#NRTI से गतिशक्ति विश्वविद्यालय – कैसे #KMG ने सबको ठगा!

माननीय मोदी जी, #Railwhispers यह मानता है कि परिवहन पर आप विश्विद्यालय बनाएं, लेकिन मौजूदा व्यवस्था को ध्वस्त न करें! कंसल्टेंट अपने 9dot9 और हड़प्पा फाउंडेशन द्वारा अपना वित्तीय लाभ ले चुका है, NRTI में मौजूद छात्र परेशान हैं, फैकल्टी को अपना भविष्य नहीं दिख रहा, अब NAIR की कमर तोड़ दी गई है। #KMG की दीमक को माननीय प्रधानमंत्री जी आप नहीं निकालेंगे तो आपकी सरकार की किरकिरी यही मंत्रालय करवाएगा, यह तय है!

माननीय प्रधानमंत्री जी,

100 लाख करोड़ की एकीकृत परिवहन योजना (गति शक्ति) भारत के सुनहरे भविष्य में आपकी छाप हमेशा के लिए छोड़ गई है। विभिन्न मंत्रालयों की दीवारों से टकरा-टकराकर अच्छे से अच्छे प्लान दम तोड़ देते थे। साइलोलेस कार्यशैली हर मंत्रालय में सुनाई देने लगी है।

ऐसे एकीकृत विजन से बहुत अधिक मात्रा में गुणवत्तापूर्ण रोजगार के अवसर पैदा होंगे। यह आपका ही विजन है, जिसके चलते आपने ये दिशा-निर्देश दिए कि एक विशिष्ट महाविद्यालय बने, जहां परिवहन संबंधी प्रशिक्षण, अनुसंधान हो!

परिवहन में रेल, सड़क, हवाई और जल मार्ग अलग-अलग मंत्रालय देखते हैं। एकीकृत मानव संसाधन बनाने हेतु और गतिशक्ति की परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए, रेल मंत्रालय – जो सबसे बड़ा परिवहन मंत्रालय है – को चुना गया।

2018 में राष्ट्रीय रेल और परिवहन संस्थान (#NRTI) ने बड़ौदा में काम करना आरंभ किया, एक डीम्ड यूनिवर्सिटी के रूप में। लेकिन #KMG की काली छाया इस पर जल्द ही पड़ गई। रेल के #KMG के इन रणबाँकुरों ने हमेशा की तरह सबसे सरल मार्ग निकाला। अपने ही इको-सिस्टम से जुड़े हुए लोगों को इकट्ठा किया और दे डाली एक कंसल्टेंसी, देखें चार्ट –

आदरणीय मोदी जी, कृपया इस चार्ट का ध्यान से अवलोकन/अध्ययन करें!

हमने #KMG सीरीज के खुलासों में बताया था कि कैसे एक अकादमिक इको-सिस्टम ने रेल की ट्रेनिंग को कब्जा लिया है।

हमें लगा मामला यहीं तक है, फिर हमें बहुत लोगों ने संपर्क किया और फिर यह चिट्ठी हमें भेजी:

Railway Board Order: Inventory preparation of NAIR’s assets!

इस तरह की बातें पहले भी नेशनल अकादमी ऑफ इंडियन रेलवे (#NAIR) के सूत्रों से उठती रही हैं, लेकिन कोई उन्हें जोड़कर नहीं देख पाया।

रेल मंत्रालय ने ‘9.9 मीडिया’ नाम की कंपनी को विश्वविद्यालय चलाने का ‘ठेका’ दे दिया – अर्थात अब इस देश के यह दिन आ गए हैं कि यह अपने शिक्षा संस्थान भी ठेके पर देने लगा! आप अगर उपरोक्त ग्राफिक देखेंगे तो आपको #KMG के और रेलमंत्री के #Advisor उर्फ #Tenderman के तार उनसे जुड़े दिखाई देंगे। श्रीमती प्रिया शर्मा के खुलासे से भी यह स्पष्ट हुआ कि #Tendeman और उनके मुख्य सिपहसालार स्वयं या फिर अपनी पत्नियों के जरिए अकादमिक दुनिया से जुड़े हैं, जो अपने आप में एक बहुत रोचक इत्तिफाक है।

