रेलमंत्री से न्यूनतम अपेक्षा: नियम से सिस्टम चलाएं!

रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव क्या इस स्याह-काली रात में योग्य और निष्ठावान अधिकारियों की अपेक्षित उम्मीद का एक छोटा सा दीपक जलाने का प्रयास करेंगे?

#Railwhispers ने 25 सितंबर को लिखा था:

Please Read: “The decision ideally rests on the kind of questions!

यही कारण है कि रेल इंजीनियर्स की जिस योग्य टीम ने वंदेभारत ट्रेन का विश्व के ट्रेनसेट बाजार में सबसे कम कीमत वाले ट्रेनसेट का सफल निर्माण किया, सरकार, मंत्री, प्रधानमंत्री ने हर मंच से विश्व भर में खूब बढ़-चढ़कर इसका श्रेय लिया, उस टीम को बुरी तरह अपमानित किया गया, उस पूरी टीम के विरुद्ध न केवल निरर्थक, आधारहीन विजिलेंस केस बनाए गए, बल्कि उसका पूरा सर्विस कैरियर भी चौपट किया गया। इस कृत्य के जरिए एक बार फिर यह प्रमाणित किया गया कि यहां वास्तव में योग्यता, क्षमता, निष्ठा, समर्पण इत्यादि योग्यताओं का कोई मूल्य नहीं है!

रेल मंत्रालय के नए नेतृत्व यानि नए रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने जब वंदेभारत ट्रेनों के ‘इन-हाउस’ निर्माण की घोषणा की, तो उनके इस निर्णय का देश भर में जोरदार स्वागत हुआ। ऐसा लगा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के साथ पीएमओ में काम कर चुके इस ऑलराउंडर पूर्व आईएएस अधिकारी में निर्णय लेने की क्षमता है, इसलिए भी उनका पूरा सम्मान और समर्थन हुआ।

परंतु जब उन्होंने एक चुके हुए – पूर्वाग्रही – पूर्व रेल अधिकारी को अपना ‘सलाहकार’ बनाया, और फिर मैनडेट को दरकिनार कर उसे ‘छाया रेलमंत्री’ के तौर पर सारी छूट दे दी, तब इनका भी अपना ‘एजेंडा’ सामने आ गया, जिसके परिणामस्वरूप आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर 75 वंदेभारत ट्रेनें दौड़ाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना साकार नहीं हो पाया!

प्रधानमंत्री का यह सपना अवश्य साकार हो सकता था, अगर उसी टीम को यह काम सौंप दिया गया होता, परंतु रेलमंत्री की कोटरी में शामिल खान मार्केट गैंग के सलाहकारों ने ऐसा नहीं होने दिया, क्योंकि इस गैंग के अपने एजेंडे हैं। पहले इस पूरे प्रोजेक्ट को अंतरराष्ट्रीय ट्रेनसेट बाजार लॉबी, जिसे इतना सस्ता और सफल ट्रेनसेट बाजार में आ जाने से अपनी जमीन खिसकती नजर आ रही थी, ने इस पूरे प्रोजेक्ट को डिरेल करवाकर आयात करने की तैयारी करवाई। इसके सिरे नहीं चढ़ने पर व्यवस्था बदली गई, और ‘इन-हाउस’ प्रोडक्शन की नई घोषणा से हताश-निराश व्यवस्था में नई जान फूंकने का प्रयास हुआ, परंतु किसे पता था कि व्यवस्था पर हावी लेफ्ट लिबरल वामपंथी ईको-सिस्टम इसे भी परवान नहीं चढ़ने देगा! परिणाम सबके सामने है!

इससे तब पता चला कि “लंका में सब बावन हाथ हैं, और सबके अपने-अपने एजेंडे भी हैं! सरकार या मंत्री का एक गलत निर्णय देश की प्रगति और व्यवस्था की उन्नति का कितना बड़ा ह्रास करता है, औ***र औ***र उनकी नीति एवं नीयत को भी उजागर कर देता है!” यह उक्त पूर्व अधिकारी की बतौर सलाहकार नियुक्ति से सामने आ गया।

अब ये देखें कि इस टीम की प्रताड़ना आज भी जारी है। जिस टीम को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जाना चाहिए था, बल्कि पद्मभूषण जैसे राष्ट्रीय सम्मान दिए जाने चाहिए थे, उसे पूरी अकृतज्ञता से बुरी तरह प्रताड़ित, हतोत्साहित करके साइड लाइन कर दिया गया। कम से कम हमारे देश के, हमारी व्यवस्था के, यह संस्कार तो नहीं ही हैं।

यहां नीचे दिए जा रहे इसके कुछ उदाहरणों पर गौर फरमाएं:

– ट्रेनसेट विभाग, जो आरडीएसओ में मैकेनिकल के पास था, उसे बंद कर दिया गया, जब वी. के. यादव, जो बिजली विभाग के अफसर थे सीआरबी बने। यह काम बिजली के पीएस एंड ईएमयू विभाग को दिया गया, जहां सलाहकार साहब की पसंद के दो अधिकारी लगा दिए गए खुला फेवर करते हुए!

– ट्रेन-18 के कर्णधार रहे एक वरिष्ठ अधिकारी को अपमानित कर आज तक न केवल उनका प्रमोशन रोका गया, बल्कि उन्हें लगातार प्रताड़ित किया जाता रहा है, जबकि यह सर्वज्ञात है कि श्री वैष्णव मेरिट के आधार पर उनकी मदद करना चाहते थे। यह दिल्ली के लेफ्ट लिबरल वामपंथी ‘खान मार्केट गैंग’ की सिस्टम पर पकड़ है!

– मैकेनिकल डायरेक्टरेट, रेलवे बोर्ड से विनय श्रीवास्तव को ट्रांसफर कर दिया गया, जबकि विद्युत विभाग के दो अधिकारियों को वहीं का वहीं पदोन्नत कर दिया गया!

– आईआरपीएस की पोस्ट पर एक बिजली अधिकारी – नवीन कुमार – को बैठा दिया, जिसके कारण आईआरएमएस का इम्प्लीमेंटेशन पूरा फंस गया। रोचक बात यह कि इमोशनल इंटेलिजेंस टेस्ट में उन्होंने अपना नाम भी डलवा दिया!

– गौरतलब है कि एडवाइजर साहब भी बिजली के ही अधिकारी रहे हैं, रेल के इस्टैब्लिश्मेंट अफसर, जो एचआर (आईआरपीएस) की पोस्ट है, उस पर भी बिजली के अफसर हैं, और रेलमंत्री जी के ईडी/पीजी भी बिजली के ही अधिकारी हैं!

जब वरिष्ठतम अधिकारी अपमानित महसूस करते हैं और उन्हें भविष्य में केवल अनिश्चितता दिखाई देती है, वे क्या करेंगे? जिस तरह से बड़े से बड़े टेंडर एडवाइजर साहब ने ‘एडहॉक बोर्ड’ से करवा दिए, तो याद रखना होगा श्रीमती सौम्या राघवन के बारे में, जिनके ऊपर बुढ़ापे में सीबीआई केस बन गया है – उनके बारे में कोई ये नहीं कह सकता था कि वे बेईमान हैं!

फाइलें जब बोलेंगी, तब लोगों की उन पर चुप्पी उनके खिलाफ गवाही देगी। ये रेल के लिए या किसी भी व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है – अतः नियम से चलें, सिस्टम को मजबूत करें, ये कृतित्व में लाएं कि सिस्टम व्यक्ति से बड़ा है। डगमगाती रेल करोड़ों लोगों को प्रभावित करती है – अगर परिवार के सदस्यों की गिनती की जाए, तो पेंशनधारी और नौकरी करने वाले ही रेल में एक करोड़ से ऊपर हैं।

क्या रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव जी इस स्याह-काली रात (व्यवस्था) में योग्य और निष्ठावान अधिकारियों की न्यूनतम अपेक्षित उम्मीद का एक छोटा सा दीपक जलाने का प्रयास करेंगे? यह मांग और अपेक्षा केवल नियम से सिस्टम चलाने की है! अगर समझ नहीं है, तो जानकारों की मदद लें, भले ही इसके लिए वर्तमान सलाहकारों को दरकिनार करना पड़े, मगर किसी भी स्थिति में रेल सिस्टम को डिरेल होने से बचाएं! साढ़े बारह लाख रेलकर्मियों और करोड़ों रेलयात्रियों की आपसे बस इतनी सी अपेक्षा है! क्रमशः जारी…

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