न जाने किस मुगालते में रहता है तथाकथित “रेल राजदूत”

रेलमंत्री अश्वनी वैष्णव को रेलवे विजिलेंस के कामकाज के तौर-तरीकों और गतिविधियों की गहरी समीक्षा करनी चाहिए, तभी अधिकारी और कर्मचारी बिना भय के काम कर सकेंगे, समयानुसार आवश्यक निर्णय ले सकेंगे, और तभी रेलवे को प्रोडक्टिव बनाने का उनका सपना साकार हो पाएगा!

उत्तर मध्य रेलवे की विजिलेंस टीम द्वारा सोमवार, 20 दिसंबर, 2021 को ट्रेन नं. 22411, अरुणाचल एसी सुपरफास्ट एक्सप्रेस में लखनऊ से आनंद विहार टर्मिनस के बीच किए गए प्रिवेंटिव चेक में कुल ₹2.51 लाख की अतिरिक्त राशि गाड़ी के तीनों ऑनबोर्ड टिकट चेकिंग स्टाफ से बरामद किए जाने की खबर से टिकट चेकिंग स्टाफ के कुछ अति सयाने लोग बौखला गए और खबर को असत्य बताकर, पहले खबर की पुष्टि करने, फिर छापने का ज्ञान देने लगे।

प्रकाशित खबर इस प्रकार थी –

Excess 2.51 lakh found in personal cash with on-board TC staff in a single preventive check

हालांकि खबर अत्यंत भरोसेमंद स्रोत से प्राप्त हुई थी, इसलिए वेरीफाई करने की आवश्यकता तो नहीं थी, तथापि यह पुष्टि करने के बाद ही उसे प्रकाशित किया गया था। तत्पश्चात कुछ सयाने लोग स्पष्टीकरण देते हुए कहने लगे कि “वह पैसा मकान के काम के लिए स्टाफ को कानपुर में उसका भतीजा देकर गया था, उसकी बैंक डिटेल भी उपलब्ध कराई गई, विजिलेंस टीम ने उससे बात भी की थी, फिर भी सारी राशि आरपीएफ की मदद से ‘एक्सेस इन प्राइवेट कैश’ दिखाकर जबरन रेलवे संड्री में जमा करा दी गई।”

यह भी कि “कैश तो निजी ही था, कानपुर में मंगाया गया था, इंचार्ज की जानकारी में था, परंतु डिक्लेयर नहीं किया, यही गलती है!”

इस मगरमच्छी मासूमियत पर कौन भरोसा करेगा?

अब ऐसे मासूम कुतर्कों को कौन सी जांच एजेंसी स्वीकार करेगी! सर्वप्रथम तो इतना नकद भुगतान आजकल इंटरनेट के जमाने में कोई नहीं करता। बीस हजार से ज्यादा का नकद भुगतान बैंक के माध्यम से करने का नियम है। तथापि जिस किसी को भुगतान करना था, जिस किसी कारण से, उसे सीधे ऑनलाइन किया जा सकता था, ड्यूटी पर रहते निजी नकद राशि मंगाने की बेवकूफी नहीं की जानी चाहिए थी। और यदि किन्हीं अपरिहार्य कारणों से यह राशि मंगाई भी गई, तो उसे फौरन “प्राइवेट कैश” के तौर पर अपनी ईएफटी पर लिखकर घोषित क्यों नहीं किया गया था? ऐसा नहीं पाए जाने पर विजिलेंस टीम संबंधित स्टाफ का कोई तर्क क्यों मान्य करेगी?

दूसरी तरफ जानकारों का कहना है, “सच यह भी है कि लॉकडाउन के बाद शुरू हुई गाड़ियों को मैन्ड कर रहे कुछ टीटीई खुलकर रेल राजस्व को लूटने-खसोटने में लगे हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर भारत से दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, अमृतसर, लुधियाना इत्यादि शहरों को आने जाने वाली गाड़ियों में टिकट चेकिंग स्टाफ अगर ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाए, तो लगभग हर गाड़ी में दो से पांच लाख का रेल राजस्व अनियमित यात्रा को नियमित करने के एवज में प्राप्त हो सकता है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।”

उनका कहना है कि “अवैध वसूली चेकिंग स्टाफ के जेब में जा रही है। यह भी सही है कि सतर्कता विभाग अपनी प्रॉपर ड्यूटी नहीं कर रहा है। शताब्दी, राजधानी जैसी अन्य महत्वपूर्ण गाड़ियों में सतर्कता निरीक्षकों द्वारा चेकिंग स्टाफ से हफ्ता वसूलने की अपुष्ट खबरें भी आती रहती हैं। हकीकत ये है कि वर्तमान में रेल से यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या में जिस तरह भारी वृद्धि हुई है, उस हिसाब से रेलवे को आय नहीं मिल रही है, क्योंकि रेलवे का वाणिज्य प्रबंधन कारगर नहीं है। जिम्मेदार लोग भ्रष्ट गतिविधियों में लिप्त हैं। इसमें सुधार की अत्यंत आवश्यकता है।”

उधर इस कथित “एकमेव सर्वाधिक कैश बरामदगी” के मामले से जुड़ी विजिलेंस टीम में शामिल ट्रैफिक के तीनों सीवीआई भी दूध के धुले नहीं हैं, बल्कि सबसे भ्रष्ट और बदनाम विजिलेंस इंस्पेक्टरों में इनकी गिनती होती है। विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि चूंकि इनमें से एक सीवीआई का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और उसने विजिलेंस में अपने सेवा विस्तार (एक्सटेंशन) का आवेदन भी दे रखा है, इसलिए भी उसे ऐसी बहादुरी दर्शाने की आवश्यकता थी।

यह सच है कि सीवीआई/ट्रैफिक/उ.म.रे. संतोष पांडेय और उनकी टीम द्वारा झांसी से ललितपुर के बीच चलती ट्रेनों में किए गए कई कारनामों की जानकारी काफी पहले से #Railwhispers और #RailSamachar को मिल रही थी। उनके बिना शेड्यूल प्रोग्राम मुंबई दर्शन कार्यक्रम की जानकारी भी है। इसके अलावा ऑनबोर्ड टिकट चेकिंग स्टाफ के साथ उनकी धौंसबाजी तथा अवैध वसूली का भी पता चलता रहा है।

तथापि आवश्यक प्रमाण के अभाव और टिकट चेकिंग स्टाफ की भ्रष्ट छवि के मद्देनजर इन सब खबरों पर उस समय पुख्ता तौर पर कुछ नहीं लिखा जा सका। इसका अर्थ यह नहीं है कि “ऊंट की चोरी” छिप गई? रेलवे में भ्रष्टाचार के लिए आज अगर टिकट चेकिंग अर्थात कमर्शियल स्टाफ से ज्यादा कोई स्टाफ बदनाम है, तो वह विजिलेंस स्टाफ है!

अतः टिकट चेकिंग स्टाफ जितना अपने बारे में छपी खबरों पर उचकता है, उतना ही अगर अपनी बदनाम छवि को सुधारने और नैतिकता, निष्ठा तथा शुचिता पर भी ध्यान दे, तो उसके साथ ही रेल की छवि भी साफ-सुथरी होगी और तभी उसे सही मायने में “रेल राजदूत” कहा जाएगा!

रेलमंत्री अश्वनी वैष्णव को भी रेलवे विजिलेंस के कामकाज के तौर-तरीकों और गतिविधियों की गहरी समीक्षा करनी चाहिए, तभी अधिकारी और कर्मचारी बिना भय के काम कर सकेंगे, समयानुसार आवश्यक निर्णय ले सकेंगे, और तभी रेलवे को प्रोडक्टिव बनाने का उनका सपना साकार हो पाएगा!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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