“खान मार्केट गैंग” की अनियमितताओं को आखिर कब तक नजरअंदाज करेंगे रेलमंत्री महोदय!
#Railwhispers ने जब से “खान मार्केट गैंग” (केएमजी) सीरीज चलाई है – भांति-भांति के फीडबैक विभिन्न कार्नर्स से हमें मिले हैं और लगातार मिल रहे हैं। अधिकांश से तो एडीशनल इंफर्मेशन की बाढ़ आ गई है। लेकिन दूसरी ओर धमकीनुमा या डराने की बातें भी सुनाई दे रही हैं।
#रेलव्हिस्पर्स का निवेदन बस इतना सा ही है कि ये समूह, जिसे रेलकर्मी/अधिकारी स्वयं पहले रेल की एक खतरनाक बीमारी अर्थात ‘ऑल इंडिया दिल्ली सर्विस’ (#AIDS) की संज्ञा देते थे, और खुलेआम ‘एड्स’ कहकर संबोधित करते थे, और अब रेल का ‘खान मार्केट गैंग’ (#KMG) कहते हैं, वह समूह रेलव्हिस्पर्स की खबरों का खंडन क्यों नहीं निकालता? सफाई क्यों नहीं दे रहा? हम तो वह भी पाठकों के सामने रखने को तैयार हैं!
क्या वजह का खुलासा करेगा रेल मंत्रालय?
क्या वजह थी कि आरडीएसओ के सीवीओ को रेलव्हिस्पर्स के खुलासे के बाद (–) तुरंत बदला गया (–)! जल्दबाजी यहां तक दिखी कि बिना किसी प्रक्रिया का पालन किए, बिना एडवर्टाइजमेंट निकाले, नये अधिकारी को पोस्ट कर दिया गया! इससे दो बातें निकलती हैं-
– इसमें सीवीओ/आरडीएसओ की खुद की गलती नहीं कही जा सकती – गलती उनकी है जिन्होंने उन्हें पोस्ट करवाया। रेल जो देश के पुराने अग्रणी विभागों में एक है, जिसके लिए सरकार ने अलग स्टैब्लिशमेंट प्रोसीजर का प्रावधान किया है, रेल की व्यवस्था द्वारा ऐसा ‘डेलिबरेट एक्ट ऑफ कमीशन’ से ही किया जा सकता है – इसे भूल/मिस्टेक (एक्ट ऑफ ओमिशन) नहीं कहा जा सकता।
– क्यों यह गलती हुई, जिसे छिपाने के लिए दूसरी गलती की गई? क्यों ये पोस्ट एड्वर्टाइज नहीं हुई? जो कि रेल मंत्रालय की पालिसी है, और इस पालिसी के एक्सेप्शन को उच्चतम स्तर पर देखा जाता है!
प्रॉपर प्रोसीजर का पालन नहीं
नियमानुसार आरडीएसओ की हर पोस्टिंग की फाइल रेलमंत्री के पास जाती है, क्या सच बात उन्हें बताई गई? पिछले एक साल में ऐसी कई पोस्टिंग आरडीएसओ में हुईं, जिनमें प्रॉपर प्रोसीजर का पालन नहीं हुआ, क्या यह पोस्टिंग रेलमंत्री को कांफिडेंस में लेकर की गईं? क्या इनका सच रेलमंत्री को बताया गया? अगर नहीं, तो क्यों? ये सवाल आज नहीं तो कल, कभी न कभी तो उठेंगे!
आरडीएसओ से जब एक अधिकारी को मात्र एक साल में बाहर ट्रांसफर किया जा रहा है और दूसरे को बोर्ड की पालिसी के अपवाद में बिना एडवर्टाइजमेंट के पोस्ट किया गया? सीवीओ की पोस्टिंग में सीवीसी का निश्चित इन्वॉल्वमेंट होता है, क्या बताया गया सीवीसी को?
https://www.kooapp.com/koo/RailSamachar/eeccff58-7e29-443e-ae7f-e875796f5006
आरडीएसओ जो हर समय सीवीसी और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों की निगाह में रहता है, वहां ऐसी गलती का क्या चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड (सीआरबी) या पीईडी/विजिलेंस ने कोई जांच की? क्या जिम्मेदारी फिक्स की गई? किसकी जिम्मेदारी फिक्स की गई? अगर नहीं की गई, तो क्यों नहीं की गई? जवाब तो देना पड़ेगा, आज नहीं तो कल!
नियम दरकिनार या फेवर करने के लिए हैं?
इसी तरह रेलव्हिस्पर्स ने इसका भी खुलासा किया कि सरकारी नियम – जिसके तहत जो अधिकारी जिस पीएसयू के साथ डील करता है उसे वहां डेपुटेशन पर नहीं भेजा जा सकता – यहां तो सीधे उसी पीएसयू में उस अधिकारी को सीवीओ बनाकर भेज दिया गया जो पिछले चार साल से उसके साथ सीधे डील कर रहा था! अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह किस स्तर की जोड़तोड़ है! इस नियम को देखना भी तो स्टैब्लिशमेंट ऑफिसर का ही काम है? ध्यान रहे!
सीआरबी साहब! स्टैब्लिशमेंट ऑफिसर (ईओ) सीधे आपके अधीन है, पहले तो सेक्रेटरी की लेयर आपको बचाती थी, लेकिन अब आप सीधे प्रभावित हो रहे हैं। और तो और डेपुटेशन की फाइल रेलमंत्री जी को भी पुटअप हुई थी! क्या कहकर/बताकर उनको गुमराह किया गया?
वहीं रेलव्हिस्पर्स के पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे/निर्माण में हो रहे स्कैम की मॉडस ऑपरेंडी के 22 अक्तूबर के खुलासे – “The accounts office of NFR Construction has become a cancerous place where no file is processed without a CUT“ – के कुछ ही दिन में कंस्ट्रक्शन के एफए एंड सीएओ को 28 अक्टूबर को रेलवे बोर्ड द्वारा ट्रांसफर कर दिया गया।
आपदा में अवसर तलाशा केएमजी ने !
#Railwhispers ने 5 अक्टूबर को SOS कॉल दी – “SOS! The uncertainty in Railway is on account of ill thought of transformation!“ दो दिन के अंदर 20 डीआरएम पोस्ट हो गए – जबकि फाइल एक साल से अधिक समय से पेंडिंग थी। इस तरह केएमजी ने आपदा में अवसर तलाशा और कुछ गैर-निष्ठावान, संदिग्ध इंटेग्रिटी तथा सरकार में रहकर सरकार की जड़ें खोखली करने वाले अधिकारियों को डीआरएम बना दिया, मगर इसमें किरकिरी हुई रेलमंत्री की! इस आदेश में इमोशनल इंटेलिजेंस का टेस्ट दरकिनार कर दिया गया। साथ ही किसी भी अधिकारी की फाइल और उसके ट्रैक रिकॉर्ड को कनेक्ट नहीं किया गया।
कन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट
अब सवाल यह उठता है कि क्या सिंगल टेंडर पर सलाहकार महोदय के पीएचडी गाइड की विदेशी कंपनी को दिए गए कांट्रैक्ट में कितना पेमेंट हुआ? और इन 20 अधिकारियों के इमोशनल इंटेलिजेंस टेस्ट के पेमेंट को कैसे दिखाया गया, जब इसका कोई उपयोग ही नहीं हुआ?
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#Railwhispers ने ये भी सवाल उठाया कि इसी कंपनी विशेष को क्यों चयनित किया गया। रेल स्वयं मनोवैज्ञानिक टेस्टिंग करती रही है, रक्षा मंत्रालय इसे नियमित उपयोग करता रहा है, एम्स, निम्हंस (NIMHANS) जैसे विश्व अग्रणी संगठनों से क्या सलाह ली गई थी? क्यों विदेशी टेस्ट चयनित किया गया?
फाइल नोटिंग सार्वजनिक करे रेल मंत्रालय
जब ये टेस्ट मैनडेटरी है, तो ये भी आवश्यक है कि रेल मंत्रालय इसे करने के पीछे के उद्देश्य की फाइल नोटिंग सार्वजनिक करे! क्या वरिष्ठ अधिकारियों की जानकारी देश के सर्वर्स पर है? ध्यान रहे कि इनमें से कई अधिकारी दूसरे मंत्रालयों में डेपुटेशन पर जाएंगे। अब यह जानकारी बाहर जाने के कारण क्या इन अधिकारियों को सेंसिटिव डेपुटेशन नहीं मिलेंगे? यहां यह भी ध्यान दें कि हाल ही में रेल मंत्रालय द्वारा जारी 17 अक्टूबर के आदेश में रेल मंत्रालय के ही कांट्रैक्ट वर्कर से ई-फाइल की एक्सेस रोक ली गई है!
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ध्यान देने वाली बात यह है कि ये टेस्ट कनाडा की कंपनी द्वारा कराया जाता है। कनाडा सरकार में कई भारत विरोधी तत्व होने की बात रही है और विदेश मंत्री कनाडा की सरकार से ये मुद्दा उठाते रहे हैं। यहां तक कि जस्टिन ट्रूडो की मुलाकात हमारे माननीय प्रधानमंत्री से तब भी नहीं हुई जब ट्रूडो पूरे एक हफ्ते तक भारत में थे। टेस्ट होना भी है और इसका उपयोग नहीं होना है, यह सीधे अनियमितता (इर्रेगुलैरिटी) को इंगित करता है!
प्रक्रिया को बार-बार दरकिनार किया गया
एमडी/एनएचआरसीएल, एमडी/आईआरएफसी को दी गई विजिलेंस क्लीयरेंस, उनका 360 डिग्री रिव्यू अब जांच का विषय बन गया है। कैसे सीबीआई की एफआईआर को दरकिनार कर दिया गया, यह न केवल अत्यंत आश्चर्यजनक है, बल्कि अविश्वसनीय है, ऐसा रेल के उच्च अधिकारी कहते हैं। इन्हीं दोनों प्रक्रियाओं से रेल के वरिष्ठ अधिकारियों का चयन हो रहा है।
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आदरणीय रेलमंत्री जी और सीआरबी साहब, उपरोक्त सभी तथ्य आपको सीधे प्रभावित करते हैं। ये बातें रेल के नेटवर्क में कोने-कोने से सुनाई दे रही हैं। सरकार की मंशा सीधी है और अब रिटायरमेंट के बाद भी ग्रेच्युटी और पेंशन पर प्रभाव पड़ेगा, ये इसी माह नोटिफाई कर दिया गया है – आपने भी सार्वजनिक तौर पर 56जे की बात कही है। लेकिन “खान मार्केटियों” का प्रभाव देखें कि सब डटे हुए हैं और सीआरबी एवं रेलमंत्री से घालमेल की फाइलें डील कराई जा रही हैं! क्रमशः जारी….
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खान मार्केट गैंग के घालमेल का एक नतीजा यह भी देखें –
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