ट्रेनों में ऑनबोर्ड सेनिटेशन और बेडरोल की सफाई गुणवत्ता गई रसातल में!

“जो स्पेशलाइज्ड और टेक्निकल डिपार्टमेंट हैं, वे जब भी किसी ऑर्गनाइजेशन में जनरल काम या अपनी स्पेशलाइज्ड फील्ड से हटकर काम करते हैं, तब ऐतिहासिक रूप से वह संस्था बैठ गई है। पता नहीं इस पर रेलवे का शीर्ष प्रबंधन और रेलमंत्री ध्यान क्यों नहीं दे रहे हैं?”

ट्रेन नं. 15008, कृषक एक्सप्रेस लखनऊ जंक्शन से गोरखपुर के रास्ते वाराणसी सिटी को जाने के लिए तैयार थी कि ट्रेन के लगभग एक दर्जन से अधिक यात्री गंदे और बदबूदार कंबल एवं बेडशीट के कारण कोच में ही बीमार हो गए और उल्टी करने लगे। इन यात्रियों की तबियत खराब हो गई। यह घटना सोमवार, 9 जनवरी की है।

ट्रेन के एसी-3/बी-5 कोच में यात्रा कर रहे सुमीत शर्मा सहित कई अन्य यात्रियों ने कंबल एवं बेडशीट से भयंकर बदबू आने की शिकायत की। पहले तो काफी देर तक कोच के अटेंडेंट का ही कहीं अता-पता नहीं था। टीटीई से शिकायत करने पर कुछ यात्रियों के कंबल बदले गए। इस कारण ट्रेन लखनऊ से आधा घंटा देरी से खुली। ट्रेन अभी लखनऊ सिटी पहुंची ही थी कि कई दूसरे यात्रियों ने भी कंबल से बदबू आने की शिकायत की।

तभी लखनऊ सिटी से बादशाहनगर स्टेशन के बीच उक्त कोच के कई यात्रियों को उल्टियां होने लगीं। टीटीई ने कंट्रोल को सूचित किया और कंट्रोल रूम ने मंडल रेल अस्पताल, बादशाहनगर को इसकी सूचना दी। बादशाहनगर स्टेशन पर डॉक्टरों ने बीमार यात्रियों का उपचार किया। तत्पश्चात ट्रेन आगे के लिए रवाना हुई। यहां भी ट्रेन आधा घंटे से अधिक लेट हुई। तीन यात्रियों का उपचार किए जाने की पुष्टि पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह ने भी की है।

वर्तमान में लगभग हर ट्रेन में लिनेन का यही हाल है। इस विषय में कई वाणिज्य अधिकारियों का कहना है कि पहले कमर्शियल विभाग जब यह बेड रोल सफाई-सप्लाई का काम करता था, तो उल्टे उससे रिवेन्यू जनरेट किया जाता था और बेड रोल की सफाई मुफ्त में होती थी, लेकिन अब बेड रोल, ऑनबोर्ड सेनिटेशन का काम मैकेनिकल विभाग के पास है और यह रेल में भ्रष्टाचार का एक बहुत बड़ा जरिया हो गया है।

उनका यह भी कहना है कि अगर पूरी भारतीय रेल के ऑनबोर्ड सेनिटेशन और बेड रोल सफाई का काम देखा जाए तो यह अरबों का हो चुका है और सफाई गुणवत्ता रसातल में जा चुकी है। यह #विभागवाद की देन है।

उन्होंने कहा कि जब हर विभाग अपनी मुख्य गतिविधि (कोर एक्टिविटी) छोड़कर साम्राज्य बढ़ाने के चक्कर में दूसरे का भी काम ले लेता है तब वह काम रसातल में तो जाता ही है, इसके साथ ही उसका काम भी रसातल में चला जाता है, और तब पूरी संस्था का चौपट होना आरंभ हो जाता है।

उन्होंने कहा कि जो स्पेशलाइज्ड और टेक्निकल डिपार्टमेंट हैं, वे जब भी किसी ऑर्गनाइजेशन में जनरल काम या अपनी स्पेशलाइज्ड फील्ड से अलग हटकर काम करते हैं, तब ऐतिहासिक रूप से वह संस्था बैठ गई है। पता नहीं इस पर रेलवे का शीर्ष प्रबंधन और रेलमंत्री ध्यान क्यों नहीं दे रहे हैं?

इसमें एक तथ्य यह भी है कि जितना मैटेरियल चाहिए, कांट्रेक्टर उतना नहीं लाते। पहले टेंडर में शर्त होती थी कि किसी खास स्टैंडर्ड का मैटेरियल और इतनी मात्रा (क्वांटिटी) में चाहिए। परंतु अब यह शर्त हटा दी गई है। रेल प्रशासन कहता है कि उसे सफाई चाहिए, मैटेरियल कितना भी और कैसा भी लगाओ, उसे इससे कोई मतलब नहीं है।

इसके अलावा बेडरोल में कोडल लाइफ की शर्त भी रेल प्रशासन ने हटा दी है। वहीं मैकेनाइज्ड क्लीनिंग की भी अनिवार्यता (कंपल्शन) भी हटा दी गई है। इस सबके निहितार्थों को भी बखूबी समझा जा सकता है।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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