मंत्री जी, सुधीर-सेंस को बिसराएँ-कम खर्च पर सेफ्टी सुनिश्चित कराएँ!
17 जून, 2024 को हुई कंचनजंगा एक्सप्रेस दुर्घटना की सीआरएस जाँच की अंतरिम रिपोर्ट आ गई है। यह अंतरिम रिपोर्ट टेक्निकल और ट्रैफिक के एक्सपर्ट्स से हमने साझा की। मुख्यतः 2-3 बातों को हमने उनसे चिन्हित करने का निवेदन किया। उनका यह मानना था कि सीआरएस ने ये तो ठीक लिखा है कि यह दुर्घटना “गलत ट्रेन वर्किंग” अर्थात् ट्रेन ऑपरेशन में गलती से हुई। लेकिन #SPAD पर केंद्रित होकर बात करना और कवच की ऑटोमैटिक सिग्नलिंग में अनुशंसा करना ठीक नहीं है!
मुख्य और मूल बातों को समझें!
मंत्री जी, #Railwhispers ने 21 मार्च को, “Ten Years-An Assessment: Failure to Act on KMG is Ticking Time Bomb for the Minister” में और 14 जुलाई को, “The Trillion Rupee Blunder – Modiji Beware!” में आपको और रेल प्रशासन को भी चेताया था कि रेल के एक्सीडेंट क्यों होते हैं! कवच का झुनझुना छोड़ें और मूल बातों पर ध्यान दें!
पहली बात यह कि रेल में शत-प्रतिशत सिग्नलिंग इंटरलॉक्ड है, मतलब यह कि यदि इंटरलॉकिंग को एन्श्योर करें तो टक्कर – आमने-सामने से या पीछे से – नहीं हो सकती। #कवच का मूल रूप सिंगल लाइन सेक्शन के लिए बना था, जहाँ मानवीय गलती हो जाती थी। लेकिन इंटरलॉकिंग में, यदि वायरिंग ठीक हो, सर्किट में छेड़-छाड़ न हुई हो, केबल और वायर की क्वालिटी से कोई समझौता न किया गया हो, तो कोई टक्कर नहीं हो सकती। तब कवच की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती है। क्यों इस बात की जाँच नहीं हुई कि #बालासोर में कैसे 2017 से गलत वायरिंग के साथ सिग्नल चल रहा था?
साथ ही यह भी न भूला जाए कि कवच काफी काम्प्लेक्स सिस्टम है – इसमें इंजन में और वे-साइड में बहुत सारे उपकरण लगते हैं। क्या रेल का सिग्नलिंग विभाग, जिससे इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग नहीं संभल पा रही, या नहीं चल पा रही है, वह क्या कवच चला पाएगा?
अतः यह आवश्यक है कि सिग्नल विभाग फील्ड में अच्छी इंजीनियरिंग प्रैक्टिस का अनुपालन करे, #ESM जैसे पद कॉंट्रैक्ट से कतई न भरे जाएँ, ठेकेदारों पर अत्यधिक निर्भर न रहा जाए, बड़े ठेकेदारों या वेंडर्स की पसंद-नापसंद से अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग न हो, काम से पहले ड्राइंग बने, ड्राइंग को कड़ाई से चेक किया जाए, और यह सुनिश्चित हो कि फील्ड में भी उसी ड्राइंग के आधार पर सही वायरिंग हो, हर अनुरक्षण कार्य में यह सुनिश्चित किया जाए कि वायरिंग वही और सही है।
साथ ही यह भी आवश्यक है कि सिग्नल विभाग अपनी रिलायबिलिटी सुधारने के लिए जानकार इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर्स का भी सहयोग ले – जिनके एसेट्स पर बिजली गिरना आम बात है – लेकिन उनके #Loco और #TRD बिना प्रभावित हुए चलते हैं।
आँधी-तूफान-बारिश में सिग्नल फेल होना अक्षम्य है। वहीं, सिग्नल अन्य कारणों से भी फेल होना बहुत सामान्य बात हो गई है। सिग्नल केबल की खराब गुणवत्ता अपने आप में एक बड़ा और गंभीर विषय है, जिस पर गहन विचार करने की आवश्यकता है।
यह भी स्मरण रहे कि सिग्नल मेंटेनेंस और कमिशनिंग में ली जानी वाली शॉर्ट-कट गतिविधियाँ सिग्नल विभाग के वर्क कल्चर को दर्शाती हैं। ऐसे वर्क कल्चर में कवच एक बड़ी महँगी भूल साबित हो सकता है।
कंचनजंगा एक्सप्रेस दुर्घटना में कवच के उल्लेख का औचित्य ही नहीं है। सीआरएस की अंतरिम रिपोर्ट सिग्नल फेल होने की बढ़ती घटनाओं को सही चिन्हित करती है। लेकिन टूटे-बिखरे #RDSO से यह ठीक होना संभव नहीं है। जब तक फील्ड और आरडीएसओ के अधिकारी तथा सुपरवाइजर, ठेकेदारों और वेंडर्स के प्रति ज्यादा निष्ठावान होंगे, तब तक कोई सुधार या रिफॉर्म नहीं हो सकता, चाहे कितना ही पैसा इसमें ओत दिया जाए।
बोर्ड का मानना है कि कवच ब्लॉक सेक्शन की दोहरी सुरक्षा के लिए है, जहाँ यह मानवीय चूक को रोक सकता है। इस बात को रेल के एक्सपर्ट बहुत सही नहीं मानते। उनका कहना है कि “यदि मूल इंटरलॉकिंग में वायरिंग और सर्किट की इंटीग्रिटी नहीं मेनटेन हो रही है, तो सुरक्षा की कितनी ही लेयर बैठा दी जाएँ, सेफ्टी नहीं बढ़ पाएगी। जैसे बीमारी दूर करने के लिए स्वच्छता का कोई विकल्प नहीं, वैसे ही बेसिक इंजीनियरिंग का कोई अपवाद नहीं। सेफ्टी इंटीग्रिटी लेवल (#SIL) जैसे कॉन्सेप्ट तभी तक चल पाते हैं, जब तक वायरिंग आदि को अपने मूल स्वरूप में मेनटेन किया जाए। कुछ मल्टीनेशनल कंपनियाँ निश्चित रूप से कवच को फेल करने की जुगत में हो सकती हैं, परंतु वे यही जुगत तो वंदेभारत ट्रेन सेट को भी फेल करने लगा रही थीं, मगर वंदेभारत सफलतापूर्वक चल रही है, तो यह अपने योग्य इंजीनियर्स की बदौलत ही तो संभव हो पाया है!”
मंत्री जी, अच्छे इंजीनियर लाइए, फिर वह चाहे किसी भी ब्रांच के हों, कम से कम वह वेंडर्स से सवाल तो पूछेंगे और रिपोर्ट तो सही लिखेंगे।
इतना करिए, आपका खर्च कम होगा और सेफ्टी भी सुनिश्चित होगी। लेकिन सुधीर-सेंस आपको छोड़नी पड़ेगी, जहाँ ज्यादा खर्च तथा बड़े टेंडर और वेंडर के बिना कुछ नहीं हो सकता, यह मान्यता व्यर्थ है।
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी