रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले DG/RDSO की चिट्ठी का निहितार्थ और औचित्य क्या है-विचार करें मंत्री जी!
यह कैसा ट्रांसफॉर्मेशन है-जो रेल में गहरे तक व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़े पालिसी रिफार्म को कमजोर करने की मुहिम का नेतृत्व करने जा रहा है मंत्री जी?
#Railwhispers ने बार-बार लिखा है कि मंत्री-सीआरबी बदलते रहते हैं, लेकिन खान मार्केट गैंग (#KMG) और ऑल इंडिया डेलही सर्विस (#AIDS) वाले रेल को अपने मजबूत पाश से बांधे हुए हैं। किस मंत्री को कौन सा ‘झुनझुना’ चाहिए – मंत्री जी क्षमा करें, ये शब्द आपके ही मंत्रालय के वरिष्ठ स्तर से मिला है – बस इसका पता लगते ही वह उन्हें पकड़ा दिया जाता है।
सीआरबी के सेवानिवृत्त होते ही कई ट्रांसफर आदेश पलट दिए गए, यहां तक कि कई सालों से चली आ रही परिपाटी – कि रेल भवन छोटा किया जाएगा – बदल दी गई!
“#KMG_2.0: और कितने जेना बनाएगा रेलवे बोर्ड?”
“#KMG_2.0: रोटेशन के बजाय रेलवे में दिया जा रहा भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ को संरक्षण!”
रोटेशन के अभाव में, कुछ खास अधिकारियों का एक समूह दशकों से महत्वपूर्ण स्थानों/पदों पर जमा हुआ है। रेल के विजिलेंस की अराजकता पर तो रेलमंत्री को सार्वजनिक रूप से टिप्पणी देनी ही पड़ी। एक बार पुनः यहां उद्धृत तत्संबंधी आलेख का अवलोकन करें-
“रेलमंत्री का विजिलेंस विभाग पर बयान: रेलवे/सरकार की पालिसी कैसे समझ सकते हैं अनुभवहीन अधिकारी!”
#Railwhispers ने इस मुद्दे को बार-बार उठाया कि नीतिगत सुधार #KMG कभी नहीं होने देगा। यही कारण रहा कि पूरी रेल व्यवस्था अक्षम (#incompetent) लोगों के पैरों से रौंदी जा रही है! देखें-
“Competence Poverty of #KMG – Machinations Exposed!”
“Competence Poverty of #KMG – Machinations Exposed! Part-II”
#Railwhispers ने बताया कि कैसे विजिलेंस और रेल में इंस्पेक्शन के पद भ्रष्टाचार के सबसे बड़े अड्डे बने हुए हैं। पूर्व पैराशूटर सीआरबी वी. के. यादव – जो स्वयं कभी बतौर इंजीनियर काम नहीं किए मगर घोर जातिवादी रहे – ने विक्रम यादव को #CLW दिल्ली में और वीरेंद्र यादव को #RDSO में ED/QA/Mech बना दिया। वहीं ED/QA/S&T लखनऊ और कोलकाता के चर्चे खूब हुए। #CLW के कोलकाता, मुंबई की कहानियां भी बहुत हैं – इन दोनों इंस्पेक्शन सेल की विशेष रिपोर्ट अलग से शीघ्र ही आएगी – इसीलिए कोई हैरानी नहीं कि वी. के. यादव का विशेष ध्यान ख़ासकर इंस्पेक्शन पोस्ट लेने वालों पर ही रहा। वहीं, #RKRai ने भी इंस्पेक्शन में बतौर ED/Vigilance/Electrical और PCEE/BLW में रहते हुए भ्रष्टाचार के तालाब में खूब डुबकियां लगाईं। यहां तक कि उन्होंने #BLW में एक आपराधिक नेक्सस को भी खूब पाला-पोसा और संरक्षण दिया।
रेलवे मटीरियल एवं प्रोडक्ट्स के इंस्पेक्शन या तो रेल की प्रोडक्शन यूनिट्स स्वयं करती हैं, या फिर यह इंस्पेक्शन रेल इंडिया टेक्निकल एंड इंजीनियरिंग सर्विसेज लिमिटेड (#RITES) से कराए जाते रहे हैं। बताया जाता है कि #RITES को इससे सालाना टेबल के ऊपर लगभग ₹900 करोड़ से अधिक की आमदनी थी। इसके अलावा कम से कम इतनी और कमाई टेबल के नीचे की मानी गई। अधिकारी-वेंडर-नेक्सस के लिए यह व्यवस्था बहुत सुलभ और अनुकूल रही!
इस ‘सुलभ व्यवस्था’ में बस एक ही समस्या अथवा शिकायत हमेशा से रही है-सामान (मटीरियल) ठीक से अर्थात् मानक के अनुरूप नहीं आता और नए वेंडर बड़ी समस्याएं देखते हैं। यहां तक कि, जानकार बताते हैं, पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल बराबर यह कहते थे कि “लिफ्ट की ऐसी स्पेसिफिकेशन बनाई गई है कि इसमें केवल वही कंपनियां क्वालीफाई करती हैं जिनको रेल के बाहर कोई नहीं जानता।” यही कारण है कि बड़े उद्योग जिनका सामान आप स्वयं अपने घर के लिए लेते हैं वह आप रेल के लिए नहीं खरीद सकते। रेल में आने वाले पेंट की कहानी भी कुछ ऐसी ही है – #RCF-#ICF-#MCF में पेंट की गुणवत्ता और सप्लाई में भारी गड़बड़ी और बड़े पैमाने पर कार्टेलिंग है, इसकी भी डीटेल रिपोर्ट शीघ्र ही प्रकाश में आएगी। जब पूरी सप्लाई गड़बड़ आती है, तब आप कितना रिजेक्ट करेंगे, आपको आउटपुट भी तो देना है! और फिर कार्टेल का भी तो सामना करना होता है, जिसे वरिष्ठ अधिकारियों, यहां तक कि #SDGM का भी सपोर्ट मिला हुआ होता है!
इंस्पेक्शन में व्याप्त भयानक भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी और बंदरबांट के इस मकड़जाल में न तो नए और अच्छे वेंडर आ पाते हैं, और न ही मानक के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण मटीरियल या अन्य उत्पादों की आपूर्ति सुनिश्चित हो पाती है। इन सबको ध्यान में रखकर एक बहुत बड़े पालिसी रिफार्म के तहत यह निर्णय लिया गया कि “थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन (#TPI) कराया जाए। इसमें ऐसी एजेंसियों को लाया जाए, जो निजी क्षेत्र में इंस्पेक्शन की गुणवत्तापूर्ण सेवाएं देती हैं।” हालांकि इस पर #Railwhsipers का मानना था कि यह रेल के नेतृत्व की कमजोरी दर्शाता है कि वह इंस्पेक्शन के मजबूत नेक्सस को इतने मजबूत मंत्री के बावजूद भी नहीं तोड़ पाया। तत्संबंधी लेख का यहां एक बार पुनः अवलोकन करें-
“Third Party Inspection: जब तैराक तैरना भूल जाए, तो उसे क्या कहेंगे?”
पश्चिम रेलवे ने एक टेंडर करके इसमें इंस्पेक्शन के लिए विश्व की सर्वश्रेष्ठ इंस्पेक्शन फर्मों को चुना, इससे इंस्पेक्शन पर भारतीय रेल का व्यय 100 करोड़ से भी कहीं अधिक कम हो जाएगा और वेंडरों को टेबल के नीचे देने अथवा ओपन ड्राअर में डालने की व्यवस्था से निजात मिल जाएगी।
रेल प्रशासन का डर !
कई लोग यह कह रहे हैं कि इस प्रक्रिया से मटीरियल की आपूर्ति की दर बहुत कम हो जाएगी। कुछ हद तक उनकी यह बात सही हो सकती है, लेकिन यह भी सही है कि यह एक बार का कष्ट है। सरकार यदि #GST जैसी इच्छाशक्ति दिखा दे, तो 5-6 महीने में ही सब ठीक हो जाएगा। इससे होगा यह कि #RDSO के इंस्पेक्शन ऑफिस अर्थात् ‘उगाही सेल’ बंद हो जाएंगे। वहीं इस पैनल में #RITES भी है और प्रतिस्पर्धा के चलते, उसने पहले की बनिस्बत अपने इंस्पेक्शन चार्जेज घटाकर बहुत कम (0.16%) कर दिए हैं।
जानकारों का कहना है कि “रेल की सबसे बड़ी समस्या यह है कि स्पेसिफिकेशन ठीक नहीं हैं, या फिर उनमें कुछ ऐसा लिख या लिखवा दिया गया है जिसका पालन नहीं हो सकता – ताकि नए वेंडर न आ सकें – टेस्ट करने का मानक तरीका उपलब्ध नहीं है। यदि रेलवे बोर्ड यह स्पष्ट कर दे कि इस योजना को सफल करने में कोई कोतोही न हो, अभी तुरंत सारे कागज ठीक हो जाएंगे।” उनका यह भी कहना है कि यह बात भी सर्वज्ञात है कि यह स्पेसिफिकेशन किसी न किसी वेंडर के बताए अनुसार अथवा उसकी सहायता लेकर बनाए जाते हैं, ऐसे में वह वेंडर उनमें कुछ ऐसा डलवा देता है जिसका लाभ उसे हमेशा मिलता रहता है।
जानकार कहते हैं कि रेल के नीचे लगने वाले एलास्टोमेरिक पैड, रेल की थर्मिट वेल्डिंग का मिक्स कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं। यह कुतर्क देकर एक विमर्श (नैरेटिव) खड़ा करने का भी प्रयास किया जा रहा है कि “थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन एजेंसी के पास रेल का अनुभव नहीं है इसलिए वह यह काम नहीं कर सकती हैं!” जानकार इसे नितांत गलत बताते हैं। इस बात की पुष्टि रिटायर्ड एवं कार्यरत कई वरिष्ठ अधिकारी तथा पीएचओडी, जीएम एवं मेंबर्स ने भी की है। उनका कहना है कि “यह समझ डिजाइन की स्टेज में होनी चाहिए, यदि ड्राइंग साफ हैं, उनमें सारे डिटेल स्पष्ट हैं, अंतरराष्ट्रीय मानकों पर बनी हैं, तो इनका थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन कतई मुश्किल नहीं है। इस प्रक्रिया में थोड़ा समय अवश्य लग सकता है, लेकिन यह असंभव बिल्कुल नहीं है। जिस उत्पादन इकाई (#PU) के पास आइटम कंट्रोल है, उसे इसकी जिम्मेदारी (#Responsibility) सौंपी जाए और वरिष्ठतम स्तर पर इसकी मॉनिटरिंग हो तथा उत्तरदायित्व (#Accountability) भी तय हो!”
#CRB तो रिटायर कर गए !
DG/RDSO ने 12 अप्रैल 2023 को AM/RS/RlyBd डॉ अतुल गुप्ता को एक चिट्ठी लिखी है कि सेफ्टी आइटम और वैगन का इंस्पेक्शन रेलवे अपने पास रखे। यह बहुत निंदनीय है और यह चिट्ठी उनकी मंशा पर गंभीर प्रश्न उठाती है।
रेल के जानकार और अनुभवी इंजीनियर बताते हैं कि “अगर रेगुलर रोटेशन होता, प्रोफेशनल तरीके से काम होता और इंस्पेक्शन की योग्य टीम चुनी जाती, तो इस दिन की नौबत ही नहीं आती। लेकिन जब भ्रष्टाचार का ईंधन लगातार आ रहा है, इंस्पेक्शन में चौतरफा सड़ांध पैदा हो गई है, तब इस थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन के अलावा रेल प्रशासन के पास अन्य कोई विकल्प भी नहीं है, लेकिन इसे जीएसटी की तरह ही पूरी इच्छाशक्ति के साथ लागू किया जाना चाहिए।” उनका यह भी कहना है कि हालांकि सरकार की मंशा सही है तभी तो थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन का विचार मूर्त रूप लेने जा रहा है, तथापि सरकार के इस सद्विचार को पलीता लगाने की कुचेष्टा कर रहे अधिकारियों को समय रहते मुर्गा बनाने पर भी सरकार को कड़ाई से विचार करना चाहिए।
जानकारों ने इस चिट्ठी को लेकर यह भी आशंका जताई है कि इसे लिखने के लिए भी इंडस्ट्री द्वारा ठीक उसी तरह मजबूत पैकेज ‘ऑफर’ किया गया होगा जैसा ‘अंतरिम अप्रूव्ड कैटेगरी’ बनाने के लिए (एक-एक करोड़ – GM/CLW-MMM-ML) किया गया था? या फिर रिटायरमेंट के बाद इंडस्ट्री द्वारा मजबूत पैकेज वाला जॉब ऑफर किया गया होगा? इसके अलावा उन्होंने डीजी/आरडीएसओ द्वारा अपने रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले यह चिट्ठी लिखे जाने के औचित्य पर भी सवाल उठाया है। उनका कहना है कि अगर यह चिट्ठी स्वतःस्फूर्त अथवा रेल हित में लिखी गई होती, तो इसे उसी समय लिखा जाना चाहिए था जब इस विषय पर रेलवे बोर्ड ने लिखित दिशानिर्देश जारी किए थे!
