अभी नहीं, तो कभी नहीं: सीआरबी के पद पर सीनियर, सूटेबल, फेवरेबल नहीं, अब परफॉर्मर चाहिए!
जब तक योग्यता, निष्ठा, कार्यक्षमता और परफॉर्मेंस को वरीयता देने की नीति न केवल सीआरबी और मेंबर रेलवे बोर्ड के चयन में, बल्कि डीआरएम एवं जीएम के भी चयन में लागू नहीं की जाएगी, तब तक रेलवे में अपेक्षित परिणाम की अपेक्षा सरकार और रेलमंत्री को नहीं करनी चाहिए!
सुरेश त्रिपाठी
रेल भवन के भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार अब लगभग यह तय हो गया है कि वर्तमान सीआरबी/सीईओ को एक्सटेंशन नहीं मिल रहा है। देर-सबेर यह तो होना ही था, क्योंकि जिस तरह वह एक सजायाफ्ता जेलयाफ्ता ब्लैकलिस्टेड आदमी के साथ दारू पार्टी करते दिखाई दिए हैं, वह भारत सरकार के एक प्रिंसिपल सेक्रेटरी स्तर के वरिष्ठ अधिकारी के लिए अत्यंत शर्मनाक है। यही नहीं, इतना सब उजागर होने के बाद भी वह उसका फेवर करने से बाज नहीं आ रहे हैं। यह और भी ज्यादा शर्मनाक है!
केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद खासतौर पर रेलवे में राजनीतिक अथवा जिन भी कारणों से जिन-जिन रेल अधिकारियों को एक्सटेंशन या रिएंगेजमेंट देकर फेवर किया गया, वे निहायत निकम्मे और अकर्मण्य साबित हुए हैं। इससे एक तरफ सरकार का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, तो दूसरी तरफ रेल व्यवस्था का बंटाधार हुआ। कुछ नया करने के नाम पर व्यवस्थित चल रही व्यवस्था में केवल घालमेल हुआ, जिसका अपेक्षित परिणाम भी नहीं निकला।
प्रथम एक्सटेंशन प्राप्त सीआरबी दिवंगत ए.के.मित्तल का कार्यकाल तो फिर भी ठीक-ठाक रहा। दुर्भाग्यवश खतौली रेल दुर्घटना के बाद उन्हें इस्तीफा देकर जाना पड़ा। मगर दूसरे एक्सटेंशन प्राप्त सीआरबी वी. के. यादव न केवल असफल रहे, बल्कि उन्होंने अपनी विभागवादी मानसिकता और व्यक्तिगत अक्षमता के चलते वंदेभारत ट्रेनों के सफल निर्माण एवं परिचालन प्रोजेक्ट को पलीता लगाया।
यादव एवं उनकी चांडाल चौकड़ी, जिसमें पूर्व पीईडी विजिलेंस आर. के. झा और वर्तमान में जबरन छुट्टी पर भेजे गए मेंबर ट्रैक्शन एंड रोलिंग स्टॉक (एमटीआरएस) राहुल जैन प्रमुख रूप से शामिल रहे, ने न केवल कई सक्षम अधिकारियों का कैरियर चौपट करके रेलवे रिफार्म को पलीता लगाया, बल्कि इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विस (आईआरएमएस) के नाम पर रेल व्यवस्था को गड्ड-मड्ड कर दिया। कैबिनेट से अप्रूव्ड इस कैडर मर्जर के न तो अब तक नियम (नॉर्म्स) बन पाए हैं, न ही अब तक इस पर कोई प्रगति ही हुई है।
अब जहां तक बात आती है वर्तमान सीआरबी सुनीत शर्मा की, तो अगर इनके उपरोक्त व्यक्तिगत कदाचार को दरकिनार भी कर दिया जाए, तब भी यह वी. के. यादव से भी ज्यादा निकम्मे और अकर्मण्य साबित हुए हैं। पूरे एक साल में इन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया जो उल्लेखनीय हो। व्यवस्था में सुधार की बात तो दूर, जिनके साथ न्याय करना इनका कर्तव्य था, वह भी नहीं किया। यह न तो आईआरएमएस के नियम बना पाए, न ही समय पर जीएम/डीआरएम की पोस्टिंग कर सके। जीएम पोस्टिंग में सात महीने का कीमती समय नष्ट करके इन्होंने न केवल संबंधित अधिकारियों का मनोबल तोड़ा, बल्कि रेलवे का अगणित असीमित नुकसान भी किया। यही हाल डीआरएम पोस्टिंग को लेकर पहली छमाही में रहा, और अब दूसरी छमाही में भी वही हो रहा है।
कैबिनेट अप्रूव्ड नई रेल सर्विस आईआरएमएस पर पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल ने संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा था कि रेलवे बोर्ड के अब केवल पांच मेंबर – चेयरमैन/सीईओ रेलवे बोर्ड, मेंबर इंफ्रास्ट्रक्चर, मेंबर ट्रैक्शन एंड रोलिंग स्टॉक, मेंबर ऑपरेशन एंड बिजनेस डेवलपमेंट, मेंबर फाइनेंस – होंगे। इन पांचों पदों पर कोई भी सक्षम रेल अधिकारी आ सकता है।
हालांकि संसद में यह जवाब और विस्तृत विवरण देने से पहले ही उन्होंने मेंबर फाइनेंस में नरेश सलेचा को बैठा दिया था। तथापि उनके बाद सलेचा को दस महीने का एक्सटेंशन देने के लिए जो जस्टिफिकेशन नोट बनाया, उसमें यह लिखा गया कि उक्त पद की दावेदार जीएम/ बीएलडब्ल्यू श्रीमती अंजली गोयल तब भी मेंबर फाइनेंस बन जाएंगी, जब दस महीने का नरेश सलेचा का एक्सटेंडेड पीरियड समाप्त होगा। यह क्या बात हुई? सीआरबी सुनीत शर्मा द्वारा बनाया गया इस तरह का मूर्खतापूर्ण मगर फेवरेबल जस्टिफिकेशन क्या बिल्ली के आंख मूंदकर दूध पीने जैसा नहीं है? जबकि सब जानते हैं कि संसद में दिए गए आईआरएमएस के विवरण के मद्देनजर श्रीमती अंजली गोयल बोर्ड मेंबर (एमएफ) कभी नहीं बनतीं, क्योंकि उनसे ऊपर कम से कम सैकड़ों वरिष्ठ अधिकारी इसके दावेदार हैं।
जिस किसी भी कारण से हुआ हो, यह फेवर केवल नरेश सलेचा का ही नहीं हुआ, बल्कि मेंबर ऑपरेशन एंड बिजनेस डेवलपमेंट (एमओबीडी) में यह दूसरा फेवर संजय कुमार मोहंती का भी हुआ। पहला फेवर उन्हें ट्रैफिक कैडर का एकमात्र कैंडिडेट मानकर आउट ऑफ टर्न जीएम बनाने में किया गया था। जबकि कैबिनेट के निर्णय और पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल द्वारा संसद में दिए गए आश्वासन के मद्देनजर बोर्ड मेंबर बनने का मोहंती का दावा कतई नहीं बनता था। जब सरकार ही इस तरह अपने बनाए गए नियम और निर्णय को दरकिनार करेगी, तब नौकरशाही तो निरंकुश होगी ही! उल्लेखनीय है कि इस विषय पर 12.09.21 को किए गए आरटीआई आवेदन का उपयुक्त जवाब रेल मंत्रालय ने अब तक नहीं दिया है।
अब तक के लगभग नौ महीने के कार्यकाल में संजय कुमार मोहंती ने ऐसा कुछ नहीं किया जिसका उल्लेख सार्वजनिक तौर पर रेलमंत्री सीना ठोककर कर सकें। लाखों रेलयात्री परेशान हैं, अतिरिक्त/बढ़ा हुआ किराया देने को मजबूर हैं, मगर यात्री रेक, शेडों और साइडिंग्स में खड़े सड़ रहे हैं। उनमें जंग लग रहा है। केवल ऑक्सीजन ढ़ुलाई, जो कि केवल दिल्ली के लिए भी पर्याप्त नहीं हो सकी, और माल ढ़ुलाई का ढ़िंढ़ोरा पीटना पर्याप्त नहीं है। रेल सर्वसामान्य जनता की सवारी है, और जब जनता को ही यह सुविधा न मिल पा रही हो, तब जनता की गाढ़ी कमाई से हर महीने लाखों के वेतन-भत्ते ले रहे और सुविधाएं भोग रहे इन रेल अधिकारियों को उच्च पदों पर बैठाने का क्या औचित्य है?
आश्चर्यजनक यह भी है कि सीआरबी सुनीत शर्मा द्वारा हाल ही में जब नौ महीने से खाली पड़े डीजी/एचआर/रे.बो. के पद के लिए जीएम/एमसीएफ वी. एम. श्रीवास्तव का नाम भेजा गया, तब इस पद के दावेदार जीएम/कंस्ट्रक्शन/एनएफआर सुनील शर्मा, जिन्होंने उक्त पद खाली होने के ठीक दूसरे दिन ही एक पत्र लिखकर अपनी दावेदारी पेश कर दी थी, को लेकर रेलवे बोर्ड में हंगामा हो गया। परिणाम वही ढ़ाक के तीन पात रहा, दोनों में से किसी की पोस्टिंग नहीं हो पाई। इस तरह सुनीत शर्मा रेल प्रबंधन के हर मोर्चे पर असफल साबित हुए हैं।
अतः अब चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड के पद पर सीनियरटी के अनुसार नहीं, बल्कि परफॉर्मर अर्थात परिणाम देने वाले (रिजल्ट ओरिएंटेड) अधिकारी का चयन किए जाने की सरकार से मांग हो रही है!
वरिष्ठता क्रम में एलिजिबल कैंडीडेट्स इस प्रकार हैं-
1. आशुतोष गंगल, IRSME, GM/NR
2. एस.के.कश्यप, IRSEE, GM/CLW
3. एस.के.महंती, IRTS, Member O&BD/RB
4. अरुण अरोरा, IRSME, GM/ER
उपरोक्त एलिजिबल कैंडीडेट्स में शुभ्रांशु, सीएओ/बेला भी हैं। इनमें से एक अधिकारी तो स्वतंत्र निर्णय लेने में सर्वथा अक्षम है, जबकि एक मछली पकड़ने के लिए झील के किनारे कॉटेज बना रहा है और एक केवल अपनी यसमैनशिप एवं जन्मतिथि की रोटियां तोड़ते हुए यहां तक पहुंचा है। बाकी जिसकी जो योग्यता है, वह किसी से छिपी नहीं है।
तथापि उनका यह भी कहना है कि उपरोक्त पांचों वरिष्ठ अधिकारियों के कार्य निष्पादन एवं कार्यक्षमता की जांच-परख वहां से की जाए, जहां इन्होंने डीआरएम, एचओडी और जीएम के तौर पर काम किया है। इसके अलावा उन क्षेत्रों के सांसदों/विधायकों और अन्य जनप्रतिनिधियों तथा यात्री संगठनों से भी इनके कार्य व्यवहार की फीडबैक ली जानी चाहिए। इसके साथ ही इनके मातहत काम करने वाले और काम कर चुके अधिकारियों एवं कर्मचारियों से भी इनकी ऐनुअल कॉन्फिडेंसियल अप्रेजल रिपोर्ट (एसीएआर) भरवाई जानी चाहिए। तत्पश्चात ही इनकी योग्यता एवं कार्यक्षमता का सही आकलन किया जा सकेगा।
रेलवे के जानकारों का मानना है कि “दो साल बाद लोकसभा चुनाव से पहले अगर सरकार को 75 वंदे भारत ट्रेनसेट का उत्पादन करके जनता के सामने रेल की परफॉर्मेंस दिखानी है, तो सीआरबी के पद पर अब उसे सीनियर नहीं, बेस्ट परफॉर्मर का ही चुनाव करना चाहिए!”
हालांकि रेलवे के कुछ अन्य जानकारों का यह भी कहना है कि “लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सरकार शायद ही वरिष्ठता क्रम को दरकिनार करने का जोखिम उठाएगी!” परंतु इस पर जब उनसे यह तर्क किया गया कि अगर ऐसा है, तो फिर वह जनता के सामने रेल को लेकर सरकार क्या दावा करेगी? क्या तब प्रधानमंत्री के निर्देश पर 75 वंदे भारत ट्रेनसेट का उत्पादन संभव हो पाएगा? इस उनका कहना था कि “न हो पाए ट्रेनसेट्स का उत्पादन, सरकार के पास इसके लिए तब तक सौ तरह के बहाने होंगे, क्योंकि सरकार को परफॉर्मेंस से नहीं, फेवरेबल “यसमैन्स” की ज्यादा पड़ी है।” उन्होंने यह भी कहा कि “तब तक निजी ट्रेनें भी नहीं चल पाएंगी, क्योंकि निजी ट्रेनों का कंसेप्ट जनता और कंपनियों तथा स्टेक होल्डर्स के गले नहीं उतर रहा है।”
बहरहाल, सरकार जिस तरह अपनी परफॉर्मेंस को लेकर उत्साह से लबालब दिखाई दे रही है, और रेलमंत्री जिस तरह पुख्ता निर्णय लेते दिखाई दे रहे हैं, तब ऐसे में प्रधानमंत्री के दिए गए टार्गेट को दरकिनार कर पाना रेल मंत्रालय के लिए बहुत मुश्किल होगा। अतः जब तक योग्यता, निष्ठा और कार्यक्षमता तथा परफॉर्मेंस को वरीयता देने की नीति न केवल सीआरबी और मेंबर्स के चयन में, बल्कि डीआरएम एवं जीएम के भी चयन में लागू नहीं की जाएगी, तब तक रेलवे में अपेक्षित परिणाम की अपेक्षा सरकार और रेलमंत्री को नहीं करनी चाहिए।
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