भारतीय नौकरशाही का दोगला चरित्र!
आदरणीय प्रधानमंत्री जी और मा. रेलमंत्री जी,
तेजस ट्रेनों की दुर्दशा और राजधानी ट्रेनों से संबंधित एक उच्च अधिकारी के तीन स्क्रीन शॉट
का कृपया अवलोकन करें। यह हकीकत बयान करता और करवाता वह सत्य है जो हर दिन हजारों रेलयात्री भी महसूस करते हैं। और यकीन मानें, यह उच्चतम स्तर पर और प्रायोजित मीडिया के द्वारा बनाए गए भ्रम को आईना दिखाने वाली एक सच्चाई भी है!
आदरणीय प्रधानमंत्री जी और रेलमंत्री जी कृपया इस मामले को गंभीरता से लेकर यह भी विचार करें कि भारतीय नौकरशाही का इतना दोगला चरित्र क्यों है, जिसमें एक तरफ भीरुता की पराकाष्ठा है, तो दूसरी तरफ अकड़ की भी इन्तहा है!
जिस काम के लिए जो अधिकारी स्वयं इतना सक्षम है कि तेजस/राजधानी या अन्य किसी भी ट्रेन की दुर्दशा पर अपना अनुभव, अपना विचार या अपनी फीडबैक लिखित में अथवा मौखिक रूप से भी सक्षम अधिकारियों को दे सकते हैं, भेज सकते हैं, लेकिन, या तो उनको स्वयं पूरी व्यवस्था पर विश्वास नहीं है, या फिर यह डर है कि मंत्री या बोर्ड मेंबर, चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड बुरा मान जाएंगे और उनको कोई बड़ा नुकसान पहुंचा देंगे?
इसलिए पीछे से दूसरे के कंधे पर ही बंदूक रखकर चलाना बेहतर समझते हैं, और इस काम के लिए पत्रकार से अच्छा और क्या माध्यम हो सकता है! जिसमें लाभ यह होता है कि अगर तीर सही निशाने पर लगा, तो लगे हाथ अपनी पीठ भी थपथपा लेंगे और बेचारे पत्रकार पर अहसान भी जमा लेंगे।
लेकिन यदि निशाना कहीं गड़बड़ हुआ, तो पत्रकार ही सारी तोहमत झेलेगा, शासन-प्रशासन द्वारा की जाने वाली कार्रवाई का सामना भी वही करेगा, क्योंकि पत्रकार तो बदनाम प्रजाति है ही! और किसी मामूली, साधनविहीन पत्रकार की क्या औकात एक सक्षम और उच्च पदस्थ नौकरशाह के सामने!
इसीलिए एक नौकरशाह को जहां पर स्टैंड लेना चाहिए, और अपना कर्तव्य समझकर पूरी निष्ठा के साथ तथ्यात्मक सत्य के लिए पूरी तरह अड़ जाना चाहिए, वहां वे भीगी बिल्ली बन जाते हैं और हम जैसे निरीह पत्रकारों पर ही अपनी सारी अकड़ दिखाते हैं! इस अकड़ का नमूना प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष धमकी के रूप में इनके द्वारा लिखी गई शब्दावली में देखा जा सकता है।
चूँकि यह कंप्लेंट या इनपुट और ट्रेनों की स्थिति एकदम सही है, इसलिए प्रधानमंत्री जी और रेलमंत्री जी, मेरा आग्रह है कि मेरे ऊपर की गई व्यक्तिगत अमर्यादित टिप्पणी को नजरअंदाज कर इस रेल अधिकारी, जो कि वर्तमान में गृहमंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद पर प्रतिनियुक्ति पर है, द्वारा उठाई गई ट्रेनों की बदहाली को अत्यंत गंभीरता से लेकर रेल को सुधारने का उचित प्रयास करें।
प्रधानमंत्री जी और रेलमंत्री जी, यह भी सोचें कि आखिर ऐसी कौन सी चीज है जो अधिकारियों को एक सही बात कहने में भी इतना भीरु बनाती और इतना उच्च स्तरीय पाखंडी (हिपोक्रेट) भी?
प्रधानमंत्री जी और रेलमंत्री जी, मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि जब तक आप दोनों महानुभावों के इर्द-गिर्द वैसे ऑफिसर नहीं रहेंगे जो निर्भीकता से अपनी बात और जमीनी हकीकत आपको बताने, आपके संज्ञान में लाने का माद्दा रखते हैं, तब तक न इस देश का भला होगा और न ही रेलवे का!
महोदय, जब इतने वरिष्ठ अधिकारी का स्वयं के सिस्टम पर इतना भरोसा नहीं बचा है, तो आम जनता का क्या हाल होगा, यह आप लोग बेहतर सोच सकते हैं!
रेलवे की हकीकत यह है कि सोसेबाजी ज्यादा हो गई है और ठोस काम कम हो रहे हैं। आप हाई स्पीड और प्रीमियम (वंदेभारत) ट्रेनों के नाम पर खरबों रुपये रेल में झोंक रहे हैं, लेकिन अपने अव्यावहारिक रवैय्ये, हठधर्मिता, बढ़ते किराए-भाड़े और भ्रष्ट उद्देश्य से आम जनता को धीरे-धीरे एक प्रकार से रेलवे से दूर किया जा रहा है। सीधे शब्दों में कहें तो रेलवे से भगाया जा रहा है।
धीरे-धीरे रेलवे सामान्य आदमी के लिए अनुपलब्ध होती जा रही है और माफियाओं के लिए अत्यंत व्यावहारिक (मुफीद) बनती जा रही है, जो रेलवे का उपयोग – प्रयोग अपनी दो नंबर की गतिविधियों के लिए बखूबी कर रहे हैं।
महोदय, फिलहाल निवेदन यही है कि उक्त रेल अधिकारी द्वारा हाईलाइट किए गए सत्य पर समय रहते हुए चेत जाएं, यही इस देश के लिए, इसकी प्रशासनिक व्यवस्था के लिए, और सर्वसामान्य जनता के लिए भी हितकर होगा!
सादर
सुरेश त्रिपाठी, संपादक
Railwhispers.com
RailSamachar.com