KMG: “Never A Bystander” – A Standard & Deeper Analysis: पार्ट-1
सिद्धार्थ देख रम्यता रोज ही फिर आते,
मन में कुत्सा का भाव नहीं, पर, जगता है,
समझाये उनको कौन, नहीं भारत वैसा दिल्ली के दर्पण में जैसा वह लगता है!
-भारत का यह रेशमी नगर, रामधारी सिंह ‘दिनकर’
पिछले कुछ साल भारतीय रेल के लिए बड़े ऊहापोह वाले रहे हैं। चाहे संगठनात्मक सुधार या बदलाव की बात रही हो, ट्रांसफर-पोस्टिंग की अनिश्चितता रही हो – सब तरफ से यही सुनाई दे रहा है – ‘समझ नहीं आ रहा कि सरकार क्या चाह रही है!’ जब रेल के शीर्ष पर बैठे अधिकारी और रिटायर्ड मेंबर और जनरल मैनेजर ये कहने लगें, तब स्वाभाविक है कि चिंता तो होगी!
सच मानें, तो हमें भी बहुत स्पष्टता से कुछ नहीं दिखाई दे रहा था, समझ नहीं आ रहा था – तब हमें एक सुधी पाठक ने #Advisor साहब की पुस्तक के बारे में बताया। और भाग्य देखिए, कि किताब खोलते ही निम्न वाक्य दिखा-
“First who, then what only works” (पेज नं. 223, सभी रेफरेंस – सुधीर कुमार उर्फ #Advisor साहब की पुस्तक से)।
तब वाकई लगा कि हम रेल के परिवर्तन अर्थात बदलाव को सीआरबी, रेलमंत्री, और प्रधानमंत्री से जोड़कर देखने की गलती कर रहे थे, इसीलिए कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा था।
जबकि हमें ट्रेस करना था उस ट्रेल को जो सतत रेल भवन में चल रही थी और किसी का उस ओर ध्यान नहीं गया था। हमने इस बात को अपने पाठकों से और अपने शुभचिंतकों से साझा किया, तब उद्घाटित हुआ कि रेलमंत्री या सरकार किसी की भी हो, सिस्टम किसी और का है – जहां नजर नहीं जा पा रही थी।
तब समझ आया कि रेल का अपना “खान मार्केट गैंग” है – सरकार किसी की हो, होगा वही जो ये चाहते हैं। इसीलिए सब सवालों का एक जवाब यह कि – #Advisor साहब क्या चाहते हैं?
रेल का खान मार्केट गैंग उर्फ #KMG
पुस्तक से यह भी स्पष्ट हुआ कि बेकार ही यूनियन लीडर मंत्री जी से पूछ रहे थे कि निगमीकरण (#Corporatisation) होगा कि नहीं! निजीकरण की दिशा क्या है! जबकि यह सब तो #Advisor साहब ने पहले ही अपनी किताब में लिख डाला है। यह भी लिखा है कि कैसे उन्होंने अपने विचार, अपने निजी संबंधों के कारण मनवा लिया, वह भी बिना किसी वृहद् विश्लेषण के!
क्या आपने कभी कोई वस्तु केवल उसके बारे में पढ़कर खरीदी है? जैसे कोई गाड़ी, या कोई निवेश (सागौन के प्लांटेशन याद आते हैं, कि कैसे आपके पैसे सागौन के पेड़ लगाकर कई गुना बढ़ जाएंगे – जो जब बड़े होंगे तब आपको कई गुना पैसे देंगे – योजना कागज पर कितनी अच्छी थी!), वैसे ही बड़े क्रिकेटर कई रियल इस्टेट और ब्रोकरेज के विज्ञापन करते रहे हैं, और इनके साथ बड़े अखबार, तो बड़ी बड़ी बातें करते ही रहते हैं। आप इनके प्रमोशनल मैटेरियल की सत्यता तभी जान पाते हैं जब आपका खुद का नुकसान हो चुका होता है। यही नैरेटिव बिल्डिंग की बात है!
इको-सिस्टम के लिए हत्याएं और अत्याचार के लिए भी सुंदर एक्सप्लेनेशन थे जो बड़े अखबारों से बांटे गए और हजारों लोगों ने उस पर विश्वास भी किया। जहां अफजल गुरु को सुप्रीम कोर्ट ने संसद पर हुए हमले का दोषी माना, वहीं #JNU और #KMG के इको-सिस्टम ने इस दुर्दांत आतंकवादी की सजा को जूडिशियल मर्डर (न्यायिक हत्या) माना। बड़े-बड़े कथित लेखकों और पत्रकारों ने इस पर नैरेटिव भी बनाया। घटना जो हुई और जो दिखाई गई, कितनी अलग थी, याद है ना!
निश्चित है कि सवाल आएगा – सिस्टम की राधिका मेनन कौन हैं? ये कैसा इको-सिस्टम है? इसे कैसे बनाया गया? इन सवालों का हमने #KMG सीरीज में जवाब देने की कोशिश की – और बताया कि कैसे मोदी सरकार मंत्री बदलती गई लेकिन सिस्टम में छुपे हुए #KMG का कुछ नहीं कर पाई, क्योंकि ये लोग उनकी नजर से छिपे हुए थे।
जबकि मंत्रियों को ये लगता था कि इनसे बढ़िया रेल की समस्याओं का एनालिसिस किसी के पास नहीं। ये समूह इस बात को बहुत अच्छे से समझता था कि राजनीतिक नेतृत्व क्या चाहता है – मोदीजी के ट्रांसफॉर्म एंड परफॉर्म को बड़ी फुर्ती से पकड़कर ट्रांसफार्मेशन डायरेक्टोरेट बनवाया गया और बहुत सारे पुराने सर्कुलर तथा निर्णयों को फेरफार कर बदला गया, ताकि अपनी सोच नई सरकार के साथ अलाइंड दिखे।
हमने आप सबसे ली गई फीडबैक से रेल के इस इको-सिस्टम को उकेरा। सच मानें तो हम स्वयं विस्मित हो गए कि कैसे इतनी बड़ी बात लोगों से छिपाकर रखी गई! मंत्री और सीआरबी क्या पढ़ते हैं, क्या देखते हैं, क्या सुनते हैं, और क्या चाहते हैं – यह सब पूरी तरह कंट्रोल्ड है इस मकड़जाल से!
स्वयं की सोच, स्वयं के विचार, कैसे उन्हें मनवाने के लिए ‘hyperbole’, आधा सच दिखाकर पूरा झूठ बेच देना है #Advisor साहब की जीवनी में, जिसका विश्लेषण हम प्रारंभ कर रहे हैं!
Never A Bystander – यह शीर्षक ही सब कुछ बयान कर देता है कि आपका दखल हर जगह रहा!
₹900 मूल्य की स्टर्लिंग पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित #Advisor साहब की जीवनी का नाम “Never a Bystander” है। जीवनी है तो अपने द्वारा किए गोरखधंधों का एक्सप्लेनेशन भी प्रचुर मात्रा में है। आपका कैरियर, जिसका अधिकांश हिस्सा दिल्ली में निकला, वहां आप #AIDS के पुरोधा और दिल्ली की ‘रेल राजनीति’ के सिकंदर रहे!
चलिए, इसका विश्लेषण प्रारंभ करें, चूंकि-
#Advisor बात करते हैं-
sub-scale self regard – p.252
sub-scale self-actualisation – p.254
sub-scale assertiveness – p.257
sub-scale independence – p.257
sub-scale empathy – p.259
sub-scale social responsibility – p.261
sub-scale problem solving – p.261
sub-scale reality test – p.263
sub-scale impulse control – p.263
sub-scale flexibility – p.264
sub-scale stress-tolerance – p.264
sub-scale optimism – p.265
sub-scale emotional self-awareness – p.256
sub-scale interpersonal relations – p.259
इनमें वह दो-चार चीजें बताना भूल जाते हैं, जो ‘सब-स्केल’ नहीं हैं, वे हैं-
• अनकंट्रोल्ड सेल्फ-प्रमोशन (uncontrolled self-promotion): इनकी पुस्तक में ‘मैं’ इतना बड़ा है – जैसे इनसे पहले कोई भी डीआरएम या बोर्ड का अधिकारी काम ही नहीं किया, जबकि रेल में ऐसे महाप्रबंधक रहे हैं जिन्होंने आतंकवादियों की गोली भी खायी और रेल का झंडा भी ऊँचा रखा,
• पालिसी-इंटीग्रिटी (policy integrity): अपने विस्मय और महत्त्वकांक्षा से अभिभूत होकर निर्णय लेना – मगर रेल और देश के लिए नहीं,
• टेक्निकल कॉम्पिटेंस अपने टेक्निकल विषय के बारे में (technical competence in subject of electric locomotives): सीमित इंजीनियरिंग नॉलेज विद्युत लोकोमोटिव्स के बारे में,
• इंटिमिडेशन (intimidation): डराना, धमकाना और वर्चस्व की लड़ाई में कैसे जीतना है,
• अपनी महत्त्वकांक्षा के लिए क्रूर (brutally driven to fulfil ambition): कैसे अपने ही 11 बैचमेट्स की #APAR खराब कराना,
• सेलिंग स्नेक आयल (selling snake oil): कैसे आधे सच को आधार बनाकर अपने पूरे झूठ को बेच देना, और महत्वाकांक्षा से प्रेरित अपने काम करवाना।
पता नहीं, डॉ राजेश्वर उपाध्याय ने इन्हें देखा कि नहीं – उनका ये कहना कि-
“Ace professional with deep and reflective experience, Sudheer Kumar brings 31 chapters of delightful engagement. What you will experience is relentless leadership, quietly”. (किताब के पिछले कवर-जैकेट पर)।
उपाध्याय जी के उपरोक्त निष्कर्ष से उन्हीं के ऊपर संदेह पैदा होता है!
कैसे उन्होंने अपना निष्कर्ष निकाल लिया उन दो चार लोगों से मिलकर, अश्विनी लोहानी, विनोद कुमार यादव, सुधीर कुमार जैसे लोग, जिन्होंने रेल में शायद ही कभी वह काम किया जिसके लिए उन्हें सरकार ने भर्ती किया था। विनोद कुमार यादव तो रेल में आए ही थे पैराशूटर बनकर केवल डीआरएम, जीएम और सीआरबी बनने के लिए, यही हाल लोहानी साहब का भी रहा, यह सिस्टम में आते थे, हरे-भरे चारागाह में दौड़ लगाने के लिए। सुधीर कुमार उर्फ टेंडरमैन (#TenderMan) ने तो अपना पूरा सर्विस काल रेल भवन में ही निकाल दिया – कैसे उनकी लीडरशिप पर ऐसा निष्कर्ष निकल गया?
ऐसे तो सभी #KashmirFiles की प्रो. राधिका मेनन और अर्बन नक्सल नोबल शांति पुरस्कार के हकदार बन जाते हैं – क्योंकि इनके काम और उसके परिणाम को नहीं, उनके प्रमोशनल मैटेरियल को ही देखा जाना है। #FactChecker मो.जुबैर का नाम भी तो इस पुरस्कार के लिए बाजार में घूम रहा था। उपाध्याय जी आपको अपने निष्कर्षों पर पुनर्विचार करना होगा – व्यक्तिगत इंटीग्रिटी का मापदंड आपके निष्कर्ष निकालने की प्रक्रिया है – आपके निष्कर्ष इस मापदंड पर भी तुल रहे हैं कि आपके कॉलेज #ISB को और आपकी कंपनी को कई सिंगल टेंडर पर काम मिले हैं!
सच तो ये है कि बरसाती मेंढ़क मौसम के साथ सुर बदल देते हैं, #AIDS का टूलकिट भी कुछ ऐसा ही है। जैसा बॉस को चाहिए, वह आपका कन्विक्शन बन जाता है। बॉस बदला, कन्विक्शन भी बदल गया!
रेल की इलेक्ट्रिकल-मैकेनिकल की लड़ाई के अग्रणी योद्धा सुधीर कुमार रहे हैं, जिन्होंने ट्रेनसेट डायरेक्टोरेट (#TrainsetDirectorate) बनवा दिया जब अश्विनी लोहानी सीआरबी थे, और बंद करवा दिया जब विनोद कुमार यादव सीआरबी थे!
जापानियों के समझाने के बावजूद पश्चिमी फ्रेट कॉरिडोर हाई ओएचई पर बनवा दिया जबकि अब तक रेल और दुनिया में वह पैंटोग्राफ नहीं बना जो अच्छे से चल सके। यदि 80,000 वैगन खरीदना संभव था तो वेल वैगन क्यों नहीं जो डबल स्टैक कंटेनर के लिए उचित हल हैं? लेकिन अरबों-खरबों का निवेश हो गया! केवल इलेक्ट्रिकल-मैकेनिकल की लड़ाई के चलते, और इस तकनीक का श्रेय भी स्वयं ले लिया (p.64)। आज तक रेल इस पैंटोग्राफ से जूझ रही है – जिसे ‘हाई रीच पैंटोग्राफ’ कहते हैं।
यह वह अधिकारी हैं जिनके कारण रेल की समस्याएं गहरी हुईं और उपाध्यायजी के स्वयं के सब-स्केल ‘वाइड व्यू लेने की एबिलिटी’ (ability to take wide view) पर सीधा सवाल उठता है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मैनेजमेंट के यह वह पुरोधा हैं, जो आपकी घड़ी उधार मांगकर आपको ही समय बताते हैं!
ये स्वाभाविक है कि उपाध्याय जी के इमोशनल टेस्ट में बेवकूफ बनाने की कला का भी कोई माप होना चाहिए। उनके द्वारा ऐसे snake oil salesman को बढ़ावा देना, केवल उनके ऊपर ही नहीं, बल्कि उनकी सोच, उनकी मानसिकता और उनकी क्षमता पर भी सवाल उठाता है!
यहां “snake oil salesman” के बारे में भी स्पष्ट करना आवश्यक है-
“Snake oil is a term used to describe deceptive marketing, health care fraud, or a scam. Similarly, ‘snake oil salesman’ is a common expression used to describe someone who sells, promotes, or is a general proponent of some valueless or fraudulent cure, remedy, or solution”.
https://en.wikipedia.org/wiki/Snake_oil
कैसे कोई केवल एक पक्ष की बातें टेबल पर बैठकर आपको विश्वास दिला सकता है कि यही व्यक्ति रेल का भाग्यविधाता है? ये कौन सी मैच्योरिटी है? क्रमशः जारी…
https://www.deshbandhu.co.in/parishist/this-silk-city-of-india-71852-2)
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
#TransformationDirectorate
#TrainsetDirectorate #RDSO #IndianRailways #RailwayBoard