VIP संस्कृति पर मंत्री जी के हास्यास्पद निर्णय, VVIP कल्चर पर सन्नाटा!

एक ऐसी खबर आई, जिसके चलते हंसते-हंसते रेलकर्मी आक्रोशित हो गए! पढ़ें:

VIP culture is over! Railway Minister orders removal of bell used to call attendants in offices

मंत्री जी या उनके सलाहकारों का मानना है कि दफ्तर में प्यून को घंटी बजाकर बुलाना VIP संस्कृति का हिस्सा है और इसे खत्म किया जाएगा।

रेलकर्मियों की हंसी इस बात पर छूटी कि माननीय मंत्री जी को काम की लय के बारे में, जानकारी में हाथ कितना तंग है! गस्सा इसीलिए, क्योंकि इससे कर्मठ सुपरवाइजर और अधिकारी को यह संदेश गया कि, वे सिस्टम में साहब बने अपने अधीनस्थ प्यून का शोषण और बेइज्जती कर रहे हैं। आज रेल के लगभग सभी ह्वाट्सऐप ग्रुप्स में इस आदेश का मजाक मन रहा है और अधिकांश डिस्कशन आक्रोश में बदल रहे हैं।

कुछ नमूने देखें:

“According to sources, the Railways Minister clearly directed that the bell should not be used to call office attendants, but rather they should be called personally”.

1. Missed call on attendant mobile
2. Making a phone call
3. Installing a Rly phone for attendant
4. Installing talk back facility
5. Sending a WhatsApp msg or SMS
6. Calling Steno to send attendant

“You call the attendant by using a bell or phone doesn’t matter. Ultimately you are using somebody to run errands for you”.

One of a retired senior railway officer’s opinion is – “Ye galat hai, every time an officer gets out of the Chamber and wastes his half of duty hours for nothing. Even the GM has to come out to his secretary to want anything without giving bells. This is a whimsical act by the Minister”.

एक सुधी पाठक ने कहा कि जब डॉक्टर घंटी बजाते हैं और आप अंदर जाते हैं तो क्या आप बेइज्जत महसूस करते हैं? प्यून और उनके अधिकारी/सुपरवाइजर के बीच एक संवेदनशील रिश्ता होता है। कई आज के सीनियर अधिकारी अपने पुराने दिन याद करते हुए बताते हैं कि कैसे उनके प्यून जो अमूमन उनसे उम्र में बड़े थे कैसे उनको स्नेहपूर्वक जिद करके समय पर उन्हें घर भेज देते थे, उनके खान-पान से लेकर दफ्तर के कामों को संभलवा देते थे।

लाइन पर पोस्टेड सुपरवाइजर, जहां न सड़क है, न समय पर बिजली आती है, उनके लिए चाबी वाली घंटियां रहती हैं, अपने प्यून से बदतमीजी करने वाले विरले ही रहते हैं, क्योंकि प्यून, ऑफिस के बड़े बाबू और ड्राइवर के सामने आप पूरी खुली किताब होते हैं।

फोन पर बजर दबा कर स्टेनो को कनेक्ट करना दफ्तरों की मानी हुई परंपरा है। प्यून अधिकतर अपने सुपरवाइजर और अधिकारी के कमरे पर उनकी फिजिकल सिक्योरिटी का भाग भी रहते हैं।
रेलकर्मियों का ये कहना कि ऐसे आदेश काम को न समझने का परिणाम है। परेशानी ये है कि रेल भवन को ही पूरे रेल का प्रतिबिंब मान लिया जा रहा है-जो नितांत गलत है। ये कहना कि प्यून की बेइज्जती हो रही है, ये बहुत अधिकारियों को और सुपरवाइजर्स को दर्द दे रहा है।

#VIP कल्चर मंत्री जी शायद रेल भवन के तीसरे माले पर देखा जा सकता है – जहां विलासितापूर्ण एक नई परिपाटी देखने को मिल रही है, जिसके चलते पिछले साल हुई रेल दुर्घटनाओं के समय रेल भवन का डिजास्टर मैनेजमेंट कमरा उपलब्ध नहीं था, क्योंकि यह भी इस विलासितापूर्ण राजदरबार की भेंट चढ़ गया था।

#VIP कल्चर मंत्रियों के लाव-लश्कर में देखा जा सकता है, जहां वे अधिकारियों से खुले में दुर्व्यवहार या बदतमीजी कर देते हैं और वीडियो वायरल कराते हैं। मंत्रीगण साधारण कमरों में क्यों नहीं बैठ सकते हैं? मंत्री यह कैसे सोचते हैं कि सारे रेलकर्मी VIP बने बैठे हैं? रेल व्यवस्था में आग लगी है मंत्री जी, आप रेल भवन में बोरे भर-भर कर पोस्टें ला रहे हैं और #AIDS के #VVIP आपके मंत्रालय में और मजबूत हो रहे हैं। इस VVIP कल्चर को ठीक करें, सिस्टम भी स्वतः ठीक होगा। VIP घंटी बजाने वाले नहीं, रेल के VVIP वह हैं जिनके आगे रेल में राजनैतिक नेतृत्व गौण हो गया है!