मुंबई मंडल, मध्य रेल: नियमों को ताक पर रखकर कोई जड़बुद्धि अधिकारी कैसे कर सकता है अपनी मनमानी?

सेफ्टी कैटेगरी के प्रमोशन और पोस्टिंग में, मुंबई मंडल, मध्य रेलवे के अधिकारी नियमों और प्रक्रियाओं को ताक पर रखकर अपनी मूर्खतापूर्ण मनमानी की सारी सीमाएं पार कर रहे हैं!

मध्य रेलवे, मुंबई मंडल द्वारा 40 मोटरमैनों को जबरदस्ती मेल चालक की ट्रेनिंग हेतु जोनल रेलवे ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (जेडआरटीआई) भुसावल भेज दिया गया। इनमें से कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन किया हुआ था। जबकि रेल प्रशासन जानता था कि इनको अक्टूबर-नवंबर या दिसंबर में सेवानिवृत्त होना है। यह जानते हुए भी इनको मेल चालक की ट्रेनिंग में भेज दिया गया।

प्रशासन की इस मनमानी के विरोध में 6 लोग कोर्ट में चले गए। हालांकि इसके बावजूद वे लोग अपनी ट्रेनिंग ले रहे हैं। अब विडंबना यह है कि मेल चालक जो कि लोको पायलट की सर्वोच्च श्रेणी कहलाती है, जिसको द्रुतगति की विभिन्न सवारी गाड़ियां चलानी है, ऐसे मेल चालकों को जिनकी ट्रेनिंग 30 नवंबर तक थी, का अधिकारियों के द्वारा किसी भी तरह का साक्षात्कार या परीक्षा लिए बिना ही उनका प्रमोशन लेटर निकाल दिया गया।

जबकि नियम है कि हर ट्रेनिंग के बाद ट्रेनिंग करने वाले व्यक्ति का चीफ इंस्ट्रक्टर, एईई/ऑपरेशन तथा सीनियर डीईई/ऑपरेशन द्वारा मौखिक परीक्षा ली जाती है। उसमें सभी मानकों में खरा उतरने के बाद तथा प्रशिक्षणार्थी से “मुझे मेल चालक के रूप में कार्य करने का पूरा कांफिडेंस है” ऐसा लिखकर लेने के बाद ही उसको प्रमोट किया जाता है और तब उनका ट्रांसफर निकाला जाता है।

परंतु प्रशासन, खासतौर से बेहद अड़ियल और जड़ बुद्धि सीनियर डीईई/ऑपरेशन द्वारा ट्रेनिंग समाप्त होने के 6 दिन पूर्व ही बिना किसी भी तरह का टेस्ट लिए इनका प्रमोशन कर दिया गया। इसमें सीनियर डीपीओ द्वारा भी कोई मानक नहीं देखा गया, और सारे प्रशासनिक अधिकारी मौन होकर तमाशा देख रहे हैं।

क्या रेलवे किसी अधिकारी के घर की जागीर है? जो जैसा चाहे अपनी मनमर्जी करता रहे? नियमों और प्रक्रियाओं को ताक पर रखकर अपनी मूर्खतापूर्ण मनमानी चलाता रहे? और करोड़ों अरबों रुपये की रेल संपत्ति से और देश के सजग नागरिकों के जीवन से खिलवाड़ करता रहे? यह अधिकार सीनियर डीईई/ऑपरेशन को किसने दिया? तथापि अगर कोई जड़बुद्धि अधिकारी इस तरह का कृत्य कर रहा है तो मंडल और मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारी चुपचाप बैठकर यह तमाशा क्यों और कैसे देख रहे हैं? वे अपने कर्तव्य का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं? उनसे यह प्रश्न तो अवश्य ही पूछे ही जाने चाहिए!

यहां एक बात और ध्यान देने वाली है, वह यह कि एक खास वर्ग के अधिकांश अधिकारी इस तरह की मनमानी कर रहे हैं, मगर उनका कोई सीनियर उनको इस मनमानी से रोकने का प्रयास इसलिए नहीं करता, क्योंकि उन पर एक खास एक्ट की तलवार लटकी रहती है। और ऐसा भी नहीं है कि उन्हें नियम-कानून एवं प्रक्रिया की जानकारी नहीं होती, मगर वे यह काम जानबूझकर या अपनी हेकड़ी दिखाने के लिए करते हैं, या तो अपनी कमी छिपाने के लिए करते हैं, या फिर ‘अपनों’ को लाभ पहुंचाने के लिए करते हैं, क्योंकि उन्हें यह मुगालता हो गया रहता है कि उन्हें कोई कुछ बोलने या कहने की हिमाकत नहीं करेगा। अर्थात अधिकार का दुरुपयोग इसलिए हो रहा है, क्योंकि आत्मसात कर पाने की क्षमता न होने पर उन्हें मिले अधिकार का अहंकार हो गया है। इसी का परिणाम है कि हर सरकारी व्यवस्था चरमरा रही है। अतः सरकार और रेल प्रशासन को गंभीरतापूर्वक इस समस्या पर ध्यान देना चाहिए।

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