#KMG_2.1: ..और कलई खुल गई: मंत्री जी, जब घर में आग लगी हो तो आने वाली होली की तैयारी नहीं करते! भाग-1

#BMBS अपने समय का ‘जॉन रैम्बो’ रहा वैगन के लिए! इसे लाने वाली कंपनी के पास मार्केट में पूरी डोमिनेंस रही। यहां तक कि #EMD किस्म के डीजल रेल इंजन, जो #HHP कहलाते थे, #TOT से लेकर जब तक यह इंजन 2019 तक बने, इनमें केवल इसी कंपनी का ब्रेक सिस्टम लगा। इस कंपनी के #MD, #RailBhawan में, #RDSO में बैठकर अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग कराने के लिए जाने जाते थे। सुना यह भी गया कि बाद में इन्हें इस कंपनी से दुत्कार कर निकाला गया, अनैतिक कार्य-व्यवहार (कंडक्ट) के चलते!

विगत समय में #SPAD के बढ़ते मामले, मालगाड़ियों के एक्सीडेंट्स घूम-फिर कर इसी सिस्टम पर आए। लोको पायलट्स बेचारे यह कह-कहकर थक गए कि ट्रेन की ब्रेक पॉवर अनप्रेडिक्टेबल हो गई है, लेकिन, ‘वेंडर-अधिकारी नेक्सस’ को टूटने में बहुत समय लगा, जिसके चलते उनकी इन गुहारों की कोई सुनवाई नहीं हुई।

कुछ समय पहले हमने यह लेख प्रकाशित किया था: #KMG_2.0: न्याय इनके हिस्से का – इनकी ‘आह’ के ‘ताप’ से कैसे बचेंगे मंत्री जी! जिसमें हमने रेलमंत्री से निवेदन किया था: “मंत्री जी, आप उच्च इमोशनल इंटेलिजेंस की जमात से हैं, 2016 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार बॉब डायलन को मिला था, उनका एक प्रसिद्ध गीत है, कभी एक बार इसे पढ़िएगा जरूर:
Yes, and how many times can a man turn his head
And pretend that he just doesn’t see?
The answer, my friend, is blowin’ in the wind…”

#BMBS के चलते जब एक्सीडेंट ज्यादा बढ़ गए, तो यह कह दिया गया कि इसमें एक ‘known deficiency’ है, हालांकि यह कथित ‘नोन डेफिशिएंसी’ #KMG एवं #AIDS के दिमाग में थी, जिस पर हमने लिखा: बीएमबीएस में ‘जानी-पहचानी विसंगति’ थी, तो यह सिस्टम बीस सालों से लगातार जारी क्यों रहा?

मतलब यह कि रेल भवन और आरडीएसओ को बहुत अच्छी तरह से पता था कि इस सिस्टम में कमी (डेफिशिएंसी) है। लेकिन लोको पायलट्स और लोको इंस्पेक्टर्स की बात सिरे से खारिज कर दी गई – अर्थात जो पता था – जैसा बॉब डायलन लिखते हैं – उसे मानने या स्वीकार करने में भी समय लगा दिया।

17 जनवरी 2023 को रेल भवन के तीन कार्यकारी निदेशकों (#EDs) ने एक जॉइंट नोट निकाला। उसमें #BMBS के भिन्न-भिन्न कॉम्बिनेशन के वैगन की ग्रेडिएंट आधारित और वैगन प्रकार आधारित गति सीमाएं बताई गई हैं। साथ ही यह भी बताया गया है कि ट्रेन कम्पोजीशन कैसा होगा। कुल मिला कर ड्राइवर को एक अत्यंत क्लिष्ट जानकारी अपने दिमाग में रखनी होगी। इतना खर्च किया, मगर सिस्टम कितना और असुरक्षित हो गया! ऐसा तभी होता है जब ‘वेंडर-अधिकारी नेक्सस’ पूरे सिस्टम पर भारी पड़ जाता है। ऐसा भी नहीं है कि इसकी समस्याएं नहीं पता चली होंगी, लेकिन इसे दबाने में #KMG और #AIDS का यह ‘नेक्सस’ पूरी तरह कामयाब रहा।

इस गलती के जो आयाम हैं, वह ये हैं:

• लंबे कार्यकाल, वेंडर एक ही छोटे ग्रुप के अधिकारियों से जुड़ा रहा!

• बिना कॉम्पिटेंस के अधिकारी रेल भवन (रेलवे बोर्ड) और मानक भवन (RDSO) में पोस्ट होना, जो सिस्टम को वेंडर के बिना नहीं समझ सकते!

• वेंडर हमेशा चाहेगा कि ऐसा अधिकारी उसका सिस्टम देखे जिसे विषय की न्यूनतम जानकारी हो अथवा पूरी तरह उनकी जेब में हो!

