#KMG की क्रूरता: जब नेक्सस के मेंबर्स को सेंसिटिव पोस्टिंग दी जाती है, तब कीमत ईमानदारों को चुकानी पड़ती है!
बंदरों के हाथ में तलवार देकर उन्हें अपने समीप नहीं बैठाया जाता मंत्री जी! रेल में विभागवाद की लड़ाई और वर्चस्व के मूल में #Rotation का अभाव था और यह आज भी है, इस मकड़जाल से पैदा हुए अधिकारी-वेंडर-नेक्सस ने #RDSO जैसे संस्थानों को भी डायल्यूट/कम्प्रोमाइज कर दिया!
रेल अधिकारियों पर गलत केस बनाना एक बात रही, लेकिन गलत केस बनवाकर उन्हें जेल में डालना, उनके और उनके परिवारिक सदस्यों के मानस-पटल पर इतनी गहरी चोट करना कि वे कभी समाज से आंख न मिला पाएं, ऐसी क्रूरता केवल और केवल रेल भवन में व्याप्त खान मार्केट गैंग (#KMG) ही कर सकता है।
बात तब की है जब सुरेश प्रभु, जो इस सरकार के वरिष्ठतम मंत्रियों में से एक थे, रेल मंत्रालय देख रहे थे। एक केस बनाया गया दो #IRTS अधिकारियों पर। पूरा रेल विभाग स्तब्ध रह गया, क्योंकि इसमें संदीप साइलस जैसे रेल के प्रति कमिटेड, पॉपुलर और स्कॉलरली अधिकारी सहित दोनों अधिकारियों को जेल कर दी गई। यह पूरी तरह योजनाबद्ध प्रशासनिक हत्या थी, जिसकी मर्मांतक पीड़ा उन्हें जीवन की अंतिम सांस तक रहेगी।
#RailSamachar ने इस केस की निरर्थकता के बारे में बार-बार लिखा और इन अधिकारियों के सम्मान को लौटाने की बहुत मांग की। लेकिन #KMG का इतना जोर रहा कि इन दोनों अधिकारियों की कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। रेल विजिलेंस की अकर्मण्यता की नई परिपाटी अरुणेंद्र कुमार कुछ साल पहले रख ही चुके थे।
रेलमंत्री सेल के सलाहकार समूह ने मंत्री जी को कौन सी घुट्टी पिलाई, कि उन्होंने ईमानदार और कमिटेड रेल अधिकारियों के मनोबल पर ऐसा कुठाराघात किया कि आज तक रेल व्यवस्था चरमराई हुई है। सुरेश प्रभु ने ऐसे सलाहकार समूह की कीमत चुकाई और उनका राजनैतिक कैरियर नेस्तानाबूद हो गया। “बंदरों के हाथ में तलवार देकर उन्हें अपने समीप नहीं बैठाया करते”, यह तब #Railwhispers ने लिखा था।
“#KMG का आतंक! समय बताएगा कि कौन सच के साथ था!”
“High on EI, Zero on OLQ – Your Pick Mantri ji? Should not Caesar’s Wife be Above Suspicion?”
पीड़ित अधिकारी संदीप साइलस की लंबी लड़ाई अंततः रंग लाई और उन्हें अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ द कैबिनेट (#ACC) ने आखिरकार #HAG बहाल किया।
आज समझ नहीं आ रहा कि इन अधिकारियों को और इनके परिवारों को, तथा सैकड़ों रेल अधिकारी, जो इनके प्रति सद्भाव रखते हैं, को यह क्रूर व्यवस्था कैसे संबोधित करेगी?
रेलमंत्रियों को घेरा मकड़जाल ने!
सुरेश प्रभु पहले मंत्री नहीं थे और न ही अश्विनी वैष्णव आखिरी हैं जिन्हें इस #KMG ने नियंत्रण में ले रखा है। यहां तक कि सुशांत कुमार मिश्रा (#SKMishra) जैसे अधिकारी, जिन्होंने #AKMital, #VKYadav जैसे अधकचरे अधिकारियों की अनुभवहीनता का भरपूर प्रयोग किया, ने अपनी महत्वाकांक्षा के चलते सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड और एडिशनल मेंबर/ट्रैफिक का काम एकसाथ अपने पास रखा और रेगुलर मेंबर ट्रैफिक (#MT) को आने नहीं दिया। आज जब इन अधिकारियों को उठते करियर के बीच रिटायर होकर भी मजबूरी में आठ साल की लंबी लड़ाई में उलझा दिया, #SKMishra स्वयं, जैसा पता चला, बिना रेलवे बोर्ड की पूर्व अनुमति के सीधे कॉर्पोरेट सेक्टर में उतर गए। कैसी विडंबना है!
CMD/IRFC और MD/NHRCL ने जिस प्रकार सरकार की किरकिरी करवाई, #RKRai और #SKMishra भी उनसे अलग नहीं हैं-वह भी रिटायरमेंट के बाद न केवल अपनी फजीहत करवा रहे हैं, बल्कि अपने द्वारा बुने गए नेक्सस का भरपूर लाभ भी उठा रहे हैं। और क्यों न उठाएं? जब #IRMS के चलते रेल का शीर्ष नेतृत्व पूरा टूट चुका है, #Advisor आज भी बैठे हैं, #EO सबसे महत्वपूर्ण स्थान पर पदस्थ है, जब नेक्सस के मेंबर्स को DRM बना दिया जाता है, तब कीमत ईमानदारों को ही चुकानी पड़ती है!
सनद रहे कि #Railwhispers ने जब #KMG का ग्राफ प्रकाशित किया था, तो उसमें यह बात प्रमुखता से बताई गई थी कि #SKMishra इस नेक्सस के महत्वपूर्ण और प्रमुख सदस्य रहे हैं। आज भी उनके नेक्सस के लोग वहीं हैं।
चाहिए था मात्र #Rotation, मिला #IRMS नाम का कैंसर!
#IRMS के मुख्य कुटिल कर्णधार #VKYadav, #SKMishra, #SudheerKumar, #AlkaAroraMishra, #NavinKumar रहे। इस टीम के आधे सदस्य अब पहले से अधिक महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं।
आज रेल जहां सिविल सर्विसेज से आए अधिकारियों को खत्म कर रही है, वहीं, नीचे बंद भर्तियां इंजीनियरों को खत्म कर रही हैं। रेल को चाहिए था केवल #Rotation, लेकिन #KMG को चाहिए था टोटल कंफ्यूजन, जिसमें उनकी दूकान चल सके। #Railwhispers ने बताया कि कैसे रेलमंत्री बदलते रहे, कीमत चुकाते रहे, लेकिन #KMG वहीं डटा रहा। #Railwhispers ने यह भी बताया कि कैसे #KMG के कोर ग्रुप में वे अधिकारी हैं जिन्होंने 50 साल से अधिक रेल भवन में गुजार दिया। क्या यह #Rotation ला पाते?
रेल में विभागवाद की लड़ाई और वर्चस्व के मूल में #Rotation का अभाव था और यह आज भी वैसा ही है। इस मकड़जाल से पैदा हुआ अधिकारी-वेंडर-नेक्सस, जिसने #RDSO जैसे संस्थानों को डायल्यूट/कम्प्रोमाइज कर दिया।
इसी #Rotation के अभाव में रेल भवन की विजिलेंस भी पूरी तरह से कम्प्रोमाइज हो गई। इस पर भी #Railwhispers ने विस्तार से लिखा।
#IRMS नाम का भद्दा मजाक!
यह बात किसी ने मंत्रियों को नहीं बताई कि #DRM, #GM के पद तो हमेशा से ex-cadre रहे। घूम-फिरकर आज का बोर्ड फिर उसी स्वरूप में उतना ही फंक्शनल है जितना 1986-87 से पहले था। तब #CRB एक्स कैडर, #MM और #ME इंजीनियरिंग सर्विसेज के और #MT, #MS और #FC सिविल सर्विसेज के थे।
पहले सीधे-सपाट तरीके से चयन होता था, पर्याप्त पारदर्शिता भी होती थी, यदि कुछ गलत भी होता था तो रिप्रजेंटेशन सही समय पर देकर भूल सुधार तुरंत हो जाता था। आज व्यवस्था ऐसा भद्दा मजाक बन गई है कि एडिशनल मेंबर और महाप्रबंधक दिन, हफ्ते और महीनों के हिसाब से बन पा रहे हैं और रिप्रजेंटेशन की व्यवस्था कुछ ऐसी बनी है कि जो काम पहले दिनों में होता था, अब उसे करने में कई महीने लग रहे हैं।
इसके साथ ही एक नई परिपाटी और चली-360 डिग्री फीडबैक की! ये व्यवस्था कितनी अच्छी है, यह तो इस बात से ही पता चल गया कि इसमें ऐसे लोग आए, जिन्होंने उन पदों पर काम ही नहीं किया जिनके चयन की संस्तुति वे दे रहे थे!
इस तथाकथित 360 डिग्री फीडबैक व्यवस्था के #SudheerKumar, #NavinKumar, #JitendraKumar, #Ganesh, #RKRai, #RKJha, #SKMishra, #SatishAgnihotri और #AmitabhMukherjee ऐसे कुछ ज्वलंत उदाहरण हैं, जिससे पता चलता है कि यह फीडबैक प्रणाली पूरी तरह से कम्प्रोमाइज्ड है, या बिना किसी अर्थ और औचित्य की!
वहीं एक इमोशनल इंटेलिजेंस नाम का स्कैम भी हुआ। #RTI में अनेक प्रयास के बाद भी रेलवे बोर्ड यह बताने को कोई तैयार नहीं कि कैसे इमोशनल इंटेलिजेंस के टेस्ट का टेंडर हुआ? किसने स्कोप बनाया? कैसे भारतीय समाज पर इसकी मान्यता सर्टिफाई किया? ये बात हम विस्तार से फिर करेंगे। लेकिन मुद्दे की बात यह है कि जहां इंटीग्रिटी की इतनी बात हो रही है, वहां इमोशनल इंटेलिजेंस टेस्ट, जो पेड-टेस्ट है, उसके चयन, उसकी खरीद और खर्च की बात क्यों छुपाई जा रही है। इस टेस्ट को #IRMS में चयन प्रक्रिया का प्रमुख भाग माना गया है।
मतलब यह कि इस प्रक्रिया के चयन में 360 डिग्री रिव्यू और इमोशनल इंटेलिजेंस पूरी तरह से अपारदर्शी हो गए हैं, इनको कैसे मेनीपुलेट किया जा रहा है, इसके बारे में भी हम पहले लिख चुके हैं। देखें-
“अगर यही करना था, तो एतना विलंब काहे किया महाप्रभु!“
“The team of Minister is manipulating 360 degree and resulted in a round loss of morale”
“#SOS! The uncertainty in Railway is on account of ill thought of transformation!”
“रेलमंत्री जी! जनसामान्य के फीडबैक से अपने निर्णयों को परिष्कृत करने से न घबराएं!”
“क्या खराब रिजल्ट की कीमत केवल रेलमंत्री ही चुकाएंगे?”
“#KMG: ‘Never A Bystander’ – A Standard & Deeper Analysis: पार्ट-1”
“#KMG: ‘Never A Bystander’ – A Standard & Deeper Analysis: पार्ट-2”
“#KMG: ‘Never A Bystander’ – A Standard & Deeper Analysis: पार्ट-3”
“Mantri ji, Today people may be afraid or just withdrawn – but they will not forget!”
#IRMS में रिप्रजेंटेशन की प्रक्रिया के टाइम फ्रेम को देखें-
मोदी जी ने अपनी सरकार को एक मंत्र दिया था, जिसकी चर्चा उन्होंने बार-बार की, वह यह था कि निर्णय लेने की सरकारी प्रक्रियाएं सरल होनी चाहिए और छोटी होनी चाहिए। यहां देखिए, #IRMS के ओरिजनल नोटिफिकेशन के प्रावधान के अनुसार बिना दूसरे रिप्रजेंटेशन का अवसर दिए ही L-16 का अगला पैनल #ACC के अप्रूवल के लिए भेज दिया गया। #PMO ने इस धृष्टता पर जब लताड़ लगाई तब 20 अप्रैल को नोटिफिकेशन निकाला गया और लेवल-16 में एम्पैनल होने के लिए दूसरा रिप्रेजेंटेशन देने की अंतिम तिथि 5 मई तय की गई। यहां भी रेल मंत्रालय की धृष्टता देखने लायक है कि उक्त दूसरे रिप्रजेंटेशन का निपटारा किए बिना अथवा उक्त तिथि बीते बिना ही 27 अप्रैल को एक दिन के बादशाह सहित 3-6-9 महीने वाले जीएम की पोस्टिंग हो जाती हैं। पुरानी व्यवस्था में किसी रिप्रजेंटेशन के कंसीडरेशन की अवस्था में पोस्ट खाली रखी जाती थी। वर्तमान व्यवस्था में तो चौतरफा अव्यवस्था का ही वातावरण स्थापित हो गया है। न कोई पोस्ट खाली रखी गई, न ही कहीं कोई पारदर्शिता दिख रही है। इस अनिश्चितता में देश का सबसे बड़ा और निचले स्तर तक सीधे जनता से जुडा सरकारी विभाग कैसे काम कर सकता है? #IRMS की प्रक्रिया इतनी क्लिष्ट और अपारदर्शी बन गई है कि उच्च स्तर पर बड़े अधिकारियों सहित कोई भी अधिकारी इसमें सहज नहीं हो पा रहा है।
रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड
कृपया #IRMS कैसे काम कर रहा है, उसका पुनः अवलोकन किया जाए। पुराने और नए तरीके में क्या अंतर है और कहां-कहां फायदा मिल रहा है, उसे देखा जाए। यहां रोग निवारण करना है, रोगी को मारना नहीं है, जैसा कि प्रतीत हो रहा है! अत: निम्नांकित महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर अविलंब खोजा जाए!
– क्या सिस्टम पारदर्शी है?
– क्या इसमें ग्रीवांस निवारण समय से हो पा रहा है?
– क्या 360 डिग्री की प्रक्रिया अपेक्षानुरूप सफल रही है?
– इमोशनल इंटेलिजेंस टेस्ट की खरीद में ऐसा कौन सा राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है कि इसको छिपाने की आवश्यकता पड़ रही है?
– जब सुप्रीम कोर्ट अपने कॉलेजियम के रेजोल्यूशन वेबसाइट पर डाल रहा है, तो रेल भवन अर्थात् रेल मंत्रालय अपने काम और अपने निर्णयों को पारदर्शी क्यों नहीं कर रहा?
रेलमंत्री जी, इस विश्लेषण के आधार पर आप यह निर्णय ले सकते हैं कि #IRMS को चलाना है, या नहीं! बाकी आपकी जैसी मर्जी, क्योंकि आपके सलाहकारों के चलते रेल व्यवस्था का पूरा क्रिया-कर्म तो हो ही चुका है! क्रमशः जारी…
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी