जो अधिकारी अपना नैतिक दायित्व नहीं निभाते, उनसे संस्था की भलाई की अपेक्षा करना व्यर्थ है!
“इस समय केंद्र सरकार, रेलमंत्री और सीआरबी की तरफ से रेल के उन्नयन हेतु पूरा परिश्रम किया जा रहा है। अगर कमियों की गिनती की जाए, तो यहां इतनी कमियां हैं कि इन पर एक बड़ी पोथी लिखी जा सकती है। तेजस तो कुछ भी नहीं है!”
कल दि. 17.04.2022 को “भारतीय नौकरशाही का दोगला चरित्र!“ शीर्षक से प्रकाशित खबर पर एक जागरूक रेलकर्मी की सटीक प्रतिक्रिया मिली है। खबर में वर्णित उक्त अहंमन्य आईआरटीएस अधिकारी जैसे अन्य लोगों को इस एक सामान्य रेलकर्मी की प्रतिक्रिया से बहुत कुछ सीखने और समझने के अलावा दूसरों के साथ अपने व्यवहार, रेल के प्रति अपनी निष्ठा और स्वयं की सोच एवं कर्तव्य परायणता पर विचार करना चाहिए।
इस रेलकर्मी ने लिखा है, “कमाल के अधिकारी भरे पड़े हैं भारतीय रेल में! इनकी इतनी हिम्मत नहीं है कि रेल की छवि और बुनियादी ढ़ांचे की होने वाली दुर्दशा अथवा कमियों को सीधे रेल प्रबंधन को बता सकें, लिखकर भेज सकें। ऊपर से तुर्रा ये कि ऐसे लोग प्रतिनियुक्ति पर दूसरे मंत्रालयों में काम कर रहे हैं और सलाह ऐसे दे रहे हैं मानो कि ये रेल में होते तो सारी कमियों को तुरंत दुरुस्त करा देते!”
उन्होंने लिखा, “वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (1994 बैच) का यह अधिकारी रेल के प्रति निष्ठा, समर्पण जैसी नैतिक जिम्मेदारी तो निभा नहीं सका, चले हैं दूसरों के कंधों का इस्तेमाल करने! जो अधिकारी अपना नैतिक दायित्व नहीं निभाते, उनसे संस्था की भलाई की अपेक्षा करना व्यर्थ है। सही मायनों में देखा जाए तो रेल को सही दिशा में ले जाने वाली प्रबंधन टीम की वर्तमान समय में बहुत आवश्यकता है और अवसर भी!”
इस रेलकर्मी का कहना है कि “जैसा भी है, लेकिन इस समय केंद्र सरकार, रेलमंत्री और सीआरबी, तीनों की तरफ से रेल के उन्नयन हेतु पूरा परिश्रम किया जा रहा है। अगर कमियों की गिनती की जाए तो यहां इतनी कमियां हैं कि इन पर एक बड़ी पोथी लिखी जा सकती है। तेजस तो कुछ भी नहीं है!”
रेलकर्मी ने आगे लिखा, “जहां तक रेल में कमियों की बात है तो इन सभी कमियों के लिए उक्त किस्म के रेल अधिकारी ही जिम्मेदार रहे हैं। इसके लिए वे अधिकारी भी जिम्मेदार हैं जो 20-25 सालों से एक ही जगह, एक ही शहर और एक ही रेल में जमे हुए हैं। केवल इनकी कुर्सियां बदलती रही हैं, मगर सच यह है कि इन्होंने रेल के हित में, रेल के उन्नयन के लिए कभी काम नहीं किया। यह केवल अपने निजी हितों के लिए रेल का उपयोग करते रहे हैं। ट्रांसफर पर शहर या जोन बदलने का संकट दिखाई दिया, तो वहीं कहीं किसी केंद्रीय मंत्रालय में, पीएसयू में, अथवा राज्य सरकार या अर्ध सरकारी संस्थाओं में प्रतिनियुक्ति लेकर बैठ गए। परंतु अपने निजी हितों पर कभी कोई आंच नहीं आने दी।”
कर्मचारी ने आगे लिखा है कि “वर्तमान में सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात की है कि रेलमंत्री और सीआरबी सबसे पहले रेल के आंतरिक प्रशासनिक सुधार पर काम करें। रेलमंत्री और सीआरबी अगर वास्तव में रेल का भला करना चाहते हैं, तो सबसे पहले उन अधिकारियों (ग्रुप ‘ए’) को दरबदर करें, जो दस साल या उससे ज्यादा समय से एक ही शहर, एक ही रेलवे में बैठे हुए हैं। इसमें किसी भी प्रकार का कोई पक्षपात या सोर्स-सिफारिश वाला भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।”