• एक वेंडर का एकाधिकार और फील्ड द्वारा प्रेषित विसंगतियों की सूचनाओं को दबाना!

• बिना स्टेबिलाइज किए नए सिस्टम का प्रोलिफरेशन!

मंत्री जी, कृपया ध्यान दें!

यह फ्रेट रोलिंग स्टॉक की बात है, ऐसी हड़बड़ी अब पैसेंजर स्टॉक में भी सुनने-देखने में आ रही है। आरडीएसओ को गाली देने से समस्या का हल नहीं होगा। मंत्री जी, आपसे पहले ममता बनर्जी और पीयूष गोयल, दोनों ने खुलकर आरडीएसओ को गरियाया था। आरडीएसओ की पोस्टिंग आप के ही हस्ताक्षर से होती है – यह भी न भूलें! अगर रेलवे बोर्ड और आरडीएसओ में इतने ही निकम्मे और नकारा अधिकारी हैं, तो लाखों-करोड़ों के टेंडर उनसे क्यों करवाए जा रहे हैं?

रेल भवन आज भी जोड़-तोड़ का केंद्र बना है!

व्यर्थ कयास लगाना छोड़कर, ‘रोटेशन’ पर ध्यान केंद्रित किया जाए!

जहां चाशनी होगी, वहां ‘खान मार्केटिए’ निश्चित ही सक्रिय होंगे!

Unless top shows spine to rotate officers, nothing would change!

#KMG_2.0: रोटेशन के बजाय रेलवे में दिया जा रहा भ्रष्टाचार और जोड़-तोड़ को संरक्षण

#KMG_2.0: A cynic’s view – रेलवे के धनकुबेरों का सिंडीकेट!

रेल भवन में सेफ्टी के नाम पर पोस्टें बढ़ाने से सेफ्टी नहीं सुधरेगी! मंत्री जी, आप तो ऑटोमोटिव इंडस्ट्री को जानते हैं, आप जानते होंगे कि जापानी व्यवस्था काम को पहली बार में ही ठीक करने की बात करती है तथा यह इंस्पेक्शन और मॉनिटरिंग को बढ़ाने की तथाकथित आवश्यकता सिस्टम की गंभीर बीमारी की ओर इशारा कर रही है!

आरडीएसओ, प्रोडक्शन यूनिट्स, लोको शेड, वैगन डिपो को मजबूत करने की आवश्यकता है। पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल द्वारा रेल भवन को छोटा करने के निर्णय को आपने बदला, जो सेफ्टी के नाम पर बदला है, उसकी जगह इन लोगों को हाई डेंसिटी नेटवर्क पर लगाया जाए, जहां एसेट मेंटेनेंस हो रहा है। लेकिन #AIDS का एका आपके संकल्प को दबा देगा, ऐसी बातें भी हो रही हैं। रेल भवन में बैठकर यह लोग केवल रिपोर्टें मंगाते हैं और नीचे – फील्ड के, उत्पादन इकाईयों तथा आरडीएसओ के अधिकारी नित-नए फॉर्मेट में रिपोर्ट बनाते रहते हैं।

मंत्री जी, आपने ET की इंवेस्टर समिट में बहुत अच्छा प्रेजेंटेशन दिया! साधुवाद!!

लेकिन अगर आपके ट्रैक पर गाड़ियां न चल पाएं, तो आप क्या करेंगे – क्या कवच और क्या स्टेशन? गाड़ियां ट्रैक से कूदकर आपके इन शानदार स्टेशनों को तहस-नहस कर देंगी – आप क्या करेंगे? वंदे भारत ट्रेनें कितनी ही बनवा लीजिए, इसका लिनेन और बायो टॉयलेट पूरे प्रोजेक्ट को वहीं बैठा देगा – क्या कीजिएगा आप खूबसूरत स्टेशन बिल्डिंग का?

आपने कहा कि 12 लाख कर्मचारियों को डील करना आसान नहीं, #Railwhispers आपकी इस बात से पूरी तरह असहमत है। सैन्य बलों में इससे अधिक डिप्लायमेंट है और जान जोखिम में डालने की स्थिति में भी यह सुव्यवस्थित चलते हैं। कारण इसका रोटेशन ही है, जो #AIDS आपको नहीं करने दे रही। आप प्रधानमंत्री जी के प्रिय हैं, और तीन बड़े मंत्रालयों का भार आपके ऊपर है, क्यों आप माननीय मोदीजी के सपनों में सेंध लगने दे रहे हैं?

यह ओपिनियन एक ट्रैफिक लर्नर की है!

मंत्री जी, जब घर में आग लगी हो तो आने वाली होली की तैयारी नहीं करते! #AIDS और #KMG से घिरा रेल भवन कुछ ऐसा प्रतीत होता है:

वेतनभोगिनी, विलासमयी यह देवपुरी,
ऊंघती कल्पनाओं से जिसका नाता है।
जिसको इसकी चिंता का भी अवकाश नहीं,
खाते हैं जो वह अन्न कौन उपजाता है।

गंदगी, गरीबी, मैलेपन को दूर रखो,
शुद्धोदन के पहरेवाले चिल्लाते हैं।
है कपिलवस्तु पर फूलों का शृंगार पड़ा, रथ-समारूढ़ सिद्धार्थ घूमने जाते हैं।
सिद्धार्थ देख रम्यता रोज ही फिर आते,
मन में कुत्सा का भाव नहीं, पर, जगता है।
समझाये उनको कौन, नहीं भारत वैसा,
दिल्ली के दर्पण में जैसा वह लगता है।

रेशमी कलम से भाग्य-लेख लिखनेवालो,
तुम भी अभाव से कभी ग्रस्त हो रोये हो?
बीमार किसी बच्चे की दवा जुटाने में,
तुम भी क्या घर भर पेट बांधकर सोये हो?
असहाय किसानों की किस्मत को खेतों में,
क्या तुमने जल में बह जाते देखा है?
क्या खाएंगे? यह सोच निराशा से पागल,
बेचारों को नीरव रह जाते देखा है?

देखा है ग्रामों की अनेक रम्भाओं को,
जिनकी आभा पर धूल अभी तक छायी है?
रेशमी देह पर जिन अभागिनों की अब तक,
रेशम क्या? साड़ी सही नहीं चढ़ पायी है।
पर तुम नगरों के लाल, अमीरों के पुतले,
क्यों व्यथा भाग्यहीनों की मन में लाओगे?
जलता हो सारा देश, किंतु, होकर अधीर,
तुम दौड़-दौड़कर क्यों यह आग बुझाओगे?

चिंता हो भी क्यों तुम्हें, गांव के जलने से,
दिल्ली में तो रोटियां नहीं कम होती हैं।
धुलता न अश्रु-बूंदों से आंखों से काजल,
गालों पर की धूलियां नहीं नम होती हैं।
जलते हैं तो ये गांव देश के जला करें,
आराम नई दिल्ली अपना कब छोड़ेगी?
या रक्खेगी मरघट में भी रेशमी महल,
या आंधी की खाकर चपेट सब छोड़ेगी।

चल रहे ग्राम-कुंजों में पछुआ के झकोर,
दिल्ली, लेकिन, ले रही लहर पुरवाई में।
है विकल देश सारा अभाव के तापों से,
दिल्ली सुख से सोयी है नरम रजाई में।
क्या कुटिल व्यंग्य! दीनता वेदना से अधीर,
आशा से जिनका नाम रात-दिन जपती है।
दिल्ली के वे देवता रोज कहते जाते,
कुछ और धरो धीरज, किस्मत अब छपती है।
#दिनकर – भारत का यह रेशमी नगर!

सवाल #MTRS और #CRB से !

एक निष्पक्ष जांच बैठाने की आवश्यकता है। आप दोनों बताएं कि जब #BMBS आया, तो क्या क्लेम किया गया था? क्यों इसमें जो विसंगतियों थीं, उन्हें दबाकर इस सिस्टम का विस्तार इतना कर दिया कि लाखों करोड़ के निवेश के बाद भी मालगाड़ियों की गति सीमित करनी पड़ रही है? कितना निवेश इस सिस्टम में हुआ? कौन-कौन से अधिकारी रेल भवन और आरडीएसओ में इन निर्णयों में इन्वॉल्व रहे हैं? इसकी सूची सार्वजनिक की जाए! इसके चलते बहुत भयानक रेल दुर्घटनाएं हाल ही में हुई हैं, जैसे ट्रेन प्लेटफार्म पर चढ़ गई और प्लेटफार्म पर लोगों को मारा। यहां देखें:

#Kalyug – Now Train Climbs Platform and Kills!

हमारी जानकारी बताती है, इसमें रेलवे बोर्ड स्तर के अधिकारी भी इन्वॉल्व रहे थे, और कुछ तार उसके ऊपर भी गए थे। मंत्री जी, यह 2014 से पहले की बातें हैं, कम से कम ऐसे मुद्दों की तो जांच हो जाए। ‘वेंडर-अधिकारी नेक्सस’ का यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है। वैसे यह भी बताया गया कि अगर यह जांच डीजल इंजन में इसके एकाधिकार की हो जाए, तो आज के स्वनामधन्य और स्वयं सोशल मीडिया पोस्ट लिखकर तथा ट्वीट करवाकर स्वत: हीरो बन रहे कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों की भी कलई खुल जाएगी। हां, #KMG और #AIDS ऐसी किसी जांच को नहीं चाहेंगे, क्योंकि ये ही लोग तब भी थे, और आज भी हैं! क्रमशः जारी…

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी