सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों के प्रति अकृतज्ञ हो रहा रेल प्रशासन?
“यह भी अच्छा है, चाय-बिस्किट का खर्च बच गया! परंतु अब यही तरीका जीएम/विभाग प्रमुख और बोर्ड मेंबर्स इत्यादि सभी अधिकारियों के साथ भी अपनाया जाना चाहिए!”
चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स (सीएलडब्ल्यू) से 31 अगस्त 2022 को रिटायर हुए 46 अधिकारियों/कर्मचारियों को फेयरवेल के साथ रिटायरमेंट संबंधी दस्तावेज देकर ससम्मान विदा करने के बजाय एक एपीओ द्वारा अपने चेंबर में लाइन से सबको उनके अंतिम देय परिपत्रक थमाकर बैरंग रवाना कर दिया गया। रेल प्रशासन द्वारा दिया गया यह प्रतिदान था उनकी 35-38 साल की सेवा का!
पूछने पर बहाना यह बनाया गया कि “स्कूल खुला था, इसलिए वहां फेयरवेल का यह कार्यक्रम नहीं हो सकता था और हाल अंडर रिपेयर है।” यह बहाना बनाते हुए सीएलडब्ल्यू प्रशासन को तनिक भी लज्जा नहीं आई! जबकि अब कोविड का कोई प्रतिबंध लागू नहीं है। जो अधिकारी इस तरह के बचकाने बहाने बना रहे हैं, यह भूल जाते हैं कि वे भी किसी दिन रिटायर होंगे। तथापि अभी भी कुछ जोनल और मंडल मुख्यालयों तथा उत्पादन इकाईयों द्वारा अपनी परंपरा का पालन नहीं किया जा रहा है।
जानकारों का कहना है कि “यह भी अच्छा है, चाय-बिस्किट का खर्च बच गया! परंतु अब यही तरीका जीएम/विभाग प्रमुखों और बोर्ड मेंबर्स इत्यादि सभी अधिकारियों के साथ भी अपनाया जाना चाहिए! कोई झंझट नहीं, कोई बोझ नहीं, खर्चा बचेगा अलग से! ‘जो डर गया, वो मर गया’ की तर्ज पर ‘जो रिटायर हो गया वो मर गया’ अपनी बला से!” शायद यही सोच मूढ़मति अधिकारियों के दिमाग घर कर गई है!
ऐसा लगता है कि रेल प्रशासन अपनी डेढ़ सदी से अधिक पुरानी परंपरा/संस्कृति को दरकिनार कर केवल धींगामुश्ती करके रेल को ढ़केल रहा है। कृतघ्नता इसी तरह घुसपैठ करती है! परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह अवश्यंभावी है। रेल भी बदल रही है, तथापि अभी भी समय है कि अपनी परंपरा, अपनी संस्कृति को सहेजकर रखा जाए, वरना बाद में पछताने को कुछ नहीं बचेगा!
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