आवधिक स्थानांतरण में कुर्सियां नहीं, स्टेशन और लोकेशन बदले जाएं!

पीरियोडिकल ट्रांसफर के नाम पर स्टेशन/लोकेशन नहीं बदला जाता है, बल्कि उसी स्टेशन/कार्यालय में केवल कुर्सियां बदल दी जाती हैं, जिससे भ्रष्टाचारपूर्ण लोकल नेटवर्क पूर्ववत कायम रहता है। वर्षों से एक ही जगह पर जमे रहने के कारण बहुत से कर्मचारी रेल हित के बजाय भ्रष्ट रास्ते अख्तियार कर चुके हैं, वे रेल के लिए नहीं, बल्कि रेलवे में रहकर अपने पद का उपयोग अपने निजी हितसाधन के लिए कर रहे हैं। इस सब का नकारात्मक प्रभाव रेल व्यवस्था पर पड़ता है!

वर्षों से कतिपय कारणों, किन्हीं प्रशासनिक मजबूरियों अथवा कुछ निहित स्वार्थों या उद्देश्यों के चलते कुछ ब्रांच अफसरों और विभाग प्रमुखों द्वारा रेलवे बोर्ड की आवधिक स्थानांतरण नीति (पीरियोडिकल ट्रांसफर पॉलिसी) पर सही ढ़ंग से अमल सुनिश्चित नहीं किए जाने के कारण नीचे स्तर पर भ्रष्टाचार की इतनी गहरी काई जम गई है कि अब उसे छुड़ाने में रेल प्रशासन और संबंधित अधिकारियों को पसीने छूट रहे हैं, क्योंकि इतने लंबे समय बाद हर ऐसे कर्मचारी और अधिकारी की स्थानीय जड़ें बहुत गहरी हो चुकी हैं।

लंबी अवधि बीत जाने से वर्षों से एक ही जगह टिके कर्मचारी और अधिकारी न केवल अति सुविधा भोगी हो चुके हैं, बल्कि उनके स्थानीय राजनीतिक, माफिया संबंध काफी प्रगाढ़ हो गए हैं, जिनका उपयोग वे बदलाव करने के इच्छुक संबंधित अधिकारियों को धमकाने डराने के लिए भी कर रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण जयपुर मंडल, वाणिज्य विभाग द्वारा कुछ दबंग वाणिज्य कर्मियों की धमकी और दबाव के सामने झुकते हुए कुछ दिन पहले ही जारी किए गए उनके आवधिक स्थानांतरण आदेश दो दिन पहले बहाने से वापस ले लिए गए और इस प्रकार “रेलसमाचार” की पूर्व प्रकाशित खबर सच साबित हुई!

पढ़ें: “जयपुर मंडल: आवधिक स्थानांतरण आदेश मानने को तैयार नहीं कुछ दबंग चेकिंग स्टाफ!

वर्तमान में रेल प्रशासन द्वारा आवधिक स्थानांतरण (Periodical transfer) के संबंध में जारी नीति का अनुपालन पूर्व की अपेक्षा कुछ बेहतर कराया जा रहा है, लेकिन इस सबके बावजूद भी लगभग हर जोन में कहीं न कहीं जुगाड़-तंत्र हावी है, जिसके बारे में #RailSamachar और #Railwhispers न केवल लगातार लिखता रहा है, बल्कि जिम्मेदार रेल अधिकारियों को समय-समय पर अवगत भी कराता रहा है।

इस बार की खबर का संदर्भ उत्तर मध्य रेलवे के प्रयागराज मंडल के सबसे अव्यवस्थित वाणिज्य विभाग का है। हालांकि संतोषजनक फीडबैक यह भी है कि प्रयागराज मंडल द्वारा बोर्ड की आवधिक स्थानांतरण की नीति का अनुपालन कराने की पुरजोर कोशिश की जा रही है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार इसके तहत एक स्टेशन पर चार वर्ष या अधिक का कार्यकाल पूरा कर चुके वाणिज्य कर्मियों (टिकट बुकिंग, आरक्षण, टिकट चेकिंग, गुड्स, पार्सल इत्यादि) की पहचान और स्थानांतरण का कार्य तेजी से किया जा रहा है। लेकिन कुछ शातिर लोग इस स्क्रीनिंग से अभी भी बचे हुए हैं, या ऐसा भी हो सकता है कि मंडल प्रशासन की आंखों में धूल भी झोंक रहे हों!

बताते हैं कि इस खेल में कुछ जूनियर अधिकारी भी अपनी स्वार्थ सिद्ध के लिए अपने खास लोगों को बचाने में लगे हुए हैं। प्रयागराज मंडल के कई कर्मचारियों ने अपनी इस व्यथा को साझा किया है और यह भी बताया कि इस भेदभावपूर्ण नीति के कारण उन कर्मचारियों में भारी असंतोष और रोष व्याप्त हो रहा है जिनका स्थानांतरण पीरियोडिकल ट्रांसफर पॉलिसी के तहत किया गया है।

ऐसा लगता है कि कार्मिक विभाग भी इन शातिर लोगों की पहचान करने में सक्षम नहीं है, अथवा वह संबंधित विभागीय अधिकारियों से अलग अपनी संरक्षण नीति पर चल रहा है। प्रयागराज, कानपुर, अलीगढ़ और टूंडला जैसे प्रमुख स्टेशनों, लोकेशनों पर ज्यादा शिकायतें मिल रही हैं कि यहां पर कुछ ऐसे रेल कर्मचारी हैं जो रेल में प्रारंभिक पोस्टिंग से लेकर प्रत्येक पदोन्नति तक जुगाड़-तंत्र से एक ही स्टेशन पर बीसों साल से काबिज हैं।

कर्मचारियों का कहना है कि पीरियोडिकल ट्रांसफर के नाम पर स्टेशन/लोकेशन नहीं बदला जाता है, बल्कि उसी स्टेशन पर केवल कुर्सियां बदल दी जाती हैं, जिससे उनका भ्रष्टाचारपूर्ण लोकल नेटवर्क पूर्ववत कायम रहता है। उनका कहना है कि वर्षों से एक ही जगह पर जमे रहने के कारण बहुत से कर्मचारी रेल हित के बजाय भ्रष्ट रास्ते अख्तियार कर चुके हैं, वे रेल के लिए नहीं, बल्कि रेलवे में अपने पद के रुतबे का उपयोग अपने निजी हित साधन के लिए कर रहे हैं। इस सब का नकारात्मक प्रभाव रेल व्यवस्था पर पड़ता है।

ऐसे बहुत से कर्मचारियों के नाम प्राप्त हुए हैं, जो एक ही जगह पर कई वर्षों से कार्य कर रहे हैं। हालांकि इन सभी कर्मचारियों का नाम उजागर करना उचित नहीं होगा। परंतु इतना स्पष्ट कर देना पर्याप्त है कि इस सूची में टूंडला, कानपुर, अलीगढ़ और प्रयागराज स्टेशन प्रमुख रूप से शामिल हैं।

एक ही जगह पर बीसों साल से कार्य करने का क्या दुष्परिणाम होता है, इसका सबसे सटीक उदाहरण टूंडला स्टेशन पर कार्यरत एक बुकिंग सुपरवाइजर है, जो पिछले 16 वर्षों से अब तक टूंडला स्टेशन पर ही कार्यरत है। सभी पदोन्नतियां भी उसे इसी स्टेशन पर दी गई हैं। अब एक अधिकारी ने उसे अपना बगलबच्चा बनाया हुआ है, जिसके बल पर वह पूरी दबंगई से हर वह काम करता है जो यह अधिकारी चाहता है, केवल अपना काम छोड़कर! सवाल यह है कि पीरियोडीकल ट्रांसफर लिस्ट में ऐसे लोगों का नाम आने से आखिर कौन रोकता है?

ऐसी अनेकों शिकायतें मिली हैं, जिनमें शिकायत करते हुए यह कहा गया है कि उक्त बुकिंग सुपरवाइजर, मंडल यातायात प्रबंधक के नाम पर खुलेआम दबंगई और अवैध वसूली करता है! केवल टूंडला ही नहीं, प्रयागराज मंडल में कानपुर और प्रयागराज जैसे अन्य बड़े स्टेशन भी हैं, जहां चार साल से ज्यादा होने पर भी कुछ घाघ कर्मचारियों के नाम पीरियोडिकल लिस्ट में शामिल नहीं हुए हैं।

यह सही है कि जीएम/उ.म.रे. प्रमोद कुमार ने ओवरचार्जिंग की शिकायतों की स्वयं जांच करने और अनुभव लेने के लिए डिकॉय चेक किया, और स्वयं ठगे जाने पर शिकायतों को सही पाया। इसके बाद स्टाल को सील करके उनके आदेश पर मंडल प्रशासन ने पांच संबंधित कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है। परंतु इससे क्या होगा? कुछ दिन बाद सारा मामला रफा-दफा कर दिया जाएगा। लगे हाथ क्यों नहीं उन्हें अन्यत्र ट्रांसफर किया जाना चाहिए? क्योंकि ओवरचार्जिंग और इनकी लापरवाही के बीच गहरा संबंध है!

उम्मीद की जाती है कि जीएम/उ.म.रे. और डीआरएम/प्रयागराज मंडल उपरोक्त तमाम जोड़तोड़ और अनियमितताओं पर गहराई से विशेष ध्यान देते हुए तथा रेलमंत्री के जीरो टॉलरेंस के परिप्रेक्ष्य में बिना दबाव आवधिक स्थानांतरण नीति का शत-प्रतिशत अनुपालन सुनिश्चित कराएंगे!

प्रयागराज मंडल के परिचालन, कार्मिक, यांत्रिक, इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल, सिग्नल एंड टेलीकम्युनिकेशन विभाग तथा आरपीएफ में पीरियोडिकल ट्रांसफर पॉलिसी में अनियमितता की शिकायतें कुछ कम हैं, लेकिन इसकी छानबीन और पुख्ता ढ़ंग से की जा रही है। क्रमशः

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

#Periodical #Transfer #NCR #IndianRailways