अखर रही है मॉनिटरिंग!

रेलवे बोर्ड और खासकर सीआरबी द्वारा हर छोटी-छोटी बात की जानकारी और अपडेट ली जा रही। बीते डेढ़ महीने में बोर्ड अर्थात सीआरबी द्वारा जिस तरीके से चीजों की मॉनिटरिंग की जा रही है, उससे एक बात तो साफ दिख रही है कि जहां रेलवे की गतिविधियों और कार्यप्रणाली में गतिशीलता आई है, वहीं इस सबसे कुछ जीएम, डीआरएम और पीएचओडी असमंजस में पड़ गए हैं, उन्हें यह सब हजम नहीं हो रहा है। ऐसी खबरें आ रही हैं, जिनसे यह आभास हो रहा है कि जोनल/डिवीजनल स्तर के अधिकारियों को यह मॉनिटरिंग कुछ रास नहीं आ रही है। वह इस गतिशीलता को हजम नहीं कर पा रहे हैं।

चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड (सीआरबी) विनय कुमार त्रिपाठी की कार्यशैली और फोरम में उनके व्यवहार पर उंगली उठाने वाले अधिकारियों की बात पर रेल के प्रति समर्पित एक वरिष्ठ रेल अधिकारी ने कहा कि हकीकत यह है कि लंबे अर्से के बाद कोई ऐसा सीआरबी बना है जो काम करना और करवाना जानता है, और जिसका अभी तक का ट्रैक रिकार्ड लो-प्रोफाइल में रहकर काम पर ही पूरा ध्यान देने पर रहा है। काम करने वाले की इनको पहचान भी है और काम करने वालों को निष्पक्ष तरीके से, बिना किसी विभागीय पक्षपात के सपोर्ट भी करते हैं, और इज्जत भी देते हैं, क्योंकि यह उनके संस्कार में शामिल है।

उन्होंने आगे कहा कि चूंकि सीआरबी ईमानदार भी हैं और काम भी जानते हैं, तथा लंबे अर्से तक फील्ड में रहकर काम किया है, हर चीज को बारीकी से समझते हैं, उन्हें जल्दी गुमराह करना या कोई सामान्य बहाना बनाकर बच निकलना आसान नहीं हो रहा है, इसलिए अधिकांश उन अधिकारियों की चल नहीं पा रही है जो पूरी नौकरी बिना काम के केवल जी-हुजूरी के बल पर करते हैं।

उन्होंने कहा कि रेलवे में कमोबेश ऐसे ही अधिकारियों की भरमार है, इसलिए इन्हें कंसल-कश्यप जैसे लोगों से कोई शिकायत नहीं होती, बल्कि उनके विरुद्ध इनके मुंह में जबान ही नहीं होती है, पर वर्तमान सीआरबी जैसे अपने काम से काम रखने वाले और काम के प्रति निष्ठावान ईमानदार लोगों को ऐसे नहीं तो वैसे बदनाम या विवादास्पद करने की मुहिम शुरू कर देते हैं, यही दुर्भाग्य है रेल का!

उन्होंने कहा कि यह बात जरूर है कि अगर यह कहा जा रहा है अथवा ऐसा परिलक्षित हो रहा है कि कुछ जीएम, डीआरएम और पीएचओडी स्तर के अधिकारी तैयार/अपडेट होकर नहीं आते हैं, तो मामला कितना गंभीर है, यह सोचने की बात है। हालांकि रेलवे में यह कोई नई बात नहीं है। ये वही जन्मतिथि आधार वाले लोग हैं, जिनकी प्राथमिकता में काम के अलावा बाकी सब कुछ होता है, तो फिर जो भी इनसे काम की बात करेगा, उसकी तो ये बुराई करेंगे ही, छीछालेदर भी करने की कोशिश करेंगे, चाहे वह सीआरबी हों या मंत्री! उन्हें क्या फर्क पड़ता है!

वह कहते हैं, रेलवे की प्रायः हर मीटिंग में जीएम, डीआरएम और पीएचओडी एक-दो बगलबच्चा लेकर चलते हैं जो कोई केटीपी टाइप का स्मार्ट ऑफिसर होता है और प्रजेंटेशन या डिस्कशन में उसे ही आगे करके ये लोग बीच-बीच में कुछ बोलकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए काजू खाएंगे, या फिर चाय अथवा सूप पीते रहेंगे।

हालांकि यह समझ से परे है कि तब बोर्ड मेंबर्स क्या कर रहे हैं? वह क्या मॉनीटर कर रहें हैं? वह कहते हैं, अगर जीएम, डीआरएम और कोई पीएचओडी स्तर का अधिकारी पर्याप्त तैयारी करके स्पेसिफिक मुद्दों पर बोर्ड (सीआरबी) स्तर की मीटिंग में नहीं आ रहा है, तो इसका सीधा मतलब है कि बोर्ड मेंबर काम नहीं कर रहे हैं!

बीच में मंत्री, सीआरबी या मेंबर इनसे कुछ पूछ दे, तो बड़े आत्मविश्वास से लबरेज होकर बोलते हैं –
तुरंत पता करता हूँ सर !
अभी पूछकर बताता हूँ सर !!
अभी बताता हूँ सर, जस्ट ए मिनट सर !!!
या फिर बगलें झांकने लगेंगे !!!!
नजर नहीं मिलाएंगे, मगर सर सर, यस सर यस सर, सॉरी सर.. करते रहेंगे!
इस तरह के लोग डांट नहीं सुनेंगे तो क्या सुनेंगे?

यह सही है कि रेलवे बोर्ड की जैसी संरचना रही है, उसमें सीआरबी का काम अपडेट लेना और मॉनिटरिंग  करना ही रहा है। जबकि बोर्ड मेंबर्स का काम अपने अपने विभागों की नीति से लेकर उसके क्रियान्वयन को सुनिश्चित कराना रहा। लेकिन अरुणेंद्र कुमार और उनके बाद के सभी सीआरबी ने शक्तियों को केंद्रीकृत करना शुरू किया और मेंबर्स के पर कतर दिए गए। परिणामस्वरूप जीएम्स के अंदर मेंबर्स के प्रति जो जवाबदेही, उत्तरदायित्व, सम्मान या महत्व था, वह खत्म हो गया और बहुत हद तक यही चीज डीआरएम्स के साथ भी हुई। थोड़ा बहुत अपने कैडर कंट्रोलिंग मेंबर को छोड़कर उनके अंदर भी किसी अन्य मेंबर के प्रति सम्मान या जवाबदेही नहीं बची।

हालांकि जब मेंबर्स का प्रभुत्व अपने चरम पर था, तब भी मेंबर्स का यही कहना था कि उनका काम कुल मिलाकर मॉनिटरिंग करने का ही है।

ऐसे में काम करने वाले और काम के प्रति समर्पित अधिकारियों को बोर्ड या सीआरबी की मॉनिटरिंग बिल्कुल नहीं अखर रही है। यह शिकायत इसलिए भी पहली बार सामने आई है, क्योंकि इससे पहले जो भी सीआरबी रहे, उनके अपने-अपने एजेंडे थे, इसलिए उनके साथ किसी को कोई समस्या नहीं हुई। परंतु अब चीजों की बारीकी से निगरानी की जाने लगी है, तो यह कुछ लोगों को अखर रही है। तथापि समय के साथ बदलाव को स्वीकार करने में ही व्यवस्था की भलाई है।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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