#RTI_Act: नागरिकों को दिग्भ्रमित करने और जानकारी छिपाने में सबसे आगे रेल मंत्रालय
रेल मंत्रालय में सूचनाओं को दबाने का जैसा प्रयास हो रहा है, उससे षड्यंत्र की दुर्गंध आती है, सीआईसी और कोर्ट के जजमेंट्स को बिना पढ़े जानकारियां छिपाने के प्रयास में कई अधिकारी तथा सेक्शन ऑफिसर अपना बुढ़ापा और कैरियर खराब करने की ओर बढ़ रहे हैं!
रेल भवन से जैसे बड़े बजट के काम हो रहे हैं, अनैतिक आदेशों की झड़ी लगी है, ऐसे में सूचनाओं को दबाना अपराधिक कृत्य प्रतीत होता है। रेल के #KMG का इकोचैम्बर तो ऐसी सूचनाएं दबाना ही चाहेगा! क्या रेल के अन्य कर्मी इस षड्यंत्र में भागीदार होना चाहते हैं?
#RTI_Act सरकारी कर्मचारियों के लिए खासकर रेलकर्मियों के लिए चिड़चड़ाहट का एक कारण रहा है। एक हद तक सही भी है, इतनी जानकारियां मांगी जाती हैं, कि कर्मियों का चिढ़ जाना भी स्वाभाविक है। इनमें से अधिकांश तो अकारण होती हैं, कई तो कांट्रैक्ट्स से संबंधित होती हैं, और कई आरटीआई आवेदन तो केवल परेशान करने के लिए ही आते हैं।
यहां आपको यह देखना है कि संतुलन कहां आता है। आप सूचना मांगने के फॉर्मेट को देखकर बता सकते हैं कि सूचना मांगने वाला किस मंतव्य से सूचना मांग रहा है।
जब यह जनसूचना कानून (#RTI_Act) बना था, तब इस ऊहापोह की स्थिति का पूर्वानुमान संसद ने भी लगा लिया था। इसीलिए इस कानून में यह निर्देशित किया गया था कि हर सरकारी विभाग अपने पास रखी जानकारी को अपने आप से ही पब्लिक डोमेन में डालेगा, ताकि सर्वसामान्य नागरिक इसे बिना किसी कठिनाई के देख सकें।
लेकिन यहां यह देखा गया है कि रेल भवन से मांगी गई किसी भी जानकारी के स्टैंडर्ड जवाब हैं। मजे की बात यह कि जो ये जवाब बनाते हैं उन्होंने आरटीआई ऐक्ट और केंद्रीय सूचना आयोग (#CIC) के वे आदेश जिनका उल्लेख रेल मंत्रालय के अधिकारीगण करते हैं, उसे उन्होंने पढ़ा ही नहीं होता है! उन्हें ये पता है कि लालफीते की लंबाई मांगी गई जानकारी को इतना देर से देगी कि वह निरर्थक हो जाएगी या मांगने वाला स्वयं ही थक-हार कर बैठ जाएगा। साथ ही, प्रक्रिया से खेलने के माहिर ये ‘बाबू’ जानते हैं कि उन पर इस महत्वपूर्ण कानून की अवहेलना से कोई आंच नहीं आएगी।
अगर इनके दिए जवाबों की किसी #Court में, या #CVC की इंक्वायरी में जांच हो, तो ये सब निपट जाएंगे कि यह जानकारी छिपाकर किसी न किसी कांस्पिरेसी के भागीदार हैं।
यह आवश्यक है कि रेल के अधिकारी इन गहन मुद्दों को समझें, अन्यथा यह तय मानें कि आपके हस्ताक्षर आपको जानकारी छिपाने के षड्यंत्र का भागीदार बना रहे हैं।
## क्या है CIC/MEDCI/A/2017/604487-BJ, 19.09.2019, जिसकी बैसाखी का सहारा अक्सर जानकारी छिपाने के लिए रेल प्रशासन लेता है?
पहले यह जानना आवश्यक है कि न्यायालय किस परिपेक्ष्य में इस कानून को देखते हैं-
क्या है ‘information’ या सूचना, अथवा जानकारी?
#RTI_Act_2005, 2(f) इसका सीमांकन करता है:
“information” means any material in any form, including records, documents, memos, e-mails, opinions, advices, press releases, circulars, orders, logbooks, contracts, reports, papers, samples, models, data material held in any electronic form and information relating to any private body which can be accessed by a public authority under any other law for the time being in force;
ये जानकारी क्यों उपलब्ध होनी चाहिए और RTI Act क्या enable करता है?
…. setting out the practical regime of right to information for citizens to secure access to information under the control of public authorities, in order to promote transparency and accountability in the working of every public authority…
…. democracy requires an informed citizenry and transparency of information which are vital to its functioning and also to contain corruption and to hold Governments and their instrumentalities accountable to the governed;
यही माननीय सुप्रीम कोर्ट और कई हाई कोर्टों ने माना भी है कि लोकतंत्र के लिए सूचना का अधिकार बहुमूल्य है। वहीं इन न्यायालयों ने ये भी माना है कि सभी प्रकार की जानकारी नहीं सार्वजनिक की जा सकती, इसका प्रावधान भी #RTI_Act में दिया गया है:
AND WHEREAS revelation of information in actual practice is likely to conflict with other public interests including efficient operations of the Governments, optimum use of limited fiscal resources and the preservation of confidentiality of sensitive information;
यहां रेल के अधिकतर #PIO और #CPIO खेलने का प्रयास करते हैं। उनका ये मानना है कि सूचना देने से कोई ‘Public Interest’ नहीं पूरा हो रहा।
मूल बात इस पर आती है कि रेल के PIO/CPIO बड़ी सरलता से ये कह देते हैं कि आपको सूचना साझा करने से कोई जनहित नहीं सध रहा और इसको समर्थन देने के लिए वे CIC/MEDCI/A/2017/604487-BJ, 19.09.2019 के निर्णय का सहारा लेते हैं।
इसीलिए आवश्यक है यह जानना कि #CIC का उक्त आदेश आखिर क्या कहता है-
RTI Act द्वारा नागरिक कोई ओपिनियन नहीं मांग सकता!
Hon’ble Supreme Court decision in 2011 (8) SCC 497 (CBSE Vs. Aditya Bandopadhyay), wherein it was held as under:
35….. “It is also not required to provide ‘advice’ or ‘opinion’ to an applicant, nor required to obtain and furnish any ‘opinion’ or ‘advice’ to an applicant. The reference to ‘opinion’ or ‘advice’ in the definition of ‘information’ in section 2(f) of the Act, only refers to such material available in the records of the public authority. Many public authorities have, as a public relation exercise, provide advice, guidance and opinion to the citizens. But that is purely voluntary and should not be confused with any obligation under the RTI Act.”
आगे…
The Hon’ble Supreme Court of India in Khanapuram Gandaiah Vs. Administrative Officer and Ors. Special Leave Petition (Civil) No. 34868 OF 2009 (Decided on January 4, 2010) had held as under:
This definition shows that an applicant under Section 6 of the RTI Act can get any information which is already in existence and accessible to the public authority under law. Of course, under the RTI Act an applicant is entitled to get copy of the opinions, advices, circulars, orders, etc., but he cannot ask for any information as to why such opinions, advices, circulars, orders, etc. have been passed.
“… Under Section 6 of the RTI Act, an applicant is entitled to get only such information which can be accessed by the “public authority” under any other law for the time being in force. The answers sought by the petitioner in the application could not have been with the public authority nor could he have had access to this information and Respondent No. 4 was not obliged to give any reasons as to why he had taken such a decision in the matter which was before him.”
अर्थात् जो सूचना सरकारी तंत्र के पास उपलब्ध है वह सूचना एक नागरिक मांग सकता है। अगर नागरिक ये मांगना चाहे कि कोई निर्णय क्यों किया गया तो इस सवाल का जवाब देने की बाध्यता नहीं है। लेकिन अगर फाइल नोटिंग्स की कॉपी मांगी जाए तो उसे देने की बाध्यता है। ये स्पष्टता से RTI Act में और माननीय उच्चतम न्यायालय ने लिखा है। लेकिन किसी की प्राइवेट जानकारी, जो सरकार के पास है, देश की सुरक्षा से संबंधित जानकारियां, ऐसे टेंडर जिन पर निर्णय नहीं हुआ, ये इस कानून की परिसीमा से बाहर हैं।
पारदर्शिता को उच्चतम न्यायालय ने गवर्नेंस का महत्वपूर्ण भाग माना है, इतना कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के विषय पर, जिस पर न्यायपालिका और सरकार आमने-सामने हैं, उच्चतम न्यायालय ने अपनी सूचना अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक कर दी है- यहाँ देखें: “#SCI_Website”
क्या रेल भवन के खैरख्वाह और शहंशाह जानते हैं इसे?
#CIC के इस आदेश में यह भी लिखा है:
“An open government, which is the cherished objective of the RTI Act, can be realised only if all public offices comply with proactive disclosure norms. Section 4(2) of the RTI Act mandates every public authority to provide as much information suo-motu to the public at regular intervals through various means of communications, including the Internet, so that the public need not resort to the use of RTI Act.”
आगे इस आदेश में यह भी कहा गया है:
The Hon’ble Supreme Court of India in the matter of CBSE and Anr. Vs. Aditya Bandopadhyay and Ors 2011 (8) SCC 497 held as under:
“The right to information is a cherished right. Information and right to information are intended to be formidable tools in the hands of responsible citizens to fight corruption and to bring in transparency and accountability. The provisions of RTI Act should be enforced strictly and all efforts should be made to bring to light the necessary information under Clause (b) of Section 4(1) of the Act which relates to securing transparency and accountability in the working of public authorities and in discouraging corruption.”
साथ ही इस जजमेंट में यह भी उल्लेखित है:
Hon’ble Delhi High Court ruling in WP(C) 12714/2009 Delhi Development Authority vs. Central Information Commission and Another (delivered on: 21.05.2010), wherein it was held as under:
“…. There is no denying that the petitioner is duty bound by virtue of the provisions of Section 4 of the RTI Act to publish the information indicated in Section 4(1)(b) and 4(1)(c) on its website so that the public have minimum resort to the use of the RTI Act to obtain the information.”
Furthermore, High Court of Delhi in the decision of General Manager Finance Air India Ltd & Anr vs. Virender Singh, LPA No. 205/2012, Decided On: 16.07.2012 had held as under:
“8. The RTI Act, as per its preamble was enacted to enable the citizens to secure access to information under the control of public authorities, in order to promote transparency and accountability in the working of every public authority. An informed citizenry and transparency of information have been spelled out as vital to democracy and to contain corruption and to hold Governments and their instrumentalities accountable to the governed. The said legislation is undoubtedly one of the most significant enactments of independent India and a landmark in governance.” The spirit of the legislation is further evident from various provisions thereof which require public authorities to:
A. Publish inter alia:
i) the procedure followed in the decision making process;
ii) the norms for the discharge of its functions;
### अब सवाल ये उठता है कि #RTI_Act और उच्चतम न्यायालय #Public_Interest किसे मानते हैं?
Hon’ble Supreme Court in the matter of Bihar Public Service Commission vs. Saiyed Hussain Abbas Rizwi: (2012) 13 SCC 61 while explaining the term “Public Interest” held:
“22. The expression “public interest” has to be understood in its true connotation so as to give complete meaning to the relevant provisions of the Act. The expression “public interest” must be viewed in its strict sense with all its exceptions so as to justify denial of a statutory exemption in terms of the Act. In its common parlance, the expression “public interest”, like “public purpose”, is not capable of any precise definition. It does not have a rigid meaning, is elastic and takes its colour from the statute in which it occurs, the concept varying with time and state of society and its needs (State of Bihar vs. Kameshwar Singh ([AIR 1952 SC 252]). It also means the general welfare of the public that warrants recognition and protection; something in which the public as a whole has a stake [Black’s Law Dictionary (8th Edn.)].”
The Hon’ble Supreme Court in the matter of Ashok Kumar Pandey vs. The State of West Bengal (decided on 18 November, 2003 Writ Petition (crl.) 199 of 2003) had made reference to the following texts for defining the meaning of “public interest’, which is stated as under:
“Strouds Judicial Dictionary, Volume 4 (IV Edition), ‘Public Interest’ is defined thus:
“Public Interest (1) a matter of public or general interest does not mean that which is interesting as gratifying curiosity or a love of information or amusement but that in which a class of the community have a pecuniary interest, or some interest by which their legal rights or liabilities are affected.”
In Black’s Law Dictionary (Sixth Edition), “public interest” is defined as follows:
“Public Interest something in which the public, or some interest by which their legal rights or liabilities are affected. It does not mean anything the particular localities, which may be affected by the matters in question. Interest shared by national government….”
In Mardia Chemical Limited vs. Union of India (2004) 4 SCC 311, the Hon’ble Supreme Court of India while considering the validity of SARFAESI Act and recovery of non-performing assets by banks and financial institutions in India, recognised the significance of Public Interest and had held as under:
“………Public interest has always been considered to be above the private interest. Interest of an individual may, to some extent, be affected but it cannot have the potential of taking over the public interest having an impact in the socio-economic drive of the country………..”
The Commission also observed that the framework of the RTI Act, 2005 restricts the jurisdiction of the Commission to provide a ruling on the issues pertaining to access/ right to information and to venture into the merits of a case or redressal of grievance. The Commission in a plethora of decisions including… had held that RTI Act was not the proper law for redressal of grievances/disputes.
##अंत में…
जैसा कि हमने पहले की अपनी #KMG सीरीज में लिखा है, रेल भवन एक अप्रत्याशित दौर से गुजर रहा है। रिकॉर्ड निवेश हो रहे हैं, औद्योगिक स्तर पर रेल को बदलने का प्रयास हो रहा है, और ‘न भूतो न भविष्यति’ स्तर पर #KMG रेल में स्वार्थपरक हितसाधन में लगा है। ऐसा कोई प्रीसीडेंस नहीं दिखता जहां इतने खुलासे के बाद भी रेल भवन में बोर्ड सदस्य, सीआरबी ने कोई कार्यवाही न की हो। वैसे खबरें पढ़कर #KMG ने भी अपनी गलतियों को कुछ सुधारा तो है।
तथापि, रेल मंत्रालय में सूचनाओं को दबाने का जैसा प्रयास हो रहा है, उससे षड्यंत्र की दुर्गंध आती है, उपरोक्त संदर्भित सीआईसी और कोर्ट के उसी जजमेंट को पढ़ें, आप पाएंगे कि बिना इस जजमेंट को पढ़े जानकारियां दबाने के प्रयास में कई अधिकारी तथा सेक्शन ऑफिसर अपना बुढ़ापा और कैरियर खराब करने की तरफ बढ़ रहे हैं।
रेल भवन से जैसे बड़े बजट के काम हो रहे हैं, अनैतिक आदेशों की झड़ी लगी है, ऐसे में सूचनाओं को दबाना अपराधिक कृत्य प्रतीत होता है। रेल के #KMG का इकोचैम्बर तो ऐसी सूचनाएं दबाना ही चाहेगा, क्या रेल के अन्य कर्मी इस षड्यंत्र में भागीदार होना चाहते हैं?
खैर, हमने तो चेताया है आपको, श्रीमती सौम्या राघवन के ऊपर बुढ़ापे में दर्ज #CBI केस से भी अगर नहीं सीखे, तो कोई बात नहीं – सब अपना भाग्य और कर्म भोगेंगे। क्रमशः जारी…
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी