फजीहत : भाग-III
जिद करके, लाखों-करोड़ खर्च करके, फजीहत करवाना है, तो रेल मंत्रालय आइए!
क्या सेना मुख्यालय में पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन बनवाने, गूगल सीट भरने से सेना का मनोबल ऊपर उठाया जा सकता है? बॉर्डर से अधिक खर्च मुख्यालय में करने से क्या युद्ध जीते जा सकते हैं? रेल माथे के पसीने से चलती है, गूगल सीट या लिंक्डइन से नहीं!
लिखते-लिखते कई साल हो गए हैं, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व की जिद समझ में नहीं आती कि सिस्टम तो “डीप स्टेट” ही चलाएगा। खैर, यह “डीप स्टेट” तो अपनी जगह अपनी तरह से सिस्टम की जड़ों में मट्ठा डाल ही रहा है, मगर खान मार्केट गैंग (#केएमजी) तो सतह पर रहकर सिस्टम को खोखला कर रहा है, और व्यवस्था अर्थात सिस्टम तो इसी के हाथ में रहा है। ठीक वैसे ही कि दर्जन भर गैजेट निकलवाकर, भर्तियाँ सालों बंद करवाकर, पुरानी सर्विसेस पुनः बहाल की गईं नाम बदलकर। धन्य है ऐसे ट्रांसफॉर्मेशन का।
ये जिद है, नासमझी है, या डीप स्टेट का कोई वशीकरण तत्व-कुछ कहा नहीं जा सकता!
जिद करके, लाखों-करोड़ खर्च करके फजीहत करवाना है, तो रेल मंत्रालय आइए!
नवंबर, 23, 2023: “फजीहत” में हमने उन मुद्दों की चर्चा की थी जिनसे हमें लगता था कि सरकार की नीयत और नतीजों पर काली छाया पड़ेगी। 2024 के चुनावों में कुछ ऐसा हुआ भी।
पहले सैकड़ों पैसेंजर ट्रेनें बंद हुईं, हजारों स्टॉपेज रद्द किए गए, फिर जनरल कोच (GS) और स्लीपर कोचों की कीमत पर एसी कोच बढ़ाए या लगवाए गए, कुल जमा ये कि सरकार का लाभार्थी टारगेट वर्ग-जिसे सरकार अपना वोटर मानती थी-वह रेल में यात्रा या तो नहीं कर पाया, और अगर कर पाया, तो बदबूदार शौचालयों में। इस लेख में हमने कई सुझाव भी दिए थे, लेकिन अब “फजीहत” की जिद के आगे कोई वाद्य या विधा काम न आई।
फजीहत माँगी, फजीहत मिली !!!
खैर, चुनावों में रेल में हुआ लाखों-करोड़ का निवेश काम न आया। यह बड़े दुर्भाग्य की बात रही कि जिस सरकार ने रेल को इतनी प्राथमिकता दी, उसको इस निवेश का कोई लाभ नहीं मिला, न ही उनके लाभार्थियों को। लाभ मिला तो केवल डीप स्टेट को और #KMG को।
चुनावों के तुरंत बाद जनरल और स्लीपर कोचों के उत्पादन को आनन फानन में बढ़ाने की घोषणा कर दी गई, करीब तेरह हजार नॉन-एसी कोच उत्पादन में हैं। लेकिन जब हमने यही बात बताने की कोशिश की थी, तो डीप स्टेट अर्थात #KMG ने इसे नहीं होने दिया।
विजिलेंस की त्रिमूर्ति को रेल से अलग कर तो दिया गया, लेकिन उनका पोषण जारी है। #सुधीरसेंस पर अंकुश लगा, #खंडेलवालसेंस को रोका गया – कुछ ऐसा लगा कि वस्तुस्थिति परिवर्तित हो रही है। लेकिन पश्चिम रेलवे के वड़ोदरा मंडल में रेल के सबसे बड़े “डिपार्टमेंटल परीक्षा स्कैम” को कराने वाले और पूर्व में आईआरएमएस पर सरकार की फजीहत करवाने वाले जीतू भाई को वापस रेल भवन में लाने के निर्णय से समझ आया कि अपनी पूरी फजीहत कराने की जिद तो सरकार के भीतर ही बरकरार है।
पश्चिम रेल के वड़ोदरा मंडल का केस—न भूतो न भविष्यति—है। सबने देखा होगा रेल के कार्यालयों के बाहर टेंट लगाकर एक मोटर साइकिल खड़ी रहती है और उसमें यह लिखा रहता है, “मोटर साइकिल खरीदें, फाइनेंस हम करवाएँगे।” वड़ोदरा मंडल में कुछ ऐसा ही हुआ। न केवल परीक्षा औद्योगिक स्तर पर मोनेटाइज करने की योजना बनी, बल्कि साथ ही घूस को फाइनेंस भी करवाया।
फाइनेंस की कारपोरेट व्यवस्था करवाने वाले तत्कालीन #DRMBRC के विशेष स्नेह पात्र युवा अधिकारी थे, जिसे महाप्रबंधक, पश्चिम रेलवे ने विशिष्ट सेवाओं के लिए पुरस्कृत किया। ये महाप्रबंधक महोदय भी पुरस्कृत होकर रिटायरमेंट के बाद सरकार में रहेंगे। पता नहीं, सरकार ने इनकी कौन सी योग्यता अथवा योगदान को देखकर रिटायरमेंट के बाद भी इन्हें अपने साथ बनाए रखने का निर्णय लिया?
जिस अधिकारी का काम और सहभागिता, “फजीहत” में उल्लेखित थी, वह 19 अप्रैल 2025, “फजीहत भाग-II” का ट्रिगर बना। क्यों सरकार ऐसे अधिकारियों के बिना नहीं चल सकती?
मोदी जी, क्या आपके मंत्री को यह नहीं पूछना चाहिए कि क्यों सत्रह लाख करोड़ खर्च करने के बाद भी रेल की गति वही है?
रेल भवन से जोनल रेल तक-डीप स्टेट
जीतू भाई का रेल भवन वापस आना यह बताता है कि सरकार को रेल में सब ठीक लगता है। और यह भी कि सरकारी तंत्र में उनकी नेटवर्किंग कितनी मजबूत है! सरकार को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि रेल में आज भी उसका लाभार्थी जानवर की तरह जा रहा है, आज भी रेल पर आश्रित निम्न और मध्यम आय वर्ग का रेल में स्थान नहीं है, आज भी रेल की सेफ्टी गटर में बहते हुए गंदे पानी की तरह है।
लेकिन #IRMS, इमोशनल इंटेलिजेंस से भरे हुए लेवल 16/17 की लीडरशिप के प्रणेता वापस रेल भवन में आ गए हैं, रेल भर्तियों को मोनेटाइज करवाकर! अच्छा है! बहुत अच्छा है!
मंत्री जी, यह कहना कि “मध्यम वर्ग और निम्न आय वर्ग आपकी प्राथमिकता है, जनरल और स्लीपर क्लास में चलने वाला आपके लिए वीआईपी (#VIP) है”, बेमानी लगता है। खैर, आप हमसे अधिक समझदार हैं।
वहीं, हमने रोटेशन को अनदेखा करने का एक अन्य विषय उठाया था, एक ग्रुप ‘बी’ के जूनियर स्केल अधिकारी को—जिसने पिछले पूरे एक दशक का कार्यकाल पुणे में निकाला था—उसे वहीं बाहर से पोस्ट लाकर—प्रमोट कर दिया गया।
पढ़ें-अप्रैल 10, 2025: “दस साल लगातार एक ही जगह पदस्थ रहे अधिकारी को उसी जगह प्रमोट करने का औचित्य क्या है?”
जब मामला उजागर हुआ, तो हेड क्वार्टर ने उसे अपने पास मुंबई में बुला लिया। बात ये हुई कि स्वयं को रेल के ब्रेड विनर कहने वाले अधिकारी, फील्ड में अर्जन करने वाली जगह पर अधिकारी को पोस्ट नहीं करेंगे, बल्कि पूरा सिस्टम तोड़-मरोड़ देंगे—केवल एक ग्रुप ‘बी’ जूनियर स्केल अधिकारी को फेवर करने और अपना बगलबच्चा बनाने के लिए!
रेलमंत्री, चेयरमैन और मेंबर/ओबीडी को यह देखना होगा कि क्या रेल भवन या जोनल हेड क्वार्टर में बैठाने से कमाई बढ़ रही है, या कमाई और सेफ्टी दोनों घट रही है? हाँ, ऐसे अधिकारियों से वरिष्ठ अधिकारियों की आय बढ़ने के आसार तो हैं, रेल की बढ़े, या न बढ़े, क्या अंतर पड़ता है।
मोदी जी, सेना से रेल की तुलना हमेशा हुई है। देखें, 24 अप्रैल 2025 को हमने लिखा था, “भारतीय रेल : जड़ में लगी दीमक”
क्या सेना के मुख्यालय में पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन बनवाने, गूगल सीट भरने से सेना का मनोबल ऊपर उठाया जा सकता है? बॉर्डर से अधिक खर्च मुख्यालय में करने से क्या युद्ध जीते जा सकते हैं? रेल माथे के पसीने से चलती है, गूगल सीट या लिंक्डइन से नहीं!
तो क्यों रेल की ऐसी गति या स्थिति है? जब सिरिंज में ही इन्फेक्शन है, तो दवाई कितनी ही अच्छी क्यों न हो, इंजेक्शन बीमारी देगा, ठीक नहीं करेगा। अंततः लीडरशिप का चुनाव तो सरकार का है, तो ये सोचना भी तो राजनैतिक नेतृत्व को ही पड़ेगा।
संजय कुमार हों, या जितेंद्र सिंह उर्फ जीतू भाई, चुनाव अर्थात निर्णय तो मंत्री जी आपका ही है। फजीहत माँगेंगे, तो आपको कौन मना कर सकता है… बाकी समझदार तो आप हैं ही!