चलती ट्रेन में गैंगरेप: भ्रष्टों का बोलबाला – स्टाफ ने किया मुंह काला! रेल भवन पर #KMG का जलवा!

जब शिकारी सरकारी कर्मचारी हो तो इसका एक मतलब यह भी है कि प्रबंधन-प्रशासन अक्षम, लापरवाह, शिथिल, अप्रभावी, कमजोर और अपने हित साधन में व्यस्त है!

जब बेलगामी मेें भी तंत्र कमाई देखने लगता है तो बड़ी बेशर्मी से इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं और लोग तब तक इसे समान्य घटना मानकर भूलते रहते हैं, जब तक कि स्वयं उनके परिवार की किसी महिला के साथ ऐसी घटना न हो जाए!

व्यवस्था के इस पूरे पतन का जिम्मेदार हर विभाग का कैडर कंट्रोलिंग अधिकारी है! जब यह अधिकारी रेलवे की छवि और उद्देश्य को ध्यान मेें न रखकर अपने टार्गेट और पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर काम करेगा तो उसके द्वारा कभी भी सक्षम और निष्ठावान अधिकारी को पसंद नहीं किया जाता है!

रेल प्रशासन ने क्षेत्रीय स्तर पर कोरोनाकाल से पहले की तरह अभी भी सैकड़ों ट्रेनें नहीं चलाई हैं। इसके अलावा लंबी दूरी की लगभग सभी ट्रेनों में जनरल डिब्बों के साथ ही स्लीपर क्लास के डिब्बे भी कम कर दिए गए हैं। परिणामस्वरूप सभी ट्रेनों में अनारक्षित और जनरल पैसेंजर आरक्षित स्लीपर कोचों सहित अपर क्लास के डिब्बों में भी जबरन घुसकर यात्रा करने को मजबूर हैं। इसके चलते हर श्रेणी का यात्री असुरक्षित, परेशान और प्रताड़ित है। डिब्बों में असीमित भीड़ है, जिसके सामने पूरी व्यवस्था अपर्याप्त है।

ट्विटर पर हर दूसरी ट्वीट यात्रियों की शिकायत वाली दिख रही है। कहीं कोच में पानी नहीं है, कहीं टॉयलेट गंदा है, कहीं लिनेन साफ नहीं है, कहीं कोच और लिनेन की दुर्गंध से यात्रियों को उल्टियां हो रही हैं, कहीं कोच में चूहों और काक्रोच की भरमार है, कहीं कोच और उसकी सीटें गंदी हैं, कहीं अमानक कैटरिंग सर्विस और ओवर चार्जिंग की शिकायत है, तो कहीं अवैध वेंडर और किन्नर परेशानी खड़ी कर रहे हैं, कहीं कुछ धूर्त यात्री धूम्रपान कर रहे हैं, तो कहीं असमय बेसुरी आवाजों से यात्रियों की शांति भंग हो रही है, और सबसे अधिक शिकायतें स्लीपर एवं एसी कोचों में अनारक्षित, वेटलिस्ट और जनरल पैसेंजर भरे होने की समस्या है।

चलती ट्रेन में बैठा यात्री मर जा रहा है, प्लेटफॉर्म पर खड़ा आदमी इलेक्ट्रोकटेड हो जा रहा है, प्लेटफॉर्म पर खड़ा और वेटिंग रूम में बैठा यात्री भी ट्रेन के प्लेटफॉर्म पर चढ़ जाने से असुरक्षित महसूस कर रहा है, फुट ओवर ब्रिज पर चढ़ने से सशंकित हो रहा है, ऐसे में यात्रियों के मन में प्रश्न उठना शुरू हो गया है कि माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने अब तक जो लाखों करोड़ रुपये का निवेश रेल में किया है, उसका कोई लाभ पिछले 8-9 सालों में रेलयात्रियों तक क्यों नहीं पहुंचा है? आम चुनाव का बिगुल बज चुका है, शायद रेलमंत्री और उनकी सलाहकार मंडली (#केएमजी) को अब तक इसकी थाप सुनाई नहीं पड़ी है!

उपरोक्त सब के बावजूद हाल ही में एक चलती ट्रेन के एसी कोच में एक महिला के साथ एक ऑनबोर्ड स्टाफ द्वारा अपने कुछ साथियों के साथ गैंगरेप की शर्मनाक घटना हुई। कुछ समय पहले एक और ऐसी ही घटना चलती ट्रेन में हुई थी। इसके अलावा भोपाल स्टेशन रिटायरिंग रूम में भी एक महिला के साथ स्टाफ द्वारा ऐसे ही कांड को अंजाम दिया गया था। यह शर्मनाक घटनाएं रेल पर बदनुमा दाग की तरह हैं, जो न केवल रेल की छवि खराब करती हैं, बल्कि इसे अत्यंत असुरक्षित भी घोषित करती हैं। माना कि भारतीय रेल एक समंदर है, इसमें हर पल कहीं न कहीं कुछ अप्रिय घटित हो रहा होता है, परंतु इस अप्रिय की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए कुछ कड़े निर्णय लिये जा रहे हैं, कुछ सावधानियां बरती जा रही हैं, ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं देता।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार किसी भी अकेली महिला के लिए सबसे असुरक्षित यात्रा रेल की ही होती है। रेल के 1st AC, 2nd AC, 3rd AC, Sleeper और यहां तक कि जनरल कोच भी महिलाओं को घूरने, उनके साथ छेड़खानी करने वालों के लिए सबसे ज्यादा पसंदीदा और आसानी वाली जगहें होती हैं।

उनका कहना है कि खासकर 2nd AC और 3rd AC की साइड बर्थ इनके लिए सबसे अधिक आसान टार्गेट होती हैं। वह कहते हैं, “आमतौर पर 95% मामले लोकलाज से रिपोर्ट नहीं होते हैं, या फिर थोड़े से हंगामे-विवाद के बाद महिला उसे कई कारणों से तूल न देने में ही अपनी भलाई समझती है और मामला वहीं रफा-दफा हो जाता है।”

उनका यह भी कहना था कि, “लेकिन जब शिकारी सरकारी कर्मचारी हो तो इसका एक मतलब यह भी है कि प्रबंधन-प्रशासन अक्षम, लापरवाह, शिथिल, अप्रभावी, कमजोर और अपने हित साधन में व्यस्त है!”

जब उच्चाधिकारी कड़क होता है तो सरकारी कर्मचारी लगाम में होते हैं, लेकिन जब बेलगामी मेें भी तंत्र कमाई देखने लगता है तो बड़ी बेशर्मी से इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं और लोग तब तक इसे समान्य घटना मानकर भूलते रहते हैं, जब तक कि स्वयं उनके परिवार की किसी महिला के साथ ऐसी घटना न हो जाए!

कैडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी और पूर्वाग्रह

व्यवस्था के इस पूरे पतन के जिम्मेदार वे अधिकारी होते हैं जिनको हर डिपार्टमेंट का कैडर कंट्रोलिंग अधिकारी कहा जाता है। जब कैडर कंट्रोलिंग अधिकारी रेलवे की छवि और उद्देश्य को ध्यान मेें न रखकर अपने टार्गेट और पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर काम करेगा तो उसके द्वारा कभी भी वैसे अधिकारी पसंद नहीं किए जाते हैं, जिनके पोस्टिंग ऑर्डर से ही जितने दुष्ट स्टाफ हैं उनके कलेजे में पानी भर
जाता है।

ऐसे सक्षम और निष्ठावान अधिकारियों को पथभ्रष्ट और दम्भी विभाग प्रमुख (#PHOD) हमेशा हासिये पर रखते हैं और फील्ड में अपने टार्गेट के हिसाब से अपने जैसे ही दुष्ट लोगों को पोस्ट करते हैं जो उनके रास्ते का रोड़ा न बनें, उनकी जी-हुजूरी और चापलूसी करें, भले ही सिस्टम भाड़ में चला जाए। हालांकि हकीकत में ऐसे लोग सिस्टम को बैठाने के लिए ही पैदा होते हैं, लेकिन अपनी इतनी हांकते हैं कि मानो रेलवे में ये नहीं आए होते तो रेल अब तक बैठ गई होती!

उत्तर रेलवे का तो वैसे भी बुरा हाल है!

एक तो चलती ट्रेनों में पर्याप्त एमिनिटी स्टाफ नहीं लगाया जा रहा है। दूसरी तरफ स्टाफ की भारी कमी है। तीसरी तरफ जो स्टाफ है उसे डिफरेंस वसूली अर्थात अवैध उगाही के लिए लगाया गया है। ऐसे में हर तरफ स्टाफ भी उत्पीड़ित है। कई जगहों का टिकट चेकिंग स्टाफ इससे काफी दुःखी है और वह भी खुलकर इसके लिए अपने अधिकारियों और यूनियनों दोनों को दोषी मानता है। बरेली और देहरादून के टिकट चेकिंग स्टाफ ने बताया कि मुरादाबाद इस तरह की घटनाओं के लिए पहले भी बदनाम रहा है, अभी पिछले साल ही एक महिला के साथ कुछ इसी तरह की घटना में एक टीटीई को डिसमिस किया गया है। चूँकि अधिकांश ट्रेनें मुरादाबाद से रात में गुजरती हैं, इसलिए मुरादाबाद मंडल और भी संवेदनशील हो जाता है।

स्थिति यह है कि जब भी कोई सख्त अधिकारी सीनियर डीसीएम के पद पर डिवीजन में गलती से पोस्ट हो जाता है, तो भ्रष्ट तंत्र का सिंडीकेट इतना मजबूत, रहस्यमय और बड़ा है कि उस अधिकारी को सालों-साल दरबदर होते रहना पड़ता हैं।

यह तब और भी दुखद और हास्यास्पद लगता है जब अपने कैरियर का 90% समय (बाकी 10% में डीआरएम वाला पीरियड ही बड़ा होता है) दिल्ली में ही बिता देने वाले लोग विभाग प्रमुख बनकर दूसरों को आंख मूंदकर इधर-उधर फेंकते और फेंटते रहते हैं, और वह भी छांटकर (selectively), अपनी पसंद के अनुसार! क्योंकि ऐसा नहीं है कि ये सबके
साथ एक जैसा ही व्यवहार करते हैं, बल्कि ये जो भी करते हैं छांटकर ही करते हैं। ठीक किसी निरंकुश खलनायक की तरह!

बस, इस तरह के लोगों की पूंछ केवल जीएम और अपने से ऊपर उन लोगों से दबी रहती है जिनके हाथ में इनकी लगाम (एपीएआर) होती है। बाकी लोगों के लिए ये अपने को खुदा ही समझते हैं।

देहरादून और मुरादाबाद मंडल के कई कर्मचारियों का कहना है कि जब कैडर कंट्रोलिंग ऑफिसर इतनी संवेदनशीलता भी नहीं रखते कि किसी ऑफिसर को इस मंडल में पोस्ट करने से पहले खुद उसका इतिहास और डीएआर विवरणी देख लें! तो फिर इस तरह की घटनाएं तो होंगी ही!

एक यूनियन पदाधिकारी ने कहा कि “जब ये सब देखने के बाद भी किसी को रेलवे में अधिकारी बना दिया जाता है तो फिर आप रेल प्रशासन से क्या अपेक्षा कर रहे हो?”

एक रिटायर्ड ग्रुप ‘बी’ अधिकारी ने कहा कि पहले ऐसे लीजेंडरी सीओएम रहे हैं जो बिना किसी एजेंडा के और बिना अपनी आत्म प्रवंचना के असिस्टेंट स्केल से लेकर ब्रांच ऑफिसर तक ऐसे अफसरों की ही पोस्टिंग करते थे जो हर लिहाज से बेहतरीन साबित होते थे और केवल रेल के टार्गेट और इमेज के लिए काम करते थे। अपने से नीचे वे सबके लिए सुलभ होते थे, सबकी सुनते थे, सबका ध्यान रखते थे, और अच्छे अधिकारियों का विशेष रूप से! हर एक जूनियर अधिकारी का गार्डियन की तरह ग्रूमिंग करना वह अपना प्रथम कर्तव्य समझते थे। आज भी हर मंडल में वैसे विभाग प्रमुख को और वैसे ब्रांच ऑफिसर को रेलकर्मी याद करते हैं।

वह कहते हैं, “बड़ों से वह सही बात कहने में डरते नहीं थे लेकिन आज के विभाग प्रमुख, जूनियर अधिकारियों के ग्रूमिंग के प्रति अपनी जिम्मेदारी तो छोड़िए, उन्हें खादिम की तरह समझते हैं और सारी हेकड़ी उन पर दिखाते हैं और ये इतने रीढ़हीन होते हैं कि जीएम और बोर्ड में – जिनके पास इनकी लगाम होती है – उनके सामने या तो मुंह से आवाज नहीं निकलती है, या फिर घिग्घी बंधी रहती है! अब न तो किसी विभाग प्रमुख को रेल से कुछ लेना-देना है, न उनकी छत्रछाया में पलने वालों को!”

वैसे भी विभाग प्रमुख का क्या कहें, जब रेलवे बोर्ड स्वयं ही ऐसे अधिकारियों को उत्तर रेलवे में पोस्ट कर रहा जिसके सामने कई कठपाल और कई जेना बच्चे जैसे निरीह नजर आएंगे और उसका नाम सुझाने वाला कितना बड़ा खिलाड़ी होगा, इसका तो केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है!

#Railwhispers और #RailSamachar को कई जोनों से ट्रैफिक सहित लगभग सभी विभागों के विभाग प्रमुखों के कारनामें और करिश्मे प्राप्त होते रहते हैं जिस पर पूर्व मध्य रेलवे के ऊपर कई खुलासे किए गए थे, लेकिन पूर्व तट रेलवे के जेना कांड के बाद सूचनाओं की बाढ़ आ गई है।

आने वाले समय में सभी जोनों के सभी कलाकार #PHODs और महत्वपूर्ण करिश्माई HODs के विषय पर क्रमशः लिखा जाएगा। इनके सरपरस्त आकाओं का भी खुलासा किया जाएगा, क्योंकि भ्रष्टाचार और व्याभिचार उनके केवल एक निर्णय से बढ़ता है और मजबूत होता है जिसमें ये वैसे महत्वपूर्ण पद पर कैसे व्यक्ति को पदस्थापित कर रहे हैं जिसके हाथ में उससे नीचे के सभी पदों की पोस्टिंग है। अगर शुरुआती पद पर ही गलती हो गई, तो फिर पूरे कुएं में भांग पड़ेगी ही!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी