KMG_2.0: न्याय इनके हिस्से का – इनकी ‘आह’ के ‘ताप’ से कैसे बचेंगे मंत्री जी!
रेल की समस्या के मूल में विभागीय लड़ाई नहीं, रेगुलर रोटेशन न होना है!
#CBI के अब तक जितने भी केस बने हैं, उनके मूल में बिना अपवाद के इस रोटेशन पॉलिसी का पालन न किया जाना ही है, जिसकी जिम्मेदारी सीधे शीर्ष स्तर पर जाती है!
क्यों 10/15 साल का नियम केवल ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों पर लग रहा है? क्यों इस नियम का सबसे बड़ा उल्लंघन मंत्री जी आपके सेल में ही दिख रहा है? ग्रुप ‘बी’ से ग्रुप ‘ए’ के प्रमोशन होते ही स्टेशन क्यों नहीं बदला जाना चाहिए? क्यों नहीं #SAG और #HAG में प्रमोशन पर स्टेशन और रेलवे का रोटेशन होना चाहिए?
चलती रेलगाड़ियों और रेल परिसरों में महिला उत्पीड़न की बढ़ती घटनाएं अत्यंत चिंताजनक हैं। रेल कर्मचारी, अधिकारी और उनके द्वारा लिए गए ठेकेदार, लगता है सभी निरंकुश हो गए हैं, परंतु व्यवस्था को इसकी कोई चिंता है, अथवा इनकी रोकथाम या इनका निवारण करने का कोई प्रयास रेल प्रशासन द्वारा करने की कोशिश की जा रही, ऐसा कहीं परिलक्षित नहीं हो रहा है!
हर बुखार की दवा क्रोसिन नहीं है मंत्री जी!
ऐसी हर घटना के बाद एक घिसा-पिटा राग अलापा जाता है। इसीलिए हमने पुलिस के और रेल के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से बात की, जिसे हमने, “चलती ट्रेन में गैंगरेप: भ्रष्टों का बोलबाला – स्टाफ ने किया मुंह काला! रेल भवन पर #KMG का जलवा!“ शीर्षक से मंगलवार, 31 जनवरी को विस्तार से प्रकाशित किया है!
डगमगाती रेल व्यवस्था का उल्लेख हमने, “ये 400 दिन और आने वाला बजट: सीआरबी और बोर्ड मेंबर्स कृपया ध्यान दें!“ शीर्षक से गुरुवार, 26 जनवरी को प्रकाशित किया था। हमने यह भी बार-बार मंत्री जी को चेताया कि कैसे #KMG रेल व्यवस्था का कैंसर है और कैसे इसके कोर ग्रुप के चार सदस्य 50 साल से ज्यादा घूम-फिरकर रेल भवन में ही बैठे हैं!
रेल भवन से रेल व्यवस्था का संचालन होता है। #RDSO और रेल भवन को सभी रेलकर्मी बहुत आदर से देखते रहे हैं, लेकिन अब #केएमजी के चलते आरडीएसओ – जहां हर पोस्टिंग रेल भवन ही कर सकता है – और रेल भवन, दोनों अब हास्य का पात्र बन गए हैं। अगर कुछ खास कंपनियों से आपकी सेटिंग अच्छी है, तो उस ‘कंपनी’ के एजेंट बने रेल भवन में बैठे कुछ सीनियर अफसर आपको मनचाही पोस्टिंग दिलवा देंगे। #मंत्री महोदय, ‘यह आपके रेल भवन का 360 डिग्री रिव्यू है!’
बदलते मंत्री-बदलते निर्णय: गोयल साहब से एक बार बात तो करके देखिए मंत्री जी!
ये जग-जाहिर है कि वर्तमान रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव और पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल के आपसी संबंध मधुर नहीं हैं। लेकिन इतने बड़े मंत्रालय में एक ही सरकार में एक मंत्री के बदलते ही उसके निर्णय कैसे बदल जाते हैं? यही नहीं, सुनीत शर्मा के पद छोड़ने के एक ही हफ्ते में उनके द्वारा किए गए 15-20 आदेश निरस्त हो गए। वहीं अब फिर देखा जा रहा है कि इसी जनवरी में विनय त्रिपाठी द्वारा किए गए आदेश न केवल कैंसिल हो रहे हैं, बल्कि भ्रष्टाचार के कई आरोपों के चलते अन्यत्र ट्रांसफर हुए अधिकारी पूर्व आदेश बदलवाकर और अधिक कमाऊ पदों पर जा रहे हैं!
ऐसे कुछ आदेशों के बारे में हमने, “KMG_2.0: रोटेशन के बजाय रेलवे में दिया जा रहा भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ को संरक्षण!“ शीर्षक से सोमवार, 23 जनवरी को प्रकाशित खबर में मंत्री जी आपको बताया था।
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चिंता का विषय यह है कि पीयूष गोयल जब रेलमंत्री थे तो उन्होंने निर्णय लिया था कि रेल भवन में अधिकारियों की जो अत्यधिक भीड़ है, वह छांटी जाएगी। और हर विभाग से रेल भवन से पोस्टें कम की गईं। मजे की बात यह है कि ये पोस्टें अधिकांश बड़ौदा हाउस ही गईं। उस समय भी रेल के जानकार कहते थे कि “मंत्री बदलने दीजिये, सब महारथी वापस इन पोस्टों पर सवार हो रेलवे बोर्ड आ जाएंगे”, और वही हो रहा है!
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सिविल की दो, इलेक्ट्रिकल की एक पोस्ट तो हम गिन पाए हैं, जो बड़ौदा हाउस से रेल भवन गई हैं पिछले दस दिनों में!
इनमें से कुछ सेफ्टी के नाम पर गई हैं। यह पुराना गोरखधंधा है, जिसके बारे में हम अश्विनी वैष्णव जी आपको लगातार चेताते आ रहे हैं। जैसे, “क्या खराब रिजल्ट की कीमत केवल रेलमंत्री ही चुकाएंगे?“ और “ट्रांसफार्मेशन के लिए क्रैडिबल लीडरशिप आवश्यक है, लेकिन क्षमा करें मंत्री जी! आपके सलाहकार समूह के पास कोई ‘क्रैडिबिलिटी’ नहीं है!“ तथा “रेलमंत्री जी! जनसामान्य के फीडबैक से अपने निर्णयों को परिष्कृत करने से न घबराएं!“ जैसे हमारे अन्य कई लेख आपको लगातार चेताते रहे हैं।
गोयल साहब से बात तो करते मंत्री जी एक बार कि क्यों उन्होंने रेल भवन से इन पोस्टों को बाहर फेंका था! मंत्री जी, रेल वन्दे भारत के उद्घाटनों से नहीं चलती, जितना साफ-सफाई का काम पीयूष गोयल ने करवाया था, वह पूरा बट्टे खाते में आपके रेल भवन ने डाल दिया। डगमगाते प्रशासन का कारण आपका सलाहकार समूह और आपके पोषित शिशुपाल, अर्थात #KMG गिरोह है।
बात करेंगे तो पीयूष गोयल आपको बताएंगे कि कैसे रवीश कुमार जैसे वामपंथियों का सुनियोजित अटैक उन्होंने झेला था जब ट्रैक रिन्यूअल के लिए उन्होंने पंक्चुअलिटी के गिरने की परवाह नहीं की थी, क्योंकि इसके बिना विभिन्न असेट्स के मेंटेनेंस ब्लॉक नहीं मिल पाते।
लेकिन आपने अपने ही कैबिनेट के साथी से बात करना उचित नहीं समझा और उनके निर्णय उलट दिए, और लगातार उलट रहे हैं!
वैसे आप #Wharton के पढ़े हैं, तो चलिए आपको अमर चित्र कथा से नहीं, बीबीसी के मशहूर सीरियल “यस मिनिस्टर“ से कुछ बताते हैं-
Yes Minister: Episode-3: The Economy Drive
Hacker: How many people do we have in this department?
Sir Humphrey: Ummm… well, we’re very small…
Hacker: Two, may be three thousand?
Sir Humphrey: About twenty-three thousand to be precise.
Hacker: TWENTY-THREE THOUSAND! In the department of administrative affairs, twenty-three thousand administrators just to administer the other administrators! We need to do a time-and-motion study, see who we can get rid of.
Sir Humphrey: Ah, well, we did one of those last year.
Hacker: And, what were the results?
Sir Humphrey: It turned out that we needed another five hundred people.
आपका सलाहकार समूह भी कुछ ऐसा ही करवा रहा है मंत्री जी! आपकी समस्याओं का हल, तब होगा जब आप, “High on Emotional Intelligence, Zero on OLQ – Your Pick Mantri ji? Should not Caesar’s Wife be Above Suspicion?“ शीर्षक लेख को ध्यान से पढ़ेंगे!
सेफ्टी डायरेक्टोरेट रेल में इंजीनियरिंग हल नहीं दे सकता, वह आपको आरडीएसओ ही देगा। जैसा #Tenderman का मानना है कि सब कुछ ठेकेदार करेंगे, वही ब्रेक सिस्टम के बारे में एक समय कहा जाता था। और अब जब लाखों-करोड़ों के निवेश के बाद गाड़ियां धीमी चलानी पड़ रही हैं, तो ब्रेकों के बारे में रेल आज ‘निल बटे सन्नाटा’ है, आपके #Tenderman की ‘मेनीपुलेटिव सोच’ का इससे बड़ा प्रमाण नहीं हो सकता मंत्री जी!
“रेल की रिकॉर्ड आय: मंत्री जी आपका खुश होना तो बनता है!“ शीर्षक से रविवार, 22 जनवरी को प्रकाशित लेख में हमने मंत्रीजी आपको बताया था कि कैसे आपके सलाहकार समूह – #MR Cell = #AIDS + #KMG – यूँ कहिए, “it is necessary but not sufficient to be from #AIDS if one aspires to be in #KMG!”
“मंत्री जी के सलाहकार समूह में ऐसे घुड़सवार शामिल हैं जिन्होंने घोड़ों की रकाब पर कभी पैर भी नहीं रखे!” यह रेल के एक वरिष्ठ अधिकारी का कमेंट था। इस पर दूसरे अधिकारी ने बीबीसी के “यस मिनिस्टर” का निम्नांकित वार्तालाप भेजा:
Humphrey: Does he watch television?
Hacker: He hasn’t even got a set.
Humphrey: Fine, make him a governor of the BBC.
ये तो रेल अधिकारी और कर्मचारियों का हास्य विनोद है मंत्री जी! लेकिन इससे उत्पन्न समस्याएं बहुत भयावह हो गई हैं!
महिला उत्तपीड़न की बढ़ती घटनाएं!
मंत्री जी, स्मरण रहे, निर्भया कांड के बाद ही दिल्ली के सत्ता परिवर्तन का बिगुल बजा था। आपके ऐसे संतरी हैं जिनसे महिलाओं को बचाने के लिए सरकार को पुलिस प्रोटेक्शन देने के आदेश दिए जा रहे हैं – #MCF रायबरेली के 31 जनवरी को सेवानिवृत्त हुए #PFA के ऊपर लगा महिला उत्तपीड़न का आरोप, यह आपकी व्यवस्था में इंटर्नल है। ऐसे अधिकारी कैसे इतने पावरफुल हो गए? इसके मूल में रेल मंत्रालय की अपनी ही प्रमोशन, रोटेशन की पॉलिसी को न मानना है!
मंत्री जी, हमने आपसे सतत निवेदन किया है कि रेल की समस्या के मूल में विभागीय लड़ाई नहीं, रेगुलर रोटेशन न होना है, विभागीय लड़ाई है, लेकिन इसके मूल में रोटेशन न होना ही है।
#CBI के अब तक जितने भी केस बने हैं, उनके मूल में बिना अपवाद के इस रोटेशन पॉलिसी का पालन न किया जाना ही है। यह वह बात है जहां जिम्मेदारी सीधे शीर्ष स्तर पर जाती है।
हमने बार-बार बताया कि कैसे कुछ अधिकारियों का समूह 50 वर्ष से अधिक रेलवे बोर्ड में बैठा है। क्यों? मंत्री जी आपके #EDPG जितेंद्र सिंह एक अनुमान से 22 वर्षों से दिल्ली में हैं। इनका बतौर इंजीनियर रेल में योगदान शून्य है! नवीन कुमार, जो रेल मंत्रालय के स्टैब्लिशमेंट ऑफिसर हैं, उन्हें 17 साल हो गए दिल्ली में! नियम ये कहता है कि-
1) Officer’s with 10 year continuous service in delhi including deputations, shall be posted out of Delhi.
2) No officers shall be allowed in Delhi who have completed 15 years of service (in piecemeal).
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अब यह कहा जा रहा है कि जितेंद्र सिंह और नवीन कुमार #DRM बनकर ही रेल भवन से निकलेंगे! वैसे कहा जा रहा है कि नवीन कुमार की निगाह जहां लखनऊ की डीआरएम पोस्ट पर है, तो वहीं जितेंद्र सिंह दिल्ली की डीआरएम पोस्ट पर नजर बनाए हुए हैं, लेकिन दिल्ली में बैठे डीआरएम भी हल्के नहीं हैं। तो वह शायद अभी नहीं हटाए जाएं, लेकिन जैसे पीयूष गोयल द्वारा रेल भवन से निकाली गई पोस्टें वापस आ रही हैं, जितेंद्र सिंह भी अब लेटरल शिफ्ट पर नजर लगा रहे हैं। हाल ही में पोस्ट हुए EDPG/MR-II के आदेश होने से ये कांड अब होने की कगार पर है!
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कैसे पुराने मठाधीश मोदी सरकार के ही मंत्री के निर्णयों को धता बताने में सफल हैं, उसकी जड़ में ये #AIDS और #KMG ही हैं।
जितेंद्र सिंह और नवीन कुमार के क्या अचीवमेंट हैं बतौर इंजीनियर के, जिसके बल पर #UPSC ने इनकी भर्ती की थी? हमारे इस सवाल का जवाब मंत्रालय से तो नहीं, लेकिन अनेक सेवारत और निवृत्त अधिकारियों ने दिया है। इनके ‘अचीवमेंट’ को रेल मंत्रालय द्वारा बार-बार पुरस्कृत करने के कारण से ही ये रेल के कैंसर की जड़ बने हैं। कैसे मंत्री जी, आपसे तथ्य छुपाकर, आपसे साइन करवाए गए, यह आपको हमने बताया, लेकिन एक भी खुलासे की निष्पक्ष जांच नहीं हुई और मामलों को दबाने का प्रयास हुआ, जो सबने देखा!
क्यों 10-15 साल का नियम केवल ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों पर लग रहा है? क्यों इस नियम का सबसे बड़ा उल्लंघन (वायलेशन) मंत्री जी आपके सेल में ही दिख रहा है? ग्रुप ‘बी’ से ग्रुप ‘ए’ में प्रमोशन होते ही स्टेशन क्यों नहीं बदला जाना चाहिए? क्यों नहीं #JAG में डिवीजन, और #SAG तथा #HAG में प्रमोशन पर स्टेशन और रेलवे का रोटेशन होना चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर रेलवे बोर्ड और आप क्यों नहीं देना चाहते!
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#BLW, #CLW #PLW, आज रोटेशन न होने के कारण गंदगी और भ्रष्टाचार के तालाब बन गए हैं। यही हाल #RCF, #ICF और अन्य वर्कशॉप्स का भी हो गया है। #MTRS साहब आप 10-15 साल के नियम के तहत कितने अधिकारी आ रहे हैं, उनकी लिस्ट निकलवाएं। CLW के ए. के. हीरा, PLW के मल्कियत सिंह, BLW के एस. के. आर्या जैसे कई उदाहरण हैं। यहां तो मधुरेंद्र सहाय, #CSTE/Planning, मध्य रेलवे, जैसे सैकड़ों उदाहरण भी हैं, जो JE-II से लेकर SAG तक एक ही जगह एक ही शहर में उपस्थित हैं!
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क्या रेलवे बोर्ड के सेक्रेटरी का लुक ऑफ्टर अरेंजमेंट, जो पिछले कई वर्षों से चल रहा है – एस. के. मिश्रा, आर. एन. सिंह, और अब संदीप माथुर – क्या इसी तरह के गलत काम करने का जरिया है? कार्मिक सेवा (#IRPS) के अधिकारी किसी वेंडर से संबद्ध नहीं हो पाते, तो जब इतना अधिक निवेश रेल में हो रहा है, और जोर-जोर से उसका डंका भी बजाया जा रहा है बिना ‘इंड यूजर’ को उसका लाभ मिले, सेक्रेटरी जैसे पद पर क्यों न नॉन-टेक्निकल अधिकारी लाया जाए?
पहले पीईडी/एसएंडटी/डेवलपमेंट-1 और पीईडी/एसएंडटी/डेवलपमेंट-2 – जबकि ऐसी कोई पोस्टों का प्रावधान नहीं है, यह पीईडी/टेली और पीईडी/सिग्नल ही हो सकती हैं – बनाकर दो एसएंडटी अधिकारियों को बोर्ड में लाया गया, इसके पीछे डिसीजन मेकिंग में एएम/टेली और एएम/सिग्नल की भूमिका को बायपास करने का #केएमजी का निहित उद्देश्य भी सर्वज्ञात है, और अब स्टैब्लिशमेंट से सर्वथा अनभिज्ञ एक एसएंडटी अधिकारी को ही सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड का अतिरिक्त प्रभार, जिसके पीछे अधिकारियों की ट्रांसफर/पोस्टिंग में #केएमजी की अदृश्य भूमिका अक्षुण्य रहे, का निहितार्थ है! क्या ऐसे सेक्रेटरी को प्रभावित करने की संभावना नहीं? आपके पास सक्षम अधिकारियों की कोई कमी नहीं, तो ऐसे संदेहास्पद चुनाव क्यों?
मंत्री जी! जिस अबला की इज्जत आपके कर्मचारियों ने लूटी, उसकी जिम्मेदारी से और उसकी आह के ताप से आप कैसे बचेंगे?
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मंत्री जी, आपके सेल (#केएमजी) ने तो अपनी पत्नियों का कैरियर बना दिया और अपने ही सीनियर्स के कैरियर तबाह कर दिए!
कितनों के हिस्से के न्याय के लिए आपसे गुहार लगी है मंत्री जी!
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मंत्री जी, आप उच्च इमोशनल इंटेलिजेंस की जमात से हैं, 2016 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार बॉब डायलन को मिला था, उनका एक प्रसिद्ध गीत है, कभी एक बार इसे पढ़िएगा जरूर:
Yes, and how many years must a mountain exist
Before it is washed to the sea?
And how many years can some people exist
Before they’re allowed to be free?
Yes, and how many times can a man turn his head
And pretend that he just doesn’t see?
The answer, my friend, is blowin’ in the wind
The answer is blowin’ in the wind
Yes, and how many times must a man look up
Before he can see the sky?
And how many ears must one man have
Before he can hear people cry?
Yes, and how many deaths will it take ’till he knows
That too many people have died?
The answer, my friend, is blowin’ in the wind
The answer is blowin’ in the wind
क्रमशः जारी…
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी