रेलमंत्री जी! जनसामान्य के फीडबैक से अपने निर्णयों को परिष्कृत करने से न घबराएं!
महोदय, शीशा बहुत कमजोर होता है, मगर सच दर्शाने से नहीं घबराता!
आदरणीय रेलमंत्री जी,
सादर नमस्कार !
महोदय, जब आपके कार्यालय को बताने के बाद भी ऐसी गतिविधियां चलती रहीं, जो आपको माननीय प्रधानमंत्री जी के अमृतकाल के मार्ग से दूर ले जा रही हैं, तब हमें यह तो समझ में आ गया कि आपके पास सही फीडबैक नहीं पहुंच रहा है। जबकि आपके पास फीडबैक पहुंचते ही आपने तीन बड़े और महत्वपूर्ण फैसले लिए, जिनके लिए पूरे सिस्टम ने आपको साघुवाद दिया।
प्रधानमंत्री जी का यह मानना कि हम अपनी दिशा को फीडबैक से निर्धारित करते हुए बदलने से नहीं घबराएंगे, उनकी अनुकरणीय राजनीतिक समझ बताती है कि कैसे एक नेता जनसामान्य से आते फीडबैक से अपने निर्णयों को परिष्कृत करने से नहीं घबराता। आप इस महत्त्वपूर्ण सीख को कैसे नजरंदाज कर रहे हैं? आपको कौन मंत्र फूंक दिया है? यह समझने की आवश्यकता है!
एक अधिकारी रेल से रिटायरमेंट के तीन साल बाद एनएचआरसीएल के सीएमडी चुनकर लाए गए इसी सरकार द्वारा और आईआरएफसी के सीएमडी अमिताभ बनर्जी भी इसी सरकार का चुनाव थे। जैसे ही इनके बारे में नकारात्मक फीडबैक बाहरी एजेंसियों ने दिया, इन्हें तुरंत ही अपने चार्ज से अलग कर दिया गया। यदि पीयूष गोयल इसी तेजी से फीडबैक पर काम करते तो वो रेलमंत्री भी रहते और अपने समय बनाई गई वन्देभारत का पूरा श्रेय भी उठाते।
आपके कार्यालय के उच्च अधिकारियों को समय समय पर हम फीडबैक देते रहे हैं। आरडीएसओ के सीवीओ को बिना वैकेंसी एडवरटाइजमेंट के बदलना ये जाहिर कर देता है कि #Railwhispers के फीडबैक में तथ्य थे और यह कार्यवाही भी जल्दबाजी में हुई है। एक साल से लटकी हुई 20 डीआरएम की पोस्टिंग आनन-फानन में होना ये बताता है कि आपने इस सच्चाई को देखा कि वाकई स्थिति SOS वाली है जब सर्दियां बमुश्किल दो हफ्ते दूर हैं। हां, बिजली वाले इंजन के टेंडर को दो महीने आगे खिसकाना भले कोई कितना कुछ कहे, ये सच है इसमें सब चीजें ठीक नहीं थीं, जैसा हमें सूचित किया गया।
आपके द्वारा कॉफमॉओ को बंद करना बदलते परिपेक्षय में समझदारीपूर्ण बोल्ड निर्णय है, यह भी सही है।
कॉफमॉओ के साथ सबसे बड़ी समस्या ये थी कि यह दिल्ली के चुनिंदा अधिकारियों को एडजस्ट करने का स्थान मात्र था – बोलें तो खान मार्केटियों के दिल्ली में आन-बान-शान से रहने की पूरी व्यवस्था के साथ हर सुविधा से संपन्न। काम हो, न हो, इसका कोई अर्थ नहीं था – मशीनें चाहे काम की हों या नहीं हों, उनकी खरीद सबको संतुष्ट रखने का एक बढ़िया अरेंजमेंट था, जिसमें सब खुश थे। एक परजीवी संगठन बंद हुआ – साधुवाद।
अब केमटेक/ग्वालियर और कोर/प्रयागराज तथा सभी जोनल कंस्ट्रक्शन ऑर्गनाइजेशंस पर भी एक नजर डालें!
अब आपको कुछ अत्यंत महत्त्वपूर्ण सुझाव देना चाहूंगा। अब मैं आपसे अमृतकाल की नहीं, एकदम निकट भविष्य की बात करता हूं!
अब से 2024 आम चुनावों के बीच में दो सर्दियों के मौसम हैं। कृपया देर किए बिना मेंबर इंफ्रास्ट्रक्चर की पोस्ट जल्दी से जल्दी भरें और वह भी एक सिविल इंजीनियर को उस पर बैठाकर। वरीयता का ध्यान अवश्य रखें, क्योंकि आईआरएमएस कहने मात्र से काम करने के तरीके नहीं बदल सकते। यह बहुत बड़ी गलती हो रही है। रेल व्यवस्था में वरिष्ठ अधिकारी को स्वतः सम्मान मिल जाता है और सैन्य बलों की तरह उनकी बात टीम आसानी से मान लेती है।
साथ ही, वरीयता आधार रखते हुए पुनर्गठित बोर्ड द्वारा स्लीपर्स की खरीद की पॉलिसी और बड़े टेंडर्स पर तुरंत विचार करें, नहीं तो 2024 तक रेल को बहुत कठिन परिस्थिति में पाएंगे – संरक्षा (सेफ्टी), अनियमितताएं, अनियंत्रित खर्चों के झंझावत में रेल उलझ जाएगी।
जिन अधिकारियों ने आईआरएफएस, एनएचआरसीएल, सीवीओ/आरडीएसओ के केस प्रॉसेस किए उनकी जांच करा लें – आपको बहुत कुछ पता चलेगा। देश को बड़ी कठिनाई से और लंबी प्रतीक्षा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में एक सक्षम नेतृत्व मिला है, अब अगर आप खान मार्केटियों की सुनेंगे, तो 2024 के लिए ये आपको बहुत बड़ा सरदर्द दे देंगे।
ये सर्दियों के दो मौसम हैं आपके सामने – सम्भलेंगे, तो ही सम्भाल पाएंगे – उसके लिए बाहरी एजेंसी से अपने आस-पास के सभी लोगों की स्क्रीनिंग करवाकर एक सकारात्मक संदेश दें। यह न भूलें कि विजिलेंस की पोस्टों के साथ भी पूर्व में कैसी छेड़छाड़ हो चुकी है। जिस श्रेणी की आपको सलाह मिली है, उसे तो आप देख ही चुके हैं।
आप जानते हैं कि हर निर्णय के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू होते हैं – एक्सल काउंटर स्टोर्स अथवा वर्क्स टेंडर से लेने के अपने फायदे और नुकसान हैं – सवाल यह है कि क्या आपके सामने दोनों पहलू निस्पृह-निष्पक्ष होकर रखे गए? हमारा आग्रह केवल इतना ही है कि खरीद जिस भी माध्यम से हो, रेट तुलनात्मक रूप से दोनों माध्यमों में और सभी जोनल रेलों में समान होने चाहिए। खान मार्केट गैंग के सदस्य स्टॉक ब्रोकर की तरह खेल रहे हैं। श्रेष्ठ श्रेष्ठी होने के नाते आप यह तो बहुत अच्छी तरह जानते ही होंगे कि मार्केट चाहे उठे या गिरे, ब्रोकर का नुकसान नहीं होता। ये खान मार्केटिए आपके स्पष्ट सरल हृदय से दिए गए निर्णयों पर भी खेल रहे हैं।
सुनीत शर्मा एक भले अधिकारी रहे हैं, उन्हें मुंबई में देखने का मौका मिला, उनका वीडियो सिग्नल के ही एक कांट्रेक्टर के साथ वायरल हुआ था – पता चला कि किसी ने उन जैसे व्यक्ति को भी घेर लिया, जो जीवन में हमेशा बहुत सावधान रहा। हमारी एक्सल काउंटर की सीरीज भी इसी डोमेन से है। यह सब भी आपके कार्यालय को पर्याप्त समय रहते बताया गया कि आपके कार्यालय का नाम लेकर निर्णयों को बदलने का प्रयास चल रहा है।
जब ये सारे तथ्य सामने आ गए हैं, तो क्या आपको ये जांच करना आवश्यक नहीं लग रहा कि आपके पास आने वाला फीडबैक निस्पृह-निष्पक्ष नहीं है?
आज का ट्वीट इस ओर इंगित करता है कि आपके कार्यालय को करप्टेड इंफर्मेशन देने का प्रयास हुआ है। जब हमारे द्वारा दिए गए तथ्यों को आपने सही पाकर उन्हें ठीक करने का निर्णय लिया, तो कृपया अपने नीचे पोषित हो रहे खान मार्केट गैंग को अलग करके बोर्ड का पुनर्गठन तुरंत करवाएं, अन्यथा कीमत राजनीतिक ही चुकेगी! इस खान मार्केट गैंग का कुछ नहीं होगा!
महोदय, जब तक सुधीर कुमार जीएम के लिए ओवरलुक हुए और फिर एमटीआरएस के पद के लिए भी, वे इलेक्ट्रिकल-मैकेनिकल की लड़ाई में अग्रणी खिलाड़ी थे और आज आईआरएमएस की बात करने लगे। आज जिन मुद्दों पर रेल जूझ रही है उनके मूल में इनका 15-20 साल का रेलवे बोर्ड में निकला समय बहुत बड़ा कारक रहा है। लेकिन सीएमडी/एनएचआरसीएल की तरह इन्हें रिटायरमेंट के बाद लाना और इतने खुलासों के बाद भी कंटिन्यू करना, परेशान करने वाले विचारों को जगा रहा है।
आप अपने कार्यालय में जांच करवाएं कि क्या हमने सूचना नहीं दी आपको? कैसे अग्निहोत्री, बनर्जी, विपिन कुमार इतना आगे पहुंच गए? बहुत पीड़ा हो रही है यह देखकर कि इस सरकार की किरकिरी हुई तो वह भी रेल मंत्रालय के कारण! अधिक पीड़ा यह सोचकर भी हो रही है कि अभी आगे और कितनी पीड़ाओं का सामना करना होगा! क्रमशः जारी…
धन्यवाद
सादर जय श्रीकृष्ण
सुरेश त्रिपाठी, संपादक
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