KMG_2.0: रोटेशन के बजाय रेलवे में दिया जा रहा भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ को संरक्षण

जहां पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल रेलवे बोर्ड का आकार छोटा करने, और पूर्व सीआरबी अधिकारियों का रोटेशन करने में कुछ सफल हुए थे, वहीं #KMG की तिकड़म को न समझकर वर्तमान रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव रेल सिस्टम को और अधिक डम्प कर रहे हैं!

ये 400 दिन शेष…
400 days left…
Inform people…
Power is not permanent…

दिल्ली में हाल ही में माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक रोडशो के बाद अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं का आव्हान किया कि वे देश निर्माण के लिए सभी वर्गों के लिए कार्य करें।

मोदी जी बहुत धरती से जुड़े नेता हैं, उन्हें पता है कि जानता का उन पर विश्वास ही सरकार की रीढ़ है, व्यवस्था के छुपे हुए खान मार्केटिये नहीं!

इतना बड़ा कद होने के बाद भी वह बार बार कहते हैं कि सरकारें आती हैं, जाती हैं, देश हमेशा रहेगा! 17 जनवरी को उन्होंने बड़ी स्पष्टता से कहा कि सत्ता स्थायी नहीं है, विनम्र रहें!

एक और बड़ी बात उन्होंने कही – हमें देश बदलना है! देश को विकास की नई ऊंचाई पर ले जाना है!

#Railwhispers भी माननीय प्रधानमंत्री जी की उपरोक्त कही गई बातों पर दृढ़ विश्वास रखता है। हम मानते हैं कि स्थायी बदलाव देश हित में तब ही हो पाएगा जब हम सब मिलकर पुरानी दीमक झाड़कर इसके सारे कीड़े लकड़ी से अलग करें! कैंसर के इलाज में दवाई देने से पहले कैंसरग्रस्त टिश्यूज को काटकर निकालना पड़ता है!

परंतु दुर्भाग्य यह है कि रेल के संदर्भ में मोदी सरकार के रेलमंत्रियों की ऐसी वचनबद्धता अब तक नहीं देखी गई। इसीलिए हमें आत्मिक कष्ट होता है कि #KMG इसे अपने हित साधन के अभूतपूर्व मौके के रूप में देख रहा है। जबकि सर्वसामान्य जनता/रेलयात्री रेल में बुरी तरह असुविधाजनक स्थितियों का सामना कर रहा है। उसके लिए पिछले नौ सालों में धरातल पर कुछ भी नहीं बदला।

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कुछ बली, कुछ महाबली

#KMG के सबसे कनिष्ठ सदस्य को रेल भवन से तो बाहर कर दिया गया। लेकिन कमाल यह है कि उत्तर रेलवे में इफरात एसएजी अधिकारियों के उपलब्ध होने के बावजूद, इन्हें बड़ौदा हाउस, दिल्ली में ही बैठा दिया गया। मौका मिलते ही ये फिर रेल भवन की शोभा बढ़ाएंगे!

पूर्व सीआरबी के संभावित एक्सटेंशन के खिलाफ #KMG का मुखर विरोध था, यह हम सब जानते हैं। जो पूर्व सीआरबी को जानते थे, वे उनसे इसीलिए नाराज भी हुए कि उन्होंने ‘ऑल इंडिया दिल्ली सर्विस’ (#AIDS) को समूल नहीं उखाड़ा। वहीं #KMG समूह उनसे इसलिए नाराज था कि वह उन्हें शीशे में नहीं उतर पाया।

एक रोचक ट्रेंड दिख रहा है अब

जो ट्रांसफर पूर्व सीआरबी कर गए थे, वह एक-एक करके वापस हो रहे हैं! कुछ डायरेक्टर प्रमोट होकर बोर्ड में ही एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर (ईडी), तो कुछ ईडी बोर्ड में ही पीईडी बन गए। एक ‘नाकारा’ महाबली ऐसे भी निकले जो न केवल दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे, बिलासपुर का अपना दो-ढ़ाई महीने पहले हुआ ट्रांसफर रद्द कराने में सफल रहे, बल्कि उसी दिन दूसरा आदेश निकलवाकर उत्तर रेलवे की अपनी पोस्ट सहित रेल भवन में जाकर विराजमान हो गए। जहां पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल रेलवे बोर्ड का आकार छोटा करने, और पूर्व सीआरबी अधिकारियों का रोटेशन करने में कुछ सफल हुए थे, वहीं #KMG की तिकड़म को न समझकर वर्तमान रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव रेल सिस्टम को और अधिक डम्प कर रहे हैं।

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एक आईआरटीएस-1998 बैच, रेलवे बोर्ड में ईडी/कोल हुआ करते थे। एक बड़ी ‘डील’ से संबंधित एक बहुत ही विश्वसनीय और स्पेसिफिक इनपुट पर इन्हें रेलवे बोर्ड से पूर्व सीआरबी के सीधे हस्तक्षेप से तुरंत हटाया गया था।

लेकिन वाह री #AIDS, इनकी प्रतिनियुक्ति दिल्ली में ही डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (#DFCCIL) के कॉर्पोरेट ऑफिस में हो जाती है कुछ ही दिनों में 7 अक्टूबर 2022 को। यह दिल्ली के ही एक दफ्तर (रेल भवन) से दिल्ली के ही दूसरे दफ्तर (डीएफसी) में पहुंचकर विराजमान हो जाते हैं। और अब पुनः मात्र तीन महीने बाद ही डीएफसी के दफ्तर से उत्तर रेलवे के दफ्तर बड़ौदा हाउस आ गए हैं।

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उल्लेखनीय है कि लगभग सभी सीआरबी इस नीति पर अमल करते रहे हैं कि दिल्ली में कार्यरत रेल अधिकारियों को दिल्ली में ही प्रतिनियुक्ति नहीं दी जाएगी। पूर्व सीआरबी विनय कुमार त्रिपाठी ने भी इस नीति पर अमल किया था, और एक बातचीत में उन्होंने #Railwhispers से इसकी पुष्टि भी की थी कि वह भी इसी नीति पर अमल कर रहे हैं।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इन साहब की पोस्टिंग – ईडी/कोल/रेलवे बोर्ड के पद से हटाकर – उत्तर मध्य रेलवे कैडर में प्रयागराज में हुई थी। तथापि तत्कालीन सीआरबी की जानकारी में आए बिना उसे कब, कैसे और किससे मैनेज करके डीएफसी, दिल्ली में ही अपनी प्रतिनियुक्ति करा ली, यह रेलवे बोर्ड विजिलेंस के लिए गहन जांच का विषय है।

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तथापि, पूर्व सीआरबी के रहते ही इनको दिल्ली में ही डीएफसी में प्रतिनियुक्ति मिल गई, तो इसका अर्थ यह है कि इनकी फाइल सीआरबी की टेबल से होकर नहीं गुजरी! और अब उनके रिटायरमेंट के तुरंत बाद इन्हें पुनः एक अतिसंवेदनशील और कमाऊ पोस्ट – सीएफटीएम/उत्तर रेलवे – पर लाकर बैठा दिया गया।

जानकारों का कहना है कि ट्रैफिक सहित ऐसे रेल अधिकारियों की पोस्टिंग प्रोफाइल खंगालने पर जांच एजेंसियों को देश-विदेश में इनकी आय से अधिक संपत्तियों का बहुत बड़ा स्कूप मिल सकता है, और तब इस बात का भी खुलासा हो सकता है कि रेल का बंटाधार क्यों हुआ और रेल के शीर्ष नेतृत्व का उत्तरदायित्व क्या है?

Posting order-Afza- इस पोस्टिंग आर्डर को एडवाइजर/एमआर को मार्क करने का औचित्य मनोज कुमार, डायरेक्टर/डेप्युटेशन/रेलवे बोर्ड से पूछा जाए, क्योंकि इसी में #KMG की जोड़-तोड़ का रहस्य छिपा है!

The meaning of ‘imported or extortion coal policy’ made by then ED/Coal with consent and approval of former MOBD explained by some senior traffic officers

The Railway Board’s Policy/letter no. 2015/TT-V/58/Imported Coal, dated 22.04.2022 of “Logistic plan for the evacuation of imported coal for power houses” might look quite innocuous for anyone even if he is super brilliant but factually it is the sinister logistic plan which can be understood not merely by your sheer brilliance but by your sheer cunningness and criminal design of thinking which comes through experience when you work in loading dominated Zones and divisions like Dhanbad, Bilashpur, Chakradharpur, Khurda Road, Asansole etc and in SECR, SER, ER, ECoR etc.

Or its embedded intent could be understood by the affected parties.

The main consideration while making any logistic plan by railway should have basically 2 consideration as fulcrum–

(1) Operational convenience of the rail, which includes wagon turn around and selection of shortest distance route.

(2) Convenience of the party, which includes financial convenience/viability and convenience of time i.e, transportation of consignment within minimum possible time.

Both are complementary to each other and ensures the healthy and sustainable survival of the both.

