Railgate-6: रिफॉर्म के नाम पर रेल प्रबंधन के साथ चीटिंग!

रेलवे में रिफॉर्म के नाम पर जो भी काम हुआ – उसमें केवल इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विस (#IRMS) बनाई गई, जिसमें न तो कोई पारदर्शिता है, न ही कोई नीति-नियम, है तो केवल पक्षपात और मनमानी! और रेल प्रबंधन के साथ चीटिंग!

तीन साल से अधिक के अंतराल के बाद रेल में अधिकारियों की भर्ती हुई।

#UPSC को इंडेन भेजा गया केवल 150 कंडीडेट्स का, उसमें केवल 90 कंडीडेट्स ने #IRMS का चयन किया।

यह जो 90 कंडीडेट्स #IRMS में आए, उनमें से 60 कंडीडेट्स पहले ही लंबी छुट्टी लेकर चले गए।

जो 30 कंडीडेट बचे, उनके पास शायद इसके अलावा दूसरा कोई ऑप्शन नहीं रहा होगा।

अब इन 30 कंडीडेट के लिए भी कोई ट्रेनिंग प्रोग्राम तय नहीं था, इसलिए इन्हें सीधे इंडियन रेलवे इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रैफिक मैनेजमेंट (#IRITM) में डाल दिया गया।

वहाँ इनकी यथासंभव सारी ट्रेनिंग प्रक्रिया भी पूरी हो गई, मगर अब तक उनका आगे का भविष्य तय नहीं हो पाया है।

यहाँ यह भी जान लें कि इनमें चार #RPF के कंडीडेट भी शामिल हैं, और एक बात यह भी जान लें कि चार ऐसे प्रोबेशनर को भी लिया गया है, जिन्हें अन्य कोई केंद्रीय विभाग लेने को तैयार नहीं था, और यह रेलमंत्री द्वारा इन्हें दी गई विशेष मेडिकल छूट पर संभव हुआ।

पहले हर साल सिविल सेवा परीक्षा (#CSE) से लगभग 100-125 कंडीडेट और इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा (#ESE) से 200-250 कंडीडेट यूपीएससी के माध्यम से रेलवे में लिए जाते थे।

इस तरह हर साल लगभग 300-350 के लगभग अधिकारियों की भर्ती रेलवे में हुआ करती थी। इसके बजाय तीन साल बाद आए केवल 30 लोग।

ऐसे में आगे रेल प्रबंधन का क्या हाल होगा? कौन चलाएगा रेल? कैसे चलेगी रेल? इन प्रश्नों का उत्तर किसी के पास नहीं है।

हायर लेवल पर यानि लेवल 16-17 अर्थात् जीएम/बोर्ड मेंबर के स्तर पर जब दो-तीन बैच नीचे जाकर अधिकारियों को सेलेक्ट किया जा रहा है, तो कम से कम दो-तीन साल की बैलेंस सर्विस के अधिकारी आने चाहिए थे, जबकि ये केवल 2-3-4 महीने या फिर 6-8-11 महीने के लिए बन रहे हैं, यहाँ तक कि 24 और 48 घंटे के लिए भी जीएम बनाए गए हैं!

जानकारों का मानना है कि ऐसा किसी डील के तहत पेंशनरी बेनीफीट देने के लोभ में डॉटेट लाइन पर साइन कराने के लिए किया गया हो सकता है। ये कोई रिफॉर्म नहीं है, किसी को भी न नीचे, न ऊपर, कहीं का नहीं रखा गया!

उनका कहना है कि लेवल 16-17 के चयन में जो मनमानी चल रही है, उससे वरिष्ठ रेल अधिकारियों में भारी असंतोष और विक्षोभ है, क्योंकि इसकी सारी प्रक्रिया पूरी तरह अपारदर्शी है।

वह कहते हैं कि जीएम अपने अधिकांश विभाग प्रमुखों से जूनियर होता है, दो-तीन साल तक तो यह मनमानी चल जाएगी, मगर जैसे ही मानसिक रूप से लोग परिपक्व और मजबूत हो जाएँगे, तब यह मनमानी कतई नहीं चल पाएगी। यह पूरी तरह से रेल व्यवस्था को हतोत्साहित करने वाला वातावरण बना दिया गया है!

ऐसे अनिश्चितता के वातावरण में रेल के जानकारों का कहना है कि “देर-सबेर सरकार को पुरानी जाँची-परखी रेल प्रबंधन नीति की तरफ लौटना ही पड़ेगा, इसके अलावा सरकार के पास अन्य कोई विकल्प नहीं है।”

वह कहते हैं, “कथित किरकिरी होने के भय से यदि सरकार अपनी इसी अपारदर्शी, पक्षपाती नीति यानि सुधीर-सेंस-जिसमें मंत्री की ‘हूँ’ को सारी चयन प्रक्रिया से ऊपर रखा गया है-पर अड़ी रहती है, तो बात अलग है, तब रेल में कोई योग्य टैलेंट आना ही नहीं चाहेगा!” क्रमशः