यह घंटी की आवाज नहीं मंत्री जी, ये रेल से जुड़े रोटी, कपड़ा और मकान के मुद्दों का शंखनाद है!

किसी भी व्यवस्था की मूल आवश्यकताएं, सभ्य समाज के लिए मनुष्य की रोटी, कपड़ा और मकान मानी गई हैं। सरकारों ने इस पर काम किया, इसमें ‘बसपा’ भी जुड़ा – बिजली, सड़क, पानी!

रेल का सारा फोकस केवल दो-चार प्रोजेक्ट या प्रोडक्ट तक सीमित दिख रहा है, जहां घूम-फिरकर दो-चार वेंडर्स के ही नाम दिखते हैं। इंडस्ट्री का फीडबैक भी बहुत अच्छा नहीं है! चूंकि रेल में ‘रोटेशन’ के अभाव में हर वेंडर के चैंपियन अधिकारी हैं, ‘वेंडर-अधिकारी नेक्सस’ बहुत गहरा गया है!

मुद्दा यह कि आपके जब जान के लाले पड़े हों, तो विलासिता और भोग – निरर्थक ही नहीं, पाप भी है। हमने पिछले हफ्ते लिखा था: #KMG_2.1: ..और कलई खुल गई: मंत्री जी, जब घर में आग लगी हो तो आने वाली होली की तैयारी नहीं करते! भाग-1

इसमें हमने लिखा: “#BMBS अपने समय का ‘जॉन रैम्बो’ रहा वैगन के लिए! इसे लाने वाली कंपनी के पास मार्केट में पूरी डोमिनेंस रही। यहां तक कि #EMD किस्म के डीजल रेल इंजन, जो #HHP कहलाते थे, #TOT से लेकर जब तक यह इंजन 2019 तक बने, इनमें केवल इसी कंपनी का ब्रेक सिस्टम लगा। इस कंपनी के #MD, #RailBhawan में, #RDSO में बैठकर अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग कराने के लिए जाने जाते थे। सुना यह भी गया कि बाद में इन्हें इस कंपनी से दुत्कार कर निकाला गया, अनैतिक कार्य-व्यवहार (कंडक्ट) के चलते!”

#Railwhispers मानता है कि तकनीक पर निवेश होना चाहिए, लेकिन इसकी भी अपनी एक प्रक्रिया तथा नियम-कानून है। आप उन चीजों पर खर्च करते हैं जिससे हमारा भविष्य प्रशस्त हो! न कि भोग और विलासिता पर!

#BMBS लाने की जल्दबाजी की कीमत आज पूरी भारतीय रेल व्यवस्था चुका रही है। कृपया एक बार पुनः इन आर्टिकल्स को पढ़ें:

बीएमबीएस में ‘जानी-पहचानी विसंगति’ थी, तो यह सिस्टम बीस सालों से लगातार जारी क्यों रहा?

Cement load derailed between SUR-DD section in Solapur Division, Central Railway

Kalyug – Now Train Climbs Platform and Kills!

Unless top shows spine to rotate officers, nothing would change!

यही जल्दीबाजी हाल में हुए टेंडरों को भी देखकर लग रही है!

Ashwini Vaishnaw inaugurates India’s First Aluminum Freight Rake इसमें यह बताया गया कि कैसे ये वैगन क्रांतिकारी हैं। लेकिन 90,000 वैगन का टेंडर भी डिसाइड हो गया! जो बताते हैं कि पुराने स्पेसिफिकेशन पर ही है। अब इनोवेशन का स्कोप कहां बचा? साथ ही #BMBS का मुद्दा भी मुँह बाये खड़ा है!

यही हाल WAG-12 का हुआ। जो कंसलटेंट ने 2007-08 में कहा उसी के ऊपर 2015-16 में ऑर्डर हो गया। और अब ‘सुल्तानपुर टक्कर’ में इसकी कलई खुल गई – KMG_2.1: मंत्री जी, सिस्टम जब जुआरियों को प्रोत्साहित करता है, तब रेल संचालन द्युत क्रीड़ा बन जाता है!

इस जल्दबाजी का ये भी आयाम रहा: झारखंड के पठारी क्षेत्रों में हांफने लगता है रेलवे का WAG12 इंजन, राजस्‍व का हो रहा नुकसान

बड़े दावे वेंडरों के और हड़बड़ी में रेल!

#BMBS की जल्दबाजी, WAG12 की कमियां बताती हैं कि कहीं तो कुछ बहुत गंभीर समस्याएं हैं। वेंडर्स की मानें तो #BMBS के आने से माल ढुलाई का स्वर्णिम युग आ जाना चाहिए था और WAG12 से तो माल ढुलाई रॉकेट की गति ले लेती। लेकिन अफसोस, यह दोनों ही निर्णय रेल के गले में बंधे हुए पत्थर बन गए!

वहीं ‘वन्दे भारत’ को देखें, इनके उद्घाटन में कई महत्वपूर्ण बातें दब गईं!

160 kmph की कोच और इंजन (डीजल और बिजली) दोनों भारतीय रेल के पास सन 2000 से तो हैं ही। वन्दे भारत बनने से पहले उच्च शक्ति वाले कनवर्टर और कर्षण मोटर देश में बनने लगे थे। यात्री सुविधा बढ़ाने में क्या बंदिश थी?

यात्रियों को इससे क्या मतलब कि गाड़ी स्टीम से चल रही है कि बिजली से, या न्यूक्लियर एनर्जी से, उन्हें सुरक्षा, सफाई, सुविधा और समय पर चलने वाली रेल चाहिए। किसी भी ट्रेन में अच्छी फर्निशिंग की जा सकती है। महाराजा एक्सप्रेस को ही देखिए- यह आईसीएफ प्लेटफार्म पर थी। गतिमान, विस्टाडोम की फर्निशिंग देखें, ये सब एलएचबी प्लेटफार्म पर हुआ।

अब प्रश्न यह कि किसी #MEMU ट्रेन में क्यों नहीं अच्छी फर्निशिंग की गई? क्या इससे जल्दी ही सुविधाजनक और तेज चलने वाली ट्रेन नहीं बन सकती थी? अब हो रहे टेंडर में हो रही जल्दबाजी और कुछ ही वेंडरों का नाम बार-बार आना थोड़ा परेशान करने वाला है। क्या ये #BMBS या #WAG12 के टेंडर और उसके प्रॉलिफरेशन में की गई जल्दबाजी याद नहीं दिलाता?

इसे देखिए: हमने ये निर्णय लिया कि #ICF कोच रिटायर करने हैं, अब ये निर्णय #LHB के आने के 17-18 साल के बाद होता है, 19 जनवरी 2019 को आखरी ICF कोच बना। क्या ये देश के पैसों का दुरुपयोग नहीं? नए बने ICF कोच कोडल लाइफ से पहले रिटायर कर दिए गए, फिर LHB के प्रोडक्शन को बढ़ा दिया गया। और फिर आई वन्दे भारत की हड़बड़ी – इस निर्णय से LHB की फ्लीट उनके लिए तैयार की WAP7 के होटल लोड युक्त इंजन – सब ढ़ाक के तीन पात हो गए।

#HOG रेक की कंप्लायंस रेल भवन रोज लेता है, इसके लिए नए होटल लोड कनवर्टर के भी कई सौ करोड़ के ऑर्डर दिए गए अलग से, इस स्टॉक का क्या होगा? वैसे ही डीजल इंजनों की फ्लीट बेकार पड़ी खराब और स्क्रैप हो रही है। क्या ये देश का पैसा नहीं? पहले हुई देरी, चलिए मान लेते हैं कि रेल भवन के लाल फीते के चलते थी, लेकिन इस हड़बड़ी के जिम्मेदार कौन हैं? रेल भवन के बढ़ते लाल फीते का क्या? इसलिए हमने लिखा: KMG_2.0: रोटेशन के बजाय रेलवे में दिया जा रहा भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ को संरक्षण!

इसे ही देखें: आज एक अंदाज से वन्दे भारत के 3 टेंडर हैं – वन्दे भारत जो हम देख रहे हैं माननीय प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन होते हुए, एल्युमीनियम की हरियाणा में बनने वाली, और टैल्गो किस्म की रायबरेली में बनने वाली!

प्रश्न ये हैं कि:

1. #EMU देश में 1923 से चल रही हैं, #MEMU जो EMU की किस्म है, वह 1995 से देश में चल रही हैं। तो अब देखा जाए #Train18 क्या है – Train-18 बेहतर फर्निशिंग वाली मात्र एक #LHB शेल है और इसमें यूरोप से लाई गई बोगी है। इसके कन्वर्टर देश में बने हैं। यहां ध्यान देने वाली बात ये है, कि ये कन्वर्टर पहले भी देश में ही बनते थे। कम से कम चलिए फर्निशिंग तो ठीक की गई। कॉन्ट्रेक्ट को ऐसा बनाया गया कि केवल एक ही कंपनी सारा काम करे और बन गई हमारी वन्दे भारत। देश में डिजाइन और बनी – ये एक बहुत उत्साहित करने वाला काम हुआ, लेकिन क्या इससे हम मूलभूत समस्याओं को दबा देंगे? प्रश्न यह भी है कि क्यों इस प्रकार के काम पहले नहीं हो पाए? और पहले किस ने इन्हें रोका? आप पाएंगे कि ये ही तत्व आज रेल के #transformation जीवी बने बैठे हैं!

2. क्या LHB कोचों का भविष्य भी ICF कोचों और डीजल इंजनों की तरह होगा?

3. रेल के अनुरक्षण के एक्सपर्ट मानते हैं कि रोलिंग स्टॉक की फ्लीट में समरसता बहुत आवश्यक है। अभी वन्दे भारत का लिमिटेड अनुभव है, और 500 के लगभग और आने की बात हो गई है। इनमें जो तीन टेंडर खुले हैं वह ही तीन किस्म की गाड़ियों की बात करते हैं। ये कौन सी फाइनेंशियल प्रूडेंस हुई?

#KMG की ‘टेक्निकल कॉम्पिटेंस’ पर बहुत गंभीर प्रश्नचिन्ह लग चुके हैं:

KMG_2.0: Crisis of Competence!

Competence Poverty of #KMG – machinations Exposed in Loco Tenders!

Competence Poverty of #KMG – Machinations Exposed! Part-II

4. क्यों अन्य टेंडर भी उनके इस ‘अधकचरे ज्ञान’ और ‘कॉम्पिटेंस’ की कमी से प्रेरित हैं?

हमने नवगठित रेलवे बोर्ड और माननीय प्रधानमंत्री द्वारा अगली सरकार के गठन के लिए 400 दिन के समय का उल्लेख करते हुए लिखा: ये 400 दिन और आने वाला बजट: सीआरबी और बोर्ड मेंबर्स कृपया ध्यान दें!

कल कैसा होगा?

मंत्री जी, ये जाड़े तो निकल गए, आपने हमारा अनुग्रह माना और मेंबर इंफ्रास्ट्रक्चर एक सीनियर सिविल इंजीनियर को बनाया- धन्यवाद, लेकिन रेल का सारा फोकस केवल दो-चार प्रोजेक्ट या प्रोडक्ट तक सीमित दिख रहा है, जहां घूम-फिरकर दो-चार वेंडरों के ही नाम घूमते हैं। इंडस्ट्री का फीडबैक भी बहुत अच्छा नहीं इस बारे में! चूंकि रेल में रोटेशन के अभाव में हर वेंडर के चैंपियन अधिकारी हैं, ‘वेंडर-अधिकारी नेक्सस’ बहुत गहरा गया है।

आवश्यक यह है कि श्रीयुत पीयूष गोयल के समय अच्छे किए कामों को चिन्हित करें, साफ-सफाई, ट्रैक अपग्रेडेशन, असेट मेंटेनेंस पर विशेष ध्यान दिया जाए। आपका ध्रुव तारे की तरह सुस्थिर #AIDS और #KMG आपसे वैसे ही कई ऐसे काम करवा चुका है जो रेल के हित में नहीं हैं। रेल #Tenderman अर्थात अपने #Advisor साहब के हिसाब से चलवाएंगे तो #CAG को जवाब देते-देते थक जाएंगे। बहुत टेंडर हो गए, कुछ रोटी, कपड़ा और मकान वाले कामों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए!

#Railwhispers यह मानता है कि 2019 के चुनाव से पहले हो रहे ट्रैक रिन्यूअल/अपग्रेडेशन के चलते पंक्चुअलिटी के नुकसान से हुई आलोचना को भी अंगीकृत किया था #मोदीजी ने, जो बहुत बोल्ड निर्णय था, इसीलिए हमें पूरा विश्वास है कि ये जो #KMG के गोरखधंधे हैं, उनकी सच्चाई अब तक भी राजनैतिक नेतृत्व को पता नहीं है।

माननीय प्रधानमंत्री जी, आपकी डाली नींव पर आपकी सरकार अगले 10-15 साल तो अवश्य रहती दिखती है- याद रखिएगा #Railwhispers की बात को कि, #KMG जनित निर्णयों के कड़वे फल आपको ही आने वाले समय में खाने को मिलेंगे। #BMBS और WAG12 की हड़बड़ी से भी रेल भवन ने सीख नहीं ली है! क्रमशः जारी…

ऑफिस ऑर्डर #Net_O प्रोजेक्ट के लिए, लेकिन #Tenderman, #KMG और #AIDS के मूर्धन्य अपने ही कथनानुसार कहीं भी #bystander नहीं रहे! @RailMinIndia का हर निर्णय उन्हें मार्क होता रहा, हर टेंडर में आपका हाथ, सिर-पैर रहा-लेकिन पुरानी हिन्दी फिल्मों के खलनायक की तरह, दस्ताने पहने रहे कि कहीं हस्ताक्षरनुमा छाप न लग जाए। @Railwhispers मुहिम के बाद, नजर की शर्म के लिए ही सही, अब ऑफिस ऑर्डर तो उन्हें नहीं मार्क हो रहे! #Advisor को ऑफिस ऑर्डर अब मार्क न होना भी एक बड़ी बात हुई है @Railwhispers के चलते!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी