रेलवे के कायाकल्प में नहीं है किसी की भी कोई रुचि! अधिकतम लाभ लेकर निकल लेना है, रेल और देश जाए भाड़ में!
गुरुवार, 6 अक्टूबर को #Railwhispers की एडवाइजर सुधीर कुमार से संबंधित उस दिन की खबर – “How is Sudhir Kumar different from Satish Agnihotri?“ और लिंक्ड ट्वीट – के परिप्रेक्ष्य में हड़बड़ाकर आनन-फानन में 20 डीआरएम की पोस्टिंग के जो आर्डर जारी किए गए, उससे रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) की एजेंडाबाज तिकड़ी पूरी तरह एक्सपोज हो गई है।
तथापि इसके पीछे उसकी वाहवाही पाने की जो लक्षित मंशा थी, वह धरी रह गई, क्योंकि इस निर्णय की न केवल चौतरफा आलोचना हुई, बल्कि पक्षपाती एज-क्राइटेरिया वाली व्यवस्था को तिलांजलि देकर रेल में उचित रिफार्म की आस लगाए बैठे योग्य, सक्षम और निष्ठावान अधिकारियों में इससे हताशा-निराशा और अधिक गहरा गई।
मगर इसकी आड़ में जहां एक तरफ इस धूर्त तिकड़ी ने 52 साल के एज-क्राइटेरिया की पक्षधर रही टुकड़खोर लॉबी का एजेंडा ही फुलफिल किया, वहीं दूसरी तरफ इस निर्णय से बदनामी और आलोचना का ठीकरा यह कहकर रेलमंत्री एवं चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड के सिर फूटा कि अगर यही करना था, तो इसके लिए एक साल की देरी करने का क्या औचित्य था!
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बहरहाल, बुरी तरह हताश, निराश अधिकारियों से बातचीत के बाद जो तथ्य उभरकर सामने आए, वह इस प्रकार हैं –
1. ज्वाइंट सेक्रेटरी के लिए जो एम्पैनलमेंट होता है, वह एक निश्चित अवधि (सर्टेन पीरियड) के लिए मान्य (वैलीड) होता है। वह तब तक के लिए स्थाई होता है, जब तक कि उसमें पैनल्ड संबंधित सभी लोग ऊपर के ग्रेड के लिए एम्पैनल न हो जाएं!
2. फिर डीआरएम पैनल को हर साल बनाने का औचित्य क्या है? जब तक बनाए गए पैनल से हर अधिकारी को डीआरएम पद पर कार्य करने का अवसर न मिल जाए!
3. सबसे न्यायोचित तरीका तो यही है कि बनाए गए पैनल के हर अधिकारी को डीआरएम बनने का अवसर मिले। अन्यथा रेलवे में अभी तक जो चल रहा है वह पूरी तरह मनमानी व्यवस्था है, जो न्याय की किसी भी कसौटी पर खरी नहीं उतरती।
4. एक पैनल जो आप हर साल बनाते हो, केवल एक चीज सुनिश्चित करने के लिए कि कोई 52 साल से अधिक का अधिकारी डीआरएम न बन जाए, और दूसरी तरफ जानबूझकर पैनल बनाने तथा पोस्टिंग करने में देरी करते हो कि कई लोग 52 साल की समय-सीमा के बाहर निकल जाएं, और फिर आगे के बैचेज के कुछ लोगों को इसका उचित-अनुचित लाभ दिया जा सके!
इस तरह का शातिर और अन्यायपूर्ण कृत्य रेलवे बोर्ड ही कर सकता है, और लगातार करता आ रहा है, जबकि किसी भी पैनल में विलंब करके जो आप व्यवस्था के साथ और लोगों के कैरिअर के साथ आपराधिक मनमानी कर रहे हैं, उसके पीछे की मंशा और भ्रष्टाचार की जांच होनी चाहिए तथा दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए।
कई पूर्व/वर्तमान अधिकारियों का स्पष्ट कहना है कि “52 साल का क्राइटेरिया, रेलवे को रसातल में ले जाने का एकमात्र सबसे बड़ा कारण रहा है, और #RailSamachar एवं #Railwhispers दोनों ने इस विषय पर विस्तार से लिखा था जो कि हजारों रेल कर्मचारियों, अधिकारियों और रेलवे के अन्य स्टेक होल्डर्स से बातचीत, चर्चा और उनके फीडबैक पर आधारित था। लेकिन ऐसा लगता है कि रेलवे के कायाकल्प में किसी पॉलिटिकल पार्टी, सरकार और मंत्री-संत्री की कोई रुचि नहीं है। यह सभी अपनी वर्तमान स्थिति से अधिकतम लाभ लेते हुए निकल लेना चाहते हैं। रेल और देश जाए भाड़ में ! इनकी बला से !!”
रेल प्रशासन, रेलवे बोर्ड और रेलमंत्री तथा चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड यहां दिए गए पूर्व खबरों के लिंक खोलकर उनका पुनः अवलोकन करें और देखें कि उनके मातहतों की क्या ओपिनियन रही है –
Please Read: “उपयुक्त सुधार के बिना #डीआरएम की पोस्टिंग में जल्दबाजी न की जाए!“
Please Read: “समय की कोई समस्या नहीं, जितना चाहें उतना लें, मगर काम पुख्ता होना चाहिए!“
Please Read: “नीति पुख्ता और स्पष्ट बने, समय भले ही जितना लगे!“
Please Read: “रेलवे को डुबा रहा है प्रशासनिक तदर्थवाद!“
Please Read: “रेल मंत्रालय, बायजस की कोचिंग क्लास नहीं है!“
Please Read: “Indian Railways makes EQ test mandatory for the top posts”
Please Read: “सुस्पष्ट नीति और नीयत के अभाव में जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति के उद्देश्य पर स्वाभाविक रूप से पैदा होता है संदेह!“
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