टिकटिंग फ्राड और टिकट चेकिंग स्टाफ की गतिविधियों को नियंत्रित करे रेल प्रशासन!

यह ईएफटी ट्रेन नं. 02919, इंदौर-कटरा एक्सप्रेस में जालंधर में ऑन बोर्ड चेकिंग स्टाफ ने पकड़ी। वह भी तब जब संबंधित यात्री टिकट बनवाने को तैयार नहीं था। जबकि उसके पास से बरामद यह ईएफटी, ट्रेन नं. 02801, पुरुषोत्तम एक्सप्रेस के लिए बनाई गई थी।

यात्री इस गलतफहमी में था कि उसकी टिकट तो पहले से ही बनी हुई है। संबंधित स्टाफ ने जब उससे टिकट दिखाने को कहा, तब उसने यह ईएफटी दिखाई।

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प्राप्त जानकारी के अनुसार यात्री ने पठानकोट तक जब अपनी टिकट नहीं बनवाई, तब आरपीएफ को सौंपने की तैयारी करके जब आरपीएफ को बुलाया गया, तब यात्री टिकट बनवाने के लिए तैयार हुआ।

संबंधित यात्री का ही बयान है कि यह ईएफटी उसे ग्वालियर रेलवे स्टेशन के गेट पर बनाकर दी गई थी। परंतु यह सुनिश्चित नहीं है कि वह उक्त इंदौर-कटरा गाड़ी में ग्वालियर से चढ़ा था या कहीं और से आकर ग्वालियर में उक्त ट्रेन पकड़ी थी?

एक सामान्य यात्री को यह कभी समझ में नहीं आता कि उसे दी गई टिकट रसीद में संबंधित चेकिंग स्टाफ ने क्या लिखा है! वह केवल उससे चार्ज की गई राशि देख या समझ सकता है, वह भी तब जब अंग्रेज की संतानें अंक साफ-साफ लिखें! शब्दों में भी यह राशि लिखने का प्रावधान है, पर लिखी कभी नहीं जाती। इस ईएफटी में भी नहीं लिखी है।

यात्रियों को स्टेशन कोड भी नहीं मालूम होते हैं, न ही समझ में आते हैं। अतः यात्रियों को दी जाने वाली टिकट रसीदों पर रेल प्रशासन संबंधित स्टेशनों का पूरा नाम लिखा जाना सुनिश्चित करे।

चूंकि ईएफटी पर खुर्दा रोड (#KUR) से कटक (#CTC) लिखा देखकर उसका ग्वालियर में बनाया जाना संदेह पैदा करता है। मगर यह भी सर्वज्ञात है कि टिकट चेकिंग स्टाफ, स्याह को सफेद बताने में बहुत माहिर है। अतः इस मामले की गंभीरता से छानबीन की जानी चाहिए।

तथापि यह ईएफटी, जिसका ग्वालियर अथवा उक्त इंदौर-कटरा एक्सप्रेस से कोई संबंध नहीं जुड़ रहा, परंतु यात्री के बयान के अनुसार यह ईएफटी उसे ग्वालियर रेलवे स्टेशन के गेट पर बनाकर दी गई, यह गहन जांच का विषय है।

इसके अलावा उक्त ईएफटी के सभी कॉलम सही ढ़ंग से नहीं भरे गए हैं, यह भी सही है। जबकि नियमानुसार ईएफटी के सभी कॉलम पूरी तरह से और स्पष्ट अक्षरों में भरे जाने चाहिए। जिसमें सर्वप्रथम पकड़े गए यात्री का नाम लिखा जाना और उसका हस्ताक्षर लिया जाना अनिवार्य है।

परंतु इस ईएफटी को देखने से ऐसा लगता है कि किसी अनाड़ी या नौसिखिए ने यह ईएफटी बनाई है, जिसे यह भी नहीं पता कि यात्री का नाम लिखना और उसका हस्ताक्षर लेना जरूरी है। मगर संबंधित सीटीसी स्टाफ ने इस पर सभी नियत जगह भरने के बजाय कहीं भी कुछ भी लिखकर अपनी नक्शेबाजी का प्रदर्शन अवश्य किया है। क्या ऐसा नौसिखिया स्टाफ सीटीसी स्क्वाड में नियुक्त करने के लायक है?

तथापि टिकट चेकिंग स्टाफ के कुछ ज्ञानी और अति-सयाने लोग इस सच्चाई को छिपाने में जुटे हैं और इसे सही बता रहे हैं, जिससे उनकी और सीटीसी स्क्वाड दोनों की पोल न खुले। उनका कहना है कि इसमें जो कुछ भी लिखा है, वह सब सही है।

रेल प्रशासन “पंकज कुमार” नामक इस मतिभ्रष्ट चेकिंग स्टाफ की कही बात को नोट करे – यह कह रहा है कि “भाई ने जो बनाया, वह सब सही है!” यानि यह सीधे-सीधे स्वीकार भी कर रहा है कि “भले ही यह ईएफटी गलत बनी है, मगर चूंकि उसके एक भाई ने बनाया है, इसलिए वह सही है!”

वहीं सीटीसी स्क्वाड में कार्यरत कुछ स्टाफ ने स्पष्ट स्वीकार किया है कि यह ईएफटी पूरी तरह गलत बनी है। उन्होंने यह भी कहा कि “बोर्ड में इस स्क्वाड का मतलब ही वास्तव में “चमचागीरी टॉप क्लास” है। इसके वास्तविक नाम और काम के अनुरूप इसका सही नामकरण किया गया है।”

उन्होंने आगे यह भी कहा कि “अगर ईमानदारी से कोई सक्षम अथॉरिटी इस पूरे प्रकरण की गहन छानबीन और जांच करे, तो कई बड़े-बड़े खुलासे हो सकते हैं।”

जानकार चेकिंग स्टाफ का कहना है कि यह ईएफटी 100% हर नियम को तोड़कर केवल फर्जी टीए क्लेम करने के उद्देश्य से बनाई गई है। इसीलिए सभी ज्ञान बाटने वालों की असल तकलीफ ही यही है कि अब उनकी पोल खुल रही है। उनका कहना है कि बहुत से टीटीई ऐसे ही हैं, जो यात्री को कभी भी टिकट की सच्चाई नहीं बताते हैं।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी ट्रेन नं. 02331 में पटना का चेकिंग स्टाफ कुछ ऐसा ही धंधा करता पकड़ा गया था, जो यात्रियों से जम्मू तक के पैसे ले लेता था और उन्हें पंडित दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन (मुगलसराय), जो कि पूर्व मध्य रेलवे का अंतिम स्टेशन है, तक की टिकट बनाकर पकड़ा देता था।

टिकट बनाते समय पटना के ये धंधेबाज चेकिंग स्टाफ वाले इतनी चालाकी से कलम चलाते थे कि कोई यात्री तो क्या खुद कोई दूसरा टीटीई भी ईएफटी पर लिखी गई उनकी लिखावट को नहीं पढ़ पाता था। ईएफटी पर न तो स्टेशन कोड पढ़े जाते थे और न ही यह कि वास्तव में टिकट कितने किराए की बनी है।

अब ट्विटर और व्हाट्सएप पर टिकट चेकिंग स्टाफ के जो अति-सयाने लोग फर्जी-बोगस एकाउंट बनाकर ज्ञान बघार रहे हैं, उन सभी के एकाउंट डिटेल एकत्र करके साइबर सेल को उनकी लोकेशन और आईपी एड्रेस सुनिश्चित करने के लिए भेजे जा रहे हैं। बाद में उन्हें विभागीय कार्रवाई के लिए संबंधित अधिकारियों को सौंपा जाएगा।

जानकारों का मानना है कि “अगर रेल प्रशासन रेलवे में टिकटिंग फ्राड और टिकट चेकिंग स्टाफ की मनमानी तथा भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना चाहता है और रेल राजस्व में वृद्धि करना चाहता है, तो उसे इनकी सभी गतिविधियों को नियंत्रित करना होगा।”

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