#KMG_2.0: क्यों चाहिए टेम्परेरी रेलवे बोर्ड का सेक्रेटरी!

08 फरवरी को एक आदेश निकला सेक्रेटरी ब्रांच से..

पूर्व मंत्री ने रेल भवन का जो बोझ कम किया था, उस स्पेस में तो राजसी दरबार बना लिया गया और वह बोझ फिर से रेल भवन में थोड़ा-थोड़ा करके डम्प किया जा रहा है, और अब पूरे-पूरे डायरेक्टोरेट को शिफ्ट कर वहां संभवतः अपने चहेते वेंडर्स को बैठाने की तैयारी है!

पहली प्रक्रिया ये मिली:

“सर, बाल मुंडवाए मुर्दा हल्का नहीं होता! मगर इसे ही रेल मंत्रालय में चरितार्थ करने का प्रयास किया जा रहा है! कहां पोस्टों को कम करके अधिकारियों की संख्या घटाकर रेलवे बोर्ड का आकार छोटा करने की नीति अपनाई गई थी, उसमें तो अब उलटी गंगा बह चली है। और कहां अब सीधे पूरे-पूरे डायरेक्टोरेट हटाकर अपने लिए राजसी दरबार बनाया जा रहा है!”

#Railwhispers का विश्लेषण:

रेलवे बोर्ड को छोटा करना अपरिहार्य है। पूर्व रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इस पर बहुत काम भी किया, लेकिन वी. के. यादव, जो तत्कालीन सीआरबी थे, सभी पदों को बड़ौदा हाउस ले गये और तभी सभी जानकार ये कहते लगे कि समय की बात है, कब मंत्री बदलते हैं। लीजिए, यही हुआ। झोला भर के पद बड़ौदा हाउस से उठकर रेल भवन में फिर ले जाए गए। जिस पर हमने बताया कि कैसे #AIDS ने इतने बड़े रिफार्म को निपटा दिया।

KMG_2.0: न्याय इनके हिस्से का – इनकी ‘आह’ के ‘ताप’ से कैसे बचेंगे मंत्री जी!

KMG_2.0: रोटेशन के बजाय रेलवे में दिया जा रहा भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ को संरक्षण!

तो एक ओर रेल भवन में पद वापस आ रहे हैं, वहीं, पूरे के पूरे निदेशालय (डायरेक्टोरेट) रेल भवन से निकालकर COFMOW को बंद करने से खाली हुए परिसर में डम्प किए जा रहे हैं।

यह कुछ समझ नहीं आ रहा। पीयूष गोयल इसी सरकार के ही तो मंत्री थे? उन्होंने जो माननीय प्रधानमंत्री का एजेंडा लागू करते हुए ये आदेश दिया कि लाल-फीता तभी छोटा होगा जब रेल भवन में कुर्सी-टेबल कम होंगी।

ये फ्लिप-फ्लॉप इसीलिए हो पाया, क्योंकि रेलवे बोर्ड का सेक्रेटरी, सुशांत मिश्रा से लेकर अब तक अस्थायी (टेम्परेरी) है। सोचिए, सबसे महत्वपूर्ण, देश के सबसे बड़े संगठन को चलाने वाले रेलवे बोर्ड का सेक्रेटरी टेम्पररी है कई वर्षों से!

यहीं #AIDS और #KMG अपना खेल खेलते हैं। पहले सेक्रेटरी के पद को टेम्पररी करिए, फिर जो चाहे करिए और करवाईए! – (KMG_2.0: न्याय इनके हिस्से का – इनकी ‘आह’ के ‘ताप’ से कैसे बचेंगे मंत्री जी! शीर्षक खबर में हमने बताया था कि नए रेलवे बोर्ड का सेक्रेटरी भी अस्थायी है!)

चलिए, अब तो इसे देखते-देखते, रेलकर्मी रेल भवन को और रेल में व्याप्त ट्रांसफर/पोस्टिंग के ‘रैकेट’ को क्रिकेट की मैच फिक्सिंग तुल्य मानने लगा हैं।

न रोटेशन होंगे, पोस्ट उनको करेंगे, जिन्हें वेंडर चाहते हैं – वेंडर उनको चाहेंगे जिन्होंने काम नहीं किया और जो केवल उन्हीं का काम करते हैं या फिर केवल उनका ही काम करना जानते हैं, और जो केवल ठेके देने में विश्वास रखते हैं।

सवाल कौन पूछेगा? अब कोई भी वरिष्ठ अधिकारी एग्रीड लिस्ट में आ सकता है – बिना किसी कारण के – वज्र बेईमान 360° करेंगे, जिन्होंने इंजीनियरिंग डिग्री दिखाकर #UPSC से नौकरी ली और कभी कुर्सी तोड़ने के अलावा कुछ किया नहीं, वह भाग्य विधाता बनेंगे! जो विषय के एक्सपर्ट हैं, वे इस #KMG की नजरों में पापी हैं। जिन्होंने मौजूदा मंत्री से फाइलें गलत साइन करवाई और लगातार गलत फीडबैक दे रहे हैं, वह न केवल सुरक्षित हैं, बल्कि DRM बनने की तैयारी में हैं।

“#Industry फ्रेंडली नहीं, आप #Vendor फ्रेंडली होईए, आपके चरित्र का सर्टिफिकेट जब ये खास वेंडर देंगे, तब ही आपका कुछ करियर बनेगा” – अधिकारीगण सिर झुकाकर बुझे मन से अब यह कहने लगे हैं।

#BMBS जैसा स्कैम – हमारा ये मानना है कि – कोई रेलमंत्री ऐसा नहीं करना चाहेगा जहां ट्रेन के ब्रेक फेल हो जाएं – यह तभी हो सकता है जब अंदर बैठे रेलकर्मी वेंडर फ्रेंडली हो जाएं!

यह #KMG की लेगेसी है और ये रेल का भविष्य!

कुल मिलाकर, Game is on.. खेल जारी है!

शीघ्र ही ट्रेनों के विवादित ब्रेकिंग सिस्टम का विस्तृत विश्लेषण किया जाएगा! क्रमशः जारी…

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी