मोटरमैन की सतर्कता और सूझबूझ से बड़ा हादसा होने से बचा

गार्ड ने बुलावे पर कान नहीं दिया! जवाबदेही से बचने के लिए गंतव्य पर गाड़ी से उतरकर सीधे घर चला गया!

“गार्डों को मोटरमैन की ट्रेनिंग देकर लोकल ट्रेनों में दोनों तरफ की कैब में मोटरमैन रखे जाएं, परंतु कुछ लोगों को कामचोरी और मुफ्तखोरी की लत लग गई है और यूनियनें भी इसमें बड़ी बाधा बनी हुई हैं, जिसके कारण यह महत्वपूर्ण जनोपयोगी बदलाव नहीं हो पा रहा है। रेल प्रशासन को इस मामले में कड़ाई से पेश आना चाहिए, और जो लोग इस विकल्प को मानने के लिए सहमत नहीं हो रहे हैं, उन्हें जबरन वीआरएस देकर घर भेज दिया जाना चाहिए!”

मुंबई: गुरुवार, 1 सितंबर को सीएसएमटी-खोपोली लोकल (KP-7) के सामने सैंडहर्स्ट रोड-भायखला स्टेशन के बीच किमी संख्या 2/435 पर ट्रैक के बीचोबीच एक ड्रम रखा देखकर मोटरमैन ने इमरजेंसी ब्रेक लगाकर लोकल ट्रेन को ड्रम से पहले रोकने का प्रयास किया, तथापि टकराने से नहीं बचा पाया। मगर चूंकि ट्रेन डेड स्पीड में आ गई थी, इसलिए कोई हानि नहीं हुई। यह जानकारी मध्य रेलवे को @Railwhispers के ट्वीट से हुई। जिसे मोटरमैन से कंफर्म करने के बाद मध्य रेलवे एवं डीआरएम मुंबई मंडल मध्य रेल के ट्विटर हैंडल से मोटरमैन अशोक कुमार शर्मा की फोटो के साथ उनके काम को अप्रिसिएट करते हुए एक ट्वीट भी किया गया है।

तत्पश्चात कैब से उतरकर मोटरमैन ने जब उक्त ड्रम को ट्रेन के कैटल गार्ड से निकालने और ट्रैक के बाहर करने का प्रयास किया तो वह उसके अकेले के वश का काम नहीं था। यह देखकर उसने ट्रेन के दो-तीन यात्रियों को बुलाया और उनकी सहायता से ड्रम को खींचकर ट्रैक से बाहर किया। बाद में देखने पर उसमें बड़े-बड़े पत्थर और बलास्ट (ट्रैक की गिट्टियां) भरी हुई थी।

निष्कर्ष यह कि पत्थरों और बलास्ट से भरा वह भारी भरकम ड्रम अगर 70-80 किमी की गति से दौड़ती आ रही लोकल ट्रेन से टकरा जाता, तो न केवल लोकल ट्रेन डिरेल होती, बल्कि एक बड़ा हादसा हो गया होता। इससे भारी जनहानि भी सकती थी। इस तरह मोटरमैन ने अपनी सूझबूझ से एक बड़ा हादसा होने से बचाया। आरपीएफ मुंबई मंडल, मध्य रेल के ट्विटर हैंडल से दी गई बचकानी जानकारी से पता चला कि उक्त ट्रेन को मोटरमैन अशोक कुमार शर्मा चला रहे थे।

आरपीएफ ने अपनी उक्त जानकारी में अपना बचाव करते हुए कहा, “इंस्पेक्टर डागर, एएसआई मोहन रंधे और आरक्षक सुंदर सिंह उक्त घटनास्थल पर पहुंचे, एसएसई/इंचार्ज अरुण मेहता, एसएसई/सेक्शन मयंक लांबा अपने स्टाफ के साथ उपस्थित थे। उक्त घटनास्थल पर खोजने पर कोई भी ड्रम, बाहरी व्यक्ति नजर नहीं आया। आसपास के एरिया में खोजबीन की गई मगर कोई संदिग्ध व्यक्ति नजर नहीं आया। उक्त गाड़ी के मोटरमैन से संपर्क करने पर उन्होंने अपना नाम अशोक कुमार शर्मा बताया। आगे बताया कि उक्त गाड़ी सैंडहर्स्ट रोड-भायखला स्टेशन के मध्य सिग्नल नं. 12 के पास ट्रैक के बगल में लोहे का ड्रम रखा देखा, जबकि दो मिनट पहले ही एक लोकल ट्रेन वहां से पास हुई थी। परंतु उक्त स्थान पर कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आया। उक्त ड्रम गाड़ी से टकराया। बाद में उन्होंने गाड़ी रोककर ड्रम गाड़ी से बाहर निकाला। बाद में गाड़ी गंतव्य के लिए रवाना हुई। उक्त मामला एएसआई मोहन रंधे द्वारा जांच में लिया गया है तथा अज्ञात व्यक्ति के विरुद्ध अपराध क्रमांक 384/22, रेल अधिनियम 1989 की धारा 156 के तहत मामला पंजीकृत किया गया। मामले की जांच जारी है।”

आरपीएफ द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार चूंकि संबंधित विभाग के सेक्शन इंचार्ज और उनके सहकर्मी घटनास्थल पर पहले ही पहुंच चुके थे, अतः यह मान लेने में कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने उक्त ड्रम को आरपीएफ के आने से पहले ही घटनास्थल से हटा दिया था। आरपीएफ की उक्त टिप्पणी से यह भी स्पष्ट है कि उक्त सेक्शन में उसकी पेट्रोलिंग नहीं थी। दो मिनट पहले ही एक लोकल ट्रेन पास होने का तर्क केवल अपने बचाव में दिया गया कुतर्क है।

इसके अलावा, यह भी जानकारी मिली है कि मोटरमैन ने पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर अनाउंसमेंट करके गार्ड को अपनी सहायता के लिए बुलाया था, मगर गार्ड ने उस पर कोई कान नहीं दिया। तब उसे यात्रियों को बुलाकर भारी भरकम ड्रम ट्रैक से हटा पाना संभव हो पाया था। यह भी पता चला है कि गंतव्य पर पहुंचकर उक्त गार्ड, लॉबी में भी नहीं गया। ट्रेन से उतरकर वह सीधा घर चला गया जिससे वह जवाबदेही से बच सके।

पत्थरों एवं बलास्ट से भरा ट्रैक पर मिला यह ड्रम

जानकारों का कहना है कि इसीलिए वर्षों से रेल प्रशासन यह प्रयास कर रहा है कि गार्डों को मोटरमैन की ट्रेनिंग देकर लोकल ट्रेनों में दोनों तरफ की कैब में मोटरमैन रखे जाएं, जिससे समय की बचत होगी, और उपरोक्त जैसी परिस्थितियों में वे एक-दूसरे की सहायता भी कर सकेंगे। परंतु कुछ लोगों को कामचोरी और मुफ्तखोरी की लत लग गई है और यूनियनें भी इसमें बड़ी बाधा बनी हुई हैं, जिसके कारण यह महत्वपूर्ण जनोपयोगी बदलाव करने में रेल प्रशासन पिछले बीसों साल से सफल नहीं हो पा रहा है। उनका कहना है कि रेल प्रशासन को इस मामले में कड़ाई से पेश आना चाहिए, और जो लोग इस विकल्प को मानने या अपनाने के लिए सहमत नहीं हो रहे हैं, उन्हें जबरन वीआरएस देकर घर भेज दिया जाना चाहिए।

यह भी पता चला है कि उक्त सेक्शन के आसपास एक समुदाय विशेष के असामाजिक तत्वों की बहुतायत है। उनके द्वारा ट्रेनों को डिरेल करने के ऐसे दुष्टतापूर्ण प्रयास पुनः किए जा सकते हैं। अतः पूरे मुंबई सबरबन सेक्शन में आरपीएफ सहित इंजीनियरिंग स्टाफ की सतत पेट्रोलिंग जारी रखने की महती आवश्यकता है।

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