मरणासन्न अवस्था में पहुंच चुकी है रेलवे बोर्ड इस्टैब्लिशमेंट की व्यवस्था!

“रेलवे बोर्ड की गतिशीलता के लिए सबसे जिम्मेदारी की पोस्ट – सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड – को लंबे समय तक न भरना कहां की समझदारी है!”

रेलवे बोर्ड के स्थापना निदेशालय (इस्टैब्लिशमेंट डायरेक्टोरेट) का बुरा हाल है। एक तरफ प्रमुख पदों को भरा नहीं जा रहा है, तो दूसरी तरफ इसकी लगभग सारी व्यवस्था तदर्थ (एडहॉक) आधार पर चलाई जा रही है।

इस स्थिति का सबसे ज्यादा नुकसान रेलकर्मियों और अधिकारियों का हो रहा है, क्योंकि उनका कोई भी काम, यथा – पदोन्नति, वेतन निर्धारण, एमएसीपी, डीपीसी तथा अन्य कार्मिक कार्य – समय पर नहीं हो पा रहे हैं।

इस सबसे खिन्न एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, “समझ में नहीं आ रहा है कि रेलवे बोर्ड की गतिशीलता के लिए सबसे जिम्मेदारी की पोस्ट – सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड – को लंबे समय तक न भरना कहां की समझदारी है।”

उन्होंने कहा कि इस समय कार्मिक निदेशालय में डीजी/एचआर, दोनों एएम की पोस्टें खाली रखी हुई हैं। कर्मचारी अपने दुखड़े, अपनी समस्या आखिर किसके पास लेकर के जाए।

उनका कहना है कि अगर इस्टैब्लिशमेंट के सारे काम ज्वाइंट सेक्रेटरी/कांफिडेंसियल को ही करने हैं, तो उसी को डीजी/एचआर और सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड की सारी जिम्मेदारियां सौंप दी जाएं। इस तरह कम से कम एक तो ऐसी जगह सुनिश्चित हो, जहां जाकर हम अपनी बात कह सकें/बता सकें!

उन्होंने कहा कि इसी तरह जीएम्स और एएम्स की पोस्टें लंबे समय से नहीं भरे जाने से लंबे समय तक अधिकारियों की डीपीसी भी लंबित रहती है। इससे उनमें असंतोष पैदा होता है और वे हतोत्साहित होते हैं।

उनका कहना है कि “इस तरह की तदर्थ कार्यप्रणाली से न तो सरकार को कोई फायदा हो रहा है, न ही कर्मचारी को! वास्तव में रेलवे की इस्टैब्लिशमेंट ऑर्गेनाइजेशन बिल्कुल चरमरा चुकी है, जो कि हमारी कार्य क्षमता पर बुरा प्रभाव डाल रही है।”