रेल में व्याप्त भ्रष्टाचार: विजिलेंस प्रकोष्ठ की जवाबदेही?
हाल के कुछ वर्षों में रेलवे में सीबीआई के केस चिंताजनक रूप से बढ़े हैं, इस जानकारी को इस तथ्य के साथ देखें कि एनडीए सरकार ने रेल में रिकॉर्ड निवेश किया है, तो बात समझने में देर नहीं लगती कि रेल में भ्रष्टाचार अधोगति के स्तर पर जा चुका है!
केंद्रीय सतर्कता आयोग (#CVC) के आँकड़ों में रेल मंत्रालय सबसे भ्रष्ट सरकारी विभागों में प्रथम स्थान पर है। यह तथ्य सालों से अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित हो रहा है।
वहीं हर साल विजिलेंस सप्ताह में रेल मंत्रालय (रेल भवन) के विजिलेंस अधिकारी जोनल रेलों में जाकर अपने थोथे ज्ञान के बातें बघारते हैं और सभी जोनल अधिकारी इन्हें साँस रोक कर सुनते हैं। लेकिन पिछले 30 सालों के आँकड़े सरसरी निगाह से देखने पर पता चलता है कि स्थिति में कोई सुधार नहीं है। ऐसे में रेल भवन के इन कथित मूढ़धन्य विजिलेंस अधिकारियों का उत्तरदायित्व क्या है? यह क्या कर रहे हैं? स्थिति में सुधार क्यों नहीं हो रहा है?
बल्कि हाल के कुछ वर्षों में सीबीआई के केस चिंताजनक रूप से बढ़े हैं। इस जानकारी को इस तथ्य के साथ देखें कि एनडीए सरकार ने रेल में रिकॉर्ड निवेश किया है, तो बात समझने में देर नहीं लगती कि रेल में भ्रष्टाचार अधोगति के स्तर पर जा चुका है। ऐसा नहीं कि सरकार के दूसरे विभाग इससे अझूते हैं। लेकिन #Railwhispers रेल के बारे में ही अपने विचार सीमित रखता रहा है।
विजिलेंस के अधिकारियों और इंस्पेक्टरों ने हाल ही में कई नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। वर्तमान में ही नहीं, विजिलेंस विभाग वर्षों से कैरियर ऑफिसर बनने का एक प्रमुख अड्डा बना हुआ है। हम इसको भी शीघ्र ही टटोलेंगे। ये कुछ ऐसी स्थिति हुई जैसी #KMG के सदस्य वह सब करते देखे गए जिसके लिए #UPSC अलग चयन और भर्ती करता रहा है और उससे बचते रहे जिसके लिए वह चुने गए थे।
अत्यधिक लंबे कार्यकाल, कैरियर का बहुत बड़ा भाग विजिलेंस में, सार्वजनिक शोषण की बातें! मुख्यतः विजिलेंस के नेतृत्व के बारे में यह बताया एक आदरणीय सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी ने:
1. #Vigilance के कई अधिकारी स्वयं प्रोटेक्शन रैकेट चलते हैं। अपना वर्चस्व दिखाने के लिए ये एक ही स्थान पर डटे रहने के लिए नियम विरुद्ध या अपवाद में रहते हैं, और ये बताते हैं कि वे ‘पावरफुल’ हैं। मंत्री-संतरी आएंगे-जाएंगे, ये रेल के ध्रुव तारे हैं। हाल में ऐसे ही कुछ अधिकारी रेल भवन विजिलेंस में रहे और अभी भी कुछ हैं। चूंकि व्यवस्था को मेनीपुलेट करना इन्हें आता रहा, ये अपने कैरियर को बढ़ाने के लिए अपने से सीनियर अधिकारियों को उलझाते और फंसाते रहे।
2. #Vigilance के कुछ अधिकारी प्रोटेक्शन रैकेट तो नहीं चलाते पर वह आत्ममुग्ध अवश्य रहते हैं। उन्हें इससे मतलब नहीं रहता कि काम कैसे हो। उनका जजमेंटल एटीट्यूड रहता है। ये सिस्टम में अवरोध का काम करते हैं और अपनी कॉलर टाइट करते अपने एक्जीक्यूटिव साथियों को, जो सरकार के टारगेट पर काम करते हैं, उन पर बिना किसी जवाबदेही के विजिलेंस केस बनाते हैं।
3. #Vigilance के वह अधिकारी जो पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते हैं।
वन्दे भारत के केस में इन्हीं किस्मों के विजिलेंस के अधिकारियों का हाथ पाया गया था। वहीं आज के #CRB के GM बनने के आखिरी स्टेज पर विजिलेंस क्लीयरेंस को वापस लेना महत्वाकांक्षी और रैकेट चलाने वालों का काम था। अगर पहले के केस देखें तो पाएंगे आर. एस. विर्दी जिन्हें बतौर सीआरबी और रेलवे विजिलेंस के मुखिया अरुणेंद्र कुमार ने डिरेल किया था। श्री विरदी उस लंबी लिस्ट में हैं जिन्हें उन्हीं के साथी अफसरों ने विजिलेंस के दुरुपयोग से उनका कैरियर बर्बाद कर दिया। आज भी रेलसेवा में कुछ ऐसे अत्यंत सक्षम और लोकप्रिय अधिकारी हैं, विजिलेंस का उपयोग कर पैराशूटर विनोद यादव ने जिनका कैरियर बर्बाद कर दिया।
रेल अधिकारी यह सब मुखर होकर बोल रहे हैं, पर विजिलेंस के इन अधिकारियों का क्या? उन्हें क्या सजा मिली?
क्यों और कैसे रेल में अब औद्योगिक स्तर पर भ्रष्टाचार हो रहा है? क्या सिस्टमेटिक कारक हैं इसके?
रेल के अधिकारी, जिन्होंने रेल के लिए बड़े निर्णय लिए, कहते हैं कि रेल में पिछले कुछ दशकों से वेंडर-अधिकारी नेक्सस गहरा गया है। इस प्रक्रिया की शुरुआत, ये अधिकारी बताते हैं, चालू हुई जब जाफर शरीफ रेलमंत्री बने। इसी समय रेल के वे अधिकारी जिन्होंने रेल का तिया-पांचा कर दिया, इसी दौर के प्रोडक्ट रहे हैं। भ्रष्टाचार का औद्योगिक स्तर मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल विभाग से चालू हुआ, उसी दौर में सिविल इंजीनियरिंग विभाग में कंक्रीट स्लीपर और प्रोजेक्ट यूनिगेज चालू हुआ। ये तीनों विभाग वेंडर-अधिकारी नेक्सस में इसी दौर में उलझे। वहीं सिग्नल एंड टेलीकॉम राडार के नीचे केबल में लगा रहा, और फिर, चालू हुए सेफ्टी के नाम पर बड़े निवेश। इस दौर में सिग्नल के बड़े कांट्रेक्टर पैदा हो गए। सिग्नल की कहानी जल्द ही एक नए स्तर पर चली गई। सिग्नल के वरिष्ठ बोर्ड सदस्य की बहुचर्चित गिरफ्तारी की घटना इसका एक छोटा उदाहरण मात्र है।
इन्हें राजनैतिक संरक्षण मिला, इस नेक्सस ने विजिलेंस, एकाउंट्स, स्टोर्स को कब्जा लिया।
आज के जितने भी मूवर एंड शेकर हैं, वे सब इसी दौर की उपज हैं। 90 के दशक में हुए भीषण एक्सीडेंट के चलते रेल में निवेश उत्तरोत्तर बढ़ाया गया, जिसने इस भ्रष्टाचार को ईंधन दिया। आज के #KMG को देखें, इसी पर खेलते हुए वह आज के राजनैतिक नेतृत्व से बड़े बन गए हैं।
रेल का सतर्कता विभाग
भारतीय रेल में अपवाद स्वरूप सतर्कता विभाग रेल के ही अधिकारियों के आधीन रहता है। जब ऐसे अधिकारी अपने सतर्कता विभाग में अपनी कुर्सी का प्रयोग अपने हितसाधन के लिए करते हैं, और ये सत्यापित हो जाता है तो भी इस भ्रष्ट कृत्य पर कार्यवाही नहीं होती। ऊपर दिए उदाहरण देखिए, जहां अधिकारियों के कैरियर बर्बाद कर खुद अपना हित साधा गया।
#Systemic_Corruption को रोकना #Preventive_Vigilance का मुख्य उद्देश्य है। ये #SDGM की और रेलवे बोर्ड में #CRB, बतौर विजिलेंस विभाग के मुखिया की, प्राथमिक जिम्मेदारी है। अगर सीआरबी के आधीन ऐसे प्रशासनिक निर्णय होते हैं, जो इस नेक्सस को मजबूत करता है, तो इसकी जिम्मेदारी सीआरबी, रेलवे बोर्ड मेंबर्स और डीजी पर तय होनी चाहिए!
रोटेशन को सीवीसी और सभी वरिष्ठ अधिकारियों ने सबसे महत्वपूर्ण पालिसी माना है। ये रोटेशन न केवल कार्यक्षेत्र में, बल्कि अधिकारियों के काम, स्थान और शहर में भी आवश्यक है। जोनल स्तर पर सीवीसी की रोटेशन नीति पर कड़ाई से अमल करवाने की जिम्मेदारी जोनल एसडीजीएम की ही है, अगर वे इसमें फेल होते हैं, तो उन पर इसकी जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए!
रेल में बढ़ते कर्मचारी-कांट्रेक्टर/अधिकारी-वेंडर नेक्सस की जड़ में रोटेशन न होना ही है। क्यों 10-15-20-25 साल से अधिक किसी को एक स्थान पर रखना है? विजिलेंस की दृष्टि से इसकी प्राथमिक जिम्मेदारी जोनल एसडीजीएम और प्रशासनिक जिम्मेदारी बोर्ड मेंबर, एडीशनल मेंबर और स्टैब्लिशमेंट ऑफिसर पर तय होनी चाहिए।
समय आ गया है कि जोनल #SDGM/#CVO, #PEDVigilance (#CVORlyBd) इसे इंश्योर करें, या बढ़ते भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी का बड़ा हिस्सा अपने सिर पर लें। सीआरबी बतौर रेलवे विजिलेंस के मुखिया तुरंत बोर्ड की मीटिंग करके सभी बोर्ड सदस्यों को, सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड को और स्टैब्लिशमेंट ऑफिसर को विजिलेंस की दृष्टि से सेंसिटाइज करें और बताएं कि उनका रोटेशन में बाधक बनना और उससे होने वाले भ्रष्ट कृत्यों में उनकी भागीदारी मानी जाएगी-उनकी जवाबदेही तय होगी, जैसा माननीय प्रधानमंत्री ने 3 मार्च 2016 को संसद में कहा था।
माननीय प्रधानमंत्री का यह बयान ही रेलवे की अफसरशाही का उत्तरदायित्व (एकाउंटेबिलिटी) तय करने के लिए #Railwhispers के लेखन का मुख्य प्रेरणा स्रोत है। यहां स्वयं सुनें प्रधानमंत्री का उक्त संबोधन-
रेलवे में बढ़ते सीबीआई केस
रेल का हर स्तर पर विशाल सतर्कता विभाग है। इस विभाग का रेल के आउटपुट में सीधा कंट्रीब्यूशन नहीं है। लेकिन सरकारी कार्यों में और खर्चों में ट्रांसपरेंसी इंश्योर करना इनका ही उत्तरदायित्व है। इतनी बड़ी व्यवस्था, हर बड़े टेंडर पर निगाह, स्वयं का इंटेलिजेंस और मुखबिरों का नेटवर्क फिर भी इतने सीबीआई केस कैसे और क्यों?
समय आ गया है कि जहां भी #CBI के केस बनें वहां #SDGM से जवाब माँगा जाए कि कैसे उनकी इंटेलिजेंस फेल हुई और क्यों यह उनका प्राथमिक फेलियर न माना जाए और ये क्यों नहीं माना जाए कि सीबीआई द्वारा पकड़े भ्रष्टाचार को #Vigilance विभाग का संरक्षण प्राप्त था? ये बहुत आवश्यक है अन्यथा विजिलेंस विभाग मौज-मस्ती और मटरगश्ती के अलावा और कुछ नहीं है। वर्क्स और स्टोर्स कांट्रैक्ट्स में विजिलेंस विभाग के बंधे सुनिश्चित शेयर की बातें खुले तौर पर होती रही हैं।
इस अराजकता के पीछे सबसे बड़ा कारण रोटेशन के अभाव में पनपा ‘वेंडर-ऑफिसर नेक्सस’ है। ये एक ऐसा विकराल रूप ले चुका है कि बोर्ड सदस्य, जीएम और विभाग प्रमुख स्तर के अधिकारी सीबीआई के मामलों में उलझ चुके हैं। यह कैसे हुआ कि रेल का सतर्कता विभाग इतना असहाय और असमर्थ रहा कि इतने बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार होता रहा और हो रहा है, सीबीआई उसे पकड़ भी रही है, जो सार्वजनिक जानकारी में तो है, लेकिन रेल के विजिलेंस विभाग को कुछ नहीं पता है।
कुछ बातें लेवल-17 से:
#Vigilance के मारे #CRB साहब आप भी रहे हैं। आपके ही रेल भवन से विजिलेंस विभाग की गलत पोस्टिंग को हमने उजागर किया और खिसियाते हुए इसे ठीक भी किया गया-ये किसने किया-उन लोगों को चिन्हित क्यों नहीं किया गया? क्या ऐसी पोस्टिंग कराना नियम से चलने वालों को डराने के लिए ‘वेंडर-अधिकारी नेक्सस’ के चलते ऐसा हुआ?
सीआरबी साहब, विजिलेंस विभाग की नवाबी खत्म करिए। उनको लाइए जिन पर विजिलेंस के गलत केस बने, वे जानते हैं इस पीड़ा को-जिससे आप अनभिज्ञ नहीं हैं। अगर नियंत्रित न हो तो रेल विजिलेंस बाहरी सर्विसेज को सौंपा जाए। रोटेशन के अभाव में विजिलेंस स्वयं के कैरियर को बढ़ाने का साधन बन चुका है और यह भी कि विजिलेंस विभाग के भ्रष्टाचार की बात सर्वविदित है।
किसी अधिकारी को उसके द्वारा अपने बारे में बनाए गए ईमानदारी के कथित आभामंडल के चलते केवल इस उम्मीद में पीईडी/विजिलेंस अर्थात सीवीओ/रेलवे बोर्ड बना दिया जाता है कि वह सही मायने में सीवीसी की रोटेशन नीति पर अमल करवाएगा और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाएगा, मगर वह केवल जीएम बनने के अपने निजी स्वार्थ में #KMG की गोद में बैठ जाता है और आठ महीने उक्त पद पर रहकर भी इसलिए कुछ नहीं करता कि कहीं उसके कृत्य से नाराज होकर #KMG उसे भी जीएम बनने से न रोक दे! ऐसे लोगों के चलते ही रेलवे विजिलेंस का बंटाधार हुआ है!
सीआरबी साहब, आपके जीएम की फाइल पर आखिरी साइन से पहले आपकी विजिलेंस क्लीयरेंस वापस हो गई थी। आप इस प्रकरण की जांच करवाईए। बहुत लोगों के जीवन में इस अराजक निरंकुश व्यवस्था ने विष घोला है-सब आपकी तरह मजबूत पृष्ठभूमि से नहीं आते। वेंडर जानते हैं कि कैसे कंप्लेंट को विजिलेंस में या तो धन से या विजिलेंस अधिकारी की स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने के अहं से खेल अपने गलत काम सिद्ध कराए जाएं। आज टेंडरों के फैसलों में विजिलेंस का हस्तक्षेप इतना बढ़ गया है कि कमेटी आधारित निर्णय लेने की भारत सरकार की मान्य व्यवस्था फेल हो गई है। कैसे एक व्यक्ति जो एक्जीक्यूटिव रोल में नहीं, एक कमेटी द्वारा लिए गए निर्णय पर बेरोकटोक प्रश्नचिन्ह लगा सकता है? विजिलेंस अधिकारियों की क्या जवाबदेही है?
कई वेंडर अपने कम्पटीटर को निपटाने में विजिलेंस विभाग का उपयोग करने में सफल रहे हैं – #CRB साहब आप रेलवे विजिलेंस के मुखिया हैं। अगर रेल से नहीं संभलता, तो बाहरी एजेंसी लाईए। कम से कम वहां तो रोटेशन होगा। रेल में अब कैरियर विजिलेंस अधिकारियों की परिपाटी बन गई है। और हो भी क्यों नहीं, कोई जिम्मेदारी नहीं है, और साथ ही अपने से सीनियर सभी अधिकारी आपके सामने सरेंडर!
लेकिन अब यह परिपाटी समाप्त होनी चाहिए!
इस नेक्सस को तोड़ने की सारी पॉवर आपके L-17 के अधिकारियों के पास है। अगर आप रोटेशन में बाधक बनते हैं तो आपकी भ्रष्टाचार में सहभागिता मानी जाएगी। सुनने में यह बात बहुत कड़वी लगती है, लेकिन यही सच्चाई है। #AIDS और #KMG की ताकत का मुख्य सपोर्ट रोटेशन के अभाव में बने नेक्सस हैं!
वर्तमान लेवल-16 और लेवल-17 के यहां आने में #Railwhispers की भी यत्किंचित भूमिका रही है। हमने सीनियरिटी के सिद्धांत और डोमेन एक्स्पर्टीज की बात की थी, ये सोचते हुए कि आप लोग अपने नीचे व्यवस्था ठीक करेंगे!
हमने ये मुद्दे आपके सामने रखे थे:वह, कृपया एक बार पुनः इनका अवलोकन करें:
“#VIP संस्कृति पर मंत्री जी के हास्यास्पद निर्णय, #VVIP कल्चर पर सन्नाटा!“
“#KMG_2.0: ..और कितने जेना बनाएगा रेलवे बोर्ड?“
“#KMG_2.0: रोटेशन के बजाय रेलवे में दिया जा रहा भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ को संरक्षण!“
“#KMG का आतंक! समय बताएगा कि कौन सच के साथ था!“
“चलती ट्रेन में गैंगरेप: भ्रष्टों का बोलबाला – स्टाफ ने किया मुंह काला! रेल भवन पर #KMG का जलवा!“
“#KMG_2.0: क्यों चाहिए टेम्परेरी रेलवे बोर्ड का सेक्रेटरी!“
“#KMG_2.0: A cynic’s view – रेलवे के धनकुबेरों का सिंडीकेट!“
खासतौर पर लेवल-17 से हमारा निवेदन है, उक्त लिंक्ड आर्टिकल्स को आप पढ़िए और बोर्ड मीटिंग में डिस्कस करिए! आप इस व्यवस्था में #KMG की इच्छाओं के विरुद्ध यहां तक पहुंचे हैं। अब गेंद आपके पाले में है। ये अवश्य स्मरण रखिएगा कि बोर्ड द्वारा लिए निर्णयों को सब देख रहे हैं और अब चुप बैठने को भी कोई तैयार नहीं! क्रमशः जारी..
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी