बीएमबीएस में ‘जानी-पहचानी विसंगति’ थी, तो यह सिस्टम बीस सालों से लगातार जारी क्यों रहा?
पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल ने ट्रैक मेंटेनेंस के लिए ब्लॉक को प्राथमिकता दी थी और खराब पंक्चुअलिटी पर रेल प्रशासन की बहुत आलोचना भी हुई, चुनावी दौर में पॉलिटिकल कीमत चुकाकर मालगाड़ियों की गति बढ़ाई गई, अब फिर ढ़ाक के वही तीन पात!
#Railwhispers ने अपनी पहले की खबरों में मालगाड़ियों के ब्रेक संबंधी विषय को काफी हद तक रेखांकित किया था। देखें –
26 Oct, “मंत्री जी! रेल में अगर थोड़ी सी नैतिकता और शुचिता बचाए रखनी है, तो कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करें!“
23 Nov, “Kalyug – Now Train Climbs Platform and Kills!“
रेलवे बोर्ड के विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार #Railwhispers के उक्त इनपुट पर रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने उक्त विषय का संज्ञान लेते हुए कार्यवाही के निर्देश दिए थे। बुधवार, 28 दिसंबर, 2022 को रेलमंत्री ने इस विषय का रिव्यू किया। इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि अभी हल मिला नहीं है – करीब एक लाख वैगन में जर्मन कंपनी नॉर ब्रेमसे का बोगी माउंटेड ब्रेक सिस्टम (#BMBS) लगा है। इंडियन एक्सप्रेस की उक्त खबर यहां देख सकते हैं-
indianexpress.com/article/india/erratic-brakes-in-goods-trains-rlys-decides-to-reduce-speed-further
इससे पहले भी इंडियन एक्सप्रेस ने आरडीएसओ का हवाला देते हुए एक और खबर प्रकाशित की थी, वह भी देखें-
अगस्त-2022 में इसी ब्रेक सिस्टम की कमियों के चलते, भारी मालगाड़ियों की गतिसीमा 50 किमी प्रति घंटा पर ढ़लान पर और 65 किमी प्रति घंटा समतल ट्रैक पर लगाकर धीमी की गई थी। सूत्रों का कहना कि अब यह गति 30-40 किमी प्रति घंटा तक कम की जाएगी और खाली मालगाड़ियों की गति भी कम की जाएगी, जब तक कोई उपयुक्त हल नहीं निकलता है।
जो महत्त्वपूर्ण पहलू रेल के हाल ही में सेवानिवृत्त अधिकारी बता रहे हैं, उन्हें यहां उद्धृत किया जा रहा है-
#RDSO ने जो पत्र अगस्त-2022 में सभी जोनल महाप्रबंधकों को लिखा है – उसमें यह कहा गया है कि “नॉर ब्रेमसे (#Knorr_Bremse) के BMBS में जानी-पहचानी विसंगति (known deficiency) है”, तो सवाल यह उठते हैं कि-
अब प्रश्न यह है कि जब #deficiency_known थी, तो इस सिस्टम का #proliferation पिछले लगभग 20 सालों से लगातार क्यों जारी रहा? इसकी अप्रूवल में यह क्यों नहीं दर्शाया गया? उल्लेखनीय है कि रेल की वैश्विक रूप से स्थापित मान्य प्रैक्टिस है कि पहले प्रोटोटाइप सारे टेस्ट और ट्रायल पास कर लिए जाते हैं, फिर उसके प्रॉलिफरेशन की अनुमति दी जाती है।
दूसरा सवाल यह है कि इमरजेंसी ब्रेकिंग डिस्टेंस की गणना के बिना रोलिंग स्टॉक को ट्रैक पर चलने की अनुमति नहीं दी जा सकती। जब इस BMBS ब्रेक सिस्टम से वैगन का ब्रेकिंग डिस्टेंस एक समान नहीं आ रहा था, तो किस हस्ताक्षर से इसे पहली अनुमति दी गई? और उसके बाद के कर्णधारों ने उसे अब तक जारी क्यों रखा?
परेशान करने वाले सवाल यह भी हैं कि-
पाठकों को वह दौर याद होगा जब पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल ने ट्रैक मेंटेनेंस के लिए ब्लॉक को प्राथमिकता दी थी और खराब पंक्चुअलिटी पर रेल प्रशासन की बहुत आलोचना भी हुई। चुनावी दौर में पॉलिटिकल कीमत चुकाकर मालगाड़ियों की गति बढ़ाई गई। अब फिर ढ़ाक के वही तीन पात!
इस गति को धीमी करने से वैगन उपलब्धता (वैगन टर्न अराउंड) बुरी तरह से प्रभावित होगी। हाल ही में किए गए इतने बड़े वैगन टेंडर से आने वाले वैगन अब कहां चलेंगे, जब मालगाड़ियां ज्यादा समय ट्रैक पर गुजारेंगी?
यह मामला पुराना है, और इसकी जानकारी रेल प्रशासन को पिछले कम से कम 2 साल से तो है ही। जानकार यह भी कह रहे हैं कि ‘जब मालगाड़ियों की गति बढ़ाई गई तो BMBS की कमी दिख गई!’
अधिकारियों ने कंपनियों को बड़ा बनाया
जानकार यह भी कहते हैं कि पिछले लगभग 20 सालों में ब्रेक विषय पर कोई नए वेंडर डेवलप नहीं किए गए। प्रतिस्पर्धी व्यवस्था (कम्पीटीटिव सिस्टम) का अनुसरण नहीं किया गया। केवल दो ही कंपनियों का इस विषय पर वर्चस्व लगातार कायम रखा गया और इन्हीं को बढ़ावा दिया गया। परिणामस्वरूप यह इतनी मजबूत हो गईं कि कौन अधिकारी कहां बैठेगा, कौन कहां पदस्थ होगा, कोई डेवलपमेंटल आर्डर दिया जाएगा या नहीं, यह सब भी ये तय करने लगीं।
जानकारों का यह भी कहना है कि वह अधिकारी कौन थे, जिनके चलते यह कंपनियां इतनी बड़ी और रसूखदार बनीं? कौन थे वे अधिकारी जिन्होंने इन कंपनियों को इतना बड़ा बनाया? उनकी पहचान की जानी चाहिए और यह पहचान करने का दायित्व सीबीआई/ईडी को सौंपा जाना चाहिए, जो यह पता लगाएं कि उन्होंने कितनी संपत्ति बनाई और अब वे क्या कर रहे हैं? क्योंकि इसमें न केवल हजारों करोड़ का भ्रष्टाचार शामिल है, बल्कि यह पूरे घरेलू रेल सिस्टम को भीतर से खोखला और संरक्षा विहीन करके इस माध्यम से लाखों करोड़ की घरेलू मुद्रा विदेश भेजी जा चुकी है।
लचर एवं भ्रष्ट कार्यप्रणाली की तरफ संकेत
यह सारे तथ्य कमजोर आरडीएसओ और उसकी लचर एवं भ्रष्ट कार्यप्रणाली की तरफ संकेत करते हैं, जो अधिकारी रेल हित को वेंडर हित के ऊपर रखते हैं, उनको आरडीएसओ में पदस्थ नहीं किया जाता। ऐसे दौर में जहां दुनिया के सबसे बड़े ब्रेक वेंडर से रेल के हितों की रक्षा करनी है, भारतीय रेल के खुद के इंजीनियर कहां हैं?
एक दिन में हुई, या एक व्यक्ति द्वारा की गई गलती नहीं है यह–
निश्चित बात यह है कि ऐसा नहीं है कि यह सब बातें फाइलों में या चर्चाओं में नहीं आई होंगी। यह ऐसी गलतियां हैं जो एक दिन में या कोई एक व्यक्ति नहीं कर सकता! जहां लाखों-करोड़ों का निवेश हो रहा है, वहां ऐसा कैसे हो रहा है कि रेल के पास खुद के एक्सपर्ट नहीं हैं, न ही ऐसा नेतृत्व, जो इनके पहले के चिन्हों पर काम करता!
सवाल और भी हैं, जानकारी और भी है – जो बहुत अधिक परेशान करने वाली भी है। जैसा हमने “Did someone make a mistake or was Siemens desperate?“ शीर्षक खबर में कहा था, ‘हम जब तक क्रॉस वेरीफाई नहीं करेंगे, तब तक कोई खबर प्रकाशित नहीं करेंगे।’ साथ ही जिस समय नेतृत्व परिवर्तन हो रहा है, उस समय कई ऐसे विचार हैं, उनकी बात करना फिलहाल निरर्थक होगा। कृपया थोड़ी प्रतीक्षा करें…
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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