KMG_2_1: #KMG के सामने असहाय रेलवे बोर्ड: भाग-2
रोलिंग स्टॉक सहित अब सभी रेलवे असेट्स और पोस्टिंग्स पर श्वेत-पत्र जारी करने की मांग करता है #Railwhispers
श्वेत-पत्र जारी कर देश को बताया जाए कि क्यों रेलवे ने अपने स्वयं के डीजल इंजन बनाने बंद किए? डीजल इंजन की अधिकांश भारतीय #MSME सहित अपने तमाम छोटे-बड़े उद्योग बंद करवाकर मढ़ौरा से डीजल इंजन क्यों खरीदे जा रहे हैं? वहीं लगभग 25,000 करोड़ के डीजल इंजन लगभग आइडल पड़े सड़ रहे हैं, इसका मूल्यांकन करवाया जाए! देश को यह बताया जाए कि ऐसा कैसा कांट्रैक्ट साइन हुआ, जिसने भारतीय उद्योगों को इतनी गहरी चोट पहुंचाई?
नया रेलवे बोर्ड बन चुका है, रेल बजट आ चुका है, और इसके साथ हनीमून पीरियड भी खत्म हो चुका है – अतः अब रेलवे बोर्ड के सभी सदस्य एक बार पुनः इस शीर्षक खबर को पढ़ें; “ये 400 दिन और आने वाला बजट: सीआरबी और बोर्ड मेंबर्स कृपया ध्यान दें!“
#Railwhispers ने रेलवे बोर्ड को कई सुझाव दिए थे, तथापि प्राथमिकताएं बड़े रोलिंग स्टॉक टेंडर्स की ही दिख रही हैं। वहीं #EPC मोड में चमकते रेलवे स्टेशन बनने की बातें हो रही हैं, जो यह बताती हैं कि ‘असेट्स मॉनेटाइजेशन’ और रेल में ‘पीपीपी’ औंधे मुँह गिरा है। जबकि ईपीसी मोड ने लागत कई गुना बढ़ा दी और कांट्रेक्टर-ऑफिसर नेक्सस का मुनाफा-कमीशन सौ गुना बढ़ा दिया है।
इस पर जवाब में मंत्री जी के पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन हमें भेजे गए। हम मुंबई में रहते हैं, जो बिल्डर बेस्ड माफिया की पहली तपोस्थली है। ऐसे प्रजेंटेशन और पम्फलेट देखते बाल सफेद हो चुके हैं। बन तो अंकोरवाट और पद्मनाभ मंदिर भी सकता है, मगर पैसा कहां से आ रहा है? यह सब पीपीपी के तहत करने की बात हुई थी!
आदरणीय #Advisor उर्फ #Tenderman की ‘Never a Bystander’ से ही देख लें:
चाइनीज रेलवे की स्थिति देखिए, सरकार का इतना पैसा लग गया और अब रेल पूरी अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ गई है। ऐसा नहीं कि भारतीय रेल में निवेश की आवश्यकता नहीं थी। बिल्कुल थी! और है भी! रेल के इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे ट्रैक रिन्यूअल, परमानेंट स्पीड रेस्ट्रिक्शन खत्म करना, पुराने ब्रिज, लेवल क्रासिंग, फार्मेशन पर काम, ट्रैक साइड ड्रेनेज, स्लोप स्टेबलाइजेशन, नई लाइनें बनाना इत्यादि के लिए! लेकिन पिछले कुछ समय से ट्रैक और ट्रांसपोर्टेशन – जो कि रेलवे सिस्टम की कोर एक्टिविटी है – को रेल भवन ने अपनी प्राथमिकता से कहीं नीचे ढ़केल दिया है।
#Railwhispers ने यह भी लिखा कि: “#KMG_2_1: #KMG के सामने असहाय रेलवे बोर्ड!“ जहां #Railwhispers ने बताया कि कैसे #KMG बड़े स्तर पर मैनीपुलेशन करने में अभी भी सफल है!
रेलवे बोर्ड सदस्य: अनैतिक निर्णय रोकें – यह जिम्मेदारी आपकी है – रोलिंग स्टॉक सहित अब सभी रेलवे असेट्स और पोस्टिंग्स पर श्वेत-पत्र की मांग करता है #Railwhispers
अब सुनने में केवल रोलिंग स्टॉक के बड़े टेंडर ही आ रहे हैं। और कुछ खास वेंडर ही मजबूत हो रहे हैं। जबकि नीचे पूरा सिस्टम हतोत्साहित और मृतप्राय है, लेकिन ऊपरी सिस्टम की साज-सज्जा और दिखावे में कोई कमी नहीं। 35 साल के रोलिंग स्टॉक के कमिटमेंट, लुकिंग ऑफ्टर अरेंजमेंट वाले बोर्ड से करवाना नितांत अनैतिक है। इसका पुनरावलोकन किया जाए और शीघ्र एक श्वेत-पत्र जारी किया जाए।
चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड (#CRB), मेंबर ट्रैक्शन एंड रोलिंग स्टॉक (#MTRS) और मेंबर फाइनेंस (#MF) एक श्वेत-पत्र जारी करवाएं और देश को बताएं कि क्यों रेल ने अपने स्वयं के डीजल इंजन बनाने बंद किए? डीजल इंजन के अधिकांश भारतीय #MSME सहित अपने तमाम छोटे-बड़े उद्योग बंद करवाकर मढ़ौरा से डीजल इंजन क्यों खरीदे जा रहे हैं? वहीं लगभग 25,000 करोड़ के डीजल इंजन लगभग आइडल पड़े सड़ रहे हैं। इसका मूल्यांकन करवाया जाए। देश को यह बताएं कि ऐसा कैसा कांट्रैक्ट साइन हुआ, जिसने भारतीय उद्योगों को इतनी गहरी चोट पहुंचाई?
वहीं, जनवरी 2019 तक #ICF डिजाइन के कोच बनवाए गए और पूरी फ्लीट ग्राउंड कर दी गई, साथ ही #LHB कोच के रिकॉर्ड प्रोडक्शन के बाद वन्दे भारत के चलते उन्हें भी निकट भविष्य में ग्राउंड करना अवश्यंभावी है। यह किसका पैसा है? राजधानी और शताब्दी को डिस्ट्रिब्यूटेड पॉवर पर चलाने का क्या औचित्य है? जबकि यह तय बात है कि जब स्टॉपेज कम हैं, तो #EMU प्लेटफार्म का इस्तेमाल क्यों?
ऊर्जा पर खर्च ईएमयू प्लेटफार्म पर काफी बढ़ जाता है और इंजन चालित ट्रेन चलाने में सस्ती पड़ती है। हां, जहां स्टेशन पास-पास हैं, या स्पीड रिस्ट्रिक्शन बहुत हैं, तो ईएमयू प्लेटफार्म की अधिक इनिशियल कॉस्ट और चलाने की अधिक कॉस्ट जस्टिफाई हो जाती है। रेल द्वारा किए पुश-पुल ट्रेनसेट के आइडिया से ईएमयू प्लेटफार्म के कई लाभ लिए जा सकते हैं उपलब्ध कोचिंग स्टॉक का ही उपयोग करके! इस पर भी श्वेत-पत्र आना चाहिए। क्यों भारतीय रेल नए असेट्स को आइडल करा रही है। श्वेत-पत्र में यह भी बताएं कि किसने ये सब निर्णय लिए-पहले बनाने के, फिर इन्हें आइडल करने के लिए!
अफसोस इस बात का है कि #KMG ने ये भौकाल बनाया है कि उनकी टेक्निकल कॉम्पिटेंस सबसे अधिक है, जबकि ये बेसिक बातों पर लाखों करोड़ रुपये के निवेश हो रहे हैं और दसियों हजार करोड़ के निवेश आइडल कर रहे हैं!
“#KMG_2.0: Crisis of Competence!“
“Competence Poverty of #KMG – Machinations Exposed!“
“Competence Poverty of #KMG – Machinations Exposed! Part-II“
“Electrocution on the platform: असुरक्षित हो गया पूरा रेल परिसर?“
रेलवे बोर्ड सदस्य: अनैतिक निर्णय रोकें – यह जिम्मेदारी आपकी है – पोस्टिंग्स पर श्वेत-पत्र की आवश्यकता
एक मैटर हमें पूर्वोत्तर रेलवे से मिला। उसकी जाँच कर हमने ट्वीट किया:
यह भी पता चला कि जोनल रेलों के लगभग सभी डिवीजनों में अधिकारी 15 साल से अधिक पदस्थ हैं। पूर्वोत्तर रेलवे, इज्जतनगर मंडल में जहां एक अधिकारी ग्रुप ‘सी’ से ग्रुप ‘बी’ में प्रमोट होकर उसी स्थान पर ब्रांच ऑफिसर (सीनियर डीपीओ) भी बन गया। वहीं पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे, अलीपुरद्वार मंडल में एक ग्रुप ‘ए’ ऑफिसर जूनियर स्केल में अपनी इनिशियल पोस्टिंग से लेकर ब्रांच ऑफिसर (सीनियर डीएसटीई) बनकर फुल दादागीरी के साथ अपना पूरा भ्रष्टाचार तंत्र चला रहा है।
कुल मिलाकर हर स्थान पर #AIDS के अपने वैरिएंट हैं। कुछ लोग एक ही स्टेशन पर 20 साल से अधिक रहे हैं और कुछ निरीह न केवल कुछ साल में ट्रांसफर हो जाते हैं, बल्कि कई-कई बार दरबदर हो चुके होते हैं। सीनियर डीसीएम-2/झांसी देवानंद यादव का उदाहरण एकदम ताजा है। जैसे इस लेख में #Railwhispers ने दिल्ली और प्रयागराज के बारे में लिखा था: “सीआरबी साहब, कृपया #AIDS और #KMG से रेल व्यवस्था को निजात दिलवाएं!“
और यहां इस मुद्दे को ट्वीट किया था:
आज कंप्यूटर द्वारा इस जानकारी को निकालने में कोई दिक्कत नहीं कि किस अधिकारी ने किस स्टेशन पर कितना समय निकाला। ग्रुप ‘बी’ में यह समस्या सबसे अधिक है। इसीलिए सभी जीएम को निर्देशित किया जाए कि ग्रुप ‘सी’ से ग्रुप ‘बी’ में आते ही सर्वप्रथम स्टेशन/डिवीजन परिवर्तन होना चाहिए और ग्रुप ‘ए’ मिलने पर सीधे जोन बदला जाना चाहिए। इसमें बिना किसी भेदभाव या पक्षपात के कोई रियायत किसी भी अधिकारी को नहीं मिलनी चाहिए!
#Railwhispers ने यह बात भी की थी कि: “रेल में व्याप्त भ्रष्टाचार: विजिलेंस प्रकोष्ठ की जवाबदेही?“
रेल में व्याप्त भ्रष्टाचार के मूल में ‘वेंडर-अधिकारी नेक्सस’ है, जो पनपा है रोटेशन के अभाव में, और इसी कारण से काफी मजबूत भी हुआ है। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि सिस्टम में काम करने वाले बेवकूफ किस्म के लोग हैं, क्योंकि उन्हें ‘काम नहीं करना’ नहीं आता है। मतलब यह कि वे काम हर स्थिति में करते रहते हैं, क्योंकि केवल यही उन्हें आता है। वहीं जो चालाक लोमड़ किस्म के लोग हैं वे सारी ऊर्जा लगाते हैं केवल अपने कुर्सी मैनेजमेंट में, उन्हें यही आता है, और सिस्टम उन्हें यही करने के लिए प्रेरित तथा पुरस्कृत भी करता है।
रोटेशन में आए रेल अधिकारी वह हैं जो जहां रहेंगे वहां बड़े फलदार वृक्ष रोप कर आते हैं, उन्हें उसका फल तो मिलेगा नहीं, यह भी वे जानते हैं, लेकिन वे यह पेड़ लगाते हैं। वहीं जो रोटेट नहीं होते वे वही पेड़ लगाते हैं जिसका फल केवल उन्हें मिले। अंत में आप पाते हैं कि पूरा सिस्टम गमलों से अटा पड़ा है। और गमलों में उगे हुए लोगों का योगदान केवल सिस्टम को डम्प कर देने वाले कीचड़ के रूप में होता है, जो वर्तमान में दिख रहा है पूरी भारतीय रेल व्यवस्था में! रेल जैसी व्यवस्थाएं बड़ी होती हैं तो आपको गहरे नॉन-नेगोशिएबल सिस्टम चाहिए, लेकिन आपको मिलती हैं परजीवी बेलें, जो बने हुए सिस्टम पर चढ़ जाती हैं और उनका पोषण तो दूर उन्हें ही चूसकर मार देती हैं। जब पूरा सिस्टम परजीवी बन जाता है तो वही एक-दूसरे को सपोर्ट करते हैं। हाल में रेल भवन में हुई ‘कुर्सी वापसी’ भी यही कुछ कहती है।
साथ ही श्वेत-पत्र में यह भी बताया जाए कि #CBI के कितने केस हुए पिछले दस सालों में, और उनमें क्या रोटेट न करना ही प्रमुख कारण था?
महाप्रबंधक कृपया ध्यान दें!
अपने अधीनस्थ अधिकारियों को रोटेट करना, स्टेशन बदलना आपकी और आपके SDGM की सीधी जिम्मेदारी है! रेल भवन को बताएं अगर आपको लंबे समय से आपकी रेल में टिके ऐसे अधिकारियों को अपनी रेल के बाहर भेजना है। वरना यह निश्चित है कि इसकी जवाबदेही में रेल भवन आपको ही लपेटेगा!
अब यह निर्विवाद है कि ग्रुप ‘ए’ मिलते ही सभी अधिकारियों का जोन अलॉटमेंट पुनः होना चाहिए। इसमें डायरेक्ट रिक्रूट और प्रमोटी का कोई अंतर नहीं होना चाहिए! क्रमशः जारी..
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी