KMG: “Never A Bystander” – A Standard & Deeper Analysis: पार्ट-3

Pulling off a fraud in broad daylight – Truth Behind Hype of Emotional Intelligence

क्या इमोशनल इंटेलिजेंस का #KMG अपने जैसे सिस्टम के नंबरी चालबाज लोगों का चयन करने के लिए एक टूल के रूप में उपयोग कर रहा है? क्या इसीलिए आईआरएमएस जैसी बिना सोची-समझी चयन प्रणाली को इंट्रोड्यूस किया गया है? निगाह रखें, अभी बहुत कुछ देखने को मिलेगा! क्योंकि अब धीरे-धीरे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि नेताओं, सांसदों, मंत्रियों को गुमराह कर #KMG जैसे गैंगों से जुड़े कुछ धूर्त नौकरशाह विदेशी भेदिए बनकर हमारे सिस्टम को भीतर से खोखला कर रहे हैं!

https://www.kooapp.com/koo/RailSamachar/1c730592-c38c-46fc-af57-80a110eb5a7e

KMG: Never A Bystander – A Standard & Deeper Analysis: पार्ट-1 और KMG: Never A Bystander – A Standard & Deeper Analysis: पार्ट-2 में हमने ये जाना कि कैसे रेल के सारे महत्वपूर्ण बदलाव के तार #Advisor साहब से जुड़ते हैं। कैसे संगठनात्क परिवर्तन, जिसमें रेल का, रेल की फैक्ट्री और वर्कशॉप्स का प्रारूप बिना किसी चर्चा के बदल दिया जाता है। हम अब ये देखने का प्रयास करेंगे कि कैसे #Advisor साहब ने समय समय पर अपनी उच्च मैनीपुलेशन की क्षमता का उपयोग किया, जिसे उन्होंने 14 सब-स्केल पर मापा – पृष्ठ सं. 252-259। पार्ट-2 में हमने पाठकों को वे पैरामीटर बताए जो #Advisor साहब के क्राउडसोर्स्ड 360° डिग्री रिव्यू से पता चले और उसका उन्होंने जिक्र नहीं किया अपनी जीवनी में। वे ट्रेट हैं – ये उनके 360° रिव्यू का सारांश मात्र हैं – क्षमा करें, हम जीवनी की समीक्षा के नाम पर एक पूरी पुस्तक प्रकाशित नहीं कर सकते-

– अनकंट्रोल्ड सेल्फ-प्रमोशन (uncontrolled self-promotion): उनकी पुस्तक में ‘मैं’ इतना बड़ा है – जैसे उनसे पहले कोई भी डीआरएम या बोर्ड के अधिकारी के तौर पर रेल में काम नहीं किया, जबकि रेल में ऐसे महाप्रबंधक रहे हैं जिन्होंने आतंकवादियों की गोली भी खाई और रेल का झंडा भी ऊँचा रखा,

– पॉलिसी-इंटीग्रिटी (policy integrity): अपने विस्मय और महत्वाकांक्षा से अभिभूत हो निर्णय लेना – रेल और देश के लिए नहीं, लाखों करोड़ के फैसले अल्पज्ञान और अल्प समझ से लेना,

– टेक्निकल कॉम्पिटेंस अपने टेक्निकल विषय के बारे में (technical competence in subject of electric locomotives): सीमित इंजीनियरिंग नॉलेज विद्युत लोकोमोटिव्स के बारे में, गलत निर्णयों से हो रहे नुकसान की जानकारी को छुपाना अपने कद/पद और रेलमंत्री से निकटता से लोगों को डराकर,

– इंटिमिडेशन (intimidation): डराना, धमकाना और वर्चस्व की लड़ाई में कैसे जीतना है,

– अपनी महत्वाकांक्षा के लिए क्रूर (brutally driven to fulfil ambition): कैसे अपने ही सीनियर 11 बैचमेट्स की #APAR खराब कराना,

– सेलिंग स्नेक आयल (selling snake oil): कैसे आधे सच को आधार बनाकर अपना पूरा झूठ चला देना और महत्वाकांक्षा से प्रेरित अपने काम करवाना।

भयावह मानसिक अवस्था

पार्ट-2 में हमने ये भी देखा कि किस तरह #Advisor साहब, राजेश्वर उपाध्याय- जो कनाडा की इमोशनल इंटेलिजेंस टेस्टिंग कंपनी से जुड़े हैं,  से इतने अभिभूत हो गए कि स्वयं का विवेक खो बैठे। हमने उन्हीं की पुस्तक के पृष्ठ 235 से कोटेशन उद्धृत किए, जो बताते हैं कि कैसे वह राजेश्वर उपाध्याय के सामने अपनी सुधबुध खो बैठे हैं। इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठे हुए जहां वह लाखों रेलकर्मी, लाखों करोड़ के निवेश, दसियों लाख छात्रों के भविष्य को प्रभावित केर रहे हों, उनका इस मानसिक अवस्था में आना भयावह है।

अपनी सुधबुध खोकर लेवल-5 के अपने गुरु को एकाग्रचित्त होकर सुनता एक चेला!

क्या इस तथ्य का संज्ञान मंत्री जी और सीआरबी साहब ने लिया है? यदि नहीं, तो हो सकता है आने वाले समय में आपको कई परेशान करने वाले सवालों का जवाब ढूंढ़ना पड़े। #KMG का नंगा नाच तो लाखों रेलकर्मी देख ही रहे हैं, लेकिन ऐसी मनःस्थिति जिसमें जब NSE की फाउंडर एमडी चित्रा रामकृष्णन को पाया गया, तो सवाल ये पूछा गया कि, ‘was she left with any agency to act independently on her own volition in this state of mind?’ उनका हश्र आपको पता ही है!

रेल संगठनों की बेमानी आलोचना-अपने कृत्यों से पल्ला झाड़ने का प्रयास

#Advisor साहब का ये कन्विक्शन है कि रेलकर्मी नई टेक्नोलॉजी को आत्मसात नहीं कर सकते। लेकिन हमने ये जाना कि कैसे 1999 से लेकर अभी तक रेलवे बोर्ड में कार्यरत रहकर उन्होंने इस विषय को अपनी जीवनी में कतई नहीं छेड़ा कि क्यों विदेश में ट्रेनिंग पर भेजे हुए अधिकारी उस काम पर नहीं लगाए गए जिसके लिए उन पर सरकार ने पैसा खर्च किया? विदेश की ट्रेनिंग मात्र पारिवारिक भ्रमण बनकर रह गईं, और इस कारण नई टेक्नोलॉजी समझने में असहाय रेल संगठनों की दयनीय अवस्था आपने बड़े टेंडर देने का जस्टिफिकेशन बना दिया।

वहीं जानकार बताते हैं, चीन ने विदेशी टेक्नालॉजी को आत्मसात् किया और आज दुनिया के सबसे बड़े रेल उद्योग का निर्यातक बन गया। जानकार यह भी बताते हैं कि #टेंडरमैन के मॉडल में MSME का कोई स्थान नहीं। 1999 से कौन ट्रेनिंग में जाएगा, कौन कहां पोस्ट होगा – फैक्ट्री/प्रोडक्शन यूनिट, वर्कशॉप, आरडीएसओ में – इसका नियंत्रण भी आपके पास रहा, लेकिन इस फेलियर की जिम्मेदारी आपने नहीं ली कि ट्रेनिंग से लौटकर आए इंजीनियर उस काम से संबद्ध नहीं हुए जिसकी ट्रेनिंग उन्हें दी गई।

#एडवाइजर साहब की किताब में इस बात का भी उल्लेख नहीं है कि कैसे यूरोप के टूर पेरिस के मशहूर नाईटक्लब में रेल अधिकारियों को ठेकेदारों द्वारा दी गई पार्टी के बिना खत्म नहीं होते थे। शायद चीन के रेल मंत्रालय के पास ऐसी दिव्य #सुधीरदृष्टि नहीं थी!

आपकी सीमित सोच, अल्पज्ञान रेल अधिकारियों के ज्ञान का बेंचमार्क

आपके आस-पास आपको वैसे लोग चाहिए जो आपसे हां-में-हां मिला सकें और आपसे वैचारिक रूप से छोटे दिखें। आपकी अपनी सीमित सोच और अल्पज्ञान को आपने सभी रेल अधिकारियों का भी बेंचमार्क मान लिया। वैसी ही आपकी मंडली है जिसे आपने सीआरबी और रेलमंत्री सेल में भर दिया – पार्ट-1 के चार्ट को देखें!

हमने ये भी देखा कि 1995 में दुनिया के हर देश में बेस्ट्सेलर रही डैनियल गोलमैन की किताब के बारे में आपको अक्टूबर 2018 में पता चला- पृष्ठ 230 पर दिया हुआ आपका यह कन्फेशन बहुत चिंताजनक रहस्योद्घाटन है, और इस बात का एकतरफा निर्णय आपने ले लिया कि चाहे सिंगल टेंडर ही क्यों न हो, यही एकमात्र इमोशनल इंटेलिजेंस की तकनीक रेल रिफार्म लिए ठीक है!

इस अल्पज्ञान और महत्वाकांक्षा के चलते न केवल सेवारत अधिकारियों में रोष है, बल्कि आपके और आपके #KMG के द्वारा जनित #IRMS ने देश के लाखों छात्रों को क्षुब्ध कर दिया है! खैर, इसकी राजनैतिक कीमत तो मंत्री ही चुकाएंगे – 15 Oct, क्या खराब रिजल्ट की कीमत केवल रेलमंत्री ही चुकाएंगे?

आपको क्या? ये देखने का विषय है कि #KMG के कई कर्णधार अपने बच्चों को विदेशों में पढ़ा रहे हैं या जैसा पुस्तक में लिखा है- पृष्ठ 267, पढ़ा चुके हैं – उनको क्या मतलब की जमीन से जुड़ी सरकार से आम जनता और गरीब छात्रों को क्या अपेक्षाएं हैं। गरीब युवा के लिए रेल की नौकरी एस्पिरेशनल है, यह भी शायद आपकी सोच से परे है!

खैर, अब यह तो स्पष्ट हो गया है कि रेल मंत्रालय का #KMG, सरकार को सांप-छछूंदर की स्थिति में ले आया है। आप बस किसी रेल अधिकारी के ट्वीट के जवाब में जनता के रिप्लाई देखें – #Railwhispers क्या कह रहा है, आपको समझ आ जाएगा। हमारा काम चेताना था जो हम बखूबी कर रहे हैं। मंत्रीजी आप भले ही #KMG के अल्पज्ञानवश, कफन को सफलता का साफा समझें, बांधने के लिए तत्पर हों, लेकिन हम आपको बताने से नहीं चूकेंगे कि ये राजनीतिक कफन है, उपलब्धि का साफा नहीं! ये याद रहे कि #KMG ने मोदी सरकार के आपसे पहले तीन मंत्री ही नहीं, बल्कि मनमोहन सरकार के भी कई मंत्री निगल लिए हैं। इनके प्रति आपका प्रेम और निर्भरता आपके ‘इमोशनल’ होने की तरफ इशारा करता है, क्षमा करें, ‘इमोशनल इंटेलिजेंस’ की तरफ नहीं!

इमोशनल इंटेलिजेंस टेस्ट – क्यों हो रहा है और इसके स्कोर का क्या उपयोग हो रहा है!

हमें इस प्रश्न को उठाए काफी समय हो गया – लेकिन, इस विषय पर #KMG के बहुचर्चित सदस्य जो स्टैब्लिशमेंट अफसर बने बैठे हैं, सन्नाटा खींचे हैं। क्या अजब रेल की स्थिति है, फाइलों पर इतने बड़े हेर-फेर के प्रकाशन के बाद भी वह न केवल डटे हुए हैं, अपितु, उनके द्वारा बोर्ड सदस्य, महाप्रबंधक, डीआरएम, डेपुटेशन, एम्पैनलमेंट जैसे सब काम हो रहे हैं। स्मरण रहे, नवीन कुमार – जो स्टैब्लिशमेंट अफसर हैं – उनकी भर्ती भारत सरकार ने यूपीएससी द्वारा बतौर विद्युत इंजीनियर की थी। अपने लंबे कैरियर में इस काम को छोड़कर उन्होंने सब जगह प्रचुर मात्रा में न केवल रायता फैलाया है, बल्कि उनके नाकाबिल होने के कारण, #IRMS आज रेलवे के गले की हड्डी बनकर मोदी सरकार के लिए युवाओं से आंखें चुराने का सबब बन गया है।

इन प्रकरणों से अगर स्टैब्लिशमेंट अफसर का इमोशनल इंटेलिजेंस स्कोर अव्वल है, यह पता चलता है, तो उनकी जय हो!

चूंकि इमोशनल इंटेलिजेंस के नाम पर सिंगल टेंडर दिए गए, उसके लेवल-5 के एक्सपर्ट ने #टेंडरमैन को अपने वश में रखा है और चूंकि इस प्रक्रिया से रेल का पूरा शीर्ष नेतृत्व निकलेगा, तथापि सिस्टम इस पर चुप्पी साधे है, अतः #Railwhispers कुछ बातें आपके सामने लाना चाहेगा!

यहां सबसे पहले आपका ध्यान इकोनॉमिक टाइम्स की 23 दिसंबर 2018 की इस खबर पर आकर्षित करना चाहेंगे, जहां राजेश्वर उपाध्याय इसकी तारीफ करते हैं और एक पूर्व रेलमंत्री महत्वपूर्ण सवाल उठाते हैं-

https://economictimes.indiatimes.com/industry/transportation/railways/indian-railways-makes-eq-test-mandatory-for-top-posts/articleshow/92462018.cms?from=mdr

“But the way the Railways is emphasising on building a culture of emotional intelligence among its leaders is unprecedented in the Indian government”, says Rajeshwar Upadhyay, a master trainer on emotional intelligence, who anchored the recent workshop at the railway academy in Vadodara. But former railway minister Dinesh Trivedi is not convinced that training officers on emotional intelligence will give any meaningful result. “Indian Railways is a perfect organisation with a huge talent pool. You don’t need an outside expert to fiddle around with training. The Railways needs to address basic issues such as rising operating ratio (expenses as a percentage of revenue), favouritism & politicisation”, says the Trinamool Congress leader. But railways have made up their mind, ‘the babu has to be intelligent, emotionally’.

पार्ट-2 में एक पाठक की संक्षिप्त टिप्पणी को हमने प्रकाशित किया था। उस टिप्पणी ने विचारों की एक श्रृंखला प्रारंभ की है।

False Gods of Emotional Intelligence

इमोशनल इंटेलिजेंस एक माप बना कि कैसे आप अपने इमोशंस को नियंत्रण में रखते हैं और अपने आसपास के लोगों के इमोशंस को बेहतर समझकर उनका नेतृत्व और अच्छे से कर सकते हैं।

अभिभावक यदि अच्छी इमोशनल इंटेलिजेंस रखते हैं, तो निश्चित ही वे अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दे सकते हैं। लेकिन मनोविज्ञान के साहित्य को टटोलने से पता चलता है कि उच्च इमोशनल इंटेलिजेंस किसी फ्रॉड या चालबाज (420) व्यक्ति की क्षमता का फोर्स मल्टीप्लायर है, अर्थात् ऊँची इमोशनल इंटेलिजेंस ऐसे व्यक्ति को बहुत शक्तिशाली बना देती है।

हमने एक मनोवैज्ञानिक से संपर्क किया और उनसे इमोशनल इंटेलिजेंस के बारे में क्रिटिकल विश्लेषण का निवेदन किया। चूंकि #Railwhispers का संपर्क निजी स्तर पर है, हमें विश्वास है कि हमें पूरी प्रामाणिक जानकारी मिली, क्योंकि रेल मंत्रालय की तरह हमारे सलाहकार का इसमें लेवल-5 मास्टर ट्रेनर की भांति कोई आर्थिक लाभ नहीं था। इस जानकारी का हमने एक अन्य मनोवैज्ञानिक से पुनर्समीक्षा (सेकेंड ओपिनियन) लेने का प्रयास भी किया – उनका ये मानना था कि ‘जिस टेक्निक से #Railwhispers को जानकारी दी गई है वह रिसर्च मेथोडोलॉजी सम्मत प्रामाणिक व्यवस्था है।’

उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई कि इमोशनल इंटेलिजेंस जैसे विषय पर रेल मंत्रालय ने यह विश्लेषण क्यों नहीं किया जिसे एक साधारण मनोवैज्ञानिक ने एक दिन में करके दे दिया – हमें ये करना आवश्यक है क्योंकि राजेश्वर उपाध्याय स्वयं कई महाविद्यालयों में पढ़ाते हैं – जैसा कि उनके प्रमुख चेले #Advisor साहब ने पृष्ठ 235 में बताया है – स्वयं पीएचडी हैं और कई छात्रों को गाइड भी कर रहे हैं। #Advisor साहब भी उनके स्टूडेंट हैं। ये बातें उनकी पुस्तक के विमोचन में भी कही गई थीं।

हमें निम्न स्टडीज भेजी गईं – सुधी पाठकगण इन्हें अवश्य पढ़ें – विश्व के सबसे प्रसिद्ध प्रबंधन स्कूलों और मनोवैज्ञानिकों के यह वह प्रकाशन हैं जो बहुत आदर की दृष्टि से देखे जाते हैं-

a) Antonakis, J., Ashkanasy, N. M., & Dasborough, M. T. (2009). Does leadership need emotional intelligence? The Leadership Quarterly, 20(2), 247–261.

https://doi.org/10.1016/j.leaqua.2009.01.006

b) Carlsson, A., & Lyrbäck, L. (2019, May). The dark side of emotional intelligence within a company context. Retrieved from-

https://www.diva-portal.org/smash/get/diva2:1319074/FULLTEXT01.pdf

c) Cummins, D. (2014, August 15). The Dark Side of Emotional Intelligence. Psychology Today. Retrieved from-

https://www.psychologytoday.com/us/blog/good-thinking/201408/the-dark-side-emotional-intelligence

d) Côté, S., & Miners, C. T. (2006). Emotional intelligence, cognitive intelligence, and job performance. Administrative Science Quarterly, 51(1), 1–28.

https://doi.org/10.2189/asqu.51.1.1

e) Grant, A. (2018, July 6). The Dark Side of Emotional Intelligence. The Atlantic. Retrieved from-

https://www.theatlantic.com/health/archive/2014/01/the-dark-side-of-emotional-intelligence/282720/

f) Kilduff, M., Chiaburu, D. S., & Menges, J. I. (2010). Strategic use of emotional intelligence in organizational settings: Exploring the dark side. Research in Organizational Behavior, 30, 129–152.

https://doi.org/10.1016/j.riob.2010.10.002

g) Martin, J., Knopoff, K., & Beckman, C. (1998). An alternative to bureaucratic impersonality and emotional labor: Bounded Emotionality at the Body Shop. Administrative Science Quarterly, 43(2), 429.

https://doi.org/10.2307/2393858

इन स्टडीज का सारांश ये है – [ऐसे कोष्ठक] में दी गई संख्या ऊपर के बिबलियोग्राफिकल रेफरेंस को बताती है-

• किसी भी स्किल की तरह, लोगों की पढ़ने की क्षमता, जिसे इमोशनल इंटेलिजेंस मापती है, का अच्छा और बुरा इस्तेमाल हो सकता है [5]

• इमोशनल इंटेलिजेंस जरूरी विषय है, लेकिन, इसके प्रति अनियंत्रित उत्साह से इसके स्याह पहलू (डार्क साइड) छुप गये हैं… नया अनुसंधान बताता है कि जब लोग अपनी इमोशनल इंटेलिजेंस को पैना करते हैं, तो वे दूसरों को मेनीपुलेट करने में और सक्षम हो जाते हैं… अर्थात जब आप अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में सक्षम हैं, तो आप उन्हें सफलता से छुपा सकते हैं… जब आप जानते हैं कि दूसरे लोगों की भावनात्मक स्थिति क्या है, तो आप उनके दिल के तारों को ऐसे छेड़ सकते हैं कि वे मोटीवेट हो वह काम कर जाएंगे जो उनके अपने हित के विरुद्ध होगा – When you know what others are feeling, you can tug at their heartstrings and motivate them to act against their own best interests. [5]

• जब लोगों का उद्देश्य निजी स्वार्थ हो, तो रिसर्च बताती है कि इमोशनल इंटेलिजेंस एक हथियार बन जाती है दूसरों को मेनीप्युलेट करने के लिए – New evidence suggests that when people have self-serving motives, emotional intelligence becomes a weapon for manipulating others. [4, 5]

• [4] में ये पता चला कि the employees who engaged in the most harmful behaviors were Machiavellians with high emotional intelligence. They used their emotional skills to demean and embarrass their peers for personal gain.

• Research team led by University College London professor Martin Killdeer के अनुसंधान का निष्कर्ष: इमोशनल इंटेलिजेंस लोगों को अपने सच्चे भावों को छुपाने की क्षमता देता है और वह दूसरे भावों को अभिव्यक्त करने की और उनको फैब्रिकेट करने की क्षमता देता है जिससे वे अपना निजी फायदा कर सकें और साथ ही अपना अच्छा इम्प्रैशन छोड़ सकें। “The strategic disguise of one’s own emotions and the manipulation of others’ emotions for strategic ends are behaviors evident not only on Shakespeare’s stage but also in the offices and corridors where power and influence are traded.” [6]

• [7] में उद्धृत उदाहरण बताता है कि “Whenever we wanted to persuade our staff to support a particular project we always tried to break their hearts” [7] ताकि वे आपके प्रोजेक्ट को समर्थन दे सकें।

• ग्रांट कहते हैं [5] कि डैनियल गोलमैन की 1995 की बेस्ट्सेलर किताब के बाद कई रिसर्चर्स को, इमोशनल इंटेलिजेंस की अवधारणा के प्रति अत्यधिक उत्साह ने खुद उनको इतना चकित कर दिया कि वे उन अध्ययनों का संचालन करने के लिए आगे बढ़े जो पूरे तौर पर त्रुटिपूर्ण थे। लुसान यूनिवर्सिटी, स्विट्जरलैंड के जॉन अंटैनोकिस कहते हैं, “इसमें काला जादू भाग रहा है वैज्ञानिक अनुसंधान के आगे” [5]

• #Advisor साहब का राजेश्वर उपाध्याय, जो इमोशनल इंटेलिजेंस के उच्च स्तर के कथित ट्रेनर हैं, के आगे सुधबुध खोने को कई लेखक, #Awestruck प्रभाव कहते हैं [5]

• [2] का अनुसंधान बताता है कि इमोशनल इंटेलिजेंस की काली परछाई की अभिव्यक्ति सीनियर मैनेजमेंट में अधिकांश देखी गई। ये रिसर्च यह भी बताती है कि कैसे अत्यधिक प्रतिस्पर्धी (कम्पीटीटिव) वातावरण में ये तथाकथित इमोशनल इंटेलिजेंस अपने को कुटिलतापूर्वक अभिव्यक्त करती है। ध्यान रहे, रेल की व्यवस्था भी अत्यंत कम्पीटीटिव है।

• Barrett and his colleagues referred to emotional intelligence as, “the Madison Avenue approach to science and professional practice, implying that the popularity of emotional intelligence rests on crafty advertising as opposed to rigorous scientific evidence” [4]

• [6] का केवल एब्स्ट्रैक्ट पढ़ें, Research and discussion of EI has disproportionately focused on prosocial outcomes and has neglected the possibility that individuals high in EI may use their skills to advance their own interests, even at the expense of others. Just as the cognitively smart person may be able to understand options and draw conclusions quickly and competently, so the emotionally intelligent person may be able to assess and control emotions to facilitate the accomplishment of various goals, including the one of getting ahead. We suggest that high-EI people – relative to those low on EI – are likely to benefit from several strategic behaviors in organizations including, focusing emotion detection on important others, disguising and expressing emotions for personal gain, using misattribution to stir and shape emotions, and controlling the flow of emotion-laden communication. In addressing self-serving benefits, we reveal the dark side of EI and open new areas for research.

यह डायग्राम [6] से साभार है और इन मनोवैज्ञानिकों को नमन जिनकी रिसर्च को हमने आपके सामने रखा!

Application of High Emotional Intelligence

यहां संक्षेप में पृष्ठ 109 देखें #Advisor साहब की जीवनी का!

नई सरकार, मई 2014 में बनती है, शपथ लेने के 24 घंटे के अंदर ही प्रधानमंत्री को शोक संदेश देना पड़ता है, क्योंकि गोरखधाम ट्रेन हादसे में 40 लोग मारे जाते हैं-

तत्संबंधी बीबीसी की खबर का लिंक भी देखें-

https://www.bbc.com/news/world-asia-india-27573997

आप रेल मंत्रालय और नए रेलमंत्री सदानंद गौडा की मनःस्थिति समझ सकते हैं। उच्च इमोशनल इंटेलिजेंस के धनी, #Advisor साहब मंत्री को कहते हैं (पृष्ठ 109), अगर आपको बैलगाड़ियां चलानी हैं तो ठीक है, नहीं तो आपको मधेपुरा प्रोजेक्ट को सहमति देनी होगी! अब आप रेफरेंस [5] देखें और ऊपर बुलेट पॉइंट-2 भी देखें, जहां मनोवैज्ञानिक साहित्य ये कहता है – When you know what others are feeling, you can tug at their heartstrings and motivate them to act against their own best interests, क्या ये मनोवैज्ञानिक मेनीपुलेशन नहीं था #Advisor साहब का?

सरकार यदि अपने नौकरशाहों की नहीं सुनेगी तो और किसकी, यही तो नौकरशाही की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वह हर पहलू सरकार के सामने रखें, खासकर तब जब सत्ता परिवर्तन हुआ हो। यहां ये बताना उचित होगा कि मालगाड़ियों की बैलगाड़ी की गति का कारण विद्युत इंजन तो कतई ही नहीं थे।

और तो और, यहीं इसी पृष्ठ पर ऐसा रहस्योद्घाटन होता है जिसकी न संसद में, न मंत्रालय में, चर्चा हुए बिना निर्णय लिया गया – धन्य है रेलवे की यूनियनें, फेडरेशनें – AIRF एवं NFIR – और उनके आत्ममुग्ध नेतागण, जिनके बारे में पृष्ठ 243 में वर्णन है, इनके नेता यदि इस पुस्तक को पढ़ लें, तो रेल का कुछ भला हो जाए – इसे देखें – पृष्ठ संख्या 109-

“It was decided in the meeting that if the Ministry required less locomotives in future, the requirement from Madhepura and Marhowra would not be curtailed. However, it would be adjusted against Railways own production programme for the manufacture or locomotives at CLW and DLW”.

अब ये स्पष्ट है कि सदानंद गौड़ा के समक्ष पूरा सच नहीं रखा गया। सरकार एवं मंत्री की मनःस्थिति को मेनीपुलेट किया गया, यह भी साफ है!

जब भारत सरकार ने पूरे रेल नेटवर्क के विद्युतीकरण का निर्णय लिया तो #Advisor साहब के इस मेनिपुलेटेड निर्णय से DLW में डीजल लोको का उत्पादन बंदकर महंगे डीजल इंजन मढ़ौरा से लेने की बाध्यता आई। आज वह MSME जो डीजल इंजन के कल-पुर्जे बनाते थे, सब बंद हो गए हैं – कष्ट ये कि हजारों डीजल इंजन आइडल कर रहे हैं लेकिन इस मेनीपुलेशन से बंद कमरे में अपनी कथित उच्च इमोशनल इंटेलिजेंस का फायदा उठाकर देश को 25,000 करोड़ का सीधे-सीधे चूना लगा दिया गया।

यहां ध्यान देने की बात यह भी है कि वर्तमान रेल मंत्री GE ट्रांसपोर्टेशन की भारतीय इकाई के एमडी भी रह चुके हैं और इसी के चलते वे #Advisor साहब के संपर्क में भी आए थे। जहां पीएमओ (#PMO) हर मंत्री के ओएसडी और सलाहकार के चयन में डीप स्क्रीनिंग करता है, ये रेल के #KMG की उच्च और पैनी इमोशनल इंटेलिजेंस का परिचायक है कि #Advisor साहब को भी सतीश अग्निहोत्री की तरह रिटायरमेंट के बाद लाया गया। #KMG को भी लेवल-5 का मास्टर ट्रेनर मान लेना चाहिए, तथापि यह दोतरफा वेस्टेड इंटरेस्ट का मामला था, या है, पता नहीं, पीएमओ या अन्य एजेंसियों की निगाह इस पर अब तक क्यों नहीं गई?

सुधी पाठकगण ऊपर दिए रेफरेंस पढ़ सकते हैं। हम इस लेख या विश्लेषण को थीसिस नहीं बना सकते, लेकिन ये अवश्य कह सकते हैं कि मनोवैज्ञानिक मानते हैं – इमोशनल इंटेलिजेंस एकाउंटेंसी, इंजीनियरिंग, कोर ऑपरेशंस जैसे कामों के लिए रुकावट मानी गई है, आप यदि सेल्स में हैं, मानव संसाधन विकास आपका क्षेत्र है, तभी इसका लाभ है! बातें तो कई और भी की जा सकती हैं आखिर इको-सिस्टम #KMG के हाथ में है। वैज्ञानिक रिसर्च लेकिन कुछ और कहती है।

सवाल यह है कि क्या विस्मित, चकित और #Awestruck होकर इस इमोशनल इंटेलिजेंस की अप्लिकेबिलिटी का पूरा विश्लेषण हुआ भी कि नहीं या केवल भारतीय रेल के सारे वरिष्ठ अधिकारियों का साइकोलॉजिकल प्रोफाइल सिंगल टेंडर पर करवाकर अपनी रिसर्च का डेटा तैयार करवा लिया गया! इस प्रक्रिया में इस डेटा का भारतीय सर्वर में न होना भी चिंताजनक है। कनाडा का भारतीय विरोधी तेवर नजरअंदाज करना भी सरल नहीं!

यहां यह देखना आवश्यक है कि गूगल और फेसबुक के पास रेल उपभोक्ता का डेटा न जाने पाए, इस पर बहुत बहस हुई थी और रेलमंत्री को देश को आश्वस्त करना पड़ा था। क्या रेलमंत्री – जिनके अधीन डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन भी है – उनके संज्ञान में यह बात है? नहीं तो ये कैसे हो रहा है कि भारत सरकार के इतने सारे वरिष्ठ अधिकारियों की बिना किसी न्यूट्रल जांच के मनोवैज्ञानिक प्रोफाइलिंग हो रही है और डेटा सिक्योरिटी को उतना ही पुख्ता रखा गया जितना इस मनोवैज्ञानिक टेस्ट का रेल मंत्रालय द्वारा करवाया गया विश्लेषण?

बहरहाल, अब यह देखना आवश्यक हो गया है कि क्या इमोशनल इंटेलिजेंस का #KMG अपने जैसे सिस्टम के नंबरी चालबाज लोगों का चयन करने के लिए एक टूल के रूप में उपयोग कर रहा है? क्या इसीलिए आईआरएमएस जैसी बिना सोची-समझी चयन प्रणाली को इंट्रोड्यूस किया गया है? निगाह रखें, अभी बहुत कुछ देखने को मिलेगा! क्योंकि अब यह धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है कि नेताओं, सांसदों, मंत्रियों को गुमराह कर #KMG जैसे गैंगों से जुड़े कुछ धूर्त नौकरशाह विदेशी भेदिए बनकर हमारे सिस्टम को भीतर से खोखला कर रहे हैं!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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