रेलवे में भ्रष्टाचार और अनियमितता: रुटीन है संसद में रेलमंत्री द्वारा दिया गया प्रत्युत्तर

सांसद द्वारा उठाया गया प्रश्न “एग्रीड लिस्टेड” अधिकारी और अकारण-असमय हटाए गए अधिकारी के संदर्भ में था, मगर केवल “वित्तीय शक्तियां” वापस लेने की बात कहकर प्रशासनिक कोताही को छिपा लिया गया!

नेताओं के इशारों पर नाचते हुए अधिकारी नियमों को ताक पर रखकर अपने मातहतों का उत्पीड़न करते हैं, अपनी निष्ठा, अपना कर्तव्य ताक पर धर देने वाले ऐसे अधिकारियों की लाचारी और बेचारगी पर किसको तरस नहीं आएगा?

लोकसभा में चालू सत्र के दौरान बुधवार, 2 फरवरी 2022 को सांसद उदय प्रताप सिंह ने अतारांकित प्रश्न सं. 39 के अंतर्गत रेलवे में भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतों के तहत पूछा कि क्या सरकार को पश्चिम मध्य रेलवे के भोपाल मंडल से कथित भ्रष्टाचार और अनियमितताओं संबंधी शिकायतें प्राप्त हुई हैं? यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है?

उन्होंने अपने प्रश्न को और विस्तार देते हुए पूछा कि गत दो वर्षों और वर्तमान वर्ष के दौरान अधिकारियों के विभागों के “सम्मत सूची” में होने के कारण उनके विरुद्ध प्राप्त शिकायतों पर की गई कार्रवाई का ब्यौरा क्या है?

उन्होंने आगे पूछा कि क्या भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को दूर करने के साथ-साथ कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए सरकार द्वारा कोई योजना बनाई गई है, या सरकार के विचाराधीन है? यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है?

संसद में उठाए गए उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर देते हुए रेल, संचार एवं इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, जी हां, निविदाओं में अनियमितता, कर्मचारियों के स्थानांतरण और तैनाती, खानपान स्टालों, अवैध परितोषण की मांग संबंधी शिकायतें प्राप्त हुई हैं।

रेलमंत्री अश्वनी वैष्णव ने अपने प्रत्युत्तर में आगे कहा कि शिकायतों की जांच की जाती है और सतर्कता नियमावली के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाती है। उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों और चालू वर्ष के दौरान “सम्मत सूची” में शामिल ऐसे अधिकारियों को असंवेदनशील पदों पर स्थानांतरित किया गया है।

रेलमंत्री ने कहा कि वे मामले; जिनमें अपरिहार्य कारणों की वजह से स्थानांतरण संभव नहीं था, उनकी वित्तीय शक्तियां वापस ले ली गई हैं, और उनकी कार्यप्रणाली पर नजर रखी जा रही है।

उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की जांच करने एवं प्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए निवारक, दंडात्मक और शैक्षिक कार्रवाई की जाती है, जिसमें प्रणाली में सुधार शामिल है।

रेलमंत्री द्वारा संसद में दिए गए प्रत्युत्तर को पश्चिम मध्य रेलवे के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने “अर्धसत्य” बताते हुए कहा कि यह रूटीन रिप्लाई है, क्योंकि उस अधिकारी को भोपाल मंडल से बिना कोई गंभीर आरोप के कार्यकाल पूरा होने से पहले हटाया गया, जो न केवल बेहतर काम कर रहा था, बल्कि व्यवस्था में सुधार का प्रयास भी कर रहा था। उन्होंने कहा कि होना तो यह चाहिए था कि एग्रीड लिस्टेड को हटाकर उसकी जगह उस अधिकारी को स्थानापन्न किया जाता, मगर उसके कार्य से शायद स्थानीय नेता जी या मुख्यालय के अधिकारी संतुष्ट नहीं थे! अथवा वह शायद भोपाल मंडल में लंबे समय से टिके कुछ अधिकारियों के हितों के आड़े आ रहा था!

उनका कहना था कि उक्त अधिकारी, एक एडीआरएम के इशारे पर उन स्थानीय नेताजी का कोपभाजन बना, जो भोपाल मंडल सहित पश्चिम मध्य रेलवे के लगभग प्रत्येक प्रशासनिक मामले में लंबे समय से अपनी दखलंदाजी कर रहे हैं। जबकि उक्त एडीआरएम सहित भोपाल मंडल में लंबे समय से टिके कई अधिकारी और कर्मचारी उनके कृपा पात्र बने हुए हैं। उनका सवाल है कि यदि दैनंदिन कामयाब में राजनीतिक हस्तक्षेप होगा, तो प्रशासन और व्यवस्था का क्या होगा?

उन्होंने कहा कि भोपाल मंडल के जिस अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, और इसी वजह से उसे करीब छह महीने पहले “एग्रीड लिस्ट” में भी डाला गया, उसको भोपाल से तत्काल हटाया जाना चाहिए था। उनका कहना था कि सांसद उदय प्रताप सिंह द्वारा संसद में उठाया गया प्रश्न भी इसी “एग्रीड लिस्टेड” अधिकारी और अकारण असमय हटाए गए अधिकारी के संदर्भ में ही था। मगर जिसे केवल “वित्तीय शक्तियां” वापस लेने की बात कहकर प्रशासनिक कोताही को छिपा लिया गया है। जबकि अंदरखाने की बात यह है कि टेंडर कमेटियों (टीसी) में यह अधिकारी आज भी अप्रत्यक्ष/अनधिकारिक रूप से न केवल हस्तक्षेप कर रहा है, बल्कि नामित जूनियर अधिकारी की जगह इसी के निर्देशानुसार टीसी में निर्णय हो रहे हैं!

यह बात सही है कि भोपाल और कोटा मंडल में रेलकर्मियों के बीच इस एग्रीड लिस्टेड अधिकारी के कारनामों की काफी चर्चा है। अधिकारी भी दबी जुबान इसकी बात करते हैं। परंतु पश्चिम मध्य रेलवे मुख्यालय में बैठे सक्षम अधिकारी शायद उक्त स्थानीय नेताजी के इतने ज्यादा दबाव में हैं कि वे गलत को गलत कहने और सही कदम उठाने की स्थिति में नहीं हैं।

प्रश्न यह है कि अगर उपरोक्त तथ्य सही नहीं है, तो मुख्यालय ने एग्रीड लिस्टेड अधिकारी को तत्काल क्यों नहीं हटाया? वित्तीय अधिकार वापस ले लेने की बात बेमानी है, क्योंकि जब वह अति संवेदनशील पद पर बना हुआ है, तब प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उक्त पद की शक्तियों का दुरुपयोग तो करेगा ही! धरातल की यही सच्चाई है। और जब प्रत्येक “एग्रीड लिस्टेड” या “सीक्रेट लिस्टेड” अधिकारी को तत्काल संवेदनशील पद से हटाए जाने का प्रावधान है, तब अधिकारियों की कमी का रोना नहीं चलने वाला है! यह प्रत्यक्ष रूप से सीधा पक्षपात है।

हालांकि सबको ज्ञात है कि नेता जी केवल पांच साल के लिए सांसद या विधायक बनते हैं, और मंत्री एक या दो साल के लिए, मगर डर के कारण अथवा कृपा-पात्र बनने के लिए परमानेंट सरकारी अधिकारी उनके सामने बिछ जाते हैं और उनके इशारों पर नाचते हुए नियमों को ताक पर रखकर अपने मातहतों का उत्पीड़न करके उनके प्रति भारी अन्याय करते हैं। अपनी निष्ठा, अपना कर्तव्य ताक पर धर देने वाले ऐसे अधिकारियों की लाचारी और बेचारगी पर किसको तरस नहीं आएगा?

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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