पीईडी/विजिलेंस जाते-जाते कर गए एमसीएफ की प्रोडक्शन टीम का उत्पीड़न करने का इंतजाम

आर. के. झा के सभी निर्णयों का पुनरीक्षण करके सैकड़ों कार्यक्षम अधिकारियों का भविष्य बरबाद होने से बचाएं रेलमंत्री अश्वनी वैष्णव!

पूर्व पीईडी/विजिलेंस/रेलवे बोर्ड जाते-जाते मॉडर्न कोच फैक्ट्री (एमसीएफ) की उस प्रोडक्शन टीम के उत्पीड़न का पूरा इंतजाम करते गए, जिसने वर्ष 2019-20 के लिए रेलवे बोर्ड द्वारा दिए गए टार्गेट से ज्यादा कोच प्रोडक्शन किया। पूर्व पीईडी/विजिलेंस/रेलवे बोर्ड में केवल “पीईडी/विजिलेंस” नहीं थे, बल्कि वह एक “स्वायत्त विजिलेंस माफिया” थे, जो न अपने किसी सीनियर को भजते थे, न ही किसी अनुशासनिक अधिकारी को! बल्कि कांट्रेक्टर्स और सप्लायर्स को फेवर करके, उनसे उगाही करने के उद्देश्य से, या उनके कहने पर, अथवा स्वयं उनसे कंप्लेंट लेकर, टारगेटेड अधिकारियों के खिलाफ विजिलेंस केस बनाते थे!

दो उदाहरण इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं-

पहला मामला – तो यही एमसीएफ का है, जिसमें पूर्व जीएम/एमसीएफ और वर्तमान चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड तथा तत्कालीन प्रिंसिपल चीफ मैकेनिकल इंजीनियर (पीसीएमई/एमसीएफ) बतौर अनुशासनिक अधिकारी (डीए) फाइल पर यह लिख चुके थे कि इस मामले में कोई विजिलेंस ऐंगल नहीं है।

दूसरा मामला – सीएओ/आरडब्ल्यूपी, बेला एवं एक अन्य लेखाधिकारी का है, जिसमें बतौर डीए, मेंबर ट्रैक्शन एंड रोलिंग स्टॉक (एमटीआरएस) और मेंबर फाइनेंस (एमएफ) रेलवे बोर्ड ने भी फाइल पर लिखित में दर्ज किया था कि उक्त दोनों अधिकारियों के काम या निर्णय पर कोई विजिलेंस ऐंगल नहीं बनता। तथापि अपने से सीनियर अर्थात सेक्रेटरी/भारत सरकार के स्तर के उक्त दोनों बोर्ड मेंबर्स को बायपास करके तथा सीआरबी/सीईओ की जानकारी में लाए बिना पूर्व पीईडी/विजिलेंस रमेश कुमार झा उर्फ आर. के. झा ने उपरोक्त दोनों अधिकारियों के विरुद्ध मेजर पेनाल्टी चार्जशीट (एसएफ-5) की सिफारिश करके फाइल सीवीसी को भेज दी।

इस दूसरे मामले पर हाल ही में सीवीसी ने उक्त दोनों बोर्ड मेंबर्स को दो बार अपने सामने हाजिर होने का फरमान जारी किया, तब यह मामला रेलमंत्री तक पहुंचा। इसके बाद इस मामले में क्या निर्णय हुआ, इसका फॉलोअप #Railwhispers द्वारा जारी है।

प्रशासनिक और तकनीकी निर्णयों के खिलाफ बनाया विजिलेंस केस

पूर्व पीईडी/विजिलेंस/रेलवे बोर्ड आर. के. झा ने अपने ट्रांसफर से ठीक पहले जीएम/एमसीएफ की सिफारिशों के विरुद्ध निर्णय लेते हुए तत्कालीन सीएमई/प्रोडक्शन अनिल कुमार (#IRSME-95) एवं उनकी टीम का कैरियर बरबाद करने की कोशिश की है, जिन्होंने एमसीएफ की उपलब्ध क्षमता (रेटेड कैपेसिटी-1000)  के बावजूद वर्ष 2019-20 में 1930 कोचों का रिकॉर्ड उत्पादन किया था।

अनिल कुमार एवं उनकी टीम के अधिकारियों और सुपरवाइजरों ने ऐसे कई प्रशासनिक एवं तकनीकी निर्णय लिए जिनके परिणामस्वरूप न केवल 383 अतिरिक्त एलएचबी कोचों का निर्माण हो पाया, बल्कि 500 करोड़ से ज्यादा की मूविंग इन्वेंटरी हो पाई।

रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने अनिल कुमार और उनकी टीम के अन्य सदस्यों द्वारा लिए गए प्रशासनिक एवं तकनीकी निर्णयों के खिलाफ विजिलेंस केस बनाया। जबकि उनके निर्णयों से रेल राजस्व का कोई नुकसान नहीं हुआ, बल्कि टॉयलेट अपग्रेडेशन के मामले में ₹1.82 करोड़ की सेविंग हुई।

इसके अलावा ₹5.22 करोड़ की मैटेरियल लोनिंग की वास्तविक लागत के परिप्रेक्ष्य में ₹1.1 करोड़ की अर्निंग प्राप्त हुई। इस सबके अलावा प्रोडक्शन टीम द्वारा वह सभी 383 अतिरिक्त निर्मित कोच तब से भारतीय रेल की पटरियों पर सुरक्षित दौड़ रहे हैं।

रेलवे में लोन पर मैटेरियल देने और लास्ट पर्चेज रेट (एलपीआर) पर उसकी रिकवरी करने का यह सिस्टम परंपरागत रूप से चल रहा है। बोर्ड विजिलेंस ने इसी परंपरागत चल रही व्यवस्था पर उक्त प्रोडक्शन टीम के खिलाफ केस बनाया है। जबकि लोन पर मैटेरियल लेने-देने की यह परंपरा केवल एमसीएफ में ही नहीं, बल्कि भारतीय रेल के सभी जोनों, उत्पादन इकाईयों और कारखानों के इंजीनियरिंग, मैकेनिकल, एसएंडटी आदि विभिन्न विभागों में जमाने से चली आ रही है।

एमसीएफ की प्रोडक्शन टीम ने इसी पुरानी परंपरा का उपयोग किया, जिसके सभी कागजी प्रमाण उपलब्ध कराए गए, मगर वह सब विजिलेंस टीम द्वारा दरकिनार कर दिए गए। इस व्यवस्था का उपयोग करने के लिए कोई नई पालिसी भी नहीं बनाई गई, बल्कि उपलब्ध प्रक्रिया का ही ज्यादा सही तरीके से उपयोग किया गया, जिससे एलपीआर+एफओएच+एसओएच का 1.91 गुना रेट पर रिकवरी करके निर्धारित समय पर लोन को जीरो/न्यूनतम किया गया। यही नहीं, बाद में एसएजी लेवल कमेटी ने अपने परीक्षण में इसे घटाकर 1.21 गुना किया।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि प्रोडक्शन टीम के उपरोक्त प्रशासनिक एवं तकनीकी निर्णयों के चलते ही न केवल टार्गेट से ज्यादा कोच प्रोडक्शन हुआ था, बल्कि एमसीएफ को वर्ष 2018-19 और 2019-20 में लगातार दो साल “बेस्ट प्रोडक्शन यूनिट” की शील्ड भी मिली थी।

अतः यह न केवल उक्त प्रोडक्शन टीम के हित में, बल्कि रेलवे में चल रही परंपरागत व्यवस्था, जिसके कारण आउटपुट में देरी को रोका जाता है और रेल लगातार चलती रहती है, के हित में भी होगा कि रेलवे में “विजिलेंस माफिया किंग” रहे पूर्व पीईडी विजिलेंस रेलवे बोर्ड आर. के. झा के सभी निर्णयों का पुनरीक्षण (रिव्यू) रेलमंत्री द्वारा किया जाए। तभी उन तमाम कार्यक्षम और मेहनती अधिकारियों एवं सुपरवाइजरों का कैरियर चौपट होने से बच पाएगा, जिनको बरबाद करने की कुत्सित कोशिश आर. के. झा जैसा अति-मति-भ्रष्ट अधिकारी जाते-जाते कर गया है!

प्राप्त ताजा जानकारी के अनुसार रेलवे बोर्ड विजिलेंस द्वारा आर. के. झा के उक्त निर्णय की फाइल एमसीएफ पहुंच गई है और अब सीवीओ/एमसीएफ द्वारा उक्त प्रोडक्शन टीम के सभी 14-15 अधिकारियों एवं सुपरवाइजरों को विजिलेंस प्रश्नावली थमाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।

इस संदर्भ में एक उच्च रेल अधिकारी ने आर. के. झा का नाम आते ही उनके लिए एक असंसदीय शब्द का प्रयोग करते हुए कहा कि “इस आदमी को सबसे पहले निलंबित किया जाना चाहिए, फिर मेजर पेनाल्टी चार्जशीट देकर इसके विरुद्ध प्रॉसीक्यूशन की कार्यवाही की जानी चाहिए।”

जबकि एमसीएफ के एक रिटायर्ड वरिष्ठ मैकेनिकल अधिकारी की टिप्पणी इस प्रकार है – “Incidentally by doing so, few firms were also affected and arbitration cases also cropped up. What damage can take place, by one biased decisions, is visible!” क्रमशः

-सुरेश त्रिपाठी

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