सुविज्ञ जानकारों ने उम्मीद जताई है कि माननीय चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड अनिल कुमार लाहोटी और रेलवे बोर्ड के अन्य गणमान्य सदस्य इतने बड़े पालिसी रिफार्म और भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाए गए एक बड़े कदम को पीछे नहीं हटने देंगे!
उल्लेखनीय है कि रेल में रोटेशन माननीय बोर्ड मेंबर्स और सीआरबी के गंभीर प्रयासों के बावजूद नहीं हो पा रहा। खासतौर पर प्रोडक्शन यूनिट्स में रोटेशन अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यहीं के यहीं पदोन्नत हुए लोग दीमक की तरह लंबे समय से रेल को चाट रहे हैं। ज्ञातव्य है कि रेल की यह 9-10 उत्पादन इकाईयां सालाना लगभग 50 हजार करोड़ से अधिक का मटीरियल खरीदती हैं, रेगुलर रोटेशन न होने से इन उत्पादन इकाईयों में एक बहुत बड़ा आपराधिक नेक्सस पैदा हो गया है।
सनद रहे, प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र – बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (#BLW) – में यह गहन अपराधिक तंत्र इसी भ्रष्ट तंत्र के ऊपर चल रहा है। #Railwhispers ने बार-बार बताया कि कैसे 15 साल के टेन्योर के बाद भी अधिकारी यहीं प्रमोट होते हैं और उनके नाम पर शॉप में खुले आम आपराधिक प्रवृत्ति के लोग धमकी देते हैं, और इनका स्थान बनाने के लिए मात्र सवा दो साल रहे एक अधिकारी का अन्यत्र ट्रांसफर कर दिया जाता है। #CLW, #PLW, #ICF, #RCF का भी हाल इससे अलग नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में आपराधिक गतिविधियों को मिला संरक्षण बताता है कि रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड के सदस्य #RKRai जैसे शातिर खिलाड़ियों के सामने कितने बेबस हैं!
#RKRai द्वारा पालित-पोषित रवि प्रकाश भारती (#RPBharti) का मामला #Railwhispers ने यहां ब्रेक किया, देखें-
“अधिकारी-वेंडर-नेक्सस का नया स्वरूप-अधिकारी स्वयं बना वेंडर! भाग-2”
“अधिकारी-वेंडर-नेक्सस का नया स्वरूप-अधिकारी स्वयं बना वेंडर!”
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में #RKRai के आपराधिक नेक्सस के बारे में #Railwhispers ने यह लिखा था-
“#KMG की दादागीरी के सामने प्रॉपर बोर्ड भी धराशाई!”
“शैतानी और अपराधिक भूल के सुधार के लिए साधुवाद!”
“अधूरा न्याय: क्या स्वतंत्र निर्णय लेने में असमर्थ हैं #MTRS?”
“रेल के दबंगों की दबंगई: क्यों #रोटेशन का कोई अपवाद नहीं!”
लेकिन जैसे वाराणसी (#BLW) में कुछ नहीं हुआ, जो प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है, वहीं, #CLW में कुछ होने की उम्मीद नहीं ऐसा लगता है-वहां तो पैसे का जोर और भी ज्यादा है। यदि इतने स्पेसिफिक इनपुट पर भी 56J #RKJha, #AshokKumar, #NavinKumar, #KMSingh, #RPBharti पर नहीं लगता, #SudheerKumar, #RKRai रिटायरमेंट के बाद भी रेल में ही अपनी दूकान चला रहे हैं, तो क्षमा करें मंत्री जी – जैसा कि तमाम रेल अधिकारी कह रहे हैं – आपको भी #KMG ने पुराने मंत्रियों की तर्ज पर बहुत सफलता से झुनझुना पकड़ा दिया है, जिसमें आप मगन हो गए हैं! क्रमशः जारी…
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी