लंबे समय से एक ही जगह टिके लोगों को दरबदर करने पर ले लेंगे वीआरएस, स्वत: कम हो जाएगा कार्मिक बोझ!

एक ही जगह, एक ही शहर, एक ही रेलवे में लंबे समय से टिके अधिकारियों और कर्मचारियों को अगर दरबदर किया जाए, तो उनमें से ज्यादातर अधिकारी और कर्मचारी वीआरएस अप्लाई कर देंगे, जिससे रेल प्रशासन का कार्मिक बोझ स्वत: ही कम हो जाएगा!

दक्षिण पूर्व रेलवे, चक्रधरपुर डिवीजन के टाटानगर रेलवे स्टेशन पर 1992 से लगातार 30 साल तक एक ही जगह रहे एक चीफ टिकट इंस्पेक्टर (सीटीआई) ने दो साल की रेलसेवा बाकी रहते केवल इसलिए वालिंटरी रिटायरमेंट (वीआरएस) अप्लाई कर दिया, क्योंकि इतने लंबे समय के बाद पहली बार उसका मुख्यालय टाटानगर से बदलकर चक्रधरपुर किया गया था।

चक्रधरपुर डिवीजन में टिकट चेकिंग स्टाफ के चार मुख्यालय हैं। इस सीटीआई जैसे कुछेक अपवादों को छोड़कर बाकी चेकिंग स्टाफ सहित अन्य रेलकर्मियों का मुख्यालय निर्धारित समय पर बदलता रहा, मगर तमाम जन-शिकायतों के बाद भी इन कुछेक अपवादों का कुछ नहीं बिगड़ा। हालांकि जानकारों का कहना है कि उक्त सीटीआई को जानबूझकर कुछ निहित उद्देश्य के तहत “टारगेट” किया गया।

तथापि इन अपवादों में वह लोग भी शामिल हैं, जो “एडमिनिस्ट्रेटिव इंटरेस्ट” पर मंडल प्रशासन द्वारा दिए जाने वाले “फेवर” को एंजॉय कर रहे हैं। इसका प्रमाण ऑफिस ऑर्डर नं. एसईआर/पी – चक्रधरपुर/कमर्शियल/ट्रांसफर एंड पोस्टिंग/47/ 2021, दि. 17-11-2021 है, जिसमें से सीरियल नं. 19 करीब 15-16 साल एक ही स्थान पर है, जबकि सीरियल नं. 26 को आज तक रिलीव नहीं किया गया और वह लगातार अपनी जगह ठाठ से जमा हुआ है।

उपरोक्त आर्डर के तहत ऐसे आधा दर्जन से ज्यादा कर्मचारियों को “एडमिनिस्ट्रेटिव इंटरेस्ट” का फेवर दिया गया है। जानकारों का कहना है कि “यह “एडमिनिस्ट्रेटिव इंटरेस्ट” अपने आप में बहुत भारी भरकम शब्द है, जिसका अर्थ भी बहुत व्यापक है, और इसके तहत संबंधित अधिकारी अपने निजी हितों को ध्यान में रखकर निर्णय लेते हैं!”

बहरहाल, #Railwhispers द्वारा 14 मार्च 2022 को जब झारखंड अजा/जजा कामगार मोर्चा के सचिव रवि राम द्वारा 15 अक्टूबर 2021 को तथा मुंगेर, बिहार के कमलेश कुमार सिंह द्वारा बिनतारीख की की गई लिखित शिकायतों को लेकर यह मुद्दा उठाया गया, तब 1 अप्रैल 2022 को इन शिकायतों के कारण नहीं, बल्कि टाटानगर स्टेशन पर लंबे समय से टिके रहने के आधार पर उसका ट्रांसफर चक्रधरपुर मुख्यालय में किया गया।

उल्लेखनीय है कि उक्त संदर्भित दोनों शिकायतों में भी उनके लंबे समय से एक ही जगह टिके रहने का मुद्दा खासतौर पर उठाया गया था। मंडल प्रशासन ने मामले का संज्ञान लेते हुए ट्रांसफर आर्डर तो जारी कर दिया, परंतु लगभग एक महीना बीत जाने पर भी उन्हें रिलीव नहीं किए जाने पर पुनः जब इस मामले का फालोअप किया गया, और जब रिलीज करने का दबाव बना, तब उन्होंने पारिवारिक समस्या के बहाने वीआरएस अप्लाई कर दिया।

इस पर सहकर्मी स्टाफ का कहना है कि “वास्तव में वह दूसरी जगह जाना नहीं चाहते थे, और इस बार आर्डर रिवाइज करा लेने, मैनेज कर लेने, आर्डर रद्द करा देने अथवा एडमिनिस्ट्रेटिव ग्राउंड पर रोक लिए जाने इत्यादि पहले जैसी सुविधा और संभावना नहीं दिखाई दे रही थी, इसलिए दो साल की सर्विस बची होने पर भी वीआरएस अप्लाई कर दिया, क्योंकि पहले की तरह अब आर्डर पेंड होने की कोई जुगत नहीं बन रही थी।”

बहरहाल, सच जो भी हो, मगर माना यही जाएगा, और यह सही भी है कि इतने लंबे समय के बाद अगर दरबदर होना पड़े, तो किसी को भी खलेगा। जानकारों का कहना है कि “यह सारी गलती रेल प्रशासन की है, जिसने समय-समय पर रोटेशनल ट्रांसफर पॉलिसी पर अमल नहीं किया। अब जब इतने लंबे समय के बाद किसी को अन्यत्र भेजा जाएगा, अथवा जाने के लिए कहा जाएगा, तो वह अपनी कम सर्विस को देखते हुए वीआरएस लेना ज्यादा उचित समझेगा।”

जानकारों का यह भी मानना है कि यह भी ठीक है, जिसको जाना है, चला जाए, मगर लंबे समय से बिगड़े पड़े सिस्टम को ठीक करने के लिए निर्धारित नियमों, नीतियों और प्रक्रियाओं का पालन तो सुनिश्चित करना ही होगा, क्योंकि सिस्टम पूरी तरह से डम्प हो चुका है। ऐसे में यहां केवल कामचोर, निकम्मे, भ्रष्ट और जोड़-तोड़कर रेल को बेचने/बदनाम करने वाले लोग ही एक जगह टिके रहकर मौज कर रहे हैं, और ज्यादातर ऐसे ही लोग लंबे समय से एक ही जगह एक ही शहर एक ही रेलवे जोन/डिवीजन में जमे हुए हैं, जबकि संस्था का भला चाहने वाले निष्ठावान, कर्तव्यदक्ष अधिकारी एवं कर्मचारी हासिये पर पड़े हैं।

उन्होंने कहा कि जब प्रशासन इन्हें दरबदर करने की कोशिश करता है तब यही लोग नौकरी छोड़ देने का दबाव बनाते हैं। मगर जब छंटनी करनी ही है, तब नीति पर कठोरता के साथ अमल किया जाए, तो सारे भ्रष्ट, कामचोर, कर्महीन, जैसे कदाचारी वैसे ही वीआरएस लेकर चले जाएंगे। ऐसे में रेल प्रशासन का अनावश्यक कार्मिक भार बहुत आसानी से कम हो जाएगा। इसके अलावा कामचोरी खत्म होने से समय पर परियोजनाएं पूरी होंगी, तो उनकी अनावश्यक लागत भी नहीं बढ़ेगी। इस प्रकार जंग लग चुके सिस्टम को रिवाइव अर्थात पुनर्जीवित अथवा पुनर्सक्रिय करने का रेल प्रशासन का साध्य भी सहज ही हासिल हो सकता है।