीडरशिप नहीं है, मगर समय (चुनाव) आने पर वे यह सब भूलकर अपनी हैसियत का प्रदर्शन करते हैं।
अंत में…
मंत्री जी, अब यह निर्णय आप पर निर्भर करता है कि उपरोक्त तमाम मुद्दों पर आपका नजरिया क्या है, और इन मुद्दों पर आप क्या करते हैं! यह निर्णय हम आप पर छोड़ते हैं। तथापि कुछ ऐसा कदम उठाएं कि एक गहरा मैसेज जाए कि आप रेल को भ्रष्टाचार मुक्त जनसामान्य के लिए और अधिक उपयोगी एवं सुविधाजनक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। सरकार विरोधी अधिकारी और कर्मचारी जो व्यवस्था के सतत लाभार्थी रहे हैं, और उनमें से 75-80%, महत्त्वपूर्ण पदों पर जमे हुए हैं, वहीं ईमानदार और सरकार के प्रति वफादार अधिकारी हाशिये पर हैं – उन्हें आप पहचानें तभी आपका और मोदी सरकार का विजन इंप्लीमेंट हो पाएगा। नाम आपका ही होगा। राजनीतिक साख आपकी और आपकी सरकार की ही पुख्ता होगी। उसमें हम जैसे अकिंचन का जो भी यत्किंचित योगदान होगा, वह परोक्ष ही रहेगा!
सादर
आपका शुभाकांक्षी,
सुरेश त्रिपाठी
संपादक
www.railsamachar.com
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क्रमशः – रेल में मरते-उबकाते यात्री – हवालदिल रेल प्रबंधन