व्यर्थ कयास लगाना छोड़कर, ‘रोटेशन’ पर ध्यान केंद्रित किया जाए!
आदरणीय रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव जी,
रेल का संबंध देश के सर्वसामान्य व्यक्ति से है, माना कि जन सरोकार अर्थात जनता से आपका सीधा संबंध नहीं है, तथापि यह जन सरोकार पूरी सरकार, और उससे ज्यादा रेलमंत्री का दायित्व है। सरकार अगर फेल होती है, तो उसमें सर्वाधिक योगदान रेल मंत्रालय का ही होता है!
हमारी आपसे केवल एक ही मांग है – वह है हर स्तर पर पूरी कड़ाई से रोटेशन पॉलिसी को लागू किया जाना, क्योंकि इस एकमात्र रोटेशन में ही रेल की 90% बुराईयों का कारगर इलाज छिपा हुआ है!
उम्मीद है कि आप जानते होंगे #Railwhispers और #RailSamachar की पृष्ठभूमि! हमारे पुराने पाठकगण अर्थात रेल अधिकारी और कर्मचारी कुछ समय से हमें इस बात का बहुत बड़ा उलाहना दे रहे हैं कि #RailSamachar और #Railwhispers आपकी आलोचना नहीं कर रहे हैं, जैसे यह दोनों पोर्टल पहले के रेलमंत्रियों की करते रहे हैं।
मंत्री जी, कारण यह है कि जब हमें माननीय प्रधानमंत्री के बयान से यह समझ में आया कि भीतर छुपे सांपों को तो हम देख ही नहीं पा रहे हैं, अतः कई सारे दोष मंत्रियों पर डाल दे रहे थे, जो कि वास्तव में उनके नहीं होते थे। आपमें एक युवा साफ-सुथरे, पढ़े-लिखे एडमिनिस्ट्रेटर, इंजीनियर, सुलझे हुए उद्योगपति के रूप में बहुमुखी प्रतिभा के आयाम दिखे। आपने जिस प्रकार आते-आते ट्रेन-18 बनाने वाली टीम का समर्थन किया, तब आपके प्रति विश्वास और भी दृढ़ हुआ।
प्रधानमंत्री मोदीजी आखिर एक ऐसा मंत्री लाए, जो न केवल अब तक के तमाम रेलमंत्रियों से अलग, और अधिक योग्य है, जिसे प्रशासन, प्रशासनिक व्यवस्था में रहकर काम करने का गहन अनुभव प्राप्त है, व्यवस्था से बाहर रहकर भी जिसने अपने को साबित किया, बल्कि लीक से हटकर काम करने को भी तैयार है, ऐसा लगा।
पैदाइशी पत्रकार हूं साहब, और पत्रकारिता के सभी भागों में 43 साल काम किया है – समाचारों की खोज-संकलन से अखबार की प्रिंटिंग तक का अनुभव मुझे सर्वप्रथम ‘दैनिक जागरण’ में काम करते 1980-86 के पहले कार्यकाल में मिला था। लखनऊ से 1986 में मुंबई आने पर लगा कि मुझे अर्थव्यवस्था के एक विशिष्ठ आयाम में काम करना चाहिए, इसलिए रेल को मैंने एक विषय विशेष के रूप में अपनी पत्रकारिता का माध्यम बनाया।
मुंबई में रहते और रेलवे बीट पर काम करते हुए इस शहर की समस्त आर्थिक गतिविधियों की धमनी रेल की तरफ झुकाव स्वाभाविक था। मेरा आज भी मानना है कि रेल देश और समाज को जोड़ने वाली एक ऐसी परिवहन व्यवस्था है, जिससे हर सामान्य नागरिक को छुआ जा सकता है, क्योंकि जहां इस देश के लिए रेल के समकक्ष कोई परिवहन विकल्प अब तक उपलब्ध नहीं है, उसी तरह दूसरी तरफ देश के सर्वसामान्य आदमी के लिए रेल से सस्ता, सुलभ और सुरक्षित यातायात साधन का विकल्प भी अब तक नहीं उपलब्ध हो पाया है, और अभी शायद अगले 100 वर्षों तक हो भी नहीं पाएगा!
मंत्री जी, रेल केंद्र का विशेष विषय है और रेल का संबंध देश के सर्वसामान्य व्यक्ति से है! माना कि जन-सरोकार अर्थात जनता से आपका सीधा संबंध नहीं है, तथापि यह जन-सरोकार ही पूरी सरकार, और सबसे ज्यादा रेलमंत्री का दायित्व है, क्योंकि सरकार अगर फेल होती है, तो उसमें सर्वाधिक योगदान जनता से सीधे जुड़े इस रेल मंत्रालय का ही होता है। और आप यह भी जान लें कि वर्तमान में रेल की कार्यप्रणाली को लेकर हर जोनल रेलवे के दायरे में जनमानस में भयंकर असंतोष व्याप्त है।
मैंने मधु दण्डवते जी जैसे मंत्रियों को भी देखा और सुना, और यह भी देखा कि कैसे रेल मंत्रालय से कितने राजनैतिक करियर मजबूत हुए और कितने डूब गए। राम विलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी की राजनैतिक नींव में यह मंत्रालय ही रहा है। ललित नारायण मिश्र भी शायद आपको याद होंगे, रेलमंत्री का कद इतना ऊंचा भी हो सकता है कि प्रधानमंत्री उनसे थ्रेटन हो सकते हैं, यह भी पता चला। लाल बहादुर शास्त्री, बाबू जगजीवन राम, कमलापति प्रिपाठी, जॉर्ज फर्नांडिस, अब्दुल गनी खान चौधरी जैसे कद्दावर नेता आपसे पहले यहां रहे और अपनी राजनैतिक पहचान सुदृढ़ की रेलमंत्री रहकर!
जैसे ही हमें रेल मंत्रालय में #KMG का पता चला, फिर हमने इसकी काफी गहराई से खोजबीन की, तो यह स्पष्ट हो गया कि क्यों मनमोहन सरकार और मोदी सरकार में रेलमंत्री अधिकतर फेल हुए!
यहां का खान मार्केट गैंग अर्थात #केएमजी, चूंकि ‘उच्च इमोशनल इंटेलिजेंस’ प्रदत्त है, वह अपना ‘कन्विक्शन’ व्यवस्था के अनुसार ढ़ाल लेता है – अर्थात समय और सत्ता के अनुरूप गिरगिट की तरह उससे चिपके रहने के लिए अपना रंग बदल लेता है – और अपने हितों को साधते हुए अंदरूनी तौर पर ही खेलता रहता है। एक डायग्राम द्वारा हमने यह भी बताया कि आपकी टीम आपकी खोज नहीं है, ये आपसे पहले भी ऐसे ही लगातार सत्ता से सटे रहे हैं।
अपनी कमजोरियों को रेल व्यवस्था की कमजोरी बताकर यह लोग मंत्रियों को समझा देते हैं कि, ‘सर व्यवस्था की ये कमियां हैं।’ अपनी आलोचना को मंत्री, मंत्रालय और सरकार की आलोचना बता देना इनको अभय प्रदान करता है।
25 साल पहले जो डिप्टी, यानि जेएजी में थे, आज वे मेंबर बन गए, महाप्रबंधक बन गए। और जो हेड थे, वह मेंबर और महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हो गए – यह तो आप भी मानेंगे कि रेल के एक विषय विशेष पर इतने वर्षों से लगातार काम करते हुए एक वृहद सूचना तंत्र इन दशकों में बतौर पत्रकार #Railwhispers बना सकता है। अतः आप चाहें तो अपनी टीम को बता सकते हैं कि व्यर्थ कयास लगाना छोड़कर ‘रोटेशन’ की पॉलिसी पर ध्यान दें।
फाइलों पर घाल-मेल इसी से पता चलता है कि सीबीआई/सीवीसी से संबद्ध सीवीओ/आरडीएसओ की पोस्ट गैरकानूनी तरीके से भर दी गई – इसमें जो अधिकारी पोस्ट हुआ उसकी गलती नहीं थी, गलती उसकी है, जिसने जानकारी को ही फेरकर आपसे गलत साइन करवाया।
और तो और, इमोशनल इंटेलिजेंस का भारतीय रेल में इम्प्लीमेंटेशन अब तो एक बहुत बड़ा स्कैम लग रहा है। इसके जरिए रेल अधिकारियों का जो डाटा विदेशी कंपनी को गया, अथवा जा रहा है, वह एक गंभीर मामला है। तथापि यह बात सही है कि आपसे पहले यह निर्णय हो गया था, लेकिन इस प्रक्रिया से आपके टेन्योर में भी पोस्टिंग हुई हैं।
#KMG द्वारा आपको यह बताकर संतुष्ट कर दिया जाता है कि, “सर हम ट्रांसफॉर्मेशन कर रहे हैं, इसीलिए यह आलोचना हो रही है!”
मान्यवर यह नितांत गलत है। आपके प्रमुख सलाहकार रेल भवन में 50 वर्षों से रह चुके हैं। क्या रेल की इस खस्ताहाल की जिम्मेदारी उनकी बिल्कुल नहीं रही? आपके #Advisor साहब की पुस्तक में कितने छेद हैं वह सब हम प्रकाशित कर ही चुके हैं, और बाकी आगे आने वाले हैं, जहां यह सिद्ध होता है कि उनकी स्वार्थ-प्रेरित महत्त्वकांक्षा, अपने ही बैचमेट्स के #APAR को खराब करना, प्रशासनिक व्यवस्था की समझ केवल मैनीपुलेशन के लिए, टेक्निकल समझ की कमी अब पूरी रेल व्यवस्था में त्राहि मचा दी है।
“KMG: “Never A Bystander” – A Standard & Deeper Analysis: पार्ट-1“
“KMG: “Never A Bystander” – A Standard & Deeper Analysis: पार्ट-2“
“KMG: “Never A Bystander” – A Standard & Deeper Analysis: पार्ट-3“
मंत्री जी, निवेदन है कि उपरोक्त लिंक्ड इन तीनों विश्लेषणों को थोड़ा धैर्य के साथ एक बार अवश्य पढ़ें, क्योंकि इनमें न केवल आपके ज्ञान चक्षु खोलने के लिए, बल्कि ‘इमोशनल इंटेलिजेंस’ की दूकान बंद करने के पर्याप्त तथ्य भी उपलब्ध हैं!
हमें पीड़ा होती है जब आप जैसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी समझदार राजनेता इस सरकार के चौथे मंत्री हैं जिसे ये “खान मार्केट” वाले घेर चुके हैं। इन्होंने आपको यह बताकर संतुष्ट कर दिया कि जीएम, डीआरएम और मेंबर नियुक्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अतः डेढ़ साल तक पूरी भारतीय रेल को एडहॉक पर रख दिया, क्योंकि इससे उन्हें सुविधा यह हुई कि उनसे सवाल करने वाला कोई नहीं रहा!
महोदय, इनमें से कभी किसी जीएम या डीआरएम की दिनचर्या का अध्ययन करें, रेल भवन के गमलों में लगे बरगद क्या बताएंगे आपको कि रेल व्यवस्था जो शांति से चल रही है, उसके पीछे कितना पसीना इन अधिकारियों का बहता है। एडहॉक रेलवे बोर्ड के चलते, महाप्रबंधकों के खाली पदों के चलते, रेल की पूरी बिगड़ी रिद्म (गति) के बावजूद आज रेल चल रही है, तो यह केवल दिन-रात अथक परिश्रम करने वाले आपके इन महाप्रबंधकों के कारण ही!
एक महाप्रबंधक सभी डिपार्टमेंट्स के सीनियर अधिकारियों को साथ लेकर व्यवस्था चलाता है। इसके पास हजारों किलोमीटर ट्रैक, ओएचई, ब्रिज, वर्कशॉप्स, टनल, कंस्ट्रक्शन, कमर्शियल, ऑपरेशन, लोको, कोच, वैगन, मेंटेनेंस, पीओएच जैसी बड़ी इंस्टालेशंस की दैनंदिन देखरेख होतीं हैं। इसके अलावा हजारों-लाखों रेल परिवारों का ध्यान रखना, उनका वेलफेयर देखना भी इस पद की जिम्मेदारी और काम होता है। जब आपको ऐसे मंजे हुए अधिकारियों को बाईपास करने के लिए मना लिया जाता है, तो पीड़ा तो होती है।
खतौली जैसे भीषण रेल एक्सीडेंट के जिम्मेदार दो अधिकारियों को आप और आपके पहले के रेलमंत्री महाप्रबंधक बना देते हैं! इसी तरह सरकार विरोधी एक अधिकारी – जिसे #Railwhispers की निशानदेही पर पीएमओ के आदेश पर गृहमंत्रालय से तुरंत रिपैट्रिएट किया गया, उसे आप पहले एक महीने तक ‘वेटिंग फॉर ड्यूटी’ रखकर रेलवे बोर्ड में ईडी/पीजी बनाते हैं, फिर डीआरएम बना देते हैं – यह सब #KMG के कारण हुआ। दिल्ली में बैठे ये अधिकारी हर निगेटिव रिपोर्ट से अपने को दूर रखने में सफल रहते हैं, परंतु उसका ठीकरा आपके ऊपर फूटता है।
मंत्री जी, आपके सबसे बड़े सलाहकार रेलवे बोर्ड के मेंबर होते हैं। उनका चयन ठीक करिए, यह वह होने चाहिए जिन पर लाखों रेलकर्मी विश्वास कर सकें, जो किसी काम और कंट्रीब्यूशन के लिए जाने जाते रहे हों। आज आपके चयन की प्रक्रिया में एक माल्या बाईपास होता है, जो स्वयं महाप्रबंधक के पद को लुक ऑफ्टर कर रहा था महीनों से, और नवीन गुलाटी एमटीआरएस (#MTRS) बनता है, जो व्यवस्था में हमेशा निर्णय नहीं लेने, किसी भी फाइल पर साइन नहीं करने, और इसीलिए सदैव साइडलाइन की पोस्ट लेने के लिए जाने गए।
हमारा #KMG से कोई द्वेष नहीं, कोई विरोध नहीं है, कोई पूर्वाग्रह भी नहीं है, लेकिन ये तुलना आपके चयन के कारण ही हो रही है। आपके ईडी/पीजी (#EDPG) जितेद्र सिंह ने निर्णय लेने के किसी भी ऐसे पद पर आजतक काम नहीं किया जहां कभी उनको फंसने की कोई संभावना रही हो – जैसे टेंडर, रिक्रूटमेंट आदि – जो एक सामान्य अधिकारी करता है, और जिससे उसके निर्णय लेने की प्रतिभा निखरती है। यही हाल आपके स्टैब्लिशमेंट ऑफिसर नवीन कुमार का है – जो स्वयं #IRMS डील कर रहा है, उसने आजतक कभी ऐसे निर्णय लेने का कोई काम नहीं किया अपने पूरे करियर में – तब यह कैसे आपको सलाह दे सकते हैं?
आरडीएसओ से आप कितने नाराज रहे हैं, यह जग-जाहिर है, आप आरडीएसओ बंद करने को भी उत्सुक रहे हैं, ये भी पता है सबको – लेकिन क्या आपने कभी अपने बोर्ड से यह पूछा कि ‘आरडीएसओ के गोरखधंधों को छुपाने या नियंत्रण करने वाली पोस्ट का गैरकानूनी चयन आपके #KMG द्वारा होता है, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं?’ यहां तो सीनाजोरी इतनी खुली थी कि आपके #KMG को उस अधिकारी से ट्रांसफर रिक्वेस्ट लेकर उसे वहां से निकलवा लिया। क्यों रेल भवन के अधिकारियों पर कार्यवाही नहीं हुई?
आपने जो स्टैंड #NCR के झांसी मंडल में लिया था, वैसे किसी निर्णय को हमने नहीं देखा इस विषय पर! #RDSO की हर पोस्टिंग #KMG सरीखे इंटरेस्टेड ग्रुप करते रहे हैं, और खेद यह कि हर फाइल आपकी टेबल से गुजरती रही है। फिर क्या आरडीएसओ की विफलता से कोई सरोकार नहीं #केएमजी का? #KMG को मिलने वाला आपका संरक्षण पूरे अधिकारी वर्ग को और हमें भी विचलित करता है!
हमारी केवल एक मांग है आपसे- वह है हर स्तर पर पूरी कड़ाई से रोटेशन पॉलिसी को लागू किया जाना, क्योंकि इस एकमात्र रोटेशन में ही रेलवे की 90% बुराईयों का कारगर इलाज छिपा है। आपका सलाहकार समूह 50 सालों से रेल भवन में पदस्थापित है – कुछ तो कीजिए मंत्री जी! अपने स्वार्थपरक निर्णयों को आपके निर्देश बताकर यह तो चले जाएंगे एक दिन, लेकिन समय रहते अगर आपने कुछ कारगर प्रशासनिक सुधार नहीं किया, तो यह आपके राजनैतिक भविष्य पर काली छाया छोड़ जाएंगे, यह तय है! क्रमशः जारी…
धन्यवाद
सादर
सुरेश त्रिपाठी
संपादक,
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