9dot9 को महीने के लगभग ₹65 लाख मिलते थे और उनका दफ्तर भी रेल भवन में था। काम करने वाले 2-3 व्यक्ति थे और काम महीने की बढ़िया रिपोर्ट बनाना। ग्राफिक में दिए मकड़जाल में एक नाम आता है, डॉ प्रमथ सिन्हा का, वे आईएसबी हैदराबाद के फॉउंडिंग डीन थे, और NRTI के बोर्ड में थे। 9dot9 के संस्थापक भी डॉ प्रमथ सिन्हा ही थे। इसीलिए NRTI की पब्लिसिटी तो बहुत हुई, लेकिन डिलीवरी में शुद्ध ठगाई हुई। NRTI की नींव में यह गलत कंसल्टेंट थे और इनके फाउंडर यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट में थे। यह ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ हुआ, और इसकी चर्चा बड़े जोर-शोर से हुई। वैसे ये माना गया कि जब पीएमओ में यह शिकायत पहुँची, तो इस कंपनी का कांट्रैक्ट नहीं बढ़ाया गया। लेकिन इस कंपनी ने यूनिवर्सिटी की अपने पर निर्भरता पूरे तौर से बना दी। जबकि यह शुद्ध रूप से एक मीडिया कंपनी है, इन्होंने अपने पोर्टल पर शिक्षा के एक वर्टिकल की भी बात की है, लेकिन वह बहुत बेमेल है।

रेल भवन की कमान भी वी.के.यादव जैसे मोस्ट इंकम्पीटेंट पैराट्रूपर्स के हाथ में थी और हमारे #KMG के रणबाँकुरे तो मुस्तैद थे ही। आपको प्रभावित करने के लिए NAIR कैंपस में ही इसे चालू करा दिया गया – यह बताने के लिए कि आपकी पुतली घूमी और देखिए यूनिवर्सिटी बनकर चल भी पड़ी। आप इस सिस्टम की चार-सौ-बीसी को आसानी से नहीं भाँप सकते। NAIR कैंपस – जो रेल अधिकारियों के लिए बहुत आदरणीय स्थान रखता है – वहीं #NHRCL ने भी अपना इंस्टिट्यूट और हॉस्टल बना लिया। NHRCL का इंस्टिट्यूट अभी बन रहा है और हॉस्टल चालू हो चुका है। इसके बनने से रेलवे स्टाफ कॉलेज – जिसे अब NAIR के नाम से जाना जाता है – के प्रारूप को बदल दिया। ऐसा नहीं था कि NHRCL का इंस्टिट्यूट कहीं और नहीं बन सकता था, लेकिन, हड़बड़ी कर अपने को ‘एफिसियंट’ दिखाने की बीमारी ने NHRCL के इंस्टिट्यूट को बहुत संकुचित स्थान पर डाल दिया और साथ ही NAIR के कैंपस को और अधिक सिकोड़ दिया।

लेकिन रेल की इन दीमकों – जिन्हें अपने स्वार्थ के आगे कुछ नहीं दिखता – ने इसी कैंपस में एक और, और भी बड़े संस्थान को बनाने का निर्णय ले लिया। आपके कार्यालय को बताया गया कि NRTI – जो अब ‘गतिशक्ति विश्वविद्यालय’ नाम से जाना जाता है – आने वाले समय में 5000 छात्रों तक की क्षमता रखेगा। एक छोटा कैंपस और भी छोटा हो गया। लेकिन #KMG ने तो अपनी तथाकथित ‘एफिसियंसी’ दिखा ही दी!

NRTI में 10 कोर्स चालू किए गए, जिनमें इंजीनियरिंग के तीन, बीबीए, बीएससी के अंडरग्रेजुएट कोर्स और पांच स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रेजुएट) कोर्स, जिनमें एमबीए और एमएससी शामिल हैं, चालू कर दिए। देखते ही देखते 700 से अधिक छात्र आ गए इन कोर्सेस में। और क्यों नहीं आते, आपके चित्र को लगाकर इस कथित कंसल्टेंट ने बढ़िया, बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाए। अभिभावकों को लगा कि नए भारत में भागीदारी का उनके लिए यह एक अभूतपूर्व मौका है।

लेकिन NRTI की न तो स्वयं की बिल्डिंग है, न ही एक कमरा हॉस्टल का, और न ही एक कमरा लेबोरेटरी का – मतलब 2018-2022 तक कुछ नहीं हो पाया। इस कंसल्टेंट के साथ रेलवे बोर्ड की तत्कालीन एडीजी/एचआर ने NAIR के साथ बहुत बार दुर्व्यवहार भी किया। NAIR का सभी स्टाफ और फैकल्टी भी सशंकित हो गया। उनके ही कैंपस की सारी व्यवस्था उनसे ले ली गई और उन्हें ही खलनायक बना दिया गया।

हमारे पास कई छात्रों के मैसेज आए। उन्होंने बताया कि कैसे यूनिवर्सिटी में कोई व्यवस्था नहीं है, सेंक्शंड बिल्डिंग, जिसका उद्घाटन आपके हाथों से करवाया गया था, उसका काम भी ठप पड़ा हुआ है, यानि बीच में ही रुकवा दिया गया।

छात्रों की बात को हमने NAIR में पदस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों से पुष्टि करवाई, उनका कहना है कि जब अंजलि गोयल को वाइस चांसलर बनवाया गया, तब NAIR और NRTI के बीच में फिर से संबंधों में सुधार आया। चूंकि वाइस चांसलर न केवल एक वरिष्ठतम रेल अधिकारी थीं, उनका स्वभाव तत्कालीन एडीजी/एचआर की तरह अहंकारी नहीं था। ये भी पता चला कि कैसे उन्होंने साल भर से अधिक रुके हुए असिस्टेंट प्रोफेसर्स की भर्ती को चालू करवाया और NRTI बिल्डिंग के बंद  पड़े काम को मंजूरी दिलवाई। यह अलग बात है कि आपसे उद्घाटन करवाने के बाद भी काम चालू नहीं हुआ, जिसे लेकर छात्र और फैकल्टी बहुत सशंकित हैं। वहीं, ये भी पता चला कि NAIR का कैंपस इतने बड़े विश्वविद्यालय के लिए बहुत छोटा है।

दो बातें और पता चलीं, इंजीनियरिंग के छात्रों के पास उपयुक्त लेबोरेटरी भी नहीं हैं। भला हो अंजलि गोयल का कि उन्होंने अपने अल्पकाल में 10-15 लैब बनवाईं – दुखद बात यह कि तीसरे साल के छात्रों ने दूसरे साल की लैब भी नहीं की थीं। NAIR  से यह भी पता चला कि इंजीनियरिंग कोर्स का कोई प्रॉपर सिलेबस भी नहीं था और उसे NAIR की वरिष्ठ फैकल्टी ने बनवाया। फिर ये 9dot9 क्या करके गया? यह सवाल उठ खड़ा हुआ। इन सबके चलते, आज NRTI में अच्छी फैकल्टी आने से घबरा रहे हैं।

NRTI में रेल के सभी सीटीआई का समावेश होना है। सीटीआई में पोस्टेड अधिकारियों का मानना है कि इस प्रक्रिया में यह आवश्यक था कि एनआरटीई के वाइस चांसलर रेलवे से हों, ताकि, इस प्रक्रिया में विश्वसनीयता रहे। हमने यह बताया कि नए वाइस चांसलर आईआईटी जोधपुर से ले आए गए, देखें- रेलमंत्री का जोधपुर प्रेम: #AIDS का भौकाल और #KMG का टूलकिट!

डॉ मनोज चौधरी, सैमसंग सेमीकंडक्टर से आए हैं और उनको मात्र डेढ़ साल हुआ है एकेडमिक्स में। उनके ऊपर कोई सवाल नहीं, लेकिन उनके पास न तो नए विश्विद्यालय बनाने का अनुभव है – जैसे देश के कई प्रोफेसरों ने नई आईआईटी बनवाईं – और न ही उनके पास परिवहन की कोई बैकग्राउंड है।

डॉ मनोज चौधरी

छात्रों के साथ यह धोखा माना जा रहा है। ऐसे में हम आपको बताना चाहेंगे कि रेल के ट्रांसफॉर्मेशन की बागडोर रेल के खान मार्केट गैंग (#KMG) के हाथ में है, देखें- ट्रांसफार्मेशन के लिए क्रैडिबल लीडरशिप आवश्यक है, लेकिन क्षमा करें मंत्री जी! आपके सलाहकार समूह के पास कोई ‘क्रैडिबिलिटी’ नहीं है!

जब NAIR के असेट्स की इन्वेंटरी बनाने की बात आई तो NAIR के सभी कर्मचारियों ने एक पत्र मंत्री जी को लिखा – फलस्वरूप रेल भवन से PED/HR, NAIR आईं सबसे बात करने के लिए!

इस पूरे प्रकरण पर एक बहुत सम्मानित सेवानिवृत्त अधिकारी, जो देश में शिक्षा व्यवस्था पर बड़ी पैनी नजर रखते हैं, ने छात्रों को संबोधित करते हुए यह कहा:

दोस्तो! आपने साहस दिखाया है और अफसोस इस पत्र पर किसी भी फैकल्टी के सिग्नेचर नहीं हैं। शायद उनमें न इतना साहस है और न रेल के प्रति कोई ऐसा डेडीकेशन का भाव! इस पत्र की कॉपी मेंबर पार्लियामेंट और जिन्होंने रेलवे स्टाफ कॉलेज दिया था उन सबको दो। यह पत्र थोड़ा छोटा होता तो और भी अच्छा रहता।..‌ जिसकी शुरुआत इस बात से होती कि आईआरपीएस, आईआरएसएस, आईआरएमएस की सर्विस ट्रेनिंग यहीं है।..और इस बीच में ग्रुप बी एग्जाम की बड़ी जिम्मेदारी भी दे दी गई है, इसलिए गति शक्ति का प्लान बिना इसको प्रभावित किए हुए चलाया जाए। मौजूदा स्ट्रक्चर पर आंच नहीं आनी चाहिए। जरूरत हो तो एक छोटा पत्र और लिखकर सबको दो, इंस्टीट्यूशंस बनाने में सैकड़ों साल लगते हैं, उनको बर्बाद करने में बहुत कम समय। मुझे तो आज तक यही नहीं समझ आया कि जब 1000 विश्वविद्यालय देश में पहले से ही हैं तो रेल यूनिवर्सिटी बनाकर हम चाहते क्या हैं! आधा तीतर आधा बटेर; न विश्वविद्यालय, न रेल! आप सबके लिए शुभकामनाएं! रेल भवन के दूरदर्शी अधिकारियों, नीति-निर्माताओं को इस पर ध्यान देने की जरूरत है! रेलवे स्टाफ कॉलेज बड़ौदा की शान है और शान रहेगा! उस पर आंच आती है तो हम सबको दुख होगा!

एक दिन रेल भवन में था, वह रेल ट्रांसपोर्ट का ऑफिस। उसी के एक अफसर ने बताया करोड़ों का कलेक्शन और मौज मस्ती। नौकरशाही कितना गिरेगी! अपनी अकर्मण्यता, अक्षमता और अपनी अदूरदर्शिता के लिए आखिर कितनी नीचाई तक जाएगी! रेल यूनिवर्सिटी के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलते। दोस्तो मैं यहां यह भी कहूंगा कि पर्सनल सर्विस की सेंट्रलाइज्ड ट्रेनिंग बड़ौदा में है। इनको आगे बढ़कर अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए वरना उनका अपराध सबसे ज्यादा होगा।

रेलवे स्टाफ कॉलेज, बड़ौदा! रेलवे की ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट का राजमुकुट माना जाता था। महाराजा ने मन से रेलवे को इस पैलेस को दिया था! सामने राजा बाग! चारों तरफ घना पेड़ों से सुसज्जित लगभग जंगल जैसा बाग। फैकल्टी और स्टाफ सभी के लिए अच्छे घर। बड़ौदा के लोग इसे शहर का फेफड़ा मानते थे। सभी सर्विसेस के फाउंडेशन कोर्स भी यहीं होते थे और इंडक्शन कोर्स भी। उसके बाद वे सभी ट्रेनिंग भी जो आजकल आईआईएम सिंगापुर, मलेशिया और न जाने कहां-कहां होने लगी हैं, रेलवे में और घाटा जोड़ते हुए। कहां 80-90 के दशक में अफ्रीका के कई देश घाना, नाइजीरिया, तंजानिया से लेकर इराक तक के अफसर ट्रेनिंग के लिए इसी बड़ौदा के रेलवे स्टाफ कॉलेज में आते थे। विदेशी मुद्रा भी रेलवे को मिलती थी और शान भी।

इतना ही नहीं, जो मसूरी – सिविल सेवा के अधिकारियों आईएएस/आईपीएस के लिए मशहूर है – वहां जब जगह की कमी पड़ गई तो वर्ष 1994, 95, 96, 97 में सिविल सेवा के फाउंडेशन कोर्स यहां होने लगे। उन दिनों कॉलेज की एक अलग चमक होती थी, क्योंकि उस समय उसमें एक से एक दिग्गज उनको संबोधित करने आते थे। बड़ौदा की स्थानीय प्रेस भी वहां उपस्थित होती थी और वे कहते थे कि हमें तो पता ही नहीं था कि इतना बड़ा संस्थान हमारे शहर में है। अखबारों की खबरों से बड़ौदा कॉलेज जगमग-जगमग करता था। डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल फिर से कुछ दिनों के बाद अपने कुछ अधिकारियों को वहां भेजने में इच्छुक था, लेकिन धीरे-धीरे उसकी चमक फीकी पड़ने लगी। जिसको भी बैठाया जाता, वह रोते हुए यहां आता था मानो उसको सजा दे दी गई हो। और उसी का अंजाम है धीरे-धीरे रेलवे ट्रैफिक लखनऊ चला गया, एकाउंट्स सिकंदराबाद और फरीदाबाद के बीच पेंडुलम की तरह रहता है।

जो शहर हवाई मार्ग से लेकर सड़क और रेल मार्ग से इतना जुड़ा हुआ हो, जहां कानून व्यवस्था की कोई दिक्कत नहीं हो, उस कॉलेज को क्यों उजड़ने दिया गया और यह रेगिस्तान की तरफ क्यों बढ़ रहा है? रेलवे पर्सनल सर्विस, स्टोर सर्विस से लेकर मेडिकल सर्विस और दूसरे एमडीपी/एएमपी आदि कोर्स अभी भी यहां हैं। आखिर क्यों आईआईएम की तरह ऊंचाईयों पर नहीं पहुंचा जा सकता? हमको ऊंचा होने की आवश्यकता है या अपने को और गिराने की? जिस दिन इसका नाम रेलवे स्टाफ कॉलेज से बदलकर नेशनल अकादमी ऑफ इंडियन रेलवे किया गया था, गिरावट की शुरुआत उसी दिन से हो गई थी।

1994 में जोधपुर के मूल निवासी राजेंद्र भंसाली यहां प्राचार्य बने थे। रेलवे स्टाफ कॉलेज की सबसे अच्छी चमक उन दिनों की रही जब इंटरनेट जैसी सुविधाएं आईआईएम अहमदाबाद से पहले बड़ौदा के इस कॉलेज में शुरू हुई। कमाल है ऑक्सफोर्ड 400 सालों से चल रहा है, अमेरिका इंग्लैंड के कई संस्थान इतने ही पुराने हैं, और हम 70 साल में ही ऐसे हो गए कि रेलवे के एक प्रतिष्ठित इंस्टिट्यूट को बंद करके उसमें ऐसे कोर्स चला रहे हैं जिसे देशभर में कोई भी नुक्कड़ का कॉलेज/स्कूल चला सकता है। रेलवे को अपनी इस विरासत को बचाने की अत्यंत आवश्यकता है। आप गति शक्ति या दूसरी योजनाएं जहां कहीं हो, आगे बढ़ाईए, लेकिन स्टाफ कालेज को नुकसान पहुंचाने की कीमत पर नहीं!

बहरहाल, #Railwhispers यह मानता है कि परिवहन पर आप विश्विद्यालय बनाएं, लेकिन मौजूदा व्यवस्था को ध्वस्त न करें! कंसल्टेंट अपने 9dot9 और हड़प्पा फाउंडेशन द्वारा अपना वित्तीय लाभ ले चुका है, NRTI में मौजूद छात्र परेशान हैं, फैकल्टी को अपना कोई भविष्य नहीं दिख रहा, अब NAIR की कमर तोड़ दी गई है। #KMG की दीमक को माननीय प्रधानमंत्री जी आप अगर नहीं निकालेंगे तो आपकी सरकार की किरकिरी यही मंत्रालय करवाएगा, यह तय है!

महोदय, हमने केएमजी के गोरखधंधों पर पूरी सीरीज प्रकाशित की है, और निवेदन किया है कि हमारे द्वारा बताए गए तथ्यों कि स्वतंत्र जाँच कराई जाए! लेकिन यह #KMG का ही करिश्मा है कि आप जैसे परिपक्व नेता को भी अपने रेलमंत्री बदलने पड़े हैं, और शायद अब फिर से बदलना पड़े, मगर ये खान मार्केटिये यहीं डटे हुए हैं! यह अत्यंत आश्चर्यजनक है, और इससे ऐसा आभास मिलता है कि जनसामान्य कुछ भी कहता रहे, कुछ भी समझता रहे, हल्ला मचाता रहे, अपना सिर धुनता रहे, #KMG की परत से घिरे रेल मंत्रालय को कुछ नहीं सुनना है।

महोदय, कम से कम प्रशासनिक शुचिता की शर्म का पर्दा तो रहने दिया जाए! क्रमशः जारी…

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी