अगर यही करना था, तो एतना विलंब काहे किया महाप्रभु !

अंततः रेल मंत्रालय ने जारी किए बीस डीआरएम की पोस्टिंग के आर्डर

डीआरएम पोस्टिंग में एज-बैरियर हटने की उम्मीद कर रहे अधिकारी हुए निराश

रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) ने डीआरएम बनने के इच्छुक अधिकारियों का लगभग एक साल का कीमती समय नष्ट करके अंततः गुरुवार, 6 अक्टूबर को 20 मंडल रेल प्रबंधकों (डीआरएम) की पोस्टिंग के आर्डर जारी कर दिए।

जानकारों का कहना है कि “अगर 52 साल की क्राइटेरिया ही रखना था, तो फिर डीआरएम की पोस्टिंग में इतनी – लगभग एक साल की – देरी करने का क्या औचित्य था?”

उनका कहना था कि “अगर इतनी लंबी अवधि में भी एक बिंदु – 52 साल का एज-बैरियर – नहीं हटाया जा सका, अथवा व्यवस्था के लिए इसका उचित-अनुचित होना तय नहीं किया जा सका, तब रेलवे बोर्ड में बैठे तथाकथित मैनेजमेंट एक्सपर्ट्स की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह क्यों न लगाया जाए!”

उन्होंने कहा कि उल्टे रेलवे बोर्ड की इस अक्षम्य देरी यानि लेट-लतीफी के चलते कई योग्य अधिकारी 52 साल की क्राइटेरिया से बाहर हो गए और रेलवे को इन 20 में से, एक-दो को छोड़कर, पहले वालों की भांति अधिकांश नॉन-परफार्मर और भ्रष्टतम की जामात ही मिली है, जिनकी एकमात्र योग्यता उनकी डीओबी ही है।

उन्होंने यह भी कहा कि “इसमें वह ‘भीतरघाती शिशुपाल’ भी पुनः पुरस्कृत हो गए हैं, जो सरकार में बैठकर सरकार की ही जड़ें खोखली कर रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसे अहंकारी, उद्दंड और केवल अपने उच्च संपर्कों का लाभ उठाने वाले ‘शिशुपालों’ से व्यवस्था का कोई भला नहीं होने वाला है!”

उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह है कि रेलवे के तथाकथित सुधार का अंततः कुछ नहीं होना है और ‘एज क्राइटेरिया’ समाप्त होने की जो उम्मीद हजारों योग्य, सक्षम एवं निष्ठावान अधिकारियों ने लगा रखी थी, और उनमें रेलमंत्री की मंशा को लेकर जो उत्साह पैदा हुआ था, वह धरा का धरा ही रह गया!

उनका यह भी कहना है कि अब क्या आलोचना से बचने के लिए यही तरीका जीएम और बोर्ड मेंबर्स की पोस्टिंग के लिए अपनाया जाएगा! क्योंकि उनके पद भी लगभग आठ महीनों से खाली चल रहे हैं और लुकिंग ऑफ्टर लुकिंग चार्ज के चलते केवल ‘साइनिंग अथॉरिटी’ बनकर रह जाने से लोग उकता गए हैं।

बहरहाल, यह बहुत सही है कि निर्णय लेने में हुई इस देरी का फायदा उन दुष्ट लोगों को ही मिला है, जो शुरू से यह दबाव बनाने में लगे थे, कि ‘एज क्राइटेरिया’ अर्थात पालिसी जब डिसाइड होगी, तब होगी, तब इम्प्लीमेंट की जाएगी, मगर व्यवस्था को चलाने के लिए प्रमोशन – पोस्टिंग नहीं रोकी जानी चाहिए। और इसमें वह सफल हो गए हैं। यही है निर्णय लेने में अति-विलंब करने का अर्थ!

इसका अर्थ यह भी है कि सभी आठों ऑर्गनाइज सर्विसेज के एकीकरण की नई नीति – आईआरएमएस – अगर तीन साल की लंबी अवधि में भी कुशलतापूर्वक लागू करने (इम्प्लीमेंटेशन) की स्थिति तक नहीं पहुंच पाई है, तो या तो पालिसी में गड़बड़ है, या फिर पालिसी बनाने और लागू करने वाले लोग अपना दायित्व सही तरीके से नहीं निभा रहे हैं! इस पर सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। क्रमशः

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