उपयुक्त सुधार के बिना डीआरएम की पोस्टिंग में जल्दबाजी न की जाए!
डीआरएम का पद ही रेल प्रशासन की रीढ़ है, अतः इस रीढ़ का सुदृढ़ीकरण सुनिश्चित करके ही रेल का प्रशासनिक उन्नयन किया जा सकता है!
सुरेश त्रिपाठी
#Railwhispers की रोजाना सैकड़ों रेलकर्मियों और अधिकारियों से बात होती है। इस बातचीत में सबसे पहले उनका यह मानना होता है कि रेल मंत्रालय को “फुल टाइम रेलमंत्री” चाहिए! खैर, पहले भी हजारों अधिकारियों और कर्मचारियों की फीडबैक लेने के बाद इस विषय पर विस्तार से लिखा गया है कि रेल में सुधार हेतु रेलमंत्री, और सीआरबी के लिए भी, कौन-कौन से काम सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी हो सकते हैं। तब स्पष्ट रूप से यह सामने आया था कि रेल प्रशासन की सबसे महत्वपूर्ण यानि कटिंग एज है – डीआरएम की पोस्ट! अगर केवल इस एक जगह पर ही चयन में मंत्री महोदय आवश्यक सुधार कर दें, तो न केवल रेलवे का भविष्य संवर सकता है, बल्कि पूरी रेल व्यवस्था पटरी पर आ सकती है!
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अधिकांश रेल अधिकारियों और कर्मचारियों की यही ओपीनियन रही है कि अतार्किक तथा अवैधानिक रूप से कुछ वर्चस्ववादी शक्तियों द्वारा डीआरएम की चयन प्रक्रिया में लाई गई 52 साल के उम्र वाली क्राइटेरिया ही रेलवे की सतत त्रासदी का सबसे बड़ा कारण रही है, जिसने यह सुनिश्चित किया कि दुनिया की नंबर एक संस्था कैसे थर्ड रेटेड संस्था बन जाए। क्योंकि 52 साल की क्राइटेरिया से ‘बाई डिफाल्ट’ इसी कैलिबर के लोग आते रहे हैं, जिनको पहले दिन से ही पता था कि वे उच्चतम पद तक जाने वाले हैं, केवल अपनी जन्मतिथि (DOB) वाली योग्यता के आधार पर!
उनका यह भी कहना था कि इसीलिए शुरू से ही रास-रंग में डूबे रहने और सुविधाओं का दोहन करने के अलावा ये लोग रिटायरमेंट तक कुछ नहीं करते, क्योंकि पहले से ही इनका भविष्य प्रिडेक्टेबल है। इसलिए अब तक नीचे से लेकर ऊपर तक किसी में यह हिम्मत नहीं हुई है कि इनके ऐशो-आराम में कोई खलल डाल दे। कुछ अपवाद इसमें भी रहे हैं, लेकिन उंगलियों पर गिनती के तौर पर ही!
“वुड बी मेंबर” का रुतबा
रेलवे के गलियारों में हर विभाग में एकमात्र डीओबी योग्यता वाले ऐसे लोग मिल जाएंगे, या उनके किस्से सुनने को मिल जाएंगे, जो जूनियर/सीनियर स्केल से ही अपने को “वुड बी मेंबर” बताते हुए, अथवा यह कहें कि मानते हुए, लोगों को आज भी धमकाते रहते हैं।
इसी भारतीय रेल में हजारों ऐसे अधिकारी भी हर विभाग में हुए, जिनके योगदान से रेलवे चलती रही है, लेकिन वे हमेशा हासिये पर रखे रहे, क्योंकि उनके पास डीओबी वाली योग्यता नहीं थी। रेलवे में आज जो कुछ भी बेहतर देखने को मिलता है, उसमें शत-प्रतिशत योगदान इन्हीं हासिये के लोगों का है।
डीओबी योग्यता वालों का कब्जा
चूँकि रेलवे में जीएम और सीआरबी बनने तक का रास्ता आप बिना डीआरएम हुए तय नहीं कर सकते हैं, तो इसका परिणाम यह हुआ कि वही एकमात्र डीओबी वाली योग्यता वाले अकर्मण्य लोगों का ही कब्जा जीएम और सीआरबी पद पर भी होता रहा है।
इसीलिए अब जब रेलमंत्री और सीआरबी एक काम करने वाली अर्थात “रिजल्ट ओरिएंटेड” डीआरएम/जीएम की टीम बनाना चाह रहे हैं, तो यही डीओबी वाली योग्यता रखने वाले कुछ लोगों ने जल्दी पोस्टिंग किए जाने के लिए चारों तरफ हाहाकार मचाया हुआ है।
“राज-भोग-योग” वालों को रेल की चिंता नहीं
रेलमंत्री को एक गूढ़ रहस्य यह भी समझना होगा कि इस तरह की व्यवस्था में चिंता मंत्री और सीआरबी को ही रहेगी रेलवे को चलाने की, तो अपना रक्तचाप और मधुमेह भी उन्हें ही बढ़ाना होगा। लेकिन इस व्यवस्था से पालित-पोषित और राज्याभिषेक किए गए कंसल, कश्यप और आनंद प्रकाश तथा सत्येन्द्र कुमार जैसे जीएम प्रोडक्ट ही मिलेंगे, अथवा पूर्व डीआरएम/फिरोजपुर, या फिर वर्तमान डीआरएम/चक्रधरपुर, डीआरएम/खड़गपुर, डीआरएम/खुर्दा रोड और डीआरएम/दिल्ली इत्यादि जैसे जुगाड़ू लोग पाए जाएंगे, जो डीओबी के आधार पर केवल “राजयोग” ही नहीं “राज-भोग-योग” लिखाकर आए होते हैं। इसलिए रेल की चिंता करना ये अपना आवश्यक काम नहीं समझते हैं।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान में दसियों डीआरएम और बहुसंख्यक जीएम ऐसे हैं, जो अपनी व्यक्तिगत रास-रंग की पार्टियां में यही बात कहकर वर्तमान रेलमंत्री और सीआरबी का मजाक उड़ा रहे हैं।
‘चुके’ हुए लोगों को ही लेने की बाध्यता
रेलमंत्री को ज्ञात होना चाहिए कि फिलहाल अब ये लोग वितंडावाद मचाए रखेंगे, क्योंकि जीएम के मामले में आप ज्यादा कुछ कर नहीं सकते, क्योंकि इसमें डीओबी योग्यता वाले डीआरएम रह चुके – ‘चुके’ हुए लोगों को ही लेने की बाध्यता रहेगी। जब तक आपके पास डीओपीटी या कैबिनेट से पारित कोई तोड़ न मिल जाए, अपको “कंसल-कश्यप” ब्रांड में से ही चुनाव करना होगा, भले ही आप कितना भी डिले (देरी) कर लें।
इसलिए #Railwhispers का सुझाव है कि आप जीएम की पोस्टिंग में अपनी ज्यादा ऊर्जा न खपाएं और जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी उनके पदों को भरने का प्रयास करेंगे, रेल की सेहत के लिए उतना ही अच्छा होगा।
सही दिशा में तभी मिलेगा रिजल्ट
जानकारों का कहना है कि रेलमंत्री अपनी ऊर्जा डीआरएम पद पर चयन में लगाएं, फिर भले ही इसके लिए एक्सपेरिमेंट करने में जितना समय चाहिए, ले लें, लेकिन डीओबी की क्राइटेरिया को दरकिनार कर पूरे बैच को एलिजिबल मानते हुए नया पैनल बनाएं और स्वयं अपने दोनों सह-मंत्रियों के साथ इंटरव्यू लेकर डीआरएम का चयन और पोस्टिंग करेंगे, तभी रेलमंत्री को सही दिशा में इसका रिजल्ट मिलेगा।
उनका यह भी कहना है कि रेलमंत्री इसमें एक बात की जरूर एहतियात बरतें कि किसी भी रेलवे वाले की राय लेकर डीआरएम के चयन में अपनी ओपीनियन न बनाएं। जो गलती अथवा चालबाजी “360 डिग्री” के नाम पर की जाती है, वह न करें, क्योंकि 360 डिग्री में वह उन पुराने घाघों के कुचक्र में फंस जाएंगे, जो “कंसल-कश्यप” के भी गुरु हैं। उन्होंने कहा कि ये वह लोग हैं जो खुद जब तक रहे, रेलवे को बर्बाद करते रहे, गुटबाजी करते रहे, अपने इर्द-गिर्द चमचों-चापलूसों की फौज को पालते रहे, योग्यता की जगह चाटुकारिता और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते रहे हैं।
व्यक्तिगत मुलाकात अवश्य करें रेलमंत्री
उन्होंने कहा कि रेलमंत्री को एक बात का ध्यान और रखना होगा कि जिसका फीडबैक ऐसे लोग खराब दें, वैसे लोगों से तो एक बार जरूर, मौका देने की नीयत से ही सही, रेलमंत्री को उनसे व्यक्तिगत तौर पर अवश्य मिलना चाहिए, तब शायद उन्हें वह चीज देखने और समझने को मिल जाए, जिसकी बड़ी आवश्यकता है रेलवे को सुधारने के लिए!
उन्होंने यह भी कहा कि अगर डीआरएम का चयन सही हो गया, तो जैसा कि #Railwhispers ने पहले भी लिखा है, रेलमंत्री रेलवे का भी कायाकल्प करने में सक्षम होंगे और मोदी सरकार 2024 की वैतरणी भी पार कर जाएगी। तब चाहे तो नई प्रक्रिया से चयनित डीआरएम में से ही परफॉर्मेंस के आधार पर सीधे जीएम बना दें। यह उनके द्वारा रेलवे में किया गया एक ऐतिहासिक रिफॉर्म होगा।
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अनिश्चितता के माहौल को विराम दें
जानकारों का यह भी कहना है कि फील्ड में बनाए जा रहे अनिश्चितता के माहौल को विराम देने के लिए और कार्यकाल पूरा कर चुके डीआरएम की द्विधा मन:स्थिति को समाप्त करने के लिए भी एडीआरएम की तर्ज पर वर्तमान डीआरएम का कार्यकाल 3/6 माह अथवा आवश्यक होने पर साल भर के लिए भी बढ़ाया जा सकता है। ऐसे में योग्य एवं कार्यक्षम भावी डीआरएम के चयन में एक बड़ा सुभीता होगा और निश्चिंतता तो रहेगी ही, जल्दी पोस्टिंग करने का कोई दबाव भी नहीं रहेगा। उनका यह भी सुझाव है कि इस बार यह प्रयास भी किया जाना चाहिए कि जो लोग डीआरएम पैनल में सबसे ज्यादा उम्र के हों, चयन में योग्य पाए जाने पर इस बार डीआरएम में उन्हें ही पहले काम करने का मौका दिया जाए।
नॉन-परफॉर्मर को हटाएं
उन्होंने कहा कि एक स्ट्रांग मैसेज देने के लिए मंत्री जी को कायदे से डीआरएम की पोस्टिंग में अभी वर्तमान की वैकेंसी को नहीं देखते हुए, वर्तमान में जितने भी नॉन-परफॉर्मर डीआरएम हैं और जो रास रंग में डूबे हैं, उनको उनके कार्यकाल से पूर्व ही हटा कर नए तरीके से चयनित डीआरएम को पदस्थापित कर मौका देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जीएम स्तर पर भी रेलमंत्री को यही करना चाहिए। डीआरएम और जीएम में एक एडवांस में सप्लीमेंट्री पैनल बनाकर रखना चाहिए, जिससे नॉन-परफॉर्मर को ढ़ोने की और तदर्थवाद की बाध्यता खत्म हो, तथा नए लोगों को अपनी योग्यता एवं क्षमता का प्रदर्शन करने/दिखाने का अवसर मिल सके। विगत में परफॉर्मर को दो-दो, तीन-तीन डिवीजनों में बतौर डीआरएम काम करने के लिए लगाए जाने का भी रिकॉर्ड उपलब्ध है।
दो अधिकारियों की ताजा ओपिनियन
एक एचओडी का कहना है कि “एक क्वालिफाइंग कंडीशन बनती है डिवीजन स्तर पर न्यूनतम 10 वर्ष का कार्यकाल। परंतु बहुत से ऐसे ऑफिसर हैं, जो कभी डिवीजन में ब्रांच अफसर रहे ही नहीं। उन्होंने डिवीजन में मात्र 5 साल काम किया और सीधे मंडल रेल प्रबंधक बन गए। कभी डीजल शेड में, कभी वर्कशॉप में, कभी मुख्यालय में, कभी क्रिस या किसी अन्य पीएसयू इत्यादि में, कभी दूसरे मंत्रालय की डेप्युटेशन पर, इस तरह 22 साल में जो अफसर 10 साल भी डिवीजन में नहीं रहा, उसको आप डीआरएम कैसे बना सकते हैं! फिर कोई किसी का दामाद है, कोई किसी का भतीजा है, कोई किसी का चमचा है, तो कोई किसी की बीवी, बड़े साहब की बीवी की चमची है, और इन सबके साथ भाषावाद क्षेत्रवाद और जातिवाद तो है ही। इसी तरह के पक्षपात और भेदभाव के चलते तो पूरी रेल व्यवस्था का सत्यानाश हुआ है।”
Another veteran officer said, “It’s very much true that DOB should not be sole criteria.. Competency and ability to deliver result should be criteria. However before two year, DRM used to continue even for five years but that also resulted in favouritism and discontentment among officers. Assesment of competence is subjective and any corrupt minister can play havac if fix criteria is not there.”
स्वयं सक्षम अथॉरिटी है रेल मंत्रालय
उल्लेखनीय है कि डीआरएम पैनल बनाने और इनकी पोस्टिंग के लिए रेल मंत्रालय स्वयं सक्षम अथॉरिटी है। अतः केवल कुछ नया करने के लिए ही नहीं, बल्कि एक बड़े एवं ऐतिहासिक रिफॉर्म के लिए वर्तमान डीआरएम पैनल को स्क्रैप करने की भी स्वयं सक्षम अथॉरिटी रेल मंत्रालय ही है। अतः वर्तमान डीआरएम पैनल को स्क्रैप करके 52 साला डीओबी की क्राइटेरिया को समाप्त करते हुए पूरे बैच को कंसीडर करके मेरिट पर सबसे योग्य एवं कार्यक्षम डीआरएम का चयन किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, जब ज्वाइंट सेक्रेटरी में पूरे-पूरे बैच को कंसीडर किया जाता है, तब डीआरएम में भी ऐसा ही किया जाना चाहिए! जबकि रेल प्रशासन स्वयं कहता है कि यह प्रमोशन नहीं है! मगर यह तकनीकी रूप से एक प्रमोशन ही होता है, क्योंकि तब वह एक डिवीजन का सर्वेसर्वा मालिक होता है, जोन में जीएम की तरह! सच यह है कि 52 साला क्राइटेरिया, जो कि किसी डीओपीटी या एसीसी से अप्रूव्ड नहीं है, लगाकर बड़ी चालाकी से डीओबी योग्यता वालों को लाभांवित किया जाता रहा है, जो अंततः पूरी सर्विस में केवल अपनी एसीआर आउट स्टैंडिंग रखने के लिए बिना रेल हित का कोई निर्णय लिए, बिना किसी फाइल पर साइन किए, बिना किसी रेलकर्मी का कल्याण किए, रेल की वर्तमान दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण बने हैं।
डीआरएम का कार्यकाल बढ़ाने पर विचार हो
इसके अलावा डीआरएम का कार्यकाल तीन से पांच साल किए जाने पर भी रेलमंत्री और सीआरबी को विचार करना चाहिए। यह तब और आवश्यक हो जाता है जब शीर्ष प्रबंधन सैद्धांतिक रूप यह मानता है कि अगर काम करने वाला परिणामदाई अधिकारी है, तो उसके लिए उम्र का कोई बंधन नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही वह यह भी मानता है कि अगर कोई अधिकारी कार्यक्षम है, और डीआरएम से ही रिटायर हो जाए, तब भी कोई अंतर नहीं पड़ता। तब इस क्रांतिकारी बदलाव पर अवश्य विचार किया जाना चाहिए।
इस फुल प्रूफ प्रक्रिया से चयनित 68 डीआरएम में जीएम बनने के लिए जब परफॉर्मेंस की गलाकाट प्रतिस्पर्धा होगी, और जब 16 ओपन लाइन – कुल 27 जीएम – चुनने/बनाने की बारी आएगी, तब सबसे बेस्ट कैंडीडेट्स का चयन करना अत्यंत आसान हो जाएगा। चूंकि डीआरएम का पद ही रेल प्रशासन की रीढ़ है, अतः इस रीढ़ का सुदृढ़ीकरण सुनिश्चित करके ही रेल का प्रशासनिक उन्नयन किया जा सकता है। अन्य कोई विकल्प नहीं है और अगर अभी नहीं, तो फिर कभी नहीं हो पाएगा यह महत्वपूर्ण रेल रिफॉर्म!
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