So for this type of target, the logistic plan for evacuation of imported coal for power house should have only one simple criteria i.e. – shortest distance criteria – in which party/company should have choice to bring its imported coal to the nearest port, which is situated at the shortest distance from destination point (Power House).

And primarily or prima facie the sole object of this plans appears to be the same BUT when, in lieu of, writing a simple line with simple words, that  “PORTS SITUATED AT SHORTEST DISTANCE FROM POWER HOUSES ARE PERMISSIBLE”, the whole acrobat of words has sinister import only, as far as this logistic plan is concerned.

Moreover for an honest policy maker it should have been choice of customer party/company rather than Railway imposing its own; because parties have better understanding of their financial viability+requirements.

And, if parties wish to bring imported coal from port of their choice, even if it is situated on longer distance route from destination power houses, even then, what is the problem when Railway is getting fair for it?

Here we must have to appreciate the fact that parties/companies have to see their overall costing including maritime shipping charges etc.

And, as government organizations we also have to see the viability of their logistic expenses because any unmindful levy/burden on this type of commodity has spiral impact, which ultimately costs the pocket of every body including common citizens and poorest of poor.

For example, at present the price of imported coal from Indonesia is cheapest one and the preferable ports in this case will be the ports situated at eastern ghats on the bay of Bengal and not the ports on western ghats and on Arabian sea even if their power houses are in Gujrat and if the shipping charge for this additional distance from eastern ghat to ports at western ghat is not within the limits.

The lowest sum of the shipping charge + Railway charge + time.

Is the natural choice of the party, and any logistic plan should have focused only to this reality?

So putting any criteria other than giving OPEN CHOICE to parties to OPT FOR SHORTEST ROUTE must be understood in its spirit i.e., corrupt intent. Only then, you talk with such transparent opaqueness and phrase the words “case to case”.

As a transporter you are here to give offers to your services to your  customers and not to act in dictatorial  manner as their regulator, and that too, with embedded criminal intent to exploit as rangdari vasooli gang.

अंततः आम जनता पर ही पड़ती है भ्रष्टाचार की मार

पूर्व एमओबीडी की सहमति/सहयोग और संस्तुति से पूर्व ईडी/कोल द्वारा बनाई गई उपरोक्त पालिसी को – उपलब्ध जानकारी के अनुसार – एक कोल इंपोर्टर फर्म से बड़ी डीलिंग का बहुत स्पेसिफिक इनपुट मिलने पर पूर्व ईडी/कोल का तत्काल उत्तर मध्य रेलवे, प्रयागराज में ट्रांसफर करने के बाद पूर्व सीआरबी ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था। फर्म का पत्र #Railwhispers के पास सुरक्षित है।

अधिकारियों का कहना है कि जो पोर्ट पावर हाउस से निकटतम दूरी पर होगा वही सिस्टम से स्वत: फीड हो जाना चाहिए और आरआर बन जाना चाहिए। और अगर पार्टी कहीं भी इंपोर्टेड कोल मंगाना चाहती है तो जब कोई इंपोर्टर रेलवे को निर्धारित भाड़ा दे रहा है तो रेलवे को क्यों आपत्ति होनी चाहिए अथवा इस तरह रेलवे को चौधरी बनने की क्या आवश्यकता है?

उनका कहना है कि एक तरफ दूकान-दूकान, घर-घर जाकर नया ट्रैफिक लाने की बात की जाती है, दूसरी तरफ नियमित और बड़े ग्राहकों के साथ इस तरह की ‘पॉलिसी’ बनाकर कमाई/वसूली करने का रास्ता बना लिया जाता है, और वह भी उस तरह की कमोडिटी के मामले में, जो बिजली जैसी मूलभूत आवश्यकता से संबंधित है, और इस पर किसी भी तरह का अतिरिक्त अनावश्यक आर्थिक भार, चाहे वह अधिक दूरी के माल भाड़े के रूप में ही क्यों न हो, की मार अंततः आम जनता के चूल्हे पर ही पड़ती है।

बताते हैं कि बतौर सीनियर डीओएम/बिलासपुर में कमाई के सारे रिकार्ड टूट गए थे। रेल अधिकारियों का कहना है कि यह ट्रैफिक अधिकारियों के कोल सिंडीकेट के शुरू से ही चहेते रहे हैं और हर ग्रेड में अब तक की सर्विस में सबसे कमाऊ और महत्वपूर्ण पदों पर ही रहे हैं। उन्होंने अर्जित संपत्ति का भी व्यापक ब्यौरा उपलब्ध कराया है। क्रमशः जारी